22 दिसंबर 2008

मुंबई हमले के बाद एक और आजमगढ़ी युवक गिरफ्तार

यों तो मुंबई हमले से पहले भी आतंकवादी बता कर कई लोगों को उठा चुकी हैं. लेकिन इस हमले के बाद वह और खिसियानी बिल्ली की तरह बर्ताव करने लगी हैं. उन्हें खुद ही समझ में नही आ रहा की वो इतने बड़े हमले के बाद अपना दमन कैसे बचाए. हमले के बाद अपनी नाकामी से बौखलाई ऐटी एस ने एक बार फ़िर निर्दोष युवकों को उठाने का सिलसिला शुरू कर दिया है.
एटीएस का अगला शिकार भी आजमगढ़ का ही एक नवयुवक है. जिसे एटीएस ने २१ दिसम्बर की रात को नागपुर में पटना-सिकंदराबाद से उठाया है. युवक का नाम तलहा आमिर है. आजमगढ़ के शिबली नेशनल कॉलेज से स्नातक करने के बाद उसने दिल्ली में आईटी कम्पनी विप्रो ज्वाइन कर ली. साल के शुरू में उसने यह काम छोड़ हैदराबाद के एक काल सेंटर में काम करना शुरू कर दिया. तलहा ईद की छुट्टियों में घर आया हुआ था. उसके पिता आमिर रशादी कूद आतंकवाद विरोध में खड़े मुस्लिम संगठन से संयोजक हैं. वह आजमगढ़ में एक मदरसा भी चलते है. तलहा को उठाए जाने की ख़बर के बाद से एक बार फ़िर आजमगढ़ सहित पूरा पूर्वांचल आक्रोशित है. २२ दिस को आजमगढ़, मऊ, जौनपुर सहित कई जिले इसके विरोध में बंद रहे, इनकी मांग केवल तलहा को छोड़ने की नहीं है,बल्कि लोग आजमगढ़ को फर्जी गिरफ्तारियों से बदनाम करना की साजिश को भी बंद करने की मांग कर रहे हैं.
तमाम दबाओं के बाद २२ दिसम्बर को एटीएस ने तलहा को नागपुर की एक अदालत में पेश किया. आदालत में उसे उठाए जाने का जो कारन एटीएस के लोगो ने बताया वह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा एजंसियों को मजबूत करने की कवायदों पर भी सवालिया निशान लगता है. अदालत में एटीएस में तलहा को एक अदद पिस्टल के साथ गिरफ्तार दिखाया है. अपनी जान बचने के लिए एटीएस ने उसे बटला हॉउस के फरार लोगों में से एक बता दिया. इसे बिना सर पैर के आरोपों के बाद यह तो स्पष्ट ही है की एटीएस ने यह आरोप भी तमाम विरोधों के बीच अपने को पाक-साफ़ दिखने के लिए लगाया है. लेकिन साथ ही यह भी सवाल उठता है की क्या जनता का इतना पैसा खर्च कर इन एजंसियों को पिस्टल पकड़ने के लिए खड़ा किया गया है? और अगर ऐसा है तो जनता को भी सोचना चिहिए की उसके साथ सुरक्षा के नाम पर कैसा मजाक किया जा रहा है.

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