22 फ़रवरी 2009

लाखों बेघर, मगर करोणों का आंबेडकर पार्क

राघवेन्द्र प्रताप सिंह
सर्वजन मलिन बस्ती गरीब आवास स्लम एरिया मालिकाना हक योजना के तहत उत्तर प्रदेश के 1686 बस्तियों को जमीन का मालिकाना हक देने की घोषणा 15।01.2009 की गई। वास्तव में यह योजना लागू होती है तो पूरे प्रदेश के लगभग एक करोड़ 40 लाख गरीबों के सिर पर छत होगी। यह घोषणा हमारी लोेक प्रिय जन हितेषी दलित नेतृत्व द्वारा की गई है। जिसके कारण हमारे होठों पर हंसी आई हम इन्तजार करने लगे उस क्षण का जब हमारे हाथों में 90 वर्ष का पट्टा आयेगा शायद हमारी बस्ती का नाम पट्टधारी सूची में शामिल होगा।
कानपुर, लखनऊ, बनारस व इलाहाबाद में विकास प्रसधिकरण द्वारा एक लम्बा चौड़ा सर्वे हुआ। सभी शहरों में एक ऐसा वातावरण तैयार किया गया की गरीबों की तस्वीर बदल जायेगीए मगर हाय री किस्मत हम फिर उस सूची से गायब है। लखनऊ शहर में ही नव प्रकाशित सूची में 59 बस्तियों का नाम आया है। उन बस्तियों में वह बस्तियाँ शामिल है जो 150 वर्ष से अधिक पुरानी है। अब जिन लोगों के सामने लखनऊ शहर में बसाया गया है अगर उम्र के इस पड़ाव में उनके मकान पर ही उन्हें जमीन का मालिकाना हक देने की बात की जाय जो इससे बड़ी हास्यपद बात क्या होगी. पुराने लखनऊ में चौक, चिकमण्डी, बताशे वाली गली, मसालची टोला, झरजाली टोला, तकिया, मुंशी गंज, कटरा अब्बूतराब खाँ, बरौलिया जैसा बस्तियाँ शामिल हैं। यह सभी बस्तियाँ लखनऊ की सांस्कृतिक परम्परा की वाहक है। वहाँ पर जमीन के मालिकाना हक देकर क्या साबित कर रहे है।
लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा शासनादेश में कहा गया है कि नगर निगम क्षेत्र में 30 वर्ग मीटर जमीन देगे। यह जमीन प्रति वर्ग मीटर 20 रूपया मे मिलेगी। अगर इतने सस्ते दाम है तो फिर क्या कहने। मगर खेल इससे आगे है. वह यह कि नव प्रका्यित सूची में रेलवे, केन्द्र सरकार, राज्य सम्पति विभाग, वनक्षेत्रए हवाई अड्डा, सड़के, पार्क, सेना की भूमि ग्रीनवर्ज अवस्थापना औद्यौगिक विकास प्राधिकरण सरकारी आवासीय कालोनी हेतू आरक्षित भूमि पर मालिकाना हक नही मिलेगा। सरकार ने क्या खूब कही इस तरह से अस्सी प्रत्यित बस्तियाँ प्रदे्य में येाजना से बाहर हो जायेगी। इलाहाबाद शहर में तो 90 % बस्तियों सेना की जमीन पर है. आगरा और कानपुर में 75 % औद्यौगिक क्षेत्र में बसी है। वाराणासी शहर में तो धार्मिक क्रिया.कलापों की वजह से तो अधिकां्य बस्तियाँ जनहित की जमीन में निकल जायेगी। इसके पश्चात् जो बची बस्तियाँ है उसमें भी सरकारी मानदण्ड़ों के दाँवपेंच में छट जायेगी।
अपने जन्म दिन के अवसर पर इस महत्वाकाँक्षी योजना ने करोड़ो शहरी गरीब को भ्रम मेंं डाल दिया है। सबसे बड़े भ्रम की बात तो यह है कि 30 वर्ग मीटर जमीन आंवटित करने के बाद जो अतिरिक्त भूमि बचेगी उसका क्या होगाघ्. यह सरकार नही बताना चाहती है। डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर पार्क के नाम पर यह सरकार 1200 करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है। केवल प्रस्वेश द्वार पर संगमरमर के 10 हाथी स्थापित किए है। जिस पर कुल 34 करोड़ रूपया खर्च हुए है। प्रत्येक हाथी की लागत 65 लाख रूपया है।दूसरी तरफ विडम्बना यह है कि आवास विकास परिषद् द्वारा 20 रूपया आमदनी रोज करने वाले वर्ग के लिए 1लाख 80000 रूपया का मकान बनाने की बात कर रहा है. अगर पार्क का यह पैसा सरकार गरीबों को मकान बनाकर मुफ्त या मालिकाना हक दे दे । तो शायद अम्बेडकर जी को सच्ची श्रद्धाजंलि होगी. मगर एक तरफ हजार करोड़ रूपया से ऊपर का पार्क जिसकी क्या अर्थाकता है पता नही दूसरी तरफ जमीन का मालिकाना हे है। वह भी कितनो को मिलेगा यह सभी जानते है तीसरी तरफ 20 रूपया से भी कम आमदनी कमाने वाले वर्ग के लिए एक लाख अस्सी हजार रूपये का मकान है। इतनी बिड़म्बना पूर्ण हालत में विड्ढमता पैदा करने वाली सरकार हमारी हितैषी है मगर इस योजना में गरीब कहाँ है? यह सवाल है और जबाव देना होगा !
राघवेन्द्र प्रताप सिंह
a 232 चन्द्रलोक कालोनीए अलीगंजए लखनऊ

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