14 अप्रैल 2009

सांप्रदायिक विरासत और युवा क्रांति

शालिनी वाजपेयी
नावों के मौसम में रोज नई-नई खबरों से पाठकों को रूबरू होना पड़ता है। नेता भी अपनी पार्टी को चर्चा में बनाए रखने के लिए नए-नए कारनामे करते रहते हैं। और हमारे युवाओं की तो आप बात ही छोçड़यों वे तो इन बुड्ढों से भी दो कदम आगे खड़े हैं। कुछ सालों पहले तो इन बुड््ढों को देखकर लगता था कि कोई युवा नेता सत्ता में आएगा तो देश सुधरेगा। वह हमारे देश की सही जरूरतों को मुद््दा बनाकर हमारे लिए कम से कम जमीनी स्तर की सुविधाएं तो मुहैया कराएगा लेकिन सारे सपने सपने ही बनकर रह गए। यह युवा तो इन बुड््ढों से भी ज्यादा बूढे़ हैं। इनके मुद्दे तो बड़े ही नासमझी भरे हैं, इनके भाषण तो लगता है पर्चे पर रटने के बाद मैदान में आते हैं। यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जिन मुद्दों पर ये जोश में आकर इतनी तीखी भाषणबाजी कर रहे हैं उससे तो इनका कभी कोई वास्ता रहा ही नहीं है। महज चुनाव की बयार को गर्म करने के लिए ही यह ऐसे काम रहे हैं। जब यह विदेश में पढ़ने जाते हैं तब इन्हें कोई हिंदुत्व या देशभçक्त की याद नहीं आती है। अरे आप इतने बड़े देशभक्त इतने बड़े हिंदुत्ववादी हैं तो अपने देश के स्कूलों से शिक्षा क्यों नहीं ग्रहण की, तब आप पढ़ने के लिए क्रिश्चयन स्कूलों में जाते हैं और यहां आने के बाद हिंदुत्व की दुहाई देने लगते हैं। जब आपको भारत के आरएसएस स्कूलों में पढ़कर `सदा वत्सलें करना चाहिए था तब आपको यह सुधि नहीं आई, न ही आपकी हिंदुत्व मां को ही लगा कि प्रातज् स्मरण में `कराग्रे वस्ते लक्ष्मीं जरूरी है। लेकिन अब जब वोट लेने की बारी आती है तो आप पक्के हिंदू बन जाते हैं और हिंदुत्व की रक्षा के लिए हाथ काटने की धमकी देने लगते हैं। यह कैसा अवसरवाद है जो आपको चुनाव के समय ही याद आ रहा है। जिनके पुरखे हिंदू-मुस्लिम को एक करते करते मर गए उनके सुपौत्र धर्म के नाम पर धुव्रीकरण करके अपनी हिंदुत्ववादी राजनीति को चमकाने में लगे हैं। इस कर्मवीर सुपौत्र को इतना भी नहीं याद है कि जिसका उपनाम लेकर यह घूम रहे हैं उसकी हत्या करने वाला कोई सेकुलर नहीं बल्कि एक कट्टर हिंदूवादी था। भाजपा भी इनके उपनाम की वजह से और अपने विपक्षियों को तीलीलीली दिखाने के लिए ही इनकी मां को और इन्हें अपनी पार्टी में एक विशेष स्थान दे रही है। इसीलिए बिना किसी राजनीतिक अनुभव और समझ के ही टिकट दे दिया गया है। खैर यह तो नहीं कहा जा सकता है कि इससे भाजपा का बहुत नुकसान होगा क्योंकि भाजपा में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है। अभी तक यह लोकप्रियता नरेंद्र मोदी को ही प्राप्त थी लेकिन लग रहा है कि नरेंद्र मोदी की इस सा प्रदायिक विरासत को वरुण जैसा कर्मवीर योद्धा ही स भालेगा। बस डर है तो इस बात का कि कहीं यह उत्तर प्रदेश भी गुजरात न बन जाए। यदि ऐसा हो गया तो इनकी जीत होगी और भारत की पहचान बहुलतावाद और विभिन्नता में एकता जरूर नष्ट हो जाएगी। हम अभी तक तो बड़े ही गर्व के साथ कहते थे कि भारत की विशेषता है विभिन्नता में एकता लेकिन कहीं यह इतिहास न बन जाए। वरुण को हीरो तो बना ही दिया गया है। हीरो बनाने वाला भी हमारे जैसा मीडिया ही है। जो अपने अखबारों के पहले पन्ने पर वरुण की इस कर्मवीरता को दिखा रहा है। शीर्षक भी इसी तरह से बनाता है कि लगता है कि हे कर्मवीर तुम आगे बढ़ो हम तु हारे साथ हैं। बात तो सिर्फ बस इतनी है कि वरुण किस हिंदुत्व की रक्षा के लिए हाथ काटने की बात करते हैं माया कोडनानी जैसे हिंदुत्व की, जयदीप पटेल जैसे या फिर प्रमोद मुथालिक और मनसे, शिव सेना जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों की। माया कोडनानी और जयदीप पटेल जो कि गुजरात में नरोदा में होने वाली हिंसा में क्0म् लोगों की हत्या के दोषी हैं जिन्हें कि न्यायालय ने भगोड़ा साबित कर दिया था जब लगा कि बच नहीं सकें गे तो फिर इन्हें मजबूर होकर आत्मसमपüण करना पड़ा। दूसरे हिंदुत्व के वीर हैं मनसे प्रमुख जिनकी वजह से न जाने कितने यूपी और बिहार के लोगों को मु बई में जलील होना पड़ा और अपनी जिंदगी तक से हाथ धोना पड़ा। क्या उसी यूपी के लोग इस सिरफिरी मानसिकता के लोगों को समर्थन देंगे। ये वही लोग हैं जो क्षेत्रवाद और सा प्रदायवाद बढ़ाकर हिंसा फैलाते हैं और अपनी चुनावी फसल काटते हैं। इनके मुखौटे अलग-अलग हैं लेकिन उद्देश्य एक ही हैं वह है हिंदुत्व के बहाने सत्ता सिंघासन की प्राçप्त। इसी तरह के हिंदूवादी राम सेना के प्रमोद मुथालिक हैं और शिव सेना के बाल ठाकरे। ये कभी पब में लड़कियों के कपड़े फाड़ते हैं तो कभी वेलेंटाइन्स डे के दिन युवाओं को मार-पीट के हिंसा भड़काते हैं। ये वही लोग हैं जो भारत की मिली-जुली संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब को नष्ट करना चाहते हैं। ये सब वास्तविक मुद्दों से भी जनता को हटाना चाहते हैं और उसे इतना भ्रमित कर देना चाहते हैं कि वह समझ ही न सके कि समस्या की जड़ कहां पर है, वह हमेशा तना काटती रहे।जिस प्रकार से मनसे प्रमुख ने किया। मु बई में काफी सं या में मिलों के बंद होने से मु बई में बेरोजगारी बढ़ी है, तो इस समय पर अब दोबारा उन मिलों को चलाने और नई मिलों को खुलवाने की जरूरत है। इन मुद््दों को जनता न उठा पाए इसीलिए या इन मुद््दों को खत्म करने के लिए यूपी-बिहार और मु बई के बीच क्षेत्रीय विवाद शुरू कर दिया गया। कुछ यही हमारे युवा वरुण गांधी भी करने का प्रयास कर रहे हैं। देखा जाए तो इस समय बजाय हिंदुत्व की रक्षा के लिए लोगों के हाथ काटने के वास्तविक मुद्दे हैं- युवाओं को रोजगार मिले, किसानों को सçŽसडी मिले, इनकी फसलों का ज्यादा से ज्यादा मुनाफा इन्हें प्राप्त हो, मजदूरों की मजदूरी बढ़ाई जाए, शिक्षा सस्ती की जाए, बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा में भी फीस कम की जााए। इन मुद्दों को कम से कम युवा नेताओं को तो समझना ही चाहिए। यह वृद्धजन जो धोखेबाजी की राजनीति कर रहे हैं कम से कम इन युवाओं को तो इन कदम-तालों पर नहीं चलना चाहिए। तथाकथित रूप से पहली बार यह मुद्दा विहीन चुनाव है लेकिन यह गलत है। भारत देश में बहुत सारे मद््दे हैं, बहुत सारी समस्याएं हैं और इन पर लड़ने की जरूरत है ताकि जनता कम से कम इन साठ सालों के बाद तो आजादी के महत्व को समझ सके और उसे महसूस कर सके।अब युवाओं को और ज्यादा जागरूक होने की जरूरत है। अपनी एक स्वतंत्र आर्थिक नीति को विकसित करने की जरूरत है ताकि मंदी जैसी आयातित समस्या हम पर हावी न हो सके। अब जनता को इन सिरफिरे युवाओं के बहकावे में नहीं आना है और क्षेत्रवाद, स प्रदायवाद और भाईचारेवाद पर हो रही राजनीति को बेनकाब करना है। इसी में हमारे देश की भलाई है और यही सही सच्ची देशभçक्त भी होगी। हमें अपनी गंगा-जमुनी तहजीब, विभिन्नता में एकता की विशेषता, बहुलतावाद को अब और मजबूत करना होगा क्योंकि यही भारत की सांस्कृतिक पहचान है। इसीलिए इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही वोट करना है और सही व्यçक्त को चुनना है। अब वो समय है जब सिर्फ युवा नेता या युवा राजनीति से काम नहीं चलेगा बल्कि जरूरत है एक युवा क्रांति की जो बदल सके हमारे भारत देश को।

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