राहुल भाई,
हमारा दर्द उस कलावती जैसा तो नहीं है जिसे आपकी महज एक पहल ने देश दुनिया को विदर्भ की परेशानियों से वाकिफ करा दिया था. लेकिन पिछले पंद्रह दिनों से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में डिग्री की बिक्री के खिलाफ हम कैंपस से लेकर सड़कों पर जो लड़ाई लड़ रहे उसका ताल्लुक देश की तमाम कलावतियों से है. हम इलाहाबाद यूनिवर्सिर्टी में जर्नलिज्म डिपार्टमेंट के स्टूडेंट हैं और शिक्षा के निजीकरण के नाम पर कैसे कुछ लोग महज अपने फायदे के लिए इसे गरीबों से छीन कर बहुत महंगे दामों में मुहैया कराना चाहते हैं ताकि इससे उनकी जेबे भरती रही. राहुल हम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म विभाग के छात्र जो लड़ाई लड़ रहे हैं,वह देश के हर कोने में रहने वाली कलावतियों के बच्चों के समर्थन की लड़ाई है ताकि पूरब के इस आक्सफोर्ड में उन गरीबों की आमद बनी रही जिनकी बात हमने तमाम मंचों से आपके मुंह से बहुत संजीदगी से सुनी है. राहुल हम पत्रकारिता विभाग के छात्रों का आंदोलन तमाम कलावतियों के दर्द के साथ साथ उस पैसे को बीच में ही गुम कर दिए जाने के खिलाफ भी है जिसे सरकार तमाम योजनाओं और ग्रांटों के जरिए भेजती है. हां, हमारी लड़ाई उच्च शिक्षा के उस भ्रष्टाचार के खिलाफ भी है जिसमें कभी छात्रों के हिस्से की किताबों में घपला किया जाता है तो कभी यूनिवर्सिटी के अकादमिक माहौल को पलीता लगाकर डिग्रियां बेचने की दुकानें खोली जाती हैं.
सेल्फ फाइनेंस के नाम पर खोली जा रही इन दुकानों में पैसा ही एकमात्र मेरिट है. संसाधनों की कमी के नाम पर खोली जा रही ये डिग्री बेचने के केंद्र दरअसल कुछ लोगों की जेबें भरने के ही काम आती हैं. यूनिवर्सिटी के पास अपना पच्चीस साल पुराना जर्नलिज्म डिपार्टमेंट है जिसे शायद इसलिए बनाया गया था कि हम नौजवानों की एक ऐसी जमात पैदा कर सकें जो पत्रकारिता की जनपक्षधरता में यकीन करती हो. संसाधनों की कमी के बहाने शिक्षा के मकसद को नहीं बदला जा सकता. पत्रकारिता शिक्षा का मकसद कम से कम देश भर की कलावतियों के मुद्दे को सामने लाने का ही होना चाहिए. लेकिन राहुल यूनवर्सिटिज में ऐकडमिक काउंसिल से लेकर एक्सिक्यूटिव काउंसिल तक डिग्री बेचने की ऐसी दुकानों को प्रोत्साहित कर रही हैं जो सेल्फ फाइनेंस के नाम पर ऐसे कोर्स खोल रही हैं जो यूनिवर्सिटी सिस्टम के कुछ घाघ लोगों के लिए मनी मेकिंग मशीन हो गए हैं. राहुल इलाहाबाद केंद्रीय यूनिवर्सिटी है इसके लिए लंबी चैड़ी गा्रंट आती है. जिसका बहुत बड़ा हिस्सा बिना इस्तेमाल के ही वापस लौट जाता है. लेकिन फिर भी पत्रकार बनाने के लिए एक लाख बीस हजार रूपए वाली दुकानें खोली जा रही हैं. प्रोफेशनल स्टडीज के नाम पर स्टूडेंट्स से मनमाना फीस ली जा रही है. कहा जाता है कि ये प्रोग्राम्र्स आिर्थक रूप से आत्म निर्भर हैं लेकिन यूनिवर्सिटी के लिए आई ग्रांट का तमाम हिस्सा डिग्री की दुकानों को बांट दिया जाता है. अफसोस है लेकिन फिर भी कहना पड़ रहा है कि इसमें वीसी, एकेडमिक काउंसिल और एक्सिक्यूटिव काउंसिल तक नजरें चुराते हैं. राहुल भाई, शिक्षा के निजीकरण के नाम पर खेले जा रहे इस गंदे खेल में कलावती के बेटे बेटियों को कैंपस से वंचित कर देने की साजिश तो है ही साथ ही उस पैसे के रास्ते में ही गायब हो जाने की कहानी भी है जो समाज के निचले तबके के लिए हमारी सरकारें देती हैं. राहुल आप खबरें पढते होंगे कि हमारी यूनिवर्सिटयों के अकादमिक मुखियाओं के खिलाफ भ्रष्टाचार की तमाम जांच पड़तालें चलती रहती हैं. लेकिन फिर भी उच्च शिक्षा के भ्रष्टाचार पर कड़े कदम नहीं उठाए जा रहे हैं़
राहुल, हम लोग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता विभाग के समांतर मीडिया स्टडीज के नाम पर खोले जा रहे उस कोर्स का विरोध कर रहे हैं जो पत्रकारिता की डिग्री को इतनी महंगी बना देना चाहते हैं कि बस पत्रकार पैसे वाले ही बन सके. राहुल ऐसा तब किया जा रहा है कि यूनिवर्सिटी में पच्चीस साल पुराना पत्रकारिता विभाग है फिर भी मीडिया स्टडीज के इस कोर्स को इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेशनल स्टडीज तहत खोला जा रहा है. यूनिवर्सिटी के पास प्रचुर मात्रा में संसाधन हैं फिर भी इस डिपार्टमेंट को न तो पर्याप्त ग्रांट दी जाती है, न ही कोई प्रोत्साहन. इसके अलावा मीडिया स्टडीज और यूनिवर्सिटी में चल रहे जर्नलिज्म पढाने के तमाम ऐसे कोर्स है जिसमें पर्याप्त योग्यता रखने वाले टीचर्स भी नहीं हैं. तमाम गेस्ट लेक्चर देने वाले लोग सिर्फ कोर्स संचालकों के पसंदीदा हैं. इस बात का ख्याल न एकेडमिक काउंसिल में रखा जाता है न एक्सक्यूटिव काउंसिल में. राहुल आप बदलाव की बात करते हैं, हर आदमी को काम,हर आदमी को शिक्षा की बात करते हैं. राहुल शिक्षा और शिक्षा के निजीकरण के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है. लडाई बहुत बड़ी है, हम इस लड़ाई का छोटा सा हिस्सा हैं जिसमें हमें आपके समर्थन की जरूरत है. राहुल हमें उम्मीद है कि आप जन सरोकारों की इस लड़ाई में हमारा साथ देंगे.
- आपके समर्थन के आकांक्षी
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्र
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें