05 अक्तूबर 2009

भोजन का अधिकार: जरूरी मांगें

इस देष में रहने वाले सभी लोगों को भूख और कुपोशण से मुक्त रहने का बुनियादी अधिकार है। इसके लिए एक ओर जहां खाद्य पदार्थों की समुचित उपलब्धता जरूरी है; वहीं इसे सुनिष्चित करने के लिए टिकाऊ कृषि उत्पादन पद्धति को मजबूत करना, खासकर आधारित लघु किसानों पर विषेष ध्यान देने की खास जरूरत है। इसके लिए यह भी तय करना होगा कि खाद्य उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली भूमि तथा जल का जबरन इस्तेमाल नगदी फसलों या औद्योगिक उपयोगों के लिए कतई न किया जाए। साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य, दामों में स्थिरता, अनाजों का प्रभावी लेन-देन व भंडारण सुनिष्चित करने के लिए प्रभावी तंत्र होने के अलावा जमाखोरी तथा खुले व्यापार पर कड़ी निगरानी की भी जरूरत है।
इसी तरह भोजन के अधिकार को सुनिष्चित करने के लिए दूसरी ओर यह भी जरूरी है कि लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर की जाए। इसके लिए उन्हें पर्याप्त रोजगार और वेतन मुहैया कराया जाए, आजीविका के मौजूदा संसाधनों व तरीकों की रक्षा की जाए तथा जल, जंगल व जमीन पर उनके अधिकार संरक्षित किए जाएं। इसके अलावा यह भी जरूरी है कि सामाजिक तौर पर आने वाली बाधाओं मसलन, लिंग, जाति, विकलांगता, भेद-भाव व उम्र को भी भोजन के अधिकार पाने की राह में न आने दिया जाए।
ऐसी परिस्थिति बहाल करने की जिम्मेदारी जहां सरकार की है वहीं भोजन के अधिकार को अमली जामा पहनाने के लिए यह भी जरूरी है कि जरूरतमंद लोगों को सीधे भोजन मुहैया कराने की व्यवस्था जन सहयोग से अंजाम दी जाए। हम मांग करते हैं कि केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित सीमित ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ का दायरा बढ़ाकर इस व्यवस्था को ‘भोजन का अधिकार अधिनियम’ में अंतर्निहित किया जाए।

भोजन का अधिकार अधिनियमः जरूरी मांगें:-

- अधिनियम में सरकार को यह सुनिष्चित करने के लिए जवाबदेह बनाया जाए कि कोई भी महिला, पुरुष या बच्चा न तो भूखा सोए न ही कुपोषित रहे।
- अधिनियम में सरकार को इस बात के लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वह टिकाऊ तथा अन्य मान्य तरीकों से खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दे तथा सभ्ीा स्थानों पर हर वक्त पर्याप्त खाद्य की उपलब्धता सुनिष्चित करे।
- अधिनियम यह भी सुनिष्चित करे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेषों (परिषिष्ट 1) तथा मौजूदा योजनाओं में दिए सभी अधिकारों को इसमें षामिल करे, खासकर
* सभी सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में गर्म, पका हुआ, पोषाहार मध्यान्ह भोजन में मिले।
* छह साल से कम उम्र के सभी बच्चों को एकीकृत बाल विकास योजना के लाभों में षामिल किया जाए।
* अंत्योदय योजना के लाभ हितग्राहियों को प्राथमिकता के आधार पर दिए जाएं।
- इस अधिनियम का विस्तार अन्य अधिकारों मसलन वृद्धावस्था पेंषन योजना, मातृत्व अधिकार व राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना तक किया जाए।
- इस अधिनियम में उनके लिए यह अधिकार षामिल किए जाने चाहिएं जो मौजूदा योजनाओं से बाहर हैं; मसलन स्कूलांे के ड्रॅाप आउट बच्चे, बुजुर्ग व बीमार जिन्हें रोजाना देखभाल की जरूरत है, प्रवासी मजदूर व उनके परिवार, बंधुआ मजदूरों के परिवार, बेघर व षहरी गरीब।
- 0-6 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के भोजन के अधिकार को सुनिष्चित करने के लिए यह जरूरी है कि मांओं को प्रसव के दौरान मदद दी जाए, स्तनपान को प्रोत्साहन देने के लिए जरूरी समझाइष दी जाए, मातृत्व अधिकार दिए जाएं तथा कार्यस्थल पर झूलाघर की सुविधा मुहैया कराई जाए।
- इस अधिनियम में सरकार को बाध्य किया जाए कि वह गंभीर भुखमरी की स्थिति को रोके व ऐसे लोगों तक खाद्य की आपूर्ति सुनिष्चित करे जो भूख के संभावित षिकार होने वाले हों।
- इस अधिनियम में यह प्रावधान भी होना चाहिए कि सरकार प्राकृतिक व मानवजनित आपदाओं से बेहतर ढंग से निपटे तथा आंतरिक विस्थापन जैसी स्थिति में प्रभावित क्षेत्र में कम से कम एक साल तक भोजन की मात्रा दो गुना किया जाए तथा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कार्यदिवस की ऊपरी सीमितता खत्म कर दी जाए।
- देष के सभी नागरिकों को, खासकर वे जिन्हें उनकी संपत्ति की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लाभ से दूर रखा गया है, इस योजना के तहत षामिल किया जाना चाहिए। इसके तहत प्रत्येक परिवार को 35 किलो अनाज (या 7किलो प्रति व्यक्ति) प्रति माह, तीन रुपए किलो चावल व दो रुपए किलो गेहूं की दर से मुहैया कराया जाना चाहिए। पीडीएस के जरिए सब्सिडी के तहत सस्ते दाम वाले मोटे अनाज के अलावा तेल तथा दालों को भी मुहैया कराया जाना चाहिए।
- महिलाओं को परिवार के खाद्य संबंधी तमाम मामलों में मुखिया माना जाना चाहिए और राषन कार्ड पर भी इसका उल्लेख किया जाना चाहिए।
- इस अधिनियम में खाद्य संबंधी मामलों में सभी तरह के सामजिक भेद-भाव खत्म करने पर जोर दिया जाना चाहिए। मसलन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक आदि के साथ भेदभाव।
- इस अधिनियम में पोषण संबंधी किसी भी योजना में खाद्य सामग्री की जगह नकद देने की व्यवस्था नहीं की जानी सुनिष्चित की जाए।
-इस अधिनियम में खाद्य नीति व पोषाहार संबंधी योजनाओं में औद्योगिक हित व निजी ठेकेदारों का दखल रोके जाने के लिए जरूरी प्रावधान किए जाने चाहिएं, खासतौर पर जब यह मामला खाद्य सुरक्षा तथा बालपोषण से जुड़ा हो। खास-तौर पर सार्वजनिक पोषाहार योजनाओं में जीन सवंर्धित या हानिप्रद मिलावटी भोजन की आपूर्ति को कतई मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। जिन क्षेत्रों में निहित स्वार्थों का संघर्ष दिखता हो वहां सरकार को निजी क्षेत्रों के साथ भागीदारी नहीं करनी चाहिए।
- इस अधिनियम का उल्लंघन किए जाने की हालत में दोषियों को अनिवार्य दंड व वंचित हितग्राहियों को मुआवजा देने के लिए विषेष व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए एक मजबूत, स्वतंत्र व जवाबदेह संस्था बननी चाहिए जो तमाम षिकायतों का नियत समयावधि में निवारण कर सके (इसके पास आपराधिक मामलों पर कार्रवाई के भी अधिकार हों)। खासकर षिकायत निवारण तथा खाद्य संबंधी योजनाओं की देखरेख के मामले में ग्रामसभा को विषेष अधिकार दिए जाने चाहिएं।
- भोजन के अधिकार संबंधी योजनाओं में पारदर्षिता संबंधी अंतर्निहित मजबूत प्रावधान होेने चाहिएं। साथ ही सोषल आॅडिट की भी अनिवार्य व्यवस्था की जानी चाहिए।
- मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इस अधिनियम के तहत जरूरी सुधार किए जाने चाहिएं। मसलन राषन दुकानों के निजीकरण का खात्मा, इन्हें महिला समूहों को पर्याप्त पूंजी की मदद व कमीषन के साथ देने के प्रयास; साथ ही खाद्य सामग्रियों का राषन दुकानों पर आवंटन व पारदर्षिता के अन्य उपायों के साथ समूची प्रणाली का कंप्यूटरीकरण भी किया जाना चाहिए।
- इस अधिनियम में यह प्रावधान साफ तौर पर उल्लिखित होना चाहिए कि ऐसा कोई भी कानून या नीति नहीं बननी चाहिए जिसका भोजन के अधिकार को सुनिष्चित करने के माहौल पर विपरीत असर पड़े।


संलग्नक:
सुप्रीम कोर्ट के आदेषों के मुताबिक प्रदत्त वर्तमान अधिकारों की सार स्थिति (पीयूसीएल बनाम भारत सरकार एवं अन्य का मामला, सीडब्ल्यूपी 196/2001)
1. एकीकृत बाल विकास योजना:
*सभी बसाहटों, विषेष तौर पर अनुसूचित जाति, जनजाति व षहरी झोपड़पट्टियों मे आंगनवाड़ी केंद्र होने चाहिएं। स्थानीय आबादी की मांग पर भी उन क्षेत्रों में आंगनवाड़ी केंद्र खोले जाने का प्रावधान होना चाहिए, जहां 6 वर्ष के कम आयुवर्ग के कम से कम 40 बच्चे हों लेकिन कोई आंगनवाड़ी न हो।
*एकीकृत बाल विकास योजना के सभी हितग्राहियों को साल में तीन सौ दिन पूरक पोषाहार पाने का अधिकार है। यह पूरक पोशाहार निम्न जरूरतों को पूरा करने वाला होः छह वर्ष की आयु वर्ग के हर बच्चे को 300 कैलोरी तथा 8-10 ग्राम प्रोटीन, हर किषोरी, गर्भवती महिला तथा स्तनपान कराने वाली मांओं को 500 कैलोरी तथा 20-25 ग्राम प्रोटीन तथा हर कुपोषित बच्चे को 600 कैलोरी तथा 16-20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराने वाला हो।
*आंगनवाड़ी केंद्रों में पोषाहार की आपूर्ति के लिए ठेकेदारों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
*एकीकृत बाल विकास योजना के सार्वभौमीकरण में इस योजना की सभी सेवाओं (पूरक पोषाहार, वृद्धि की नियमित जांच, पोषण व स्वास्थ्य षिक्षा, टीकाकरण, स्कूल पूर्व षिक्षा) का विस्तार 6 वर्ष से कम आयुवर्ग के हर बच्चे, सभी गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं तथा किषोरियों तक होना चाहिए।
2. मध्यान भोजन योजना:
*प्रत्येक सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त प्राइमरी स्कूल के हर बच्चे को पका हुआ भोजन पाने का अधिकार है। इसमें साल में कम से कम 200 दिन 300 कैलोरी तथा 8-12 ग्राम प्रोटीन दिया जाना चाहिए।
*सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों में भी मध्यान भोजन पाने का अधिकार है।
3. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली:
*गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले सभी परिवार हर माह 35 किलोग्राम अनाज पाने के हकदार हैं।
*बीपीएल परिवारों को अपना राषन किस्तों पर खरीदने की अनुमति होनी चाहिए।
*राषन की सभी दुकानें नियमित तौर पर खुलनी चाहिएं।
4. अंत्योदय अन्न योजना:
निम्न विषेष प्राथमिकता वाले समूह अंत्योदय कार्ड पाने के हकदार हैंः
1. ज्यादा उम्र वाले, बेहद विकलांग, बेसहारा महिला व पुरुष, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाएं, 2. विधवा तथा अकेले रहने वाली महिलाएं जिनका कोई नियमित सहयोग न हो, 3. बुजुर्ग (60 से ज्यादा उम्र वाले) जिनका कोई नियमित सहयोग न हो, 4.परिवार जिनमें विकलांग वयस्क सदस्य हों, 5. ऐसे परिवार जिन्हें उम्रदराज बुजुर्ग, सामाजिक परंपरा के चलते किसी षारीरिक या मानसिक क्षमता के अभाव वाले विकलांग की देखभाल करनी पड़े या परिवार में नियमित रोजगार के लिए कोई वयस्क सदस्य न हो, 6. आदिम आदिवासी।
5. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंषन योजना:
सभी सुपात्र बुजुर्गों को हर माह नियमित तौर पर पेंषन ही जानी चाहिए। वर्तमान योजना के तहत बीपीएल परिवारों के 65 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गाें को हर माह 400 रुपए की पेंषन दी थी।
6. राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना:
बीपीएल परिवारों की सभी गर्भवती महिलाएं हर माह 500 रुपए नकद पाने की हकदार हैं। इसके लिए मां की उम्र, बच्चे के जन्म का स्थान व बच्चों की संख्या की कोई बाध्यता नहीं है।
7. राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना:
बीपीएल परिवार अपने मुख्य कमाई करने वाले सदस्य की मौत के चार हते के भीतर सरपंच के जरिए 10,000 रुपए की आर्थिक मदद पाने के हकदार हैं।
8. ग्राम सभाओं की जिम्मेदारीः
ग्राम सभाओं को सभी खाद्य/रोजगार योजनाओं की सोषल आॅडिट का अधिकार है, तथा किसी भी तरह की वित्तीय सूचना संबंधित अधिकारियों को देने का भी अधिकार है। अधिकारियों को ऐसी षिकायतों पर जांच के बाद कानून के तहत उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
9. सूचना तक पहुंच:
ग्रामसभाओं को विभिन्न योजनाओं पर नजर रखने या उनकी निगरानी करने का अधिकार है। साथ ही योजनाओं से संबंधित विभिन्न जानकारियों और हितग्राहियों के चयन व लाभ के बंटवारे संबंधी सूचनाओं तक भी पहुंच होनी चाहिए।
10. योजनाओं पर रोक न लगे:
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेष भी दिया है कि उसके आदेषों के तहत आने वाली कोई भी योजना बिना कोर्ट के पूर्व निर्देष या अनुमति के रोकी या निरस्त नहीं की जा सकती।

भोजन का अधिकार अभियान की ओर से जारी

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