अंबरीश कुमार
लखनऊ (जनसत्ता) । माओवादियों के निशाने पर अब उत्तर प्रदेश के बड़े शहर है । हाल ही में तीन शहरों में हुई गिरफ़्तारी के बाद इन कोशिशों को झटका लगा है । पर रणनीति में नया बदलाव शहरों की तरफ बढ़ने का है। यह जानकारी एसटीएफ़ के एसएसपी नवीन अरोरा ने जनसत्ता से बातचीत में दी । हाल ही में मीडिया में बीहड़ों में माओवादियों के डाकूओं की जगह लेने की ख़बरों को उन्होंने मनगढ़ंत बताया । नवीन अरोरा ने कहा ,' इस तरह की कोई जानकारी हमे नहीं है। न ही गिरफ्तार माओवादियों से पूछताछ में ऐसी कोई जानकारी मिली । माओवादियों के निशाने पर तो अब शहरी इलाके आ गए है । पर इनके बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर हने फिलहाल इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। '
यह पूछने पर कि जो माओवादी गिरफ्तार किए गए है उनका संबंध किन राज्यों से था ,नवीन अरोरा ने कहा -बिहार और उतरांचल। उन्होंने यह भी कहा कि माओवादियों की रणनीति में भी बदलाव आया है । पहले जहाँ वे जंगलों और ग्रामिण इलाको में आधार बनाते थे अब शहरों की तरफ मुड रहे है । कानपुर,इलाहाबाद और गोरखपुर से माओवादियों की गिरफ़्तारी इसका सबूत है । बीहड़ों में डाकूओं की जगह लेने के बारे में उनका जवाब था -जंगल में पुलिस प्रशासन का दबाव बहुत कम होता है संभवतः इसी वजह से यह कयास लगाया गया होगा कि माओवादी वहा शिफ्ट हो रहे है । पर पुलिस या एसटीएफ़ को इस तरह की कोई जानकारी नहीं है । उन्होंने यह भी कहा कि एसटीएफ़ को माओवादियों से पूछताछ और बरामद दस्तावेजों से महत्वपूर्ण जानकारी मिली है । जिससे पता चला कि उनकी रणनीति में नया बदलाव शहरी इलाकों की तरफ बढ़ने का है ।माओवादी ऐसे इलाकों की शिनाख्त कर पहले सर्वे करते है । सर्वे के नतीजों के बाद अपना आधार बनाकर महत्वपूर्ण स्थानीय मुद्दों की तलाश कर उन्हें उठाते है। अगला चरण आंदोलन का होता है। आंदोलन के बाद हथियारबंद क्रांति के नाम पर लोगो को लामबंद किया जाता है। माओवादी इसके बाद देशद्रोह के लिए उकसाते है।
यह पूछने पर कि मार्क्स ,लेनिन और चेग्वेरा की पुस्तकें क्या माओवादी साहित्य में आता है ,खासकर जिस तरह पुस्तक मेलें से पुस्तकें लेकर लौट रही सीमा आज़ाद को गिरफ्तार किया गया ?नवीन अरोरा ने कहा ,' मार्क्स, लेनिन या च्ग्वेरा की पुस्तकों को हम माओवादी साहित्य नहीं मानते पर सीमा आज़ाद के पास से जो कुछ बरामद हुआ है वह आप को जरुर दिखा सकते है। बरामद दस्तावेज आपतिजनक है।उनकी पत्रिका दस्तक में भी आपतिजनक सामग्री नज़र आई है। ' वामपंथी धारा में ज्यादातर माओवाद के खिलाफ है ,क्या पुलिस या एसटीएफ में इस बारे में कोई अध्ययन हुआ है ?इस पर जवाब था -सभी तो नहीं पर कुछ अफसरों ने माओवादी विचारधारा का अध्ययन भी किया है । सीमा आज़ाद के मामले में नवीन अरोरा का आरोप था कि पीयूसीएल के नाम पर उसे बचाया जा रहा है ।
गौरतलब है कि पत्रकार सीमा आजाद की गिरफ्तारी के खिलाफ व उनकी रिहाई की मांग को लेकर जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) हस्ताक्षर अभियान चलाएगा। जेयूसीएस की बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों ने पत्रकार सीमा आजाद की गिरफतारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए इसकी कड़ी निंदाकी । कार्यकारिणी सदस्य विजय प्रताप व अवनीश राय ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मानवाधिकारों पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा है। राज्य में पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें