17 फ़रवरी 2010

कलम पर पहरा लगाने का विरोध

- फर्जी मामलों में गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को रिहा करने की मांग

भारत एक बार फिर इमरजेंसी जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है, जहां विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडियाकर्मियों की खबर देने की आजादी खतरे में है। दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आज एक सेमिनार में इस बात पर चिंता जताई गई कि मीडिया के लिए तथ्यों की रिपोर्टिंग करना, खासकर आंदोलनों की खबरें देना इस समय कितना खतरनाक है। इस सेमिनार में मांग की गई कि झूठे मुकदमों में गिरफ्तार किए गए तमाम पत्रकारों को रिहा किया जाए।

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर ने कहा कि मौजूदा दौर में सरकार के कामकाज में पारदर्शिता यानी ट्रांसपेरेंसी घटी है, और सच को सामने लाने वाले पत्रकारों पर हमले तेज हुए हैं। प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटने के मकसद से किए जा रहे हमलों में तेजी आई है। उन्होंने कहा कि 1974 में लगी इमरजेंसी के खिलाफ पत्रकारों ने जिस तरह विरोध किया था, वैसी आवाज एक बार फिर उठाने की जरूरत है और इसके लिए पत्रकारों के संगठनों को आगे आना चाहिए।

इस सेमिनार का आयोजन जनहस्तक्षेप, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और जर्नलिस्ट फॉर डेमोक्रेसी ने मिलकर किया, जिसमें बड़ी संख्या में पत्रकार, संपादक, शिक्षक और सामाजिक-राजनीतिक नेता-कार्यकर्ता शामिल हुए। मेनस्ट्रीम के संपादक सुमित चक्रवर्ती ने कहा कि जनता के आंदोलनों की रिपोर्टिंग करने की वजह से कई पत्रकार गिरफ्तार किए गए हैं। ऐसे पत्रकारों पर माओवादी होने का लेबल चिपका दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इस समय एक बार फिर से बोलने की आजादी के लिए संघर्ष करने की जरूरत है। वरिष्ठ समाजवादी चिंतक सुरेंद्र मोहन ने कहा कि विरोध की आवाज के लिए मीडिया में जगह घटी है, जो चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि भारत का पूंजीपति विदेशी पूंजी का दलाल है और उसी के इशारे पर दमन की कार्रवाई कर रहा है।

सीपीआई (एमएल) न्यू डेमोक्रेसी की दिल्ली राज्य सचिव डॉ अपर्णा ने कहा कि आंदोलनों की खबरों को मीडिया में जगह नहीं मिल पाती है। उन्होंने कहा कि जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों, राष्ट्रीयता के संघर्षों, अल्पसंख्यकों के आंदोलनों, क्रांतिकारी संघर्षों और साथ ही इनसे सहानुभूति रखने वाले बुद्धिजीवियों पर दमन को लेकर शासक वर्ग के तमाम हिस्सों में आम राय है। पत्रकार इफ्तिकार गिलानी ने कश्मीर में मीडिया के दमन के बारे में जानकारी दी और इन घटनाओं का ब्यौरा संकलित करने की जरूरत बताई। इस सेमिनार में ये मांग की गई कि जिन पत्रकारों को झूठे मुकदमों के तहत गिरफ्तार किया गया है, उन्हें तत्काल रिहा किया जाए और उनके खिलाफ मामले वापस लिए जाएं। सरकार से ये मांग भी की गई कि विरोध करने वाले लोगों और मीडियाकर्मियों का उत्पीड़न बंद करे। साथ ही पत्रकारों को फर्जी मुकदमों में फंसाने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। सेमिनार में ये मांग भी की गई कि प्रेस की स्वतंत्रता को हर हाल में बहाल किया जाए और तमाम काले कानूनों को रद्द किया जाए।
चित्र - मोहल्ला लाइव

1 टिप्पणी:

C.S STUDENTS SERVICESS ने कहा…

hum aap ke sath hai sima ji k shyog me varanasi ki ptrkarita

अपना समय