17 जून 2010

समानांतर राजनीति की दरकार

राजीव यादव
 ‘‘आदिवासियों का भूमि अधिग्रहण न रुका तो मध्यवर्ग भी अपने लोकतांत्रिक अधिकार नहीं बचा पाएगा।’’ संगम नगरी में 27-28 मार्च को जनांदोलनों की दो दिवसीय बैठक का उद्घाटन करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि माओवादी हिंसा के मुकाबले राज्य की हिंसा सौ गुना ज्यादा है। ऐसे में नागरिक समाज को माओवादी हिंसा की आलोचना करने के साथ राज्य प्रायोजित हिंसा की उससे सौ गुना ज्यादा निंदा करनी चाहिए।
जनांदोलनों के नेताओं के इस कुंभ में गुजरात से आए बुजुर्ग गांधी वादी चुन्नी काका ने जहां अपने अनुभवों से इस बात को मजबूती दी कि भूमि के सवाल पर सरकार को जनता की मर्जी के आगे झुकना ही होगा। हमें सरकार से प्राकृतिक संसाधनों के अधिकार छीनने होंगे। तो वहीं समाज विज्ञानी और अनुसूचित जाति जनजाति के आयुक्त रहे डा0 बीडी शर्मा ने कहा कि देश में विकास के नाम पर भ्रम जाल बुना गया है। खेती-किसानी के लिए कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज गैर कानूनी है। फिर भी उसका खुला उल्लंघन हो रहा है। तंत्र कितना निरंकुश है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस अनाचार को चुनौती देने के लिए सरकार ने अदालतों तक का दरवाजा बंद कर दिया है और देश में नए सेजों के बनने के साथ-साथ नए विदर्भ और बुंदेलखंड भी बन रहे हैं। संगठित और असंगठित क्षेत्र की बात पर जोर देते हुए शर्मा ने कहा कि देश में मेहनत की हकदारी तय करने के दो मापदंड हैं। संगठित क्षेत्र के लिए परिवार को ईकाई माना जाता है जबकि असंगठित क्षेत्र में परिवार का जिक्र तक नहीं है।
पिछले दिनों माओवादी नेता किशन जी के डा0 बीडी शर्मा की मध्यस्तता में सरकार से बातचीत करने की बात पर शर्मा का कहना है कि आदिवासी इलाकों में राष्ट्ीय संकट की स्थिति है। चालीस साल आदिवासियों के बीच रहा हंू और बस्तर में एक जिलाधिकारी के तौर पर भी,अगर मेरी पहल से मामला सुलझ सकता है तो हर संभव मदद करुंगा। विकास के सवाल पर वे मानते हैं कि इन क्षेत्रों में विकास नहीं विस्थापन बड़ा सवाल है, जो सरकार कर रही है। मैंने देखा है आदिवासी क्षेत्रों मंे पूरी तरह शांती थी और वो भी उनके अपने नियमों-कानूनों की बदौलत। पर जब विकास के साथ उसे लागू करने के लिए पुलिस पहुंची तो उसने शोषक का काम किया। सरकार बताए ‘बुजुर्गों की हाड़ पर हाड़ पड़े तो पहाड़ बने’ की विरासत को आदिवासी कैसे और क्यों छोड़ दंे। आज सवाल हिंसा का नहीं, आदिवासी क्षेत्रों की वन संपदा के संरक्षण का है। आदिवासियों के संरक्षण का जो काम सरकार का है उसे माओवादी कर रहे है।
 टूटे हुए सरकारी वायदों की टूटी हुयी कड़ी आदिवासियों पर बोलते हुए स्वामी अग्निवेश ने कहा कि हमारी दिशा अब दिल्ली नहीं बल्कि वो जनांदोलन का मैदान होना चाहिए जहां जनता अंतिम दम तक लड़ने के लिए तैयार है। आपरेशन ग्रीन हंट की मुखालफत करते हुए कहा कि माओवादी जिन मुद्दों पर लड़ रहे हैं उन पर हम भी लड़ रहे हैं। विदेशी वेदांत और एनरॉन के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार सरकार आखिर अपने की देश के आदिवासियों का सवाल क्यों नहीं सुनना चाहती। मुद्ों-समस्याओं के इस गंभीर, जटिल और चुनौतीपूर्ण मंथन में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि बटवारे के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान पैदल आते हुए मैंने अपने इर्द-गिर्द सांप्रदायिक दंगों में मारे गए लोगों की लाशें देखी। तभी तय किया था हम जो नया भारत बनाएंगे उसमें सांप्रदायिक या जातिगत हिंसा की कोई जगह नहीं होगी। लेकिन आज गुजरात से कंधमाल तक जो हिंसा जारी है वो हमारे आधुनिक भारत की अवधारणा को खुरच रही है। ऐसे में एक नए तरह की राजनीति ही हिंदुस्तान को बचा सकती है।
वरिष्ठ गांधीवादी और आजादी बचाओ आंदोलन के बनवारी लाल शर्मा द्वारा आयोजित बैठक में सर्व सेवा संघ, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, समाजवादी जन परिषद, सोशलिस्ट फ्रंट, माटू जनसंगठन समेत दजर्नों संगठनों के नेताओं ने शिरकत की। दंतेवाड़ा में सरकारी दमन के शिकार वनवासी चेतना आश्रम के गांधीवादी मानवाधिकारकर्ता हिमांशु कहते हैं कि देश में आ रहे जनविरोधी बदलावों के चलते कारपोरेटीकरण के इस दौर में लोगों के हितों को रौंदा जा रहा है। साम्रज्यवाद के दबाव में प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबाट की जा रही है। भारत जनांदोलन के पंकज पुष्कर कहते हैं कि प्राकृतिक संसाधन जिनके थे उनके ही रहने चाहिए। यहां देने लेने का सवाल ही कहां पैदा होता है। यह सवाल तो मनुष्य की सभ्यता से जुड़ा है। सरकार अगर उनको बेहतर जीवन नहीं दे सकती तो उन्हें उजाड़ने का अधिकार भी उसके पास नहीं है। आज बंदूक के बल पर उनको विस्थापन के लिए विवश किया जा रहा है। जंगलात आदिवासियों के हैं, सरकार के नहीं। आज जो लोग महाशक्ति का दंभ भर रहे हैं क्या वो बताएंगे कि इसका आधार क्या है? जो भी महाशक्तियां हैं उनके तो उपनिवेश रहे हैं, जिनको लूटकर वे महाशक्ति बने हैं। हमारी सरकारें अपने ही देश में उपनिवेश पैदा कर किसानों और मजदूरों को आत्म हत्या के लिए मजबूर कर रही हैं। अगर नहीं तो वो कैसे महाशक्ति बन रहे हैं इसका जवाब दें।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जनकलाल ठाकुर ने सवाल किया कि हमारे देश में लंबी-लंबी सड़के बन रही हैं। वहां हमारे लिए रोजगार नहीं है। भर्तियां हो रही हैं तो पुलिस की, अपने ही लोगों पर, जो इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे पर गोली चलाने के लिए। हमें योजना नहीं, अभियान लेना होगा और वो तय करेगा हिंदुस्तान कैसा होगा। हमनें स्कूल, अस्पताल खोले जिसके लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। पर आपरेशन ग्रीनहंट के लिए सरकार के पास पैसा है। यह सरकार की निरंकुशता और हद दर्जे की बेशर्मी ही है कि उसका पूरा पूंजीवादी स्वरुप सबके सामने आ गया है पर फिर भी वो विकास-विकास कह रहीं है। किसने उसे अब तक विकास के लिए रोका था? जनता जानती है कि जंगलात पर कब्जे के बाद किसी वेदांता या किसी एनरॉन का ही विकास होना है। 

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