दैनिक जागरण में 31 अगस्त 10 को प्रादेशिक खबरों के पेज पर ‘आईएसआई बिगाड़ सकती है माहौल’ सुर्खी से छपी खबर से लगता है कि यह अखबार 1992 की अपनी करतूतों को दोहराने पर उतारु हो गया है। गौरतलब है कि 1992 में बाबरी मुद्दे पर अफवाह फैलाने के स्तर तक यह अखबार उतरा था और अपनी सांप्रदायिक खबरों से इस घटना के बाद दंगों में मारे गए हजारों लोगों की हत्या का भागीदार बना। हिंदी पत्रकारिता के बजाय हिन्दुत्वादी पत्रकारिता के लिए जाने-जाने वाले इस अखबार की करतूतों से अखबारों की विश्वसनियता तो कटघरे में खड़ी ही हुयी, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी अधिकृत तौर पर संप्रदायिक खबरों के लिए इसे लताड़ लगायी थी।
मौजूदा खबर में बताया गया है कि अयोध्या मुद्दे पर फैसला आने के बाद आईएसआई कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी कर सकता है। यहां गौरतलब है कि पूरा देश और समाज इस बात से दहशत में है कि संघ गिरोह कहीं फिर से बानबे की तरह देश को दंगों की आग में न झांेक दे। हर तरफ लोग इस गिरोह के गुर्गे बजरंगदल, विश्वहिंदू परिषद जैसे संगठनों से सहमें हुए हैं जिनके शक को इस गिरोह के लोगों द्वारा सार्वजनिक तौर पर यह धमकी भी है कि कोर्ट का फैसला अगर उनके खिलाफ गया तो वे सड़कों पर उतरेंगे। देश अपने अनुभव से जान चुका है कि इस गिरोह के लोगों का सड़कों पर उतरने का मतलब फिर से गुजरात और कंधमाल दोहराने की ही धमकी है। बावजूद इसके अखबार न तो जनता में व्याप्त इस डर को अपनी खबर में रेखांकित करता है बल्कि पाकिस्तान और आईएसआई का हव्वा खड़ा कर वास्तविक खतरे से ध्यान बटाना चाहता है।
इस खबर में खूफिया विभाग के ‘सूत्रों’ द्वारा जिस तरह बताया गया है वह इस बात को दर्शाता है कि हमारी सरकारें किस तरह अपनी नाकामी और सांप्रदायिक राजनीति को पाकिस्तान के खतरे का हव्वा खडा कर सांप्रदायिक राष्ट्वाद को स्थापित करती हैं। उसी की यह कड़ी है। खूफिया के सूत्र आईएसआई का हव्वा खड़ा कर इससे निपटने के नाम पर बजरंगियों को न्योता दे रहे हैं। जिससे एक बार फिर सांप्रदायिकता और दंगों की फसल काटी जा सके।
खबर में भारत-नेपाल सीमा के 550 किलोमीटर के खुले होने के नाम पर जिस आईएसआई का माहौल बनाया गया है उसकी राजनीति को समझना मुश्किल नहीं है। दरअसल, राजग जरकार ने अपने शासन काल में भारत-नेपाल सीमा के मदरसों से आईएसआई की गतिविधियां संचालित होने का आरोप लगातार लगाती, जिसे राजग कभी पुष्ट नहीं कर पायी। लेकिन बावजूद इसके उसकी विचारधारा के अखबार लगातार इस बाबत मुनादी पीटते रहे हैं।
दरअसल भारत-नेपाल के तराई की संवेदनशीलता के बहाने इस क्षेत्र में उग्र हिंदुत्वादी राजनीति को संचालित करने वाले योगी आदित्यनाथ के लिए माहौल बनाया जा रहा है। अपने अर्न्तद्वन्दों से जूझ रही भाजपा जहां चुनावों में योगी का सहारा ले रही है तो वहीं इस मुद्दे पर भी वह योगी को ही सामने ला रही है। इसकी खुलेआम शुरुआत योगी ने 29 अगस्त को आजमगढ़ में राष्ट् रक्षा रैली करके की।
भाजपा और संघ के पक्ष में माहौल बनाने के उतावलेपन में खबर में यहां तक बता दिया गया है कि इन सीमावर्ती जिलों में ऐसे लोगों की सूची तैयार की जा रही है जो नेपाल के माओवादियों के संपर्क में हैं। यहां जेयूसीएस दैनिक जागरण से सवाल पूछना चाहता है कि जब माओवादी नास्तिक व्यवस्था को मानने वाले हैं तो उनका इस्लामिक धर्मतंत्र स्थापित करने वाले आईएसआई से कैसा संपर्क हो सकता है। यह दरअसल भाजपा की राजनीतिक लाईन है जो माओवादियों और आईएसआई को जोड़ने के लिए लंबे समय से कुतर्क गढ़ते रहे हैं जिसमें दैनिक जागरण जैसे अखबार संघ गिरोह के कुतर्कों को फैलाने का स्पोक्समैन बने हुए हैं।
जाहिर है अगर कोर्ट का फैसला संघ गिरोह के खिलाफ आता है और बजरंगी देश को एक बार फिर दंगों की आग में झोंकने में सफल हो जाते हैं तो जिम्मेदार यह अखबार भी उतना ही होगा जितना संघ गिरोह।
द्वारा जारी-
राघवेंद्र प्रताप सिंह, शाहनवाज आलम, विजय प्रताप, राजीव यादव, शाह आलम, ऋषि सिंह, अवनीश राय, अरुण उरांव, विवके मिश्रा, देवाशीष प्रसून, अंशु माला सिंह, संदीप दूबे, तारिक शफीक, लक्ष्मण प्रसाद, हरेराम मिश्रा, मसीहुद्दीन संजरी, राकेश, रवि राव।
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) की दिल्ली और यूपी ईकाई द्वारा जारी।
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