24 मई 2010

PUCL-UP Statement on unsolicited phone calls to its Organizing Secretary


PUCL-UP Statement on unsolicited phone calls to its Organizing Secretary

Since December 2007, the present team of PUCL-UP has been active in
exposing illegal state violence, particularly in the name of terrorism
and also has effectively intervened in many cases.
The PUCL intervention in the spate of arrests that followed the UP
Courts Bomb Blasts case, Ahmedabad, Delhi and Jaipur blast cases and
finally the Jamia fake encounters has invited the irk of the state
establishments so much that most of the active PUCL members have been
implicated in many false cases. Here, it needs to be reminded that
none of the PUCL activists have had any criminal cases against them
before their stated position on the Jamia Nagar encounter and having
pointed out the deliberate targeting of Muslim youth particularly from
Azamgarh. Further, PUCL-UP and its members have been subjected to
covert and overt threats of action from the State departments using
allegations that PUCL-UP is a group of Naxalite sympathizers apart
from protecting terrorists!
The latest in this spate of harassment happened on the 23rd May, 2010,
when the Organizing Secretary of PUCL –UP, Shahnawaz Alam received 2
calls on his mobile phone from one Mr. Mallesh (080-25559775) claiming
to be from the Crime Branch – Bangalore, BJP governed Karnatka policeman
quizzing him about his phone number being found in the 2008 call records of 
the sim card of the suspect allegedly apprehended for the bomb planted in the
 Chinnaswamy stadium on 17th April, 2010.
The PUCL – UP unequivocally declares that the organization and all its
members are willing to cooperate with the State agencies with respect
to any investigation as long as the procedure established by law is
followed. However, PUCL-UP condemns all attempts to bully them into
silence or harass them using the Criminal Justice Process in order to
stop the work that they have been involved in.

Sd/-
Ravi Kiran Jain
Chitranjan Singh,
Vandana Mishra
Sandeep Pandey
S. R. Darapuri
Mohammed Shoiab
K.K. Rai
Randheer Singh Suman
Rajeev Yadav
Mashihuddin Sanjari
Tariq Shafiq
Balwant Yadav

18 मई 2010

निरूपमा जातीय उत्पीड़न की शिकार हुई


अनिल चमड़िया


ये लोकप्रिय भाषा में बात कहीं जा सकती है कि दिल्ली के अंग्रेजी समाचार पत्र में काम करने वाली पत्रकार निरूपमा पाठक की हत्या कोई अकेली घटना नहीं है। इसे और ज्यादा सूत्रबद्ध करके ये तक कहा गया कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट जाति के वर्चस्व वाले इलाके में ही खाप पंचायतें नहीं है बल्कि हर घर में खाप बैठी हुई है। लेकिन इस बात की पड़ताल जरूर की जानी चाहिए कि आखिर इन खापी मानसिकता के एक ढांचे के रूप में बने रहने के क्या कारण है। इसमें बैंक में शाखा प्रबंधक पिता धर्मेन्द्र पाठक की दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान में रेडियों और टेलीविजन का कोर्स पूराकर अंग्रेजी का पत्रकार बनने वाली बेटी निरूपमा के नाम लिखी चिट्ठी मददगार साबित होती है। उन्होने पत्र में लिखा है कि संविधान को तो बने महज साठ वर्ष हुए हैं । इसके विपरीत धर्म सनातन कितना पुराना है कोई नहीं बता सकता है। अपने धर्म और संस्कृति के अनुसार उच्च वर्ण की कन्या निम्म वर्ण के साथ व्याही नहीं जा सकती है।दरअसल ये पूरा पत्र अपने आप में समाज में इस तरह के चल रहे संघर्षों को समझने का आधार प्रदान करता है।
भारतीय संविधान को स्वीकार करने का क्या मतलब है जबकि हम अपनी तमाम पुरानी संस्थानों को बरकरार रखने के भावनात्मक तर्क देते हो।समाज में व्यवस्था के नये ढांचे की जरूरत हमेशा पुरानी व्यवस्था में पिसते, घुटते और कष्ट उठाने वाले हिस्से को होती है। मौजूदा संविधान को मंजूर इसीलिए किया जा सका क्योंकि समाज का बड़ा हिस्सा उसे पुरानी व्यवस्था को बदलने के लिए उठ खड़ा हुआ था। जब ऐसी स्थिति आती है तो समाज पर वर्चस्व रखने वाला छोटा हिस्सा अपने रूख में उपरी तौर पर परिवर्तन दिखाने लगता है। वह नई व्यवस्था या उसकी परिकल्पना में घुसपैठ कर लेता है और उसे अपने लिए इस्तेमाल करने के तौर तरीके निकालने लगता है। संविधान को स्वीकार किए जाने के बाद से समाज का यह कमजोर हिस्सा लगातार संविधानमूलक व्यवस्था पर काबिज होने वाले हिस्से के दमन, शोषण, उत्पीड़न और तरह तरह के अत्याचार का शिकार होता रहा है।वह छोटा सा हिस्सा अपनी उन तमाम संस्थाओं को बचाने की योजना में लगा रहा है जोकि उसकी वर्चस्वता को बनाए रखती है। धर्म और उससे जुड़ी वर्ण –जाति व्यवस्था भी उनमें एक हैं।
ये बात सीधे सीधे समझ में आने वाली है कि यदि संविधान में सबको बराबरी का हक दिया गया है, व्यस्क और अव्यस्क की स्थिति को परिभाषित किया गया है  तो इसके साफ मतलब है। ये समाज और परिवार में बैठी संस्थाओं की जगह पर नई संस्थाएं तैयार करने की स्वीकृति देता है। मां पिता या अभिभावकों द्वारा लड़की के लिए लड़का और लड़के के लिए लड़की देखकर शादी कराने की प्रथा के पीछे क्या आधुनिक तर्क हो सकते हैं।लड़का और लड़की की अनुभवों की कमी का होना ।खासतौर से लड़कियां घरों में रखी जाती रही हैं लिहाजा उनकी जान पहचान नहीं है, समाज को देखने और परखने का अनुभव नहीं है। मां पिता या अभिभावक अपने अनुभवों का इस्तेमाल यहां जब करता है तो ये तर्क समझ में आता है। लेकिन निरूपमा आधुनिकता के पैमानों को पूरा करती है। वह घर से  दुनिया के आधुनिकतम शहर दिल्ली आई।अंग्रेजी की पत्रकार बनी।लेकिन उसके पिता आधुनिकता के इन तमाम पैमानों पर तो अपनी बेटी को खरा देखना चाहता थे लेकिन बेटी के जीवन साथी के फैसले को वे अपनी न जाने कब की संस्था से बंधे रखना चाहते थे। वह अपनी बेटी के फैसले पर भरोसा नहीं करना चाहते थे।ये कैसे संभव होगा। इससे बड़ा उत्पीडन और क्या हो सकता है। दूसरे और शायद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात की ये जातीय उत्पीड़न नहीं है तो क्या है।धर्मेन्द्र पाठक जाति व्यवस्था में इस कदर बैठे हुए है कि उन्हें संविधान का कोई कद ही दिखाई नहीं देता है। उनका परिवार अपनी इस व्यवस्था को लेकर इतना कट्टर है कि वह अपनी जनी बेटी को भी मौत के घाट उतार देता है।शायद प्रकृति का सबसे कोमल बेटी के गर्भ में पलने वाले शिशु के प्रति वह कठोरता की सारी निर्ममता को उतार देता है।मैंने हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका में एक बहस शुरू की थी। वह थी कि समाज में वर्चस्व रखने वाली जातियों में जन्मे लेकिन आधुनिक लड़के लड़कियों को अपने जातीय उत्पीड़न की कहानियां लिखनी चाहिए। दलितों ने अपने उत्पीड़न की कई कहानियां लिखी है। लेकिन जिस जातीय हथियार से दलितों का उत्पीड़न होता रहा है उत्पीड़क जातियों के परिवारों के बच्चे भी उसी जातीय हथियार से उत्पीडित होते रहे है। ये जातीय हथियार उन्हें विचारों से आधुनिक बनने से रोकते रहे हैं। निरूपमा का उत्पीड़न क्या जातीय उत्पीड़न नहीं है? उसके पिता तो बहुत स्पष्ट शब्दों में ये बात अपने पत्र में ही कहते हैं।निरूपमा अपने फैसले के अनुसार शादी भी कर लेती तो उसे उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता।जैसे धर्म बदलने से दलित का उत्पीड़न कम नहीं होता।निरूपमा को भी शादी के बाद समाज उत्पीडित करता।वह पूरा समाज नहीं समाज का जातिवादी हिस्सा होता।जातीय उत्पीड़न के शिकार होने वालों का एक क्रम बनाया जाए तो वर्ण-जाति के बाद पहला नंबर महिला का होता है।
समाज को आधुनिकता के चरण में केवल संविधान में लिखकर नहीं ले जाया जा सकता है। संविधान द्वारा यदि हम ये लिखित तौर पर अपनी सहमति जाहिर करते है कि हम संविधान के अनुरूप नये समाज का निर्माण करेंगे तो उसे बनाने की जिम्मेदारी हर किसी को लेनी होगी। दरअसल हम दो तरह के विचारों में पिसने वाली जाति के रूप में अपने को निर्मित कर रहे हैं।इसीलिए हमारा व्यक्तित्व बराबर टूटे फूटे व्यक्तित्व के रूप में निकलकर सामने आता है। हम पुरानी संस्थाओं के फसान से निकलकर नए समाज और नये रिश्ते बनाने के बजाय ये कहने में अपनी शान समझते है कि न जाने कब से ये प्रथा चल रही है।लेकिन जरा ये भी सोचा जाए कि कभी तो ये प्रथा शुरू हुई होगी।किसी नई बात की शुरूआत भी तो करनी होती है तभी तो वह पीढियों तक चलती है।हम केवल पुरानी संस्थाओं को ढोने वाली जाति तो नहीं है।वरना पीढियों को कितना कष्ट उठाना पड़ता है, इस बात पर जरा विचार करें कि लड़कियों को ओढ़नी पहनाना जब शुरू किया गया होगा तब सायकिल पर नहीं चलती होगी।वह रिक्शे की सवारी नहीं करती होगी। मोटर सायकिल नहीं चलाती होगी।लेकिन आज इन सवारियों को चलाते वक्त यदि उन्हें ओढ़नी या इस तरह का कोई वस्त्र पहनने से मुक्त कराने की कोशिश नहीं की जाएगी तो क्या होगा।मैंने कई घटनाएं देखी है कि इन सवारियों के चक्के से ओढ़नी फंसकर लड़कियों व महिलाओं को बुरी तरह घायल कर देती है। कल नदियों के किनारे शहरी सभ्यता बनी। आज शहरी सभ्यता मैट्रों के किनारे विकसित हो रही है। मैट्रों आज की नदी है।आधुनिकता को ग्रहण करने के लिए कंप्यूटर के फेनड्राइव में खराब और करप्ट हो चुकी फाइलों को डिलिट करके नए के लिए जगह बनानी पड़ती है।निरूपमा के पिता बैंक में कंप्यूटर पर काम करते हुए भी विचारों की करफ्ट फाइलों से दबे पड़े हैं।लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि हर नये विचार को आधुनिकता का नाम दे दिया जाए।निरूपमा की हत्या समाज में जातीय उत्पीड़न के खिलाफ  सभी को एक साथ उठने की जरूरत को जाहिर कर रहा है। यह हमारे आधुनिक होने की सबसे बड़ी बाधा थी और आज भी है।                  

16 मई 2010

जातिवादी हत्याओं के खिलाफ आन्दोलन में हम साथ हैं

झारखंड राज्य के कोडरमा में निरुपमा पाठक की हत्या जैसी घटनाएं पूरे देश में बड़ी तादाद में घट रही हैं। इस तरह की घटनाएं विभिन्न रूपों में न जाने कितने वर्षो से जारी हैं। 1990 के पहले दो अलग अलग जाति की लड़की और लड़के के एक दूसरे के साथ जीने का फैसला करने पर पिता और उसके परिवार के सदस्यों के द्वारा उनकी हत्या करने की एक दो घटनाएं ही सामने आती थी। लेकिन खबरों के नहीं आने का अर्थ ये नहीं है कि ऐसी घटनाएं नहीं होती थीं। हत्याएं कम होती थीं तो आत्महत्याएं ज्यादा होती थीं। आंकड़े जुटाये जा सकते हैं कि कितनी लड़कियों ने जहर खाकर, कुएं में कूदकर या गले में फंदा लगाकर आत्महत्याएं की होगी। पहले कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। उनके पढ़ने की मनाही थी। पति की मौत के बाद सती बनने का दबाव था। पति की मौत के बाद लड़की की शादी की इजाजत नहीं थी। दहेज के नाम पर हत्या कर दी जाती थी। निश्चित तौर पर समाज में वर्चस्व रखने वाली जातियों और वर्चस्ववादी संस्कृति को ढोने वालों के बीच ये समस्या बनी हुई थी। इसके खिलाफ सुधार के आंदोलन किये गये। स्थितियों में बदलाव आया लेकिन वह समाप्त नहीं हुआ। विचार के रूप में उसके अवशेष अब भी बने हुए हैं।

समाज में स्त्रियों को निचले व दूसरे दर्जे में रखा जाता है। पुरुष सत्ता ने अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए धर्म और जाति का ढांचा तैयार किया है। बल्कि यूं भी कहा जा सकता है कि इन ढांचों का निर्माण इस तरह से किया गया है कि समाज पर वर्चस्व रखने वाला पुरुष समूह तो सर्वश्रेष्ठ बना रहे और समाज के बाकी के हिस्सों में एक दूसरे को नीचा, कमजोर, दोयम दर्जे, यानी अपने से छोटा मानने का विचार अपनी जड़े जमा लें। इसीलिए भारतीय समाज में ये देखने को मिलेगा कि यहां वर्ण के रूप में वर्ण एक दूसरे से नीचे या श्रेष्ठ है। जातियों में दूसरी जातियां एक दूसरे से नीची या श्रेष्ठ है।

निरुपमा पाठक के पिता ने संविधान की जगह पर सनातन धर्म को श्रेष्ठ बताया है। उन्‍होंने अपनी बेटी के नाम लिखे पत्र में कायस्थ जाति के प्रियभांशु को निम्न वर्ण का बताया है। जबकि भारतीय समाज में कायस्थों को सवर्ण माना जाता है। हर जाति में भी एक दूसरे से श्रेष्ठ या नीचे वाले गोत्र हैं। इस तरह से एक दूसरे को एक समान महसूस करने और उस तरह से व्यवहार करने का विचार ही दिल दिमाग में जगह नहीं बना पाता है। ये विचार इतना कट्टर है कि इस पर वर्चस्व रखने वाला समूह उसे बचाने के लिए हर तरह की गुलामी भी स्वीकार कर लेने को तैयार हो जाता है। किसी भी तरह की नृशंसता पर उतारू हो जाता है। निरुपमा पाठक की अपने ही परिवार में हत्या इसका एक उदाहरण भर है।

27 मार्च 1991 को मथुरा जिले के मेहराना गांव में रोशनी, रामकिशन और बृजेंद्र को पेड़ से सरेआम लटका कर मार दिया गया था। इन तीनों को लटका कर मारने का फैसला गांव के दबंगों के प्रभाव में बुलायी गयी पंचायत में लिया गया था। रोशनी जाट थी और बृजेंद्र दलित था। राम किशन अपने दोस्त रोशनी और बृजेंद्र के रिश्ते में मददगार था। इस घटना के बाद कई राजनेता मेहराना गये थे। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी उस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। खुद मीरा कुमार की भी शादी अंतर्जातीय है। उनकी शादी कोइरी जाति में जन्मे व्यक्ति से हुई है। ये जाति बिहार में पिछड़ी जाति मानी जाती है। मेहराना की घटना के बाद शोरशराबा मचने पर तीन युवाओं को पेड़ पर लटकाकर मारने वालों में कुछेक को पुलिस ने पकड़ा भी। लेकिन ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगायी जा सकी।

पुलिस में काम करने वाले लोग भी खाप पंचायतों में बैठने वाले लोगों के बीच के या निरुपमा के पिता के कट्टरपंथी दिमाग के ही होते हैं। उनके भी विचार ऐसी घटनाओं को संविधान विरोधी और लोकतंत्र विरोधी मानने के लिए तैयार नहीं होता है। यही हाल कचहरियों और न्यायालयों में न्याय की कुर्सी पर बैठने वालों का भी है। मीडिया में काम करने वालों का भी है। और इन सबसे बढ़कर वोट की राजनीति करने वाले नेता हैं। वे तो समाज पर वर्चस्व रखने वालों के पिछ्लग्गू की तरह काम करते हैं। जैसे हमें अभी हरियाणा के युवा, उद्योगपति और कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल के रूप में देखने को मिल रहा है। वे हरियाणा में खाप पंचायतों के साथ होने की कसमें खा रहे हैं। इसीलिए मेहराना की घटना के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी शादी का फैसला करने वाले लड़के लड़कियों के मारे जाने की खबरें बड़ी तेजी के साथ सामने आयी हैं। लड़के के पिता मां इसीलिए अपने पुत्र की शादी उसकी पसंद की लड़की से करने को तैयार नहीं होते हैं क्योंकि लड़की उनकी जाति की नहीं होती है।

संविधान अठारह वर्ष की उम्र पार करने वाले को वयस्क मानता है और उसे देश में सरकार बनाने के लिए वोट देने का अधिकार देता है। वयस्‍क होने का अर्थ ये होता है कि लड़का और लड़की अपने स्तर से फैसला कर सकें। लेकिन पिता की जाति और धर्म लड़के या लड़की को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं देता है। महज इन बीस वर्षों में लड़के और लड़कियों के अपने मां बाप के द्वारा मारे जाने की सैकड़ों घटनाएं सामने आ चुकी हैं। आत्महत्याओं की भी तादाद कम नहीं है। लेकिन इस बीच एक तरह की नयी घटना के रूप में लड़कियों की तस्वीरें समाचार पत्रों में छपने की आयी हैं। हर दिन किसी न किसी अखबार में किसी न किसी लड़की के घर से भाग जाने या अपहरण किये जाने की जानकारी देने वाला विज्ञापन पुलिस विभाग द्वारा प्रकाशित कराया जाता है। उसमें लड़की के लापता होने की जानकारी होती है। उसमें ये संकेत मिलता है कि वह लड़की घर से भाग गयी है। या फिर लड़की जिसे पसंद करती है उस लड़के के द्वारा उसका अपहरण करने की जानकारी दी जाती है। अपनी पसंद से अपने जीवन साथी का चुनाव करने वाले लड़के बड़ी तादाद में अपहरणकर्ता के रूप में अपराधी करार दिये गये हैं।

निरुपमा पाठक की हत्या महज एक नयी और घटना हैं। इसके बाद भी कई घटनाएं सामने आयी हैं और निरंतर आ रही हैं। यह महिलाओं की आजादी के मसले पर यह एक नयी तरह के आंदोलन का दौर है। यदि अतीत से अब तक की घटनाओं पर गौर करें तो महिलाओं की आजादी में सबसे बड़ी बाधा जाति और धर्म बना हुआ है। लिहाजा पहला काम तो हमें ये करना चाहिए कि इस तरह की हत्याओं को अंग्रेजी के शब्द ऑनर के विशेषण से संबोधित करना बंद करना चाहिए। इससे इस तरह की घटनाओं के सांस्कृतिक कारणों को समझने में उलझन होती है। ये हत्याएं जातिवादी हत्याएं हैं। इन्हें जातिवादी हत्या के रूप में संबोधित करना चाहिए। दूसरे ये बात भी समझना चाहिए कि खाप पंचायतें न केवल महिलाओं के विरोध में तरह तरह के फैसले करती हैं बल्कि वही पंचायतें दलितों के खिलाफ भी उसी तरह से फैसले लेती हैं। दलितों को भी जलाने और मारने की घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

हरियाणा के गोहाना में दलित मोहल्‍ले पर हमला और दलितों के घरों को जलाने जैसी घटनाएं हमारे सामने इस रूप में सामने आयी हैं कि वह पुलिस की मौजूदगी में हुई। खाप पंचायतों की मानसिकता वैसे हर परिवार में बनी हुई है जो दूसरी जाति और दूसरे धर्म से नफरत करते हैं। निरुपमा की हत्या के मामले को लेकर जगह जगह प्रदर्शन और दूसरे कार्यक्रम हो रहे हैं। पहले भी ऐसी कई घटनाओं को लेकर विरोध कार्यक्रम हुए हैं। लेकिन हजारों वर्षों से भारतीय समाज को नुकसान पहुंचाने वाली इस तरह की मानसिकता के खिलाफ निरंतर आंदोलन चलाने की जरूरत है। ज्यादा से ज्यादा अंतर्जातीय व अंतर्धर्म में शादी विवाह को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। हमें ये समझना होगा कि जातिवादी मानसिकता एक तरफ अपने से कमजोर समझी जाने वाली जातियों के खिलाफ हमलावर होती है तो दूसरी तरफ उसी जातिवादी मानसिकता से वह अपने घरों के बेटे-बेटियों को भी उत्पीड़‍ित करती है। उसे आधुनिक बनने से रोकती है। उसे संविधान से अपने फैसले लेने के चुनाव के अधिकार का हनन करती है। उसे जातिवादीविहीन और धर्मनिरपेक्ष समाज बनाने से रोकती है। हमें इस लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। राजनीतिक पार्टियां वोट की राजनीति की वजह से चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि ये समस्या राजनीतिक परिवारों के बेटे बेटियों के समक्ष भी आती है। कई राजनीतिक परिवारों में भी इस तरह की हत्याएं हो चुकी हैं लेकिन वे अपने राजनीतिक प्रभाव के कारण बच निकले हैं।

लिहाजा ये हमारी जिम्मेदारी है कि युवा वर्ग के सदस्य आजादी से अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकें। हमें समाज में उन तमाम शक्तियों और विचारों से लड़ने के लिए खुद को तैयार करना होगा जो देश के युवा वर्ग को जातिवादी और धर्म के दायरे में बांधे रखने के हरसंभव कोशिश कर रही है। शिक्षण संस्थानों में लगातार इस विषय पर हमें गोष्ठियां आयोजित करनी चाहिए। पर्चे वितरित करने चाहिए। युवाओं की हत्या से युवाओं के बड़े वर्ग को डराने धमकाने की जो कोशिश की जाती है, उस डर और भय को दूर कर उन्हें समझदारी से फैसले लेने के पक्ष में माहौल बनाने की हमारी जिम्मेदारी है। ये एक बड़े समाज सुधार के आंदोलन की आहट है। इसे हमें सुनना चाहिए और उसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

अनिल चमड़िया, विजय प्रताप (9015898445), सपना चमड़िया, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, चंद्रिका, अनिल, अवनीश, शाहआलम, नवीन, अरुण उरांव, प्रबुद्ध गौतम, राजीव यादव, शाहनवाज आलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, लक्षमण, अर्चना महतो, पूर्णिमा, मिथिलेश प्रियदर्शी, दिनेश मुरार एवं अन्य साथी


12 मई 2010

झारखण्ड सरकार और कोडरमा पुलिस के खिलाफ झारखण्ड भवन पर प्रदर्शन

 #  निरुपमा के हत्यारों को बचाने की निंदा
#  छात्र,पत्रकार और महिला संगठन ने किया प्रदर्शन 

नई दिल्ली, 12 मई  
युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के मामले में झारखण्ड पुलिस की लीपापोती और प्रियभांशु रंजन पर लादे गए फर्जी मुकदमों के खिलाफ बुधवार को जेयूसीएस ( जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी)आइसा (आल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन) और एपवा (आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेन एसोसिएशन) ने संयुक्त रूप से झारखण्ड भवन पर प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने झारखण्ड और केंद्र सरकार से इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच की मांग की.
प्रदर्शनकारियों ने झारखण्ड भवन के गेट पर उन्हें रोकने के प्रयास को विफल करते हुए अन्दर घुस कर सभा की. प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए आइसा के महसचिव रवि राय ने कहा की पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के दो हफ्ते बाद भी झारखण्ड पुलिस दोषिओं  को गिरफ्तार नहीं कर सकी है और हत्यारों को बचाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा की अगर झारखण्ड सरकार इस मामले में हत्यारों को ऐसे ही बचाती रही तो आइसा निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए अनिश्चितकालीन संघर्ष करेगी. दिल्ली राज्य सचिव राजन पांडे ने कहा की सनातनी  और परम्पराओं के नाम पर युवाओं की हत्या बर्दास्त नहीं की जाएगी. निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए झारखण्ड सरकार से सीधी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं.
एपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा की एक तरफ जातीय अस्मिता के नाम पर निरुपमा जैसी युवा लड़कियों की हत्या हो रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के कथित युवा ब्रिगेड के नेता नवीन जिंदल खाप पंचायतों और उनके फैसलों का गुणगान कर रहे हैं. उन्होंने कहा की जो लोग ऐसी हत्यों को गाँव-देहात की समस्या मानकर देखते हैं जिंदल जैसे उद्योगपतियों का यह बयान उनके लिए आइना है.
जेयूसीएस से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार विजय प्रताप ने कहा की निरुपमा की हत्या कोई आनर किलिंग नहीं हैबल्कि यह उन संवैधानिक अधिकारों की भी हत्या है  जिसके अंतर्गत भारतीय संविधान उन्हें इच्छानुसार जीने और जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है. उन्होंने कहा की देश के कई हिस्सों में रोजाना ऐसी घटनाएँ हो रही है जिसमे अपनी पसंद के अनुसार जीवन साथी चुनने वालों को जातिधर्म या पारिवारिक प्रतिष्ठा के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है. उन्होंने राजनीतिक दलों से भी इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की.
भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता शिक्षण से जुड़े भूपेन सिंह ने भी प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा की यह केवल एक निरुपमा की लड़ाई नहीं हैबल्कि उन तमाम निरुपमाओं की लड़ाई है जो जाति या गोत्र के नाम पर मार दी जा रही हैं.
जेयूसीएसआइसा और एपवा के एक प्रतिनिधि मंडल ने झारखण्ड के रेजिडेंट कमिश्नर से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा. इसमें निरुपमा के हत्यारों तुरंत गिरफ्तार करने,प्रियभांशु पर लादे गए फर्जी मुकदमो को वापस लेने की मांग और ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए विशेष कानून बनाने की मांग शामिल है.

द्वारा 
ऋषि कुमार सिंह,
09313129941
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

आपके सवालों का जवाब इन संदेशों में है...

साथियों, 
निरुपमा की हत्या के बाद जिस तरह से झारखण्ड पुलिस और मीडिया के कुछ जातिवादी लोग इस मामले को आत्महत्या करार देने पर तुले हैं वो न केवल निंदनीय है बल्कि गैरजिम्मेदाराना भी है. जिस एसएमएस और लैपटॉप से छेड़खानी के आधार पर मीडिया प्रियभांशु को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है, उन्ही एसएमएस को जस्टिस फॉर निरुपमा कैम्पेन के लोगों ने सार्वजनिक किया लेकिन ज्यादातर ने इस देखने की जरुरत भी नहीं समझी. हांलाकि इन्ही संदेशों के आधार पर कुछ समाचार चैनलों ने अच्छी टीआरपी भी बटोरी. इन संदेशों से साफ जाहिर है की अंतिम समय तक निरुपमा-प्रियभांशु के भी संवाद कायम रहा. प्रियभांशु को यकीं था की निरुपमा घर से लौट कर आएगी. उसने निरुपमा के लैपटॉप से जो डाटा हटाया भी तो उसके कहने पर. यह सबकुछ उनके एसएमएस से साफ़ जाहिर है. इस मामले को  आत्महत्या करार देने पर तुले लोगों के कई सवालों का जवाब इन संदेशों में मिल जायेगा. इसलिए जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) इन संदेशों को फिर से जारी कर रहा है.

INBOX:
  • April 29, 2010-  05:39:32 : Main aane ki koshish karoongi. Tum patience rakho. Aur bina mere kahe koi extreme step mat uthana. Meri Ankita se baat huyi hai. Tum apne aap ko kuch mat karna.
  • April 27, 2010-09:35:05 : Kal aa rahi hoon yaar
  • April 27, 2010-09:34:11 : Main aa rahi hoon. Mummy ka reservation bhaiya karwaiyega. Tum bas sab jaa ke rakh dena. Agar bartan wartan ho toh woh sab bhi.
  • April 27, 2010-09:31:08 : Laptop mein jitna photos hain sabko pen derive mein lekar apne paas rakh lena. Fir laptop se sab delete kar dena. Recycle bin se bhi delete kar dena. Apna CV bhi le lena. Aur aap padh likh rahe hain ya nahin. IPS banna hai na. Take care. Love you a lot.
  • April 27, 2010-09:26:14 : Ranjan, mera jitna saman tumhare room pe pada hua hai na woh mere room mein jaa kar rakh dena. Ho sakta hai mummy ke saath aayein.
  • April 26, 2010-10:09:17 : Baat nahin kar sakti,samajhte ho na. Maine abhi tak bataya nahin hai ki mujhe parson jaana hai. Papa chale gaye hain. Hope to c u soon. take care
  • April 25, 2010-09:12:02 : Aaram se dena. Nervasaiyega nahin. All the best. Hope to c u soon.
  • April 24, 2010-10:24:11 : Kaise ho? Hum theek hain. Sorry baat nahin kar paati. Roz jab nahane aati hoon toh bathroom se message karti hoon. Audition ke liye all the best.
  • April 23, 2010-10:26:47 : Kya haal hai. Dekh lo, agar Jaipur jane ka bahut mann hai toh chale jao. Khayyam ka message aaya tha ki DD mein vacancy hai. Pata karke batana. Aur hum theek hain. Tum theek se rehna.
  • April 21, 2010-09:49:30 : Abey senti marna band karo aur practically socho. Mauka mila toh zaroor baat karungi.Patience rakho. Tumne kaha tha ki tum patience rakhoge. Luv you Rajjan ji.
  • April 21, 2010-09:38:24 : Phone bag mein rehta hai aur waise bhi utha nahin paoongi. Mauka milte hi message kiya karoongi. Mujhe kuch nahin hoga. I love you. aaram se rehna. Tension mat lo.
  • April 21, 2010-09:35:20 : Main bilkul theek hoon. Tum patience rakho.
  • April 21, 2010-08:43:56 : SMS from Ankita: Abhi maine try kiya woh utha nahin rahi. Main jab bhi class se free hoon, I'll try constantly and call you immediately. Zyada tension mat lo. Sab theek hoga. take care.
  • April 19, 2010-17:35:23 : Will miss you terribly Rajjanji
  • April 18, 2010-20:07:13 : Tumne baal katwaya nahin na?
  • April 16, 2010-02:36:08 : Love you Rajjan ji. Sachi kasam se
  • April 14, 2010- 01:52:47 : Subah aane se pehle ek baar phone kar lena. Luv
  • April 10, 2010-23:25:32 : I luv you
SENT ITEMS OF PRIYABHANSHU
  • April 29, 2010, Not sent to Ranjans Maithlil* : Maithili* mobile off kyun hai? Sab theek to hai na? Tum theek toh ho na? Tumhara message humko mil gaya tha. Luv you. Take care
  • April 29, 2010-07:02:34 : Kal jo hum tumko 8-9 message poore din mein bheje woh deliver hua tha? Yadi haan toh batao kyunki ek ka bhi delivery report nahin aaya. Maithili please aa jao. I love you.
  • April 28, 2010-23:35:35 : Hum kahe the na "Ho chandni jab tak raat, har koi deta saath, tum magar andheron mein na chhodna mera haath"? Yaqueen hai ki Maithili mera saath kabhi nahin chhodegi.
  • April 28, 2010-22:50:58 : Maithili apne kaha tha ki aap zaroor ayengi. Jaanti hain na apke bina apke Rajjan ji jee nahin sakte. "Mujhe bhool jao" kehne se pehle ek baar bhi nahin socha apne.
  • April 28, 2010-20:17:40 : Tumhe koshish nahin karna balki aana hai.Tumko aane ka constant effort karna hai aur parents ko yeh ehsaas nahin hone dena hai ki tumne surrender kar diya hai. luv you a lot.
  • April 28th,2010-15:35:32 : Maithili* hum pata kiye hain, tumhare office mein resignation ka koi mail/fax nahin bheja gaya hai. bas papa HR ko phone karke yeh poochhe the ki resignation ka process kya hai. Papa bole ki Nirupama ki mummy ki halat kaafi serious hai so she has to resign immediately. Maithili tum plz notice period serve karne ke bahane se aa jao. Humko reh reh kar mar jane ka mann kar raha hai. Tumhare bina jee nahin payenge hum. Chaho toh ek hafte ka waqt le lo.Hum ticket karwa dete hain. Plz kuch baat toh karo humse nahin toh hum tumhare papa aur bhaiya se baat karenge.
  • April 28,2010-13:50:32 : Maithili* tum apne saath kuch paise aur mobile lekar ghar se nikal jao. Kaho toh Ranchi se flight ki ticket book karva dein ya hum khud wahan tumko lene aa jayen.                                                                                                                                                    
*प्रियभांशु, निरुपमा को मैथिलि नाम से संबोधित करता था.

10 मई 2010

जनगणना में जाति पूछने से क्‍यों दुखी हैं विनोद दुआ?


 नवीन कुमार रणवीर

जातिगत जनगणना पर मीडिया जाति के आधार पर जनगणना के विरोध में और समर्थन में उठ रहे स्वरों पर एनडीटीवी इंडिया के खास कार्यक्रम विनोद दुआ लाइव (6 मई 10) में, विनोद जी का कहना है कि देश के वो नेता, जिन्‍होंने मंडल के दौर (90) से राजनीति में कदम रखा, अपने राजनीतिक भविष्य की नींव रखी – उन नेताओं को इसलिए इस सेंसेस की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें ये पता चल जाए कि उनका वोट बैंक कितना है? विनोद जी ने अपनी खबर में ये भी कहा कि 1931 के बाद से जाति आधारित जनगणना नहीं हुई थी और 80 के दशक में कांग्रेस का नारा “जात पर ना पात पर मोहर लगेगी हाथ पर” ने जाति को तोड़ने का काम किया। विनोद जी का ये भी कहना है कि वीपी सिंह ने यदि आरक्षण का आधार आर्थिक रखा होता तो शायद देश में जाति के नाम पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव न होते और मंडल कमीशन ने देश में जातिगत भेदभाव को कम करने में बाधा का काम किया है। इसका उदाहरण उन्‍होंने ये कहकर दिया है कि 80 के दशक में अंतरजातीय विवाह और प्रेम-विवाह के मामले ज्यादा आ रहे थे, जिससे ये लगता था कि देश अब जातिगत बंधनों से आगे की सोच की ओर अग्रसर है। परंतु वीपी सिंह जैसे नेताओं ने जातिगत भेदभाव बढ़ाने का काम किया है
विनोद जी ने ताजा मामले को मिसाल के तौर पर पेश करते हुए ये बताया है कि पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या भी अंतरजातीय विवाह के विरोध में हुई है, जिसमें बिहार का रहने वाला लड़का कायस्थ था और झारखंड की रहने निरुपमा ब्राह्मण थी। विनोद जी सीधे तौर पर आरक्षण के विरुद्ध हैं या सामाजिक आधार पर आरक्षण के विरुद्ध हैं? विनोद जी ने मंडल का उदाहरण दिया कि “इन नेताओं ने (मुलायम, लालू, पासवान, करुणानिधि) जातिगत भेदभाव को बरकरार रखने और बढ़ाने का काम किया है”।
लेकिन मैं विनोद जी से पूछना चाहता हूं कि देश में जितने अंतरजातीय विवाह सन 90 से लेकर आज तक हुए हैं, क्या उनकी संख्या 1950 से 90 (मंडल) तक से कम है?
क्या देश में जितने जातिगत अत्याचारों के मामले एससी-एसटी कमीशन में हैं या जो सामने आये हैं (संख्या सामने न आने वालों की ज्यादा है), वो सभी 90 के बाद की है? 90 से पहले के दौर में लोगों तक सूचना तो पूरी तरह तक पहुंचती नहीं थी और आप कह रहे है कि “देश जातिगत बंधनों से ऊपर उठ रहा था, देश में अंतरजातीय विवाह हो रहे थे”… विनोद जी क्या उस समय में (90 से पहले) किसी अखबार में जाति के आधार पर शादी के विज्ञापन नहीं आते थे? 90 से पहले तक कितने लोग जनरल कैटगिरी (सवर्ण) से सरकारी नौकरी पर या राजनीति में अच्छे पदों पर थे? और कितने बाबू जगजीवन राम और कपूरी ठाकुर थे? जिस दौर की आप दुहाई दे रहे हैं न, उसी दौर में एक दलित सरकारी कर्मचारी (कांशीराम) सरकारी तंत्र में भेदभाव के चलते अपनी नौकरी छोड़कर दलितों-अल्पसंख्यकों और पिछड़ों की आवाज को डीएस – 4 और बामसेफ के माध्यम से चेतना की मशाल लिये आगे बढ़ रहा था। ये वही दौर था जब कांशीराम के भाषणों के कैसेट्स को टेपरिकॉडर में सुनाने के लिए माहौल की तलाश में कई बार लोगों ने उच्च जातियों के अत्याचार सहे।
ये वही दौर था जब 1994 में डीएस – 4 को बसपा का नाम मिला। परंतु आपको लगता है कि एक वीपी सिंह आकर सारे देश में जातिगत भेदभाव फैला गया वरना तो देश के सवर्ण वर्ग के लोग दलितो से बेटी-रोटी का रिश्ता रखते थे। ये वीपी सिंह और मंडलियों (मंडल के कमीशन के समर्थक नेता) ने राहुल गांधी को देश के दलितों के घर में जाकर खाना खाने को मजबूर कर दिया। आपका तर्क था कि देश में आरक्षण का आधार यदि आर्थिक होता तो शायद देश इस जातिगत भेदभाव, जिसके कारण हाल ही में युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या हुई है, वो नहीं होती, याकि देश में ऐसे मामले कम देखने को मिलते।
विनोद जी मैं आपको बता दूं कि मैं भी उसी संस्थान का छात्र रहा हूं, जहां निरुपमा और प्रियभांशु पढ़ते थे। दोनों ही सवर्ण हैं और दोनों में से कोई भी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। जातिगत भेदभाव आरक्षण का लाभ न लेने वाली जातियों में भी है और एक जाति में भी है, सवर्णों में भी वरीयता है और ब्राह्मणों में भी है। सरयूपारी-कानिबकुंज का भेद तो आपको पता ही होगा, नहीं पता तो मैं आपको बता देता हूं मुझे भी लखनऊ के ही दो शुक्लाओं (टीवी पत्रकारों) ने बताया था। रावण को मारने के बाद राम द्वारा किये गये रावण के श्राद्ध को खाने के लिए जो ब्राह्मण सरयू नदी पार करके गये थे उन्हें कानिबकुंज ब्राह्मणों ने वापस आने नहीं दिया और उनसे सारे संबध तोड़ दिये, क्योंकि रावण भी ब्राह्मण था और राम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था। आज भी वो लोग आपस में शादी-ब्याह का संबंध करने से बचते हैं। शुक्ला, तिवारी, पांडे, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, उपाध्याय उपनाम के लोग चौरसियाओं और त्यागीयों में शादी-ब्याह नहीं करते। वो तो किसी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। शर्मा जी का तो कोई भरोसा ही नहीं करता। शुक्ला, तिवारी, पांडे, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी और उपाध्याय लोगों का कहना है कि ये तो पता ही नहीं चलता कि ये (शर्मा जी) कौन से ब्राह्मण है?
भूमिहार ब्राह्मण और भूमिहार ठाकुर अन्य ठाकुरों और ब्राह्मणों से शादी करने के लिए जातिगत आडंबरों से आज तक ऊपर नहीं उठ पाये हैं। ये लोग भी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। तो जब मामला सामजिक भेदभाव का हो तो उसे मिटाने या कम करने के लिए या समाज के उस तबके को ऊपर उठाने के लिए सामाजिक आधार होना महत्वपूर्ण ही नहीं, आवश्यक है। जातिगत भेदभाव पुश्तों से चली आ रही सामंती सोच की देन है। न कि बाबासाहब अंबेडकर या मंडल के समर्थक नेताओं की या किसी कमीशन की सिफारिशों की। सोच को बदलने के लिए कोई आरक्षण बाधा नहीं बनता, बल्कि अपनी आवाज और बात कहनें का हक देता है। जातिगत जनगणना आवश्यक है, ताकि लोगों को पता चले कि सदियों से शोषण करती आ रही जातियों के पास आज भी कितना सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व है तथा देश की कितनी बड़ी आबादी कभी साढ़े 22 फीसदी और कभी 27 फीसदी की हिस्सेदारी के लिए लड़ती है।
(नवीन कुमार रणवीर। 2007-08 में भारतीय जनसंचार संस्‍थान से डिप्‍लोमा करने के बाद गुरु जंभेश्वर विश्‍वविद्यालय (हिसार) से जनसंचार में एक किया। फिलहाल स्‍वतंत्र लेखन करते हैं और जेयूसीएस (जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी) से जुड़े हैं। उनसे ranvir1singh@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

'बुद्धिजीवी एक ब्राह्मणवादी अवधारणा है' - धीरुभाई शेठ

      'बुद्जिीवी और श्रमजीवी के रूप में लोगों का विभाजन जातिवादी फ्रेम के तहत हुआ. इस तरह बुद्धिजीवी एक ब्राह्मणवादी अवधारणा ठहरती है', यह बात सीएसडीएस के पूर्व निदेशक और वरिष्‍ठ राजनीतिक समाजशास्‍त्री धीरूभाई शेठ ने डा. राममनोहर लोहिया के जन्‍मशताब्‍दी वर्ष के अवसर पर जेएनयू में 'सामाजिक चुनौतियां और बुद्धिजीवियों का दायित्‍व' विषय पर आयोजित एक विचार गोष्‍ठी में कही. उन्‍होंने कहा कि इस देश में दो सत्‍ताएं हैं- व्‍याख्‍या सत्‍ता और राजसत्‍ता. व्‍याख्‍या सत्‍ता राजसत्‍ता को नियंत्रित करती रही है. बुद्धिजीवी वर्ग की ताकत को ऐतिहासिक रूप में समझने की जरूरत है. साथ ही उन्‍होंने हैरानी भी जताई कि आज के बुद्धिजीवियों की बात आम जीवन की समस्‍याओं से मेल नहीं खाती हैं, यह लोकतंत्र के लिए अच्‍छा संकेत नहीं है.
      इस अवसर पर उपस्थित वरिष्‍ठ पत्रकार ओम थानवी ने शिक्षा जगत, कला, सिनेमा और प‍त्रकारिता की वर्तमान स्थिति को बडे स्‍पष्‍ट शब्‍दों में रेखांकित किया. उन्‍होंने कहा कि आज इन सभी क्षेत्रों की स्थिति बडी निराशाजनक है. कलाकार आज बाजार के चंगुल में फंस गया है. उसे सृजन की प्रेरणा अंदर ने नहीं, बाजार से मिल रही है. कला के सबसे समर्थ माध्‍यम सिनेमा का कॉमेडी आज अभिन्‍न अंग हो गया है. विषय कोई भी हो, वह कॉमेडी के अंदाज में ही होगा. गरीबी, बलात्‍कार, भ्रष्‍टाचार आदि मजाक के विषय नहीं हैं. इस अति-व्‍यावसायिक सिनेमा में सार्थक सिनेमा खोता जा रहा है. उन्‍होंने आगे कहा कि समय के साथ पत्रकारिता की जिममेदारी बढनी चाहिए परंतु आज जितना पतन पत्रकारिता का हुआ है, उतना अन्‍य किसी का नहीं. भारत जैसे देश, जहां बडी आबादी निरक्षर है, के लिए टीवी, रेडियो वरदान बनकर आए थे परंतु आज यह मनोरंजन के साधन मात्र बनकर रह गए हैं. आजकल पत्रकारिता में वैचारिकता का लोप होता जा रहा है. मीडिया में बाजार का हस्‍तक्षेप जरूरत से ज्‍यादा बढता जा रहा है, बाजार सभी चीजों का निर्धारक हो गया है.
        गोष्‍ठी के अध्‍यक्ष प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि आज बुद्धिजीवियों के सामने दायित्‍व बोध का प्रश्‍न होना चाहिए. यह समय इमरजेंसी से भी ज्‍यादा खतरनाक है. वह बौद्धिक हो ही नहीं सकता जो सुरक्षा की तलाश में हो. बौद्धिक वह है जिसका आदर्श 'सर उतारे भुईं धरे' वाला हो. सच कहने का साहस बौद्धिक होने की पहली शर्त है.
        गोष्‍ठी में कथाकार महेन्‍द्र चौधरी के उपन्‍यास 'पुनर्भवा' तथा मासिक 'सबलोग' के 'लोहिया विशेषांक' का लोकार्पण भी किया गया. उपन्‍यास पर बोलते हुए डा. मणीन्‍द्रनाथ ठाकुर ने कहा कि बुद्धिजीवियों के समाज में योगदान की कहानी है 'पुनर्भवा'. बुद्धिजीवियों का राजसत्‍ता के प्रति आलोचनात्‍मक रवैया भारत की पुरानी परंपरा रही है. आज बुद्धिजीवियों का यह दायित्‍व होना चाहिए कि जाति, धर्म त्‍यागकर प्रताडित और हाशिए के लोगों के साथ खडे हों. डा. संतोष कुमार शुक्‍ल, सुयश सुप्रभ और गंगा सहाय मीणा के विचारोत्‍तेजक सवालों ने गोष्‍ठी को संवादात्‍मक रूप प्रदान किया. कार्यक्रम के अंत में 'सबलोग' के संपादक किशन कालजयी ने सभी को धन्‍यवाद ज्ञापित किया.

-जितेन्‍द्र कुमार यादव
शोध छात्र, 
भारतीय भाषा केन्‍द्र, 
जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय, नई दिल्‍ली.

05 मई 2010

पत्रकार निरुपमा पाठक की याद में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बैठक

साथियों,
      पत्रकार निरुपमा पाठक की प्रतिष्ठा के लिए की गई हत्या के विरोध में छेड़े गये अभियान के तहत गुरूवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों की तरफ से एक बैठक रखी गई है। बैठक का मकसद निरुपमा को याद करते हुए ऐसे उपायों पर चर्चा करना है जिससे भविष्य में और युवाओं के साथ ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
      आप सभी से अपील है कि अपने व्यस्त समय से कुछ वक्त निकाल कर इस अभियान से जुड़ें ताकि हम निरूपमा को न्याय दिलाते हुए सच्ची श्रद्धांजलि दे सके।

दिनांक- 6 मई, 2010 ,गुरूवार        
स्थान- नेहरू गेस्ट हाउस लॉन, जामिया मिल्लिया इस्लामिया
समय- शाम 5.00 बजे

निवेदक
जामिया मिल्लिया के छात्र
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस)
आईआईएमसी के पूर्व छात्र

03 मई 2010

पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग



                प्रेस विज्ञप्ति

 ऑनर किलिंग के खिलाफ बने कानूनःजेयूसीएस

नई दिल्ली, 3 मई। जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ने युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के दोषियों को शीघ्र व कड़ी सजा दिलाने के लिए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। जेयूसीएस ने सोमवार को निरुपमा के साथी पत्रकारों के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और प्रेस परिषद को भी पत्र भेजकर उनसे सीधे हस्तक्षेप की मांग की है। गौरतलब है कि अंग्रेजी दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड की पत्रकार व भारतीय जनसंचार संस्थान(आईआईएमसी) की पूर्व छात्रा निरुपमा पाठक की 29 अप्रैल को उनके गृहनगर झारखंड के कोडरमा में हत्या कर दी गई थी।
   जेयूसीएस के सदस्यों ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पत्रकार निरुपमा की ऑनर किलिंग,साठ साल के लोकतंत्र के खोखलेपन को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज अभी भी अर्धसामंती युग में है,जहां खाप पंचायतें समाज और प्रतिष्ठा के नाम पर हत्याएं करवा रही हैं। संगठन के ऋषि कुमार सिंह ने कहा कि निरूपमा को न्याय दिलाने के लिए पूरे मामले की उच्चस्तरीय और स्वतंत्र समिति द्वारा जांच करायी जानी चाहिए। किसी एक के बजाय हत्या में संलिप्त सभी दोषियों को कड़ी सजा मिले। संगठन के नवीन कुमार ने कहा कि देश में आये दिन समाज और प्रतिष्ठा के नाम पर बहुतेरी निरुपमाओं की हत्याएं हो रही हैं,लिहाजा झारखंड में महिलाओं की रक्षा के लिए बने 'डायन एक्ट' की तर्ज पर अलग से ऑनर किलिंग के खिलाफ कानून बनाया जाये। उन्होंने कहा कि हरियाणा व अन्य राज्यों में लगने वाली जातिगत पंचायतों पर प्रतिबंध लगे। जेयूसीएस के विजय प्रताप व अभिषेक रंजन सिंह ने खाप पंचायतों को प्रश्रय देने वाले राजनीतिक दलों की निंदा की और कहा कि यही दल इस तरह की सामाजिक समस्याओं को राजनैतिक मुद्दा बनाने के बजाय उसका राजनैतिक दोहन करते हैं। लिहाजा यह समस्या आजादी के बाद भी भारतीय समाज में बनी हुई है। वहीं अर्चना महतो ने कहा कि ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं समाज के सभ्य होने पर सवालिया निशान हैं।
    जेयूसीएस के चंदन शर्मा व अरूण कुमार उरांव ने साथी पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान के शुरूआत की घोषणा की। इसके तहत पत्रकारिता के छात्रों और पत्रकारों के बीच हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया है। जेयूसीएस ने यह भी तय किया है जब तक निरुपमा के दोषियों को सजा नहीं हो जाती है,तब तक संगठन का यह अभियान चलता रहेगा। बैठक में अवनीश कुमार,प्रबुद्ध गौतम, सौम्या झा, पूर्णिमा, शाह आलम,विवेक, रवि राव, अभिमन्यु सिंह,श्वेता सिंह,अलका देवी ने भाग लिया।

 द्वारा
 विजय प्रताप
 सम्पर्क-09015898445,09313129941
   ई-मेलः    jucsindia@gmail.com
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

निरुपमा पाठक हत्या मामले में मानवाधिकार आयोग को पत्र

प्रति
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
फरीदकोट हाउस,नई दिल्ली
विषयः पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या की उच्चस्तरीय जांच की मांग

महोदय,
      युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की 29 अप्रैल को उसके गृहनगर झारखंड के कोडरमा में हत्या कर दी गई थी। पोस्टमार्टम में इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि उसकी हत्या गला घुटने से हुई है। जबकि निरुपमा के परिजनों ने शुरूआती दौर में निरुपमा की मौत की वजह करंट लगना बतायी थी और स्थानीय पुलिस प्रथम दृष्टया फांसी लगाकर आत्महत्या की बात कही थी। निरुपमा के कमरे से पुलिस ने एक सुसाइड नोट भी बरामद किया था। 22 वर्षीय निरुपमा पाठक पुत्री धर्मेंद्र पाठक देश के प्रतिष्ठित भारतीय जनसंचार संस्थान(आईआईएमसी) के रेडियो-टेलीविजन पत्रकारिता वर्ष 2008-09 की छात्रा थी और पिछले एक वर्ष से दिल्ली स्थित अंग्रेजी दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड में कार्यरत थी।
   निरुपमा की हत्या का मामला ऑनर किलिंग का है। निरुपमा के मित्रों का कहना है कि उसके घरवालों को निरुपमा के विजातीय लड़के से विवाह करने के फैसले पर ऐतराज था। घरवालों ने निरुपमा को एक षडयंत्र के तहत मां के बीमार  होने की झूठी सूचना देकर घर बुला लिया। निरुपमा को 28 अप्रैल को वापस दिल्ली लौटना था, लेकिन घरवालों ने उसे दिल्ली आने से जबदस्ती रोका। इस दौरान निरुपमा को किसी से भी सम्पर्क नहीं करने दिया। 29 अप्रैल को निरुपमा ने सहपाठी रहे पत्रकार प्रियभांशु को बताया कि यह हम दोनों की आखिरी बातचीत है, परिवारवाले मुझे दिल्ली नहीं आने दे रहे हैं। भैया के दोस्त मुझपर नज़र बनाए हुए हैं।(देखें-दैनिक हिंदुस्तान,03मई,10) उसी दिन (29 अप्रैल 2010) निरुपमा अपने कमरे में मृत पायी गई थी।
    लिहाजा हम आयोग से ऑनर किलिंग के इस मामले में सीधे हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं। ताकि निरुपमा को न्याय मिल सके। साथ ही हम आयोग से यह भी मांग करते है कि देश में जिस तरह सामाजिक परम्परा की दुहाई देकर या प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर युवक-युवतियों की हत्या की जा रही है, उस पर अंकुश लगाने के लिए आयोग और राज्य सरकारों को निर्देशित करे।
  समाज में युवाओं को मनपसंद के जीवनसाथी चुनने के अधिकार की रक्षा की जाये और ऐसे युवाओं को पूरी सुरक्षा मुहैय्या करायी जाये, ताकि किसी और निरुपमा पाठक की ऑनर किलिंग के नाम पर हत्या ना हो। इसके लिए देश में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए एक कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए।

                                                                          भवदीय
ऋषि कुमार सिंह, विजय प्रताप, नवीन कुमार, चंदन शर्मा, अवनीश राय, अभिषेक रंजन सिंह, अरुण कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, सौम्या झा, राजीव यादव,लक्ष्मण प्रसाद, अनिल, देवाशीष प्रसून, चंद्रिका, शाह आलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, प्रिया मिश्रा, शाहनवाज़ आलम, राकेश, संदीप, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, श्वेता सिंह, अलका देवी, नाज़िया, पंकज उपाध्याय, तारिक़, मसीहुद्दीन संजरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह व अन्य।

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

  

निरुपमा पाठक की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट

जनहित याचिका के लिए सुझाव दें किसान- पीयूसीएल

अगलगी में हुए नुकासान के मूल्यांकन के लिए पीयूसीएल ने जारी किया संकलन पत्र
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ;पीयूसीएलद्ध ने आजमगढ़ में अगलगी और उससे होने वाले नुकसान का तथ्यात्मक संकलन पत्र आम जनता में जारी किया है। संगठन ने मोबाइल नंबर 09455571488, 09452800752, 09935492703, 09450476417 जारी करते हुए कहा है कि जिन किसानों की फसलें, अशियानें, मवेशी आग में जल गए हैं वे इन नंबरों अथवा पीयूसीएल के कैम्प कार्यालय कोमल कालोनी पल्हनी और संजरपुर से फार्म प्राप्त कर संगठन को सूचित करें।
पीयूसीएल प्रभारी मसीहुद्ीन संजरी और विनोद यादव ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि पीयूसएल आजमगढ़ में हुयी अगलगी को आधार बनाकर पूरे यूपी में हुयी अगलगी पर जनहित याचिका करने जा रहा है। याचिका के लिए तथ्यात्मक संकलन के लिए इस फार्म को गांव-गांव जाकर वितरित किया जा रहा है जिससे नुकसान हुयी सम्पत्ति का सही मूल्यांकन हो सके। पीयूसील नेता तारिक शफीक ने कहा कि हम आगामी दिनों में ब्लाक व तहसील स्तर पर कैंप लगाएंगे जिससे जिन इलाकों तक हम नहीं पहुंच पाएंगे उनके भी नुकसान का तथ्यात्मक संकलन हो सकेगा। पीयूसीएल द्वारा दायर की जाने वाली जनहित याचिका के लिए जो भी सुझाव व शिकायतें हों उन्हें हमारे नम्बरों और कैंप कार्यालय पर देने की कोशिश किसान करें। जिससे हमारी जनहित याचिका और मजबूती के साथ कोर्ट में दायर हो सके।

द्वारा जारी
तारिक शफीक
राज्य कार्यकारिणी सदस्य पीयूसीएल
मो0- 09935492703

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज पीयूसीएल
अगलगी और उससे होने वाले नुकसान का तथ्यात्मक संकलन पत्र

भूस्वामी का नाम-

पता-ग्राम/मोहल्ला-                                        ब्लाक-
तहसील                                                          थाना-                                                                                    पोस्ट आफिस-                                                   जिला-                                                                                       पिन-                                                               प्रदेश-
आग से प्रभावित सम्पत्ति का ब्योरा-
आग में मरने/घायल हाने वाले मवेशियों की संख्या-
आग में मरने/घायल होने वाले व्यक्तियों की संख्या-
आग लगने का कारण-
ग्रामसभा/ब्लाक/तहसील/थाना/जिला स्तर पर दी गयी सूचना तथा आश्वासन-
विगत में आपके साथ ऐसी कोई घटना हो चुकी है-
यदि हां तो सरकारी राहत की प्राप्ति का विवरण-
खेती के अतिरिक्त आय का कोई वैकल्पिक स्रोत-
क्या आपने कोई कृषि ऋण लिया है?-
क्या आपको गत वर्ष सूखा राहत का अनुदान प्राप्त हुआ?-
अन्य-
दिनांक-
भूस्वामी/परिजन के हस्तक्षर        जांचकर्ता के हस्ताक्षर

युपि के बलिया जिले के मनियर गाँव में ट्रांसफार्मर बदलने के नाम पर गाँव वालों से बिजली विभाग के कर्मचारियों दौरा वसूली के संधर्भ में

प्रति, अध्यक्ष
राश्ट्ीय मानवाधिकार आयोग

महोदय,
हम समस्त ग्रामवासी छितौनी थाना मनियर तहसील बांसडीह जिला बलिया आपका ध्यान अपने गांव के बिजली संकट और उसकी आड़ में चल रहे सकरारी कर्मचारियों द्वारा घुसखोरी और भ्रश्टाचार की तरफ आकृश्ट करना चाहते हैं। हमारे गांव में छह महीने पहले ट्ंासफरमर बदला गया था। लेकिन वह इतनी बुरी स्थिति में था की जब से लगा उसी दिन से उसमें से तेल का रिसाव लगातार होता रहा है। जिसके चलते लगातार आगजनी जैसी अनहोनी की आशंका बनी रहती है। यह आशंका इस बात से भी पुश्ट होती है कि इसके पहले लगे ट्ांसफारमर से भी ऐसे ही तेल टपकाता था और एक दिन तेल रिशाव के चलते भीशड़ आग लगी और जोरदार आवाज के साथ ट्ंासफ ारमर फट गया। जिसके चलते लगभग सौ मीटर के दायरे में भीशड़ आगजनी हुयी।
नया ट्ंासफारमर जिसके लगने के दिन से ही उसमें से इसी तरह से तेल टपकता रहा है, को बदलने के लिए कई बार जेई राजीव रंजन राय ;फोन 9616563051द्ध और एक्सियन एके सिंह ;फोन 9450968746द्ध को शिकायत की गयी। लेकिन शिकायत दूर करने के बजाय उल्टे हमें टालने के अंदाज में नसीहत दी गयी कि जब आग लगेगी तब देखा जाएगा, या फिर कहा गया कि खुद अपने पैसे से ट्ांसफारमर लाद कर लाइए और अपने पैसे से ही ले जाइए। जबकि कानूनन विभाग की यह जिम्मेदारी है कि वह खुद ट्ांसफारमर लगवाए। इस तरह जब भी टांसफारमर जलता है, एक हजार रुपए एक तरफ से ले जाने में खर्च होता है। जबकि साथ में ट्ांसफारमर लगाने वाला सरकारी लाइनमैन भी अपने ड्यूटी निभाने के एवज में दो सौ से ढाई सौ रुपए घूस लेता है। वहीं बलिया मुख्यालय पर तैनात कर्मचारी गाड़ी से ट्ांसफारमर उतारने चढंानें का भी तीन सौ रुपया लेता है। इस तरह कम से कम हर बार तीन हजार रुपए एक बार ट्ांसफारमर जलने पर हम गांव वालों का खर्च होता है।
अतः समझा जा सकता है कि भ्रश्टाचार के इस खेल में जहां जनता लगातार अंधकार और आगजनी के हासिए पर खड़ी है तो वहीं एक्सियन-जेई से लेकर लाइनमैन तक लापरवाही और भ्रश्टाचार में डूबे हैं। अतः हम समस्त गा्रम वासी इस मामले में आपसे हस्तक्षेप कर दोशी भ्रश्ट कर्मचारियों के खिलाफ उचित कार्यवायी की मांग करते हैं।

द्वारा जारी
अजीमुल्ला सिंद्दिकी, नेहाल खान, जावेद आलम, आरिफ शेख,
मेराजुल शेख, दानिस सिद्दिकी, जुलफेकार, सरफराज, वारिफ,
शाह आलम , शकील, नसीम, रईस अहमद समेत समस्त ग्रामवासी।
मो0- 09415254919

प्रति-
1- अध्यक्ष राश्ट्ीय मानवाधिकारा आयोग
2- राज्य मानवाधिकार आयोग
3- प्रधानमंत्री
4- मुख्यमंत्री
5- विद्युत विभाग उत्तर प्रदेशे

बलिया के सिकंदरपुर तहशील से धरने पर बैठी माँ और बेटी को उठवाने और धमकी के संधर्भ में

प्रति, अध्यक्ष
राश्ट्ीय मानवाधिकार आयोग

महोदय,
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज की तरफ से हम आपका ध्यान यूपी के बलिया जिले की तहसील सिकंदपुर में 24 अपै्रल से धरने पर बैठी फूलमती देवी पत्नी स्वर्गीय ओम शंकर मिश्र की तरफ आकृश्ट कराना चाहेंगे। फूलमती देवी का 26-27 अपैल की रात से धरने स्थल से कुछ पता नहीं चल रहा है इस समय फूलमती की बेटी सीमा जो चौदह वर्श की हैं धरने पर बैठ गयी हैं। सीमा को लगातार जान से मारने और बलात्कार की धमकी दी जा रही है। यह सब प्रशासन के सहयोग और उसकी सहभागिता से हो रहा है। इस बाबत जब पीयूसीएल ने सिंकदरपुर के तहसीलदार और थानाध्यक्ष से बात की तो उन्होंने जवाब नहीं दिया। इसके पहले फूलमती को भी जान से मारने और बलात्कार की धमकी दी जा रही थी कि वह तत्काल धरना बन्द कर दें और सुलह कर ले। इसमें तहसीलदार और थानाध्यक्ष का लगातार दबाव था। पर जब फूलमती धरने पर मांग न पूरा होने तक के अपने निर्णय पर टिकी रही तो उसको लगातार धमकी दी जाने लगी।
पिछली 24 अपै्रल से फूलमती अपने मकान पर कब्जा किए अपने किराएदार लल्लन सिंह का कब्जा हटाने को लेकर धरने पर बैठीं। दो वर्श पहले जब उनके पति की मृत्यु हो गयी तो उनके किराएदार ने फूलमती और उनकी बेटी सीमा को घर से मारकर भगा दिया और मकान पर कब्जा कर लिया। इसकी सूचना लगातार फूलमती प्रशासन को देती रहीं पर प्रशासन किसी भी कार्यवायी से बचता रहा। तहसीलदार और थानाध्यक्ष का दबाव था कि पैसा लेकर वह मकान छोड़ दे।
ऐसे में जबरन सुलह कराने और धरने स्थल से गायब करने जैसे अपराध पर हम आपसे मांग करते हैं कि आप तत्काल हस्तक्षेप कर पीड़ित पक्ष के मानवाधिकार हनन को रोकें। तहसील कैंपस के धरने स्थल से किसी को जबरन, वो भी पुलिस की मौजूदगी में उठाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने का अपराधिक कृत्य है। ऐसे में संगठन मांग करता है कि दोशी पुलिस कर्मियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाय।

द्वारा जारी-
बलवंत यादव
पीयूसीएल बलिया उत्तर प्रदेश
मो0-09451747170

प्रति-
1- अध्यक्ष राश्ट्ीय मानवाधिकारा आयोग
2- राज्य मानवाधिकार आयोग
3- प्रधानमंत्री
4- मुख्यमंत्री
5- डीजीपी उत्तर प्रदेश

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