30 मार्च 2011

जम्मू-कश्मीर से गायब लोग, सरकारी आंकड़ों से भी गायब


निजाम बदले, तो आंकड़े भी बदले


जम्मू कश्मीर में चल रहे आतंरिक युद्ध के दौरान गायब कर दिये गए लोगों के साथ पिछले कई वर्षों से मजाक चल रहा है। सरकारी आंकड़ों में गायब हुए लोगों की संख्या सरकारों के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। सरकारी एजेंसियां गायब हुए लोगों के परिवारों यह विश्वास दिलाने में लगी हैं कि ये लोग वास्तव में सीमापार कश्मीर या पाकिस्तान में हैं। इसी आधार पर गायब लोगों की फाइलें बंद कर दी गई हैं।
जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन दशकों से चल रहे अशांति के माहौल में हजारों लोग या तो मार दिए गए या फिर गायब कर दिये गए। गायब हुए लोगों में से ज्यादातर के जिंदा होने की संभावना कम ही है। क्योंकि कश्मीर में कई बार अज्ञात लोगों की कब्रे मिल चुकी हैं। लेकिन उनके हत्या की जिम्मेदारी लेने के लिए सरकारें तैयार नहीं होती।
जिम्मेदारी तो दूर सरकारें गायब हुए लोगों की वास्तविक संख्या को भी लगातार नकारती रही हैं। अभी तक सरकार बदलने के साथ ही गायब हुए लोगों की संख्याएं भी बदलती रही हैं।
इसका एक नमूना इस प्रकार है-
  • 21 जून, 2003 को जम्मू-कश्मीर के गृहमंत्री ए.आर. वीरी ने अपने एक बयान में कहा कि 1989 से जून 2003 के दौरान गायब हुए लोगों की संख्या 3931 थीं।
  • मार्च 2006 में मुख्यमंत्री जी.एन. आजाद ने बताया कि गायब हुए लोगों की पंजीकृत संख्या केवल 693 है।
  • 4 अगस्त 2006 में फिर इन्हीं जी.एन. आजाद ने कहा कि 1990 से 1996 के बीच 33 लोग हिरासत से गायब हुए हैं।
  • 28 अक्टूबर, 2006 को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगत राम शर्मा ने बताया कि 1990 से अब तक 108 लोग हिरासत से गायब हुए हैं।
  • 22 जनवरी 2007 को राज्य सरकार ने एक सर्वे कराया और कहा कि 1017 गायब पाए गए।
  • अभी हाल में 23 मार्च 2010 को एक सरकारी सम्मेलन में 1989 से अब तक गायब लोगों की संख्या 1105 बताई गयी।
गायब हुए लोगों के आंकड़ों का यह खेल साबित करता है कि किस तरह से सरकारें इन लोगों के परिवारों को न्याय दिलाने की बजाय मजाक करती रही हैं।
गायब  लोगों के अभिभावकों के संगठन एसोसिएशन ऑफ पैरेन्ट्स ऑफ डिस्अपियरड पर्सन्स (एपीडीपी) के प्रवक्ता गुलाम नबी मीर कहते हैं कि ‘‘हमारी केवल इतनी मांग है कि अब तक गायब हुए लोगों के बारे में सच्चाई सामने लाई जाए। हम सरकार से मांग करते हैं कि वह उन लोगों की सूची सार्वजनिक करे जिन्हें वह गुमशुदा मानती है। इन लोगों के बारे में अभी तक क्या कार्रवाई की गई उसे भी बताया जाए।’’
राज्य में गायब हुए लोगों के परिवारों के साथ कोई भी जनप्रतिनिधि खड़ा नहीं दिखता। इन परिवारों को सहायता उपलब्ध कराने के मामले में न तो सत्ताधारी विधायकों को न ही विपक्षी पार्टियों के नेताओं को कोई चिंता है।
एपीडीपी का कहना है कि मौजूदा सरकारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह गायब लोगों के मामले में सही जानकारी उपलब्ध कराए। संगठन ने उन विपक्षी नेताओं से भी इस मामले को उठाने की मांग की जो पिछले चुनावों में गायब लोगों के मामले की सच्चाई जानने के लिए आयोग गठित करने का  वायदा करते रहे हैं। अपने आप को जनता का प्रतिनिधी होने का दावा करने वालों की यह आपराधिक चुप्पी उन्हें अपराधी ठहराती है।

प्रस्तुति: विजय प्रताप

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