10 जून 2011

पत्रकारों का कत्लगाह बना पाकिस्तान


कलम के सिपाहियों पर जब-जब जुल्म हुआ है तब-तब एक सवाल जेहन में हमेशा तैरता है कि एक कलम के पहरुओं के लिए कौन-कौन से जोखिम हो सकते हैं? इसके जवाब में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि नींद जाने से लेकर जान जाने तक और बीबी-बच्चों से बेगाने होने तक।

सैयद सलीम शहजाद : सच बोलने की सजा
"एशिया टाइम्स ऑनलाइन" के चालीस वर्षीय पाकिस्तानी पत्रकार सैयद सलीम शहजाद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, उन्हें भी सच कहने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी। उनकी लाश मंगलवार, 31 मई को पंजाब सूबे के मंडी बहाउद्दीन इलाके की एक नहर में पाई गई.. वह पिछले कुछ दिनों से लापता थे, उन्हें अगवा करने और हत्या के पीछे कुख्यात पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई का नाम आ रहा है। "एशिया टाइम्स ऑनलाइन" के पत्रकार सैयद सलीम शहजाद की हत्या के बाद पाकिस्तान की पत्रकार बिरादरी और सामाजिक कार्यकर्ताओं में खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस(आईएसआई) के प्रति गुस्से का आलम यह है कि अब संयुक्त राष्ट्र में भी इस एजेंसी पर पाबंदी लगाने की पुरजोर मांग उठने लगी है। पाकिस्तानी अवाम में इस कायराना कत्ल के पीछे आवाज बुलंद होने लगी है। अपने इस गुस्से का इजहार करने के लिए लोग माइक्रो ब्लॉगिंग साइट टि्वटर और फेसबुक का सहारा ले रहे हैं। लाहौर, कराची और पेशावर प्रेस क्लब में शहजाद ही हत्या की निंदा की गई। लाहौर के मशहूर एचिशन कॉलेज के छात्रों ने इस निर्मम हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। पाकिस्तान में जिस तरह से पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है, ऐसे में यह कहने से गुरेज नहीं कि पाकिस्तान की  सेना और आईएसआई सच के सिपाहियों की आवाज खामोश करने पर तुली हुई है।
गौरतलब है कि शहजाद ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों पर भी कई रपट लिखीं थीं। उन्होंने हाल ही में कराची नौ सैनिक ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले के संदर्भ में भी एक रपट लिखी थी, जिसके मुताबिक दहशतगर्दों ने पीएनएस मेहरान को इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि नौसेना ने आतंकवादियों से सम्बंध के संदेह में गिरफ्तार कुछ नाविकों को रिहा करने से इंकार कर दिया था। शहजाद पाकिस्तान में सक्रिय मेहनतकश उन पत्रकारों में शामिल थे, जिन्होंने खुल्लम-खुल्ला कट्टरपंथियों की मजम्मत की। इसकी मिसाल है उनकी लिखी एक किताब "इनसाइड अल कायदा एंड तालिबान"
हालांकि, प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने आईएसआई पर लगे आरोपों की जांच का भरोसा दिलाया है, लेकिन जांच से पहले ही पाक मीडिया और आम आवाम में यह राय कायम हो चुकी है कि आईएसआई ने ही पत्रकार शहजाद की हत्या कराई है। दरअसल, सैयद शहजाद की हत्या पाकिस्तानी पत्रकारों के लिए एक चुनौती है कि, अगर वह ईमानदारी से पत्रकारिता करेंगे तो उनका  यही अंजाम होगा।
इससे पहले 10 मई 2011 को पेशावर में  “ खैबर न्यूज एजेंसी” के पत्रकार नसरूल्लाह खान बाबर की हत्या कर दी गई। बाबर फाटा इलाके में दहशतगर्दों के खिलाफ खबरें लिख रहे थे। पिछले साल 2010 में वलीउल्लाह खान बाबर जो ‘जियो टीवी’ में रिपोर्टर थे उनकी कराची में हत्या कर दी गई, उन्होंने कराची में सक्रिय मादक द्रव्यों का कारोबार करने वालों के खिलाफ खबरों के मार्फत एक मुहिम छेड़ रखी थी। इसके अलावा तीन और पत्रकार हमीद बलोच जो कि ‘ग्वादर प्रेस क्लब’ के संस्थापक थे, उनकी हत्या कर दी गई। वहीं मुहम्मद खान सासोली और इलियास नजर जैसे तेज तर्रार और युवा पत्रकार को सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया गया।
27 दिसम्बर 2010 को जिनेवा में सक्रिय ‘‘द प्रेस एम्ब्लेम कैम्पेन’’ (पीईसी) ने जारी अपनी रिपोर्ट में बेहद खतरनाक और चौंकाने वाले नतीजे घोषित किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में 33 देशों में कुल 105 पत्रकारों की हत्या हुई है। बीते पांच सालों में देखें तो दुनिया भर में कुल 529 पत्रकारों की हत्या हुई। इस लिहाज से देखा जाए तो औसतन हर सप्ताह दो पत्रकारों को कत्ल किया गया। हालांकि 2010 की तुलना में वर्ष 2009 ज्यादा खतरनाक रहा जिसमें 122 पत्रकारों की हत्या हुई वहीं 2008 में 91 पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पीईसी महासचिव ब्लेज लेमपेन ने पत्रकारों पर वैश्विक रिपोर्ट में कहा कि इतनी तादात में पत्रकारों की हत्या होना किसी भी देश की लोकतंत्र और सामाजिक वातावरण के लिए सही नहीं है। पीईसी रिपोर्ट की मानें तो मैक्सिको और पाकिस्तान पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए दुनिया के दो सबसे खतरनाक देशों में शुमार हैं। पाकिस्तान में पिछले साल अलग-अलग क्षेत्रों में 14 पत्रकार मारे गए। सबसे ज्यादा मौतें अफगान के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में हुई। पीईसी के अनुसार यह 2006-2010 की अवधि के दौरान इराक सबसे खतरनाक देश के रूप में दुनिया में सबसे ऊपर रहा। जहां 127 पत्रकारों को मार डाला गया। जबकि इसी अवधि में पाकिस्तान में 38 पत्रकार मारे गए। सार्क देशों की हालत भी ज्यादा संतोषप्रद नहीं है। इन चार वर्षों में श्रीलंका में 15, अफगानिस्तान में 14, भारत में 14, नेपाल में 9, बांग्लादेश में तीन पत्रकारों की हत्या हुई। पीईसी के मुताबिक एशिया पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक जगह बन गई है, दूसरे स्थान पर मध्य पूर्व और तीसरे स्थान पर अफ्रीका महाद्वीप है।
वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा की निगरानी करने वाली संस्था “ द कमेटी टू प्रोटेक्ट् जर्नलिस्ट्स ” ने भी एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके मुताबिक पाकिस्तान पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश बन चुका है।  दरअसल, इन दिनों पाकिस्तान बेहद ही मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है। राजनीतिक, सामाजिक उथल-पुथल और धर्मांधता के बीच पाकिस्तान का मुस्तकविल अंधेरी सुरंग की ओर बढ़ रहा है। जब भी किसी मुल्क की ऐसी दशा होती है, उस वक्त सबसे ज्यादा खतरा पत्रकारों और सामजिक कार्यकर्ताओं पर ही होता है। हर साल वहां दर्जनों पत्रकारों को सच कहने की सजा भुगतनी पड़ रही है। असल में पाकिस्तान की सभी सरकारों ने बगैर हिचक प्रेस को जनता का दुश्मन की उपाधि की संज्ञा दे डाली। लेकिन किसी ने भी इतनी कड़वाहट भरा और अपमानजनक सलूक नहीं किया, जितना कि 1977 के बाद जनरल जिया उल हक के सैनिक शासन के दौरान हुआ। जिया ने खुद को इस देश का संरक्षक घोषित किया था और इस्लाम को अपने मनमाफिक लागू किया था। एक बेहद असहिष्णु और धर्मांध सत्ता के बीच प्रेस की किस्मत कैसी रही होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लोकतंत्र का मतलब होता है कानून का शासन, विरोध और असहमति का अधिकार और दूसरों के विचारों का सम्मान, चाहे उनसे कोई सहमत हो या नहीं।
1947 में आजादी के बाद से पाकिस्तान की जनता ने अपनी जिंदगी का अधिकतर समय सैनिक शासन के साए में गुजारा। आपातकाल, निलंबित संविधानों के मलबों, नपुंसक एसेंबली, कमजोर अधिकार वाली न्यायपालिका, दुर्बल व बंटे विपक्ष और बेडिय़ों में जकड़े प्रेस के साथ बिताया।

शहजाद की मौत के बाद पाकिस्तान को अंतराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाएँ झेलनी पड़ी
पाकिस्तान में आजाद पत्रकारिता में लगा ग्रहण और सच्चाई की राह पर चलने वाले पत्रकारों की हत्या के पीछे कुछ अहम सामाजिक, राजनीतिक व क्षेत्रीय कारण भी हैं- पहली वजह यह कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मादक पदार्थों के कारोबारी काफी संख्या में हैं। इनके खिलाफ जिन पत्रकारों ने अपनी आवाजें उठाईं उन्हें या तो कत्ल कर दिया गया या उन पर जुल्म ढ़ाए गए। दूसरी वजह उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत है, जहां इस समय तालिबान की समानांतर सरकार चल रही है। उनकी नजरों में प्रेस का मतलब कुछ नहीं है। उनकी बर्बरता के खिलाफ जिसने भी कुछ लिखने या कहने का साहस दिखाया उसकी दशा ‘जियो टीवी’ के रिपोर्टर मुसा खान खेल की तरह हुई। जिनकी हत्या पिछले साल स्वात घाटी में कर दी गई थी। तीसरी वजह है पाकिस्तान में सामंती जमींदारी व्यवस्था की मजबूत बुनियाद। पाकिस्तान में आज तक भूमि सुधार के कोई ठोस प्रयास नहींकिए गए। आज भी पंजाब और सिंध में हजारों एकड़ जमीन पर ऊंची जाति कहे जाने वाले पठानों और सैयदों का कब्जा है।
भूमि सुधार के मसलों पर जिन्होंने अपनी आवाज बुलंद की, उसे हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया। कुछ साल पहले मुल्तान और रावलपिंडी में ‘नवाए वक्त’ और ‘जंग’ अखबार से जुड़े पत्रकारों की रहस्यमय हालात में हत्या कर दी गई थी। चौथी वजह अफगानिस्तान से सटे ब्लूचिस्तान का मामला है। यह इलाका कबीलाई बलूच राष्ट्रवादियों का है, जो खुलेआम पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता को चुनौती देते आए हैं। यहां बलूच लोगों पर हो रहे जुल्म पर निर्भीकता से लिखने वाले पत्रकारों को पुलिस और सत्ता समर्थकों ने बड़ी बेरहमी से कत्ल किया।
अखबार और प्रेस किस कदर धार्मिक कट्टरता का शिकार होते हैं, उसकी मिसाल है सलमान रुश्दी की किताब ‘सैटेनिक वर्सेज’ पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘डॉन’ ने इस विवादित पुस्तक के कुछ अंश प्रकाशित किए। नतीजतन धार्मिक कट्टरपंथी भडक़ उठे। प्रदर्शनकारियों ने इस्लामाबाद के ब्यूरो पर हमला बोल दिया और दफ्तर को काफी नुकसान भी पहुंचाया। बावजूद इसके पाकिस्तान के साहसी पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सच कहने की हिम्मत नहीं छोड़ी। बेशक, इन हालातों के बाद यह कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में पाकिस्तान पत्रकारों के लिए एक कत्लगाह के रूप में तब्दील हो रहा है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि अभी तक ऐसा कोई हथियार नहीं बना है जो सच कहने का जज्बा खत्म कर सके। यहां यह भी मौजूं है कि पाकिस्तान सार्क संगठन का सदस्य देश है। ऐसे में आपसी संवाद स्थापित करने और एक दूसरे की समस्या को समझने के लिए सदस्य देशों की सहमति पर ‘‘साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन’’ (साफ्मा) का गठन हुआ था। लिहाजा भारत और अन्य सदस्य देश दक्षेस की आगामी बैठकों में प्रेस की आजादी और पत्रकारों पर हो रहे जुल्म को प्राथमिक सूची में रखते हुए इस समस्या पर गंभीर चर्चा करने की जरूरत समझें।

अभिषेक रंजन सिंह
मो.9313174426
email- arsinghiimc@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय