17 मार्च 2008

शहादत प्रायोजित यौवन पर प्रामाणिक यौवन की विजय


१६ मार्च २००३, फिलिस्तीन के रफाह कस्बे में एक फिलिस्तीन बस्ती को तबाही से बचने के लिए २३ वर्षीय अमरीकी लड़की रचैल कोरी इज़रायली बुल्डोज़र के सामने खड़ी हो गई। ज़लिमों ने उस पर बुल्डोज़र चला दिया।
एक बार फ़िर चेग्वेरा की तरह नई पीढ़ी के क्रांतिकारियों ने महज़ अपने देश की मुक्ति तक अपनी सीमा नहीं बांधी, उन्होंने दुनियाभर की मुक्ति की कसम लेकर साम्राज्यवाद से लड़ते हुए दूसरे देशों की धरती पर मौत का वरण रेल अप्रेल। बुश - ब्लेयर के देशों तथा अन्य पश्चिमी देशों के रहने वाले नौज़वानों की शहादत उनके अपने ही देशों के जंगखोर साम्राज्यवादियों के लिए भयानक ख़बर है । लेकिन बाकि दुनिया के लिए यह बसंत के पुनरागमन है जिसके बारे में पूंजीवादी छापाखानों ,नाईट क्लबों ,एक्शन फिल्मों और हत्यारी सेनाओं ने लंबे समय से प्रचारित कर रखा था कि अब वह कभी नही आएगा ।ऐसे में रचैल कोरी जैसों की शहादत ने युगमर्दित और विस्मृत यौवन को बुढती पूंजी के मुंह पर तमाचे सा जड़ दिया है।बेहतर और न्यायपूर्ण दुनिया का सपना, विद्रोहीपन, युवावस्था के ही पर्यायवाची हैं। हर क्षण इंसानियत का कत्ल करते घूम रहे जंगखोरों और तानाशाहों, पूंजी के चाकर 'आलिमो- फाजिल' और 'सिपहसालारों' को ख़बर की जा चुकी है कि पूंजी के संकट ने बलिदानी यौवन कि आग को लहका दिया है। फिलिस्तीन से लेकर इराक तक बर्बर अमरीकी हमले के खिलाफ विश्वव्यापी प्रतिरोध में युवाशक्ति कि दृढ़ पदचाप अब अनसुनी नही कि जा सकती, कि यौवन जिंदा है, क्रांति की जिद जिंदा है। इनकी शहादत प्रायोजित यौवन पर प्रामाणिक यौवन की विजय है। साभार : जनमत का युवा विशेषांक

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