05 फ़रवरी 2009

फिर मास्टर माइंड और फिर आजमगढ़!

राजीव यादव

"बाबू परसों कुछ गुण्डा बसर के घरे से अगवा कइ लेनन तब हम पुलिस के इत्तला कइली त पुलिस हम लोगन से कहलस की आपो लोग खोजिए अउर हमों लोग खोजत हई मिल जाए। पर काल उहय पुलिस साम के बेला आइके हमरे घरे में जबरदस्ती घुसके पूरे घर के तहस नहस कइ दिहिस। हमके धमकइबो किहिस कि तोहार बेटा आतंकवादी ह अउर तोहरे घरे में गोला-बारूद ह।" पूर्वी उŸार प्रदेश का आजमगढ़ जिला अबुल बसर की गिरफ्तारी के बाद जहाँ एक बार फिर चर्चा में आया तो वहीं एक बार फिर एसटीएफ, एटीएस और आईबी की गैरकानूनी आपराधिक व झूठी कार्यवाही के खिलाफ पूरा जिला आन्दोलित हो गया है। पिछले दिनों यूपी की कचहरियों में हुए बम धमाकों के आरोप में इसी जिले से पकड़े गए तारिक कासमी को जिस तरह से एसटीएफ नें 12 दिसम्बर 07 को आजमगढ़ से अगवा कर 22 दिसम्बर 07 को बाराबंकी से गिरफ्तारी दिखाया. ठीक उसी तरह अबुल बसर को भी उसके गाँव बीनापारा, सरायमीर से 14 अगस्त 08 को साढ़े ग्यारह बजे अगवा कर 16 अगस्त 08 को लखनऊ चारबाग इलाके से गिरफ्तार करने का दावा किया है। 15 अगस्त को विभिन्न अखबारों में छपी खबरंे एसटीएफ और एटीएस की इस 'बहादुराना उपलब्धि' को झूठा साबित करने के लिए काफी हंै। पुलिस ने अहमदाबाद विस्फोटो में सिमी का हाथ होने का पुख्ता प्रमाण मिलने व मुफ्ती अबुल बसर को धमाकों का मास्टर माइंड बताते हुए सिमी का सक्रिय सदस्य बताया था। प्रतिबन्धित सिमी के राष्ट्रीय महासचिव सफदर नागौरी के साथ उसने केरल व गुजरात में आतंकी कैम्प में पूर्वांचल के लोगों को ले गया था, सूरत, जयपुर समेत यूपी की कचहरियों में हुए बम धामाकों का बसर मास्टर माइंड था, देश में हुए इन बम धमाकों की ईमेल द्वारा जिम्मेवारी लेने वाले इंडियन मुजाहिद्ीन (आइएम) का बसर राष्ट्रीय अध्यक्ष है। ये सब आरोप लगाते हुए डीजीपी पीसी पाण्डेय ने आइएम को सिमी का कवर फायर संगठन बताया। इस घटना में बसर समेत दस लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। आजमगढ़़ के ही रहने वाले प्रतिबंध्ंिात सिमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही से बसर व सिमी के रिश्ते के बारे में पूछने पर वे कहते है कि अबुल बसर सिमी का कभी भी सदस्य नहीं रहा है और न ही सिमी ने प्रतिबंध के बाद कोई सदस्यता अभियान चलाया है। आइएम के बारे में वे बताते हैं कि सिमी पर प्रतिबंध बरकरार रखने के लिए पिछले सात सालों में तमाम 'कागजी आतंकी तंजीमा'ें से सिमी का नाम जोड़ा गया है और अब आइएम भी उसी फेहरिस्त का हिस्सा है। तो वहीं आजमगढ़ खूफिया विभाग की सीक्रेट डायरी बद्र के बयानों को और पुख्ता करती है जिसमें 2001 में सिमी पर प्रतिबंध के बाद उन्नीस लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक किसी नए व्यक्ति का सिमी का सदस्य बनने का कोई जिक्र नहीं है। पीयूसीएल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वरिष्ठ मानवाधिकार नेता चितरंजन सिंह ने सूरत में 27 जिंदा बमों के पाये जाने और उनकी चिप खराब होने वाली घटना को मोदी सरकार का ड्रामा बताते हुए कहा कि जिस पीसी पाण्डेय को अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए राज्य प्रयोजित गुजरात नरसंहार में सक्रिय भूमिका निभाने के एवज में डीजीपी बनाया गया हो तथा कई मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों और तहलका के स्टिंग आॅपरेशन में जिसका साम्प्रदायिक चेहरा उजागर हो गया हो उसके बयानों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। और जिस प्रदेश में जाहिरा शेख से लेकर सोहराबुद्दीन तक को न्याय नही मिला उस प्रदेश की पुलिस ब्रीफिंग पर पूरे हिन्दुस्तान में हुई आतंकी घटनाओं के खुलासे पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। पुलिस को बताना चाहिए कि नवी मुम्बई से जिस अमेरिकी नागरिक केन हेवुड की आईडी से मेल किया गया था उसे क्यों भारत से बाहर जाने दिया गया और किस आधार पर एटीएस ने उसे क्लीन चिट दे दी। 'सिमी की ताल पुलिस का मेल' (3 अप्रेल 08 प्रभात किरण) सूर्खी से छपी खबर में लिखा था "श्याम नगर (जूनी इंदौर) में पकड़े गए सिमी सरगना सफदर नागौरी के मोबाइल में मिले हर नम्बर की बारीकी से जांच की जा रही है। इस दौरान इनके मददगार की काल डिटेल निकाली गई तो अधिकारी दंग रह गए। मो॰ न॰ 9425079000 मुजाहिद खान निवासी ब्रुक बाण्ड कालोनी सिमी के मददगारों में से एक है जिसकी काल डिटेल में एक आईजी, एक डीआईजी, तीन एएसपी, पाँच सीएसपी, दस-पन्द्रह टाउन इंस्पेक्टर क्राइम ब्रांच, जूनी इंदौर थाने समेत दर्जनों पुलिस के सिपाही के नम्बर मिले जिससे उसकी लम्बी बातें होती थीं। एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछताछ करने पर पता चला कि जिन नम्बर पर उसकी बात होती थी उन पुलिस वालों में से अधिकतर का ट्रांसफर हो गया है।" ऐसे में जब पुलिस सफदर को इस दौरान पूरे हिन्दुस्तान में हुए आतंकी हमलों का जिम्मेवार बता रही है तो उस पुलिस पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर वे कौन सी वजहें थी जिनकी वजह से आला अधिकारियों से लेकर सिपाही तक उससे घंटांे-धंटों बातें किया करते थे और आखिर क्यों उनका ट्रांसफर कर दिया गया। विभिन्न आतंकी घटनाओं की जांच कर रहे पीयूएचआर नेता शाहनवाज आलम बताते है कि अबुल बसर प्रकरण में जावेद नाम का एक व्यक्ति मार्च 08 से ही बसर के घर आता था जो कभी बसर से मिलता था तो कभी बसर के पिता अबु बकर से और खुद को कम्प्यूटर का व्यवसायी बताता था और वह बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी से आता-जाता था। जावेद, बसर के भाई अबु जफर के बारे में पूछता था और कहता था कि जफर को कम्प्यूटर बेचना है। अबु बकर ने बताया है कि बसर को अगवा किए जाने के बाद जावेद 16 अगस्त 08 की शाम छापा मारने वाली पुलिस के साथ भी आया था। तो वहीं बांस की टोकरी बनाने वाले पड़ोसी कन्हैया बताते है कि 14 अगस्त को बसर को अगवा किया गया तो अगवा करने वालों में दो व्यक्ति जो सिल्वर रंग की पैशन प्लस से थे वे गाँव में महीनों से आया जाया करते थे और वे इस बीच बसर के बारे में पूछते थे। ऐसे में खूफिया विभाग संदेह के घेरे में आता है कि जब महीनों से वह बसर पर निगाह रखे था तो वह कैसे घटनाओं को अंजाम दे दिया। पीयूएचआर नेता कहते हैं कि पिछले दिनों मड़ियाहूँ जौनपुर से उठाये गए खालिद प्रकरण में भी आईबी ने इसी तरह छः महीने पहले से ही खालिद को चिन्हित किया था (देखें प्रथम प्रवक्ता 1 मई 08)। आतंकवाद के नाम पर की जा रही गिरफ्तारियों में देखा गया है कि कुछ मुस्लिम युवकों को आईबी पहले से ही चिन्हित करती है और घटना के बाद किसी को किसी भी घटना का मास्टर माइंड कहना बस बाकी रहता है। शाहनवाज बताते है कि 13 अगस्त की रात आजमगढ़ से ही सिविल लाइंस क्षेत्र के चर्च के पास से मोटर साइकिल सवार दो युवको को जिप्सी सवार लोगों ने अगवा कर लिया। चर्च के पास खड़े रिक्शे वाले और दुकानदार ये बातें बतायी और यह खबर अखाबारों में भी प्रमुखता से छपी कि स्थानीय पुलिस देर रात तक कुछ नही बता पायी। ऐसे में देखा जा रहा है कि एसटीएफ और एटीएस की आपराधिक व गैरकानूनी कारगुजारियों का आईबी सुरक्षा कवच बन गई है। बीनापारा गाँव के प्रधान मो॰ शाहिद बताते हैं कि पिता के ब्रेन हैम्रेज के बाद बसर पर ही घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी। इसीलिए वह कमाने के लिए आजमगढ़ के ही अब्दुल अलीम इस्लाही के हैदराबाद स्थित मदरसे में पढ़ाने चला गया था। बसर जनवरी 08 में गया था और फरवरी 08 में वापस आ गया था क्योंकि वहाँ 1500 रू॰ मिलते थे जिससे उसका व उसके घर का गुजारा होना मुश्किल था। दूसरा पिता की देखरेख करने वाला भी घर में कोई बड़ा नहीं था। इस बीच वह गाँव के बेलाल, राजिक समेत कई बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था। अबुल बसर के चाचा रईस बताते हैं कि 14 अगस्त 08 को 11 बजे के तकरीबन दो आदमी मोटर साइकिल से आए और बसर के भाई जफर की शादी की बात करने लगे। बसर ने घर में मेहमानों की सूचना देकर उनसे बात करने लगा। बात करते-करते वे बशर को घर से कुछ दूर सड़क की तरह ले गए जहाँ पहले से ही एक मारूती वैन खड़ी थी। मारूती वैन से 5-6 लोग निकले और बशर को अगवा कर लिया। अगवा करने वालों की स्कार्पियो, मारूती वैन और पैशन प्लस मोटर साइकिल पर कोई नम्बर प्लेट नहीं लगा था। इसकी सूचना हम लोगों ने थाना सरायमीर को लिखित दी। नेलोपा नेता तारिक शमीम कहते हैं कि अबुल बसर ने जिन लोगों के बच्चों को पढ़ाया और गाँव के जिन लोगों के साथ उठता बैठता था सबने हलफनामा दिया है। ऐसे में पुलिस की यह बात झूठी साबित होती है कि बशर ने बम धमाके किए। क्योंकि इस बात के सैकड़ो गवाह हंै कि 13 मई 08 के जयपुर बम धमाके हों या 25-26 जुलाई 08 के हैरदाबाद और अहमदाबाद के बम धमाके, इस दौरान बशर गाँव में ही था और अपनी अपाहिज माँ और ब्रेन हैम्रेज से जूझ रहे पिता का इलाज करा रहा था। शहर आजमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दŸाा कहते हैं कि जिले से आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए किसी भी व्यक्ति पर आज तक आतंकी होने का आरोप सही नहीं पाया गया है फिर भी आजमगढ़ को आतंकवादियों की नर्सरी के बतौर प्रचारित करने में मीडिया का अहम रोल है। और जहाँ तक हवाला कारोबार का सवाल है तो वह जिले का ऐसा 'कुटीर उद्योग' है जिसे धर्मनिरपेक्ष भाव से हिन्दू-मुसलमान दोनों करते हंै। वे कहते हंै कि पिछले दिनों जिस तारिक कासमी को हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बताया जा रहा था उसकी चार्ज शीट में हुजी या किसी आतंकी संगठन से उसके किसी भी जुड़ाव का कोई जिक्र नही है फिर भी मीडिया आज भी उसे हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बता रही है और अब आईएम का कार्यक्षेत्र बता पुलिस ने पूरे जिले में आतंक का महौल व्याप्त कर दिया है। वरिष्ठ प्रवक्ता बद्रीनाथ श्रीवास्तव कहते हंै कि जनता में दंगों के प्रति आई परिपक्व समझदारी नें दंगों की राजनीति को पीछे ढकेल दिया है। ऐसे में आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियां कर साम्प्रदायिक ताकतों के ही एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है जिसे हम आजमगढ़ में हुए पिछले उप चुनाव मेंु साफ देख सकते है। पूरा चुनाव आतंकवाद के मुद्दे पर लड़़ा गया ऐसा आजमगढ़ में पहली बार हुआ और जनता के मूलभूत सवाल पीछे चले गए। और अब समाजवादी पार्टी नें इमाम बुखारी को बुलाकर मुद्दे को भटकाने की कोशिश की है।तलासी के बाद पुलिस बसर के बीबी क गहना, गाँव वाले चंदा लगाके बसर के खोजे बिना पइसा देहे रहे उ अउर जात-जात चूहा मारे क दवइओ उठा ले गई। हमसे पुलिस वाले जबरदस्ती सादे कागद पर दस्खतो करइनन।'' अहमदाबाद बम धमाकों के 'मास्टर माइन्ड' मुफ्ती अबुल बसर कासमी इस्लाही के पिता अबु बकर ये बताते हुए घर के हालात की तरफ इसारा करते हुए कहते हंै कि अब आप ही देखिए इस टूटे-फूटे जरजर घर में सात बेटों-बेटियोें और अपाहिज पत्नी के साथ रहता हूँ। डेढ़ साल से ब्रेन हैमे्रज के कारण अब हमसे कुछ भी नहीं हो पाता, एक बसर के सहारे पूरा घर था। बसर की सात साल की बहन साईना बताती है कि घर में चार दिन से चूल्हा नहीं जला और न खाने के लिए कुछ है पड़ोसियों के घर से जो कुछ आता है उसी को खाया जाता है। पूर्वी उŸार प्रदेश का आजमगढ़ जिला अबुल बसर की गिरफ्तारी के बाद जहाँ एक बार फिर चर्चा में आया तो वहीं एक बार फिर एसटीएफ, एटीएस और आईबी की गैरकानूनी आपराधिक व झूठी कार्यवाही के खिलाफ पूरा जिला आन्दोलित हो गया है। पिछले दिनों यूपी की कचहरियों में हुए बम धमाकों के आरोप में इसी जिले से पकड़े गए तारिक कासमी को जिस तरह से एसटीएफ नें 12 दिसम्बर 07 को आजमगढ़ से अगवा कर 22 दिसम्बर 07 को बाराबंकी से गिरफ्तारी दिखाया (देखें प्रथम प्रवक्ता 1 मई 08) ठीक उसी तरह अबुल बसर को भी उसके गाँव बीनापारा, सरायमीर से 14 अगस्त 08 को साढ़े ग्यारह बजे अगवा कर 16 अगस्त 08 को लखनऊ चारबाग इलाके से गिरफ्तार करने का दावा किया है। 15 अगस्त को विभिन्न अखबारों में छपी खबरंे एसटीएफ और एटीएस की इस 'बहादुराना उपलब्धि' को झूठा साबित करने के लिए काफी हंै। पुलिस ने अहमदाबाद विस्फोटो में सिमी का हाथ होने का पुख्ता प्रमाण मिलने व मुफ्ती अबुल बसर को धमाकों का मास्टर माइंड बताते हुए सिमी का सक्रिय सदस्य बताया था। प्रतिबन्धित सिमी के राष्ट्रीय महासचिव सफदर नागौरी के साथ उसने केरल व गुजरात में आतंकी कैम्प में पूर्वांचल के लोगों को ले गया था, सूरत, जयपुर समेत यूपी की कचहरियों में हुए बम धामाकों का बसर मास्टर माइंड था, देश में हुए इन बम धमाकों की ईमेल द्वारा जिम्मेवारी लेने वाले इंडियन मुजाहिद्ीन (आइएम) का बसर राष्ट्रीय अध्यक्ष है। ये सब आरोप लगाते हुए डीजीपी पीसी पाण्डेय ने आइएम को सिमी का कवर फायर संगठन बताया। इस घटना में बसर समेत दस लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। आजमगढ़़ के ही रहने वाले प्रतिबंध्ंिात सिमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही से बसर व सिमी के रिश्ते के बारे में पूछने पर वे कहते है कि अबुल बसर सिमी का कभी भी सदस्य नहीं रहा है और न ही सिमी ने प्रतिबंध के बाद कोई सदस्यता अभियान चलाया है। आइएम के बारे में वे बताते हैं कि सिमी पर प्रतिबंध बरकरार रखने के लिए पिछले सात सालों में तमाम 'कागजी आतंकी तंजीमा'ें से सिमी का नाम जोड़ा गया है और अब आइएम भी उसी फेहरिस्त का हिस्सा है। तो वहीं आजमगढ़ खूफिया विभाग की सीक्रेट डायरी बद्र के बयानों को और पुख्ता करती है जिसमें 2001 में सिमी पर प्रतिबंध के बाद उन्नीस लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक किसी नए व्यक्ति का सिमी का सदस्य बनने का कोई जिक्र नहीं है। पीयूसीएल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वरिष्ठ मानवाधिकार नेता चितरंजन सिंह ने सूरत में 27 जिंदा बमों के पाये जाने और उनकी चिप खराब होने वाली घटना को मोदी सरकार का ड्रामा बताते हुए कहा कि जिस पीसी पाण्डेय को अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए राज्य प्रयोजित गुजरात नरसंहार में सक्रिय भूमिका निभाने के एवज में डीजीपी बनाया गया हो तथा कई मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों और तहलका के स्टिंग आॅपरेशन में जिसका साम्प्रदायिक चेहरा उजागर हो गया हो उसके बयानों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। और जिस प्रदेश में जाहिरा शेख से लेकर सोहराबुद्दीन तक को न्याय नही मिला उस प्रदेश की पुलिस ब्रीफिंग पर पूरे हिन्दुस्तान में हुई आतंकी घटनाओं के खुलासे पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। पुलिस को बताना चाहिए कि नवी मुम्बई से जिस अमेरिकी नागरिक केन हेवुड की आईडी से मेल किया गया था उसे क्यों भारत से बाहर जाने दिया गया और किस आधार पर एटीएस ने उसे क्लीन चिट दे दी। 'सिमी की ताल पुलिस का मेल' (3 अप्रेल 08 प्रभात किरण) सूर्खी से छपी खबर में लिखा था "श्याम नगर (जूनी इंदौर) में पकड़े गए सिमी सरगना सफदर नागौरी के मोबाइल में मिले हर नम्बर की बारीकी से जांच की जा रही है। इस दौरान इनके मददगार की काल डिटेल निकाली गई तो अधिकारी दंग रह गए। मो॰ न॰ 9425079000 मुजाहिद खान निवासी ब्रुक बाण्ड कालोनी सिमी के मददगारों में से एक है जिसकी काल डिटेल में एक आईजी, एक डीआईजी, तीन एएसपी, पाँच सीएसपी, दस-पन्द्रह टाउन इंस्पेक्टर क्राइम ब्रांच, जूनी इंदौर थाने समेत दर्जनों पुलिस के सिपाही के नम्बर मिले जिससे उसकी लम्बी बातें होती थीं। एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछताछ करने पर पता चला कि जिन नम्बर पर उसकी बात होती थी उन पुलिस वालों में से अधिकतर का ट्रांसफर हो गया है।" ऐसे में जब पुलिस सफदर को इस दौरान पूरे हिन्दुस्तान में हुए आतंकी हमलों का जिम्मेवार बता रही है तो उस पुलिस पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर वे कौन सी वजहें थी जिनकी वजह से आला अधिकारियों से लेकर सिपाही तक उससे घंटांे-धंटों बातें किया करते थे और आखिर क्यों उनका ट्रांसफर कर दिया गया। विभिन्न आतंकी घटनाओं की जांच कर रहे पीयूएचआर नेता शाहनवाज आलम बताते है कि अबुल बसर प्रकरण में जावेद नाम का एक व्यक्ति मार्च 08 से ही बसर के घर आता था जो कभी बसर से मिलता था तो कभी बसर के पिता अबु बकर से और खुद को कम्प्यूटर का व्यवसायी बताता था और वह बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी से आता-जाता था। जावेद, बसर के भाई अबु जफर के बारे में पूछता था और कहता था कि जफर को कम्प्यूटर बेचना है। अबु बकर ने बताया है कि बसर को अगवा किए जाने के बाद जावेद 16 अगस्त 08 की शाम छापा मारने वाली पुलिस के साथ भी आया था। तो वहीं बांस की टोकरी बनाने वाले पड़ोसी कन्हैया बताते है कि 14 अगस्त को बसर को अगवा किया गया तो अगवा करने वालों में दो व्यक्ति जो सिल्वर रंग की पैशन प्लस से थे वे गाँव में महीनों से आया जाया करते थे और वे इस बीच बसर के बारे में पूछते थे। ऐसे में खूफिया विभाग संदेह के घेरे में आता है कि जब महीनों से वह बसर पर निगाह रखे था तो वह कैसे घटनाओं को अंजाम दे दिया। पीयूएचआर नेता कहते हैं कि पिछले दिनों मड़ियाहूँ जौनपुर से उठाये गए खालिद प्रकरण में भी आईबी ने इसी तरह छः महीने पहले से ही खालिद को चिन्हित किया था (देखें प्रथम प्रवक्ता 1 मई 08)। आतंकवाद के नाम पर की जा रही गिरफ्तारियों में देखा गया है कि कुछ मुस्लिम युवकों को आईबी पहले से ही चिन्हित करती है और घटना के बाद किसी को किसी भी घटना का मास्टर माइंड कहना बस बाकी रहता है। शाहनवाज बताते है कि 13 अगस्त की रात आजमगढ़ से ही सिविल लाइंस क्षेत्र के चर्च के पास से मोटर साइकिल सवार दो युवको को जिप्सी सवार लोगों ने अगवा कर लिया। चर्च के पास खड़े रिक्शे वाले और दुकानदार ये बातें बतायी और यह खबर अखाबारों में भी प्रमुखता से छपी कि स्थानीय पुलिस देर रात तक कुछ नही बता पायी। ऐसे में देखा जा रहा है कि एसटीएफ और एटीएस की आपराधिक व गैरकानूनी कारगुजारियों का आईबी सुरक्षा कवच बन गई है। बीनापारा गाँव के प्रधान मो॰ शाहिद बताते हैं कि पिता के ब्रेन हैम्रेज के बाद बसर पर ही घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी। इसीलिए वह कमाने के लिए आजमगढ़ के ही अब्दुल अलीम इस्लाही के हैदराबाद स्थित मदरसे में पढ़ाने चला गया था। बसर जनवरी 08 में गया था और फरवरी 08 में वापस आ गया था क्योंकि वहाँ 1500 रू॰ मिलते थे जिससे उसका व उसके घर का गुजारा होना मुश्किल था। दूसरा पिता की देखरेख करने वाला भी घर में कोई बड़ा नहीं था। इस बीच वह गाँव के बेलाल, राजिक समेत कई बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था। अबुल बसर के चाचा रईस बताते हैं कि 14 अगस्त 08 को 11 बजे के तकरीबन दो आदमी मोटर साइकिल से आए और बसर के भाई जफर की शादी की बात करने लगे। बसर ने घर में मेहमानों की सूचना देकर उनसे बात करने लगा। बात करते-करते वे बशर को घर से कुछ दूर सड़क की तरह ले गए जहाँ पहले से ही एक मारूती वैन खड़ी थी। मारूती वैन से 5-6 लोग निकले और बशर को अगवा कर लिया। अगवा करने वालों की स्कार्पियो, मारूती वैन और पैशन प्लस मोटर साइकिल पर कोई नम्बर प्लेट नहीं लगा था। इसकी सूचना हम लोगों ने थाना सरायमीर को लिखित दी। नेलोपा नेता तारिक शमीम कहते हैं कि अबुल बसर ने जिन लोगों के बच्चों को पढ़ाया और गाँव के जिन लोगों के साथ उठता बैठता था सबने हलफनामा दिया है। ऐसे में पुलिस की यह बात झूठी साबित होती है कि बशर ने बम धमाके किए। क्योंकि इस बात के सैकड़ो गवाह हंै कि 13 मई 08 के जयपुर बम धमाके हों या 25-26 जुलाई 08 के हैरदाबाद और अहमदाबाद के बम धमाके, इस दौरान बशर गाँव में ही था और अपनी अपाहिज माँ और ब्रेन हैम्रेज से जूझ रहे पिता का इलाज करा रहा था। शहर आजमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दŸाा कहते हैं कि जिले से आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए किसी भी व्यक्ति पर आज तक आतंकी होने का आरोप सही नहीं पाया गया है फिर भी आजमगढ़ को आतंकवादियों की नर्सरी के बतौर प्रचारित करने में मीडिया का अहम रोल है। और जहाँ तक हवाला कारोबार का सवाल है तो वह जिले का ऐसा 'कुटीर उद्योग' है जिसे धर्मनिरपेक्ष भाव से हिन्दू-मुसलमान दोनों करते हंै। वे कहते हंै कि पिछले दिनों जिस तारिक कासमी को हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बताया जा रहा था उसकी चार्ज शीट में हुजी या किसी आतंकी संगठन से उसके किसी भी जुड़ाव का कोई जिक्र नही है फिर भी मीडिया आज भी उसे हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बता रही है और अब आईएम का कार्यक्षेत्र बता पुलिस ने पूरे जिले में आतंक का महौल व्याप्त कर दिया है। वरिष्ठ प्रवक्ता बद्रीनाथ श्रीवास्तव कहते हंै कि जनता में दंगों के प्रति आई परिपक्व समझदारी नें दंगों की राजनीति को पीछे ढकेल दिया है। ऐसे में आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियां कर साम्प्रदायिक ताकतों के ही एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है जिसे हम आजमगढ़ में हुए पिछले उप चुनाव मेंु साफ देख सकते है। पूरा चुनाव आतंकवाद के मुद्दे पर लड़़ा गया ऐसा आजमगढ़ में पहली बार हुआ और जनता के मूलभूत सवाल पीछे चले गए। और अब समाजवादी पार्टी नें इमाम बुखारी को बुलाकर मुद्दे को भटकाने की कोशिश की है।

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