07 फ़रवरी 2009

एसटीएफ आतंकवाद बनाम लोकतंत्र

उत्तर प्रदेश सरकार से एक बेकसूर मजलूम सज्जादुर्रहमान के मजलूम बाप की फरियाद-मेरा बेटा आतंकवादी नहीं है। सज्जादुर्रहमान को पिछले दिनों हमनें मीडिया के माध्यम से 'सज्जाद कश्मीरी' के नाम से जाना। सज्जाद के पिता गुलाम कादिर वानी पिछले दिनों इसी फरियाद का बैनर लगाये लखनउ विधानसभा पर अकेले बैठे थे। गुलाम कादिर वानी कोई आम आदमी नहीं यह उस षख्स के पिता है जिसको 'इण्डियन स्टेट' खुद के लिए चुनौती मानता है। सज्जादुर्रहमान दारुल उलूम देवबन्द में अरबी सातवीं का छात्र है। पिछले दिनों जब वह बकरीद का छुटट्ी में वह घर गया था तो 22 दिसंबर की सुबह साढ़े आठ बजे के तकरीबन जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उसे उठा लिया।गुलाम बताते हैं कि गोला-बारुद व असलहे के नाम पर पुलिस ने उनके पूरे लकड़ी के घर को तोड़-ताड़ डाला।लकड़ी की दीवारों और छत को यह कह तोड़ डाला कि इसके अन्दर गोला-बारुद छुपा के रखा होगा पर पुलिस को हमारे घर से कुछ नहीं मिला।फिलहाल सज्जाद लखनउ जेल में यूपी की कचहरियों में सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोप में बंद है। गुलाम को जब मालूम हुआ कि बेटा लखनउ जेल में बंद है तो वे किसी तरह मुहल्ले के लोगों की मदद से चंदा जुटाकर बेट को छुड़ाने की चाहत में लखनउ आये।कई दिनों की जद्दोजहद के बाद 21जनवरी को सज्जाद से जेल में उनकी मुलाकात हुयी।गुलाम बताते हैं ''वह बता रहा था कि खालिद के बयान पर उसे पकड़ा गया। जब मैंने पूछा कि खलिद को कैसे जानते हो तो सज्जाद ने बताया कि खालिद मजलिसे अहरार का पदाधिकारी है।और उसी ने मुझे अहरार पत्रिका का मेम्बर बनाया था, जिसमें मैं भी एक मजमून लिखता था।जेल में खालिद से मुलाकात हुई तो वह माफी मांग रहा था और कह रहा था कि मुझे एसटीएफ ने मार-मार कर कहा कि किसी कष्मीरी जान-पहचान के लड़के का नाम बताओ नहीं तो इनकाउंटर कर देंगे।तब मैंने जान बचाने के लिए जान पहचान की वजह से तुम्हारा नाम ले लिया।''तभी बगल में खड़े खलिद के चाचा जहीर जो गुलाम से हमे मिलाने ले गये थे,हाथ जोड़ गुलाम से माफी मांगने लगे कि मेर बेटे की वजह से आप का बेटा फस गया।दोनों एक दूसरे को समझाते रहे और उनकी आखों में आंसू तैरते रहें।इन मानवीय संवेदनाओं को सहजता से स्वीकार करना दिन ब दिन दूभर होता जा रहा है क्यांे कि हम फर्जी पुलिसिया पटकथा के आदी होते जा रहें हैं। गौरतलब है कि दारुल उलूम देवबंद के शिक्षा विभाग ने अपने उपस्थिति रजिस्टर के हवाले से कहा है कि सज्जादुर्रहमान 17 नवम्बर07 से 30 नवम्बर07 के बीच उनके संस्थान में था,जिसका प्रमाणपत्र भी संस्थान ने दिया है।तो ऐसे में यूपी एसटीएफ का यह दावा कि सज्जादुर्रहमान 23नवम्बर07 के कचहरी बम धमाकों में षामिल था खोखला साबित होता है। जेल में खालिद से मिलकर आये उनके चाचा बताते हैं ''खालिद बता रहा था कि तारिक और उसे एसटीएफ ने बहुत मारा,उल्टा लटकाया,बर्फ की सिल्ली पे लेटाया,पेशाब और शराब पिलाने की कोशिश की और बिजली का करेंट देते थे और इस बात के लिए मजबूर करते थे कि हम उनकी बात मान लें।वे हमको लिखा हुआ एक पेज दिये थे और कहते थे इसको अच्छी तरह पढ़ लो और जब भी कोई पूछे तो कहना हां हमने ही किया था।जब हम नहीं माने तो वे हमारा इनकाउंटर करने को रात में बाराबंकी ले गये तब हमारे सामने जान बचाने के लिए उनकी बात मानने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था।और उसने बताया कि साजिषन उन्हें षक्ति बैटरी के कुछ सेल दिये गये हैं और उनके कमरों में काले रंग का भारी सामान रखा है।उनसे बिजली के तार जोड़वाये जाते हैं और बैटरी पकड़वायी जाती है,जिसकी लगातार विडियो रिकार्डिंग की जाती है।उन्होंने शक जाहिर किया कि उनके फिंगर प्रिंट या कुछ ऐसे सबूत एसटीएफ तैयार कर रही है,जिससे उनके आतंकी घटना में षामिल होने की बात प्रमाणित हो सके।एसटीएफ की अमानवीय प्रताड़ना अभी भी जारी है।'' जहीर बताते हैं ''खालिद ही नहीं उसके पिता जमीर भी मजलिसे अहरार से जुड़े थे।अहरार को आतंकी संगठन के बतौर प्रचारित किया जा रहा है पर क्या आजादी के आन्दोलन से लेकर लोकतांत्रिक हिन्दुस्तान में इसकी भूमिका को नकारा जा सकता?पुलिस ने मुझसे अहरार का मतलब पूछा तो मैंने बताया 'आजादी'।पुलिस ने कहा कि देष को आजादी मिले साठ साल हो चुके,फिर भी तुम आजादी की बात करते हो।हम पर बार-बार यह आरोप लगाया जा रहा है कि हमारा घर मजहबी दीनी षिक्षा का केन्द्र है और हमारे यंहा कश्मीरी आते हैं।आप ही बताइये क्या किसी मजहब को मानना या किसी कश्मीरी से जान-पहचान गैर कानूनी है?''जहीर के कई सवाल हैं,जो भले ही कानून की नजर में गैरकानूनी नहीं हैं पर गैरकानूनी ठहराने के लिये कानून के अलंबरदार अक्सरहां इसका सहारा लेते हैं। यूपी बार काउंसिल के फतवे की वजह से 'न्याय के ठकेदारों' ने 'नैतिकता के आधार' पर इनका केष लड़ने से मना कर दिया था। ऐसे में मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फार ह्यमन राइट्स (पीयूएचआर) के सहयोग से लखनउ न्यायालय के वकील मो0 शोएब इनका केश लड़ने को तैयार हुए।मो शेएब ने ही पिछले दिनों आफताब आलम अंसारी को भी रिहा कराया था,जिस पर भी कचहरी बम धमाकों का फर्जी आरोप एसटीएफने लगाया था। इस दौरान विभिन्न समाचार पत्रों में छपी खबरें कुछ इस प्रकार थीं-स्थानीय नगर में स्थित पवन चित्र मंदिर के सामने से रविवार की षाम टाटा सूमो सवार लोगों ने एक युवक को जबरन उठा ले गये।स्थानीय लोगों का कहना है वह पुलिस मकहमे के लग रहे थे।'हिन्दुस्तान17दिस।07', स्पेशल टास्क फोर्स 'एसटीएफ' ने रविवार की षाम नगर से एक युवक को उठा लिया।उसे किसी मामले में पूछताछ के लिये किसी अज्ञात स्थान पर ले गई है।तीन दिनों से एसटीएफ का दस्ता उसकी तलाष में नगर में भ्रमण कर रहा था।अमर उजाला17दिस.07' इसी तरह तारिक के बारे में-विदित हो कि सम्मोपुर निवासी हकीम तारिक'27 वशर्' पुत्र रेयाज का उस समय बदमाषों ने गाड़ी से अपहरण कर लिया जब 12दिस. को वे अपनी बाइक से सरायमीर 'शेरवां' जा रहे थे।घटना पहले दिन जहां रहस्य बनी रही,वहीं पुलिस व परिजनों की जांच में अपहरण के दौरान प्रत्यक्षदर्षी रही महिलाओं व छात्रों से बातचीत की।अपहरण कर लिए जाने की पुश्टि होते ही परिजनों में हड़कम्प मचा साथ ही पुलिस भी हंाफने लगी।---एसओ का कहना है कि टीम गठित की गयी है षीघ्र कामयाबी मिलेगी।फिलहाल पुलिसिया दावे के दिन बढ़ते जा रहे हैं और परिजन अनहोनी की आशंका से घिरते जा रहे हैं।'हिन्दुस्तान19दिस.07' पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर मामले की इतिश्री कर ली,लेकिन अपहर्ताओं का अभी तक कोई सुराग नहीं लगा सकी।अब जबकि अपहर्ता हकीम को ढूढ़ने की बजाय पुलिस की जांच प्रकिया दूसरी दिषा में घूम गयी है।लखनउ एसटीएफ ने हकीम के घर पर बुधवार को छापा मारा।उनके कमरे से दो मोबाइल,किताबें,मैग्जीन बरामद कर अपने साथ लेकर चली गयी।अब पुलिस किस दिषा में अपनी जांच प्रक्रिया को घुमा रही है, यह संदेह बना हुआ है।लोगों के सामने यक्ष प्रष्न बन कर खड़ा है कि आठ दिन बाद भी हकीम का कोई अता-पता नहीं चला और पुलिस उल्टे हकीम के घर छापे-मारी कर क्या करना चाहती है,यह किसी के गले नहीं उतर रहा है।('हिन्दुस्तान 20दिस.०७), गौरतलब है कि लखनउ, फैजाबाद और वाराणसी की अदालतों मंे 23 नव. को सीरियल ब्लास्ट में13लोगों की मौत हो गयी थी। इस मामले की तफ्तीष एसटीएफ कर रही है। लखनउ पुलिस जौनपुर के मडियाहूं थाने के मोहल्ला महतबा निवासी खालिद और आजमगढ़ के तारिक कासमी को संदेह के आधार पर पिछले दिनों हिरासत में लिया था। साथ ही उनके साथी कष्मीर से आये फल व्यावसायी की भी तलाष की जा रही है।-- इन्हें गोपनीय स्थान पर रखकर विस्तृत पूछताछ की जा रही है। एसटीएफ सूत्रों का कहना है कि दोनों से पूछताछ में सीरियल ब्लास्ट के सिलसिले में कुछ अहम सूत्र हाथ लगे हैं। (अमर उजाला दै. 21 दिस.) तारिक व खालिद के अपहरण के संबंध में लगातार विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाषित ढेर सारी खबरें हैं जो यह पुश्ट करती हैं कि तारिक को12 दिस. व खालिद को 16दिस. को एसटीएफ ने उठाया था।इन खबरों से इस बात की भी पुश्टि हो रही है कि कचहरी बम ब्लास्ट और कष्मीरी युवक से सम्बन्ध की फर्जी पुलिसिया पटकथा पहले ही तैयार हो चुकी थी।जिसे 22 तारिख की फर्जी गिरफ्तारी के बाद कष्मीर से सज्जाद की गिरफ्तारी में देखा जा सकता है। इसी घटना में यूपी एसटीएफ ने दावा किया था कि उसने सिलसिलेवार कचहरी बम धमाकों के आरोपियों को 22 दिसम्बर की सुबह बाराबंकी रेलवे-स्टेषन से भारी मात्रा में असलहे व आरडीएक्स के साथ गिरफ्तार किया। इन दोनों पकडे़ गये युवकों की पहचान उसने मौलाना तारिक कासमी ग्राम सम्मोपुर ,रानी की सराय आजमगढ व खालिद महतवाना, मडियाहॅू जौनपुर के रूप में की थी।खालिद के चचेरे भाई शाहिद बताते हैं ''मेरे चचेरे भाई खालिद को 16 दिस. की शाम मुन्नू चाट की दुकान से कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। अपहरणकर्ता बिना नम्बरप्लेट की टाटा सूमो से थे और असलहा लहारते हुए जौनपुर की तरफ निकल गये। जिन्हें पास पडोस के सैकड़ों लोगों ने देखा।'' खालिद के चाचा जहीर की लाख कोषिषों के बावजूद अपहरण की रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। वे बताते हैं ''19दिस. को पुलिस घर आयी और उन्होंने कहा की हम खालिद के बारे में बात करना चाहते हैं।उनकी सन्देहास्पद बातों से हमें मालूम हुआ कि खालिद को उठा कर ले जाने वाले लोग एसटीएफ के ही थे। मुझसे तीन बजे रात तक पूछताछ की गयी और 'सादे कागज' पर भी जबरन दस्तखत कराया और कहा कि तुम मडियाहूं से बाहर नहीं जाओगे और अगर खालिद के लिए पैरवी की तो तुम्हारे खिलाफ भी कार्यवाही होगी। क्योंकि 'वह मोस्टवांटेड अपराधी' है। मेरे घर से पुलिस 'कुरान' व 'हदीस' की किताब ले गयी जिसे बाद में 'हूजी का आतंकी साहित्य' बताया।'' ''मैं बहुत गरीब हूं, मुकदमा लड़ने की मेरे अन्दर ताकत नहीं है। जेल के अन्दर सुनवाई हो रही है, ऐसे में कैसे इंसाफ मुमकिन है क्या मैं अपने बच्चे को जेल में मर जाने दूं?'' यह कहते-कहते खालिद की विधवा मां नजमा बेगम रोने लगती हैं,जिन्हें खलिद की पत्नी शबनम बानों यह कहते हुए चुप कराती हैं ''अम्मी आप ही जब दिल छोटा कर लेंगी तो हमारा क्या होगा।''शबनम खालिद की गिरफ्तारी के पन्द्रह दिन पहले, पहली बार ससुराल आयीं थी,इनके निकाह को अभी दो महीने भी नहीं हुए थे।ऐसे ही हालात तारिक के घर के भी हैं। तारिक के दादा अजहर अली बताते हैं 'मेरे पोते का अपहरण 12दिस. को बारह बजे दिन में आजमगढ़ में रानी की सराय के पास से हुआ था। मेरी लाख कोषिषों के बावजूद पुलिस ने दो दिन बाद 14दिस. को अपहरण की रिपोर्ट को गुमषुदगी के रुप में दर्ज की।बाद में तमाम राजनैतिक व मानवाधिकार संगठनों के धरने-प्रर्दषन हुए और इसके दबाव के चलते पुलिस ने विषेश जांच टीम भी गठित की।इस दौरान नेषनल लोकतांत्रिक पार्टी के चैधरी चन्द्र पाल ने20 दिस. को उत्तर प्रदेष राज्यपाल को पत्र के माध्यम से कहा था कि अगर 22दिस. तक पुलिस तारिक को खोज नहीं निकाली तो वह आत्मदाह कर लेंगे।तारिक के नाम के दिवालों पर पोस्टर चिपके पोस्टर इसके गवाह हैं। इस बीच तारिक को खेाज कर रही पुलिस के अधिकारियों की करतूत अजीब थी ।तारिक के पिता रेयाज बताते हैं कि 17दिस. की रात 12 बजे के तकरीबन तीन दर्जन पुलिस के लोग हमारे घर आये और सभी कमरांे की तलाषी के नाम पर तारिक के कमरे से करीब दो सौ किताबें, तारिक की बीबी आयषा और उसकी मां का मोबाइल फोन ले गये। जाते-जाते उन्होंने 'सादे कागज' पर दस्तखत भी कराया ,पूछने पर पुलिस वालों ने सिर्फ यही कहा कि इन्हीं सामानों से तुम्हारे बेटे की तलाष करेगंे। बाद में इन्हीं किताबों को 'हूजी का आतंकी साहित्य' बताया गया।तारिक अपहरण के सोलह गवाहों जिसमें चैदह हिन्दू और दो मुसलमानों ने अपना 'हलफनामा' तक दिया है कि तारिक का अपहरण 12दिस. को बारह बजे दिन में उनके सामने से हुआ तो वही मडियाहूं की सैकड़ों आम जनता ने 'हस्ताक्षर अभियान' व 'वीडियो रिकार्डिग' के तहत इस बात की गवाही दी है कि खालिद मुजाहिद का अपहरण 16दिस. को षाम 6ः30 बजे के दरमयान उनके सामने से हुआ। इस जाॅंच के दौरान पाया गया कि पूरी सच्चाई को फर्जी पुलिसिया पटकथा के आड़ में लगातार छिपाया जा रहा है।इस फर्जी पुलिसिया पटकथा की मजबूत कड़ी आफताब आलम अंसारी भी था। जिसे हूजी का एरिया कमांडर बताते हुए संकटमोचन बम धमाके के आरेाप में एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था पर आफताब की बेगुनाही ने इस बात को पुष्ट किया कि एसटीएफ फर्जी ढ़ंग से गिरफ्तार कर पहले से खुद के पास मौजूद विस्फोटक व असलहों के साथ गिरफ्तारी का फर्जी नाटक करती है और अगर यह नहंीं है तो पुलिस को बताना चाहिए कि उसके द्रा आफताब से बरामद डेढ़ किलेा आरडीएक्स कहां से आया था।इसी तरह से तारिक और खालिद को जिस वक्त अगवा किया गया तो उनके पास कोई विस्फोटक या असलहे नहीं थे, जिसके कई प्रत्यक्षदर्षी है।तब एसटीएफ एक बार फिर संदेह के घेरे में आती है।प्रदेष में एसटीएफ 'संगठित आपराधिक सरकारी संस्था' के बतौर कार्य कर रही है। एसटीएफ की पूरी कार्यप्रणाली पर गौर किया जाय तो वह निहायत अलोकतांत्रिक है। अक्सरहां यह बात आती है कि एसटीएफ ने फलां व्यक्ति को 'उठाया'। एसटीएफ के 'उठाने'की यह प्रक्रिया गैरकानूनी व आपराधिक है। बिना किसी ठोस आधार व सबूत के किसी व्यक्ति को उठा कर हफ्तों गायब रखना भी अपहरण की ही श्रेणी में आता है। तारिक के अपहरण के वक्त जब आस पास के मौजूद लोगांे ने विरोध किया तो अपहरणकर्ताओं ने कहा कि 'मौलाना साहब रिसिया गये हैं,घर ले जा रहंेहै।'इसी तरह खालिद का भी जब चाट की दुकान से अपहरण किया गया तो अपहणकर्ताओं ने भरी बाजार में असलहे तक लहराये, जिसके सैकड़ो गवाह हैं।पर पुलिस को यह वाकया कही से भी अपहरण नहीं लगा। किसी भी व्यक्ति को उठा कर उसके परिवार को सूचना न देना और सादे कागज पर दस्तखत करवाना एसटीएफ का पेशा बनता जा रहा है।जेल में हाई सिक्योरिटी सेल के नाम पर इन लोगों से मिलने आने वालों को रोका जाता है और इसके लिए जेल प्रषासन फर्जी ढ़ग के नये-नये हथकंडे अपनाता है।मानवाधिकार संगठन के बतौर जब हमने मिलना चाहा तो हमें यह कह नहीं मिलने दिया गया कि आतंकवादियों से किसी को मिलने नहीं दिया जाता तो तुम लोगों को कैसे मिलने देंगे।किसी से न मिलने देने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि जेल में हो रही पुलिसिया ज्यादती के बारे में किसी को मालूम न पड़े।इनके वकील मो षोएब बताते हैं कि उनको भी मिलने में काफी दिक्कत होती है।वे बताते हैं कि गैरकानूनी व फर्जी ढ़ग के नियम कानून बनाकर ऐसा किया जा रहा है। आतंकवादी के नाम पर की गई इन गिरफ़तारियों में यूपी एसटीएफ के बयानों में उपजा अन्तर्विरोध उसके सांप्रदायिक चरित्र की ओर इषारा करता है।'स्टेट टेरर फोर्स' के रुप में कार्य कर रही एसटीएफ आतंक का पर्याय हो गयी है।मौजूदा हालात में 'एसटीएफ आतंकवाद',लोकतंत्र के लिये चुनौती बनता जा रहा है।उत्तर प्रदेश एसटीएफ का आतंकी के नाम पर की गयी इस गिरफ्तारी में एसटीएफ का आपराधिक व गैर कानूनी चेहरा उजागर हो रहा है। पिछले दिनों प्रदेष में हुई आतंकी घटनाओं में मुस्लिम युवकों को जिस तरह आतंकी के बतौर प्रचारित किया गया, वह कोई नयी परिघटना नहीं है। ठीक इसी तरह 2002 गुजरात नरसंहार के पूर्व गुजरात में भी कुछ ऐसे ही हालत थे। यूपी एसटीएफ ने गांॅव-गांॅव,कस्बों-कस्बों तक आतंकी संगठनों के नेटवर्क फैले होने बात कह, अपने पक्ष में माहौल तैयार करने की कोषिष कर रही है।इसी अभियान के तहत उसने हालिया दिनों में एक नया बांग्लादेषी संगठन हूजी इजात किया है। एरिया कमांडर और मास्टर माइंड के नाम पर मुस्लिम युवकों को फर्जी ढंग से आतंकी घटनाओं में षामिल होने की बात कह रही है। इस दौरान कई मदरसों में पढ़ाने वालों को गिरफ्तार कर, वह उसी विचार-धारा को आगे बढ़ाने की कोषिष में लगी है कि मदरसे आतंकवाद को पालते-पोसते हंै और आतंकवाद एक धर्म विषेश के कारण पैदा हो रहा है।इसी कड़ी में दारुल उलूम देवबंद जैसे अंतराश्ट्््ीय षैक्षणिक संस्थान से जुड़े तारिक, खालिद या सज्जादुर्रहमान जैसे मुस्लिम युवकों को आतंकवादी के बतौर पकड़ वह बहुसंख्यक साम्प्रदायिक ताकतों के एजेण्डे को ही आगे बढ़ाना चाहती है। ऐसे में जब कथित आतंकियों के पक्ष में आम जनता खड़ी है और वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ सरकारी संस्थाएं,तब ऐसे हालात मंे सीआरपीसी की धारा 197 के अस्तित्व पर प्रष्न उठता है? धारा 197 के तहत कोई भी व्यक्ति सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकता ,जब तक की कार्यपालिका से इजाजत नहीं मिलती। ऐसे में जब कानून की निगाह में सभी बराबर हैं तो धारा 197 जैसी अलोकतांत्रिक कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए। प्रदेष में आतंकी घटनाओं के तुरंत बाद पुलिस द्वारा जारी स्केचों से तारिक, खालिद या इस दौरान पकड़े गये किसी भी व्यक्ति का चेहरा नहीं मिलता। ऐसे में पुलिस को यह बताना चाहिए कि उसके द्वारा जारी स्केच किसके थे।आतंकवाद जैसी गंभीर चुनौती से निपटने के लिए यह आवष्यक हो गया है कि पकड़े गए कथित आतंकियों के 'नारको टेस्ट' की माॅंग करने वाले व इस घटना में शामिल बदनाम हो चुके एसटीएफ के अधिकारियों का भी 'नारको टेस्ट' हो।जिस तरह जम्मू-कष्मीर में एसटीएफ बदनाम हो चुकी है और सभी राजनैतिक पार्टियांे का चुनावेां में यह अहम मुद्दा होता है कि वे एसटीएफ को भंग करेंगे, उसी तरह की स्थिती यूपी में भी बनती जा रही है। पर इन बातों को नजरअदांज कर 'बहुजन हिताय सर्वजन सुखाय' वाली प्रदेश सरकार इन जनविरोधी कारगुजारियों को वैधता देने के लिए 'यूपी कोका' जैसा काला कानून पारित किया है। यूपी कोका और पिछले दिनों प्रदेष में हुयी आंतकी घटनाओं में नाभिनाल का संबंध है। यूपी कोका के लागू होने के पहले यूपी की कचहरियों में सिलसिलेवार बम धमाके एक अलग ही दिषा में संकेत करते हैं। क्यों कि 'उत्तर प्रदेष संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक 2007' ;यूपी कोकाद्ध त्वरित न्याय देने की बात करता है। कचहरी बम धमाकेां के बाद वकीलों ने जिस तरह आतंकियों का केष न लड़ने का फैसला किया, वह यूपी कोका के पक्ष में बनाये जा रहे माहौल की ही कड़ी थी। जिसके तहत आंतकी घटनाओं में पकड़े गये लोगों का जब वकील केष नहीं लड़ेगें तो वकील के अभाव में उन्हें आतंकी सिद्ध करना और आसान हो जायेगा।ऐसे में प्रदेष सरकार के दिषा निर्देषन में जनता के मानवाधिकारों का जबरदस्त हनन होगा।यूपी कोका कानून आतंकवाद या संगठित अपराध को रोकने के लिए नहीं बल्कि खास राजनैतिक मंशा को साधने वाला कानून है।एसे कानूनों की आड़ लेकर प्रदेष सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच रही है और साथ ही साथ अपनी जनविराधी नीतियों के खिलाफ उठने वाली आवाजों का दमन भी कर रही है।कड़े कानून बना कर सरकार जनता में असुरक्षाबोध का माहौल व्ययप्त कर 'हम कठोर कदम उठा रहे हैं'इस बात का संदेष देने की फिराक में है।इस जाॅंच के दौरान पाया गया कि आतंकवाद की घटना को रोकने के नाम पर एसटीएफ ने कई मुस्लिम युवकों का इनकाउंटर किया है,तब इस पर सवाल उठता है कि मारे गये युवक क्या सचमुच 'आतंकी' थे।क्यों की इस दरमियान जिन भी लोगांे को आतंकी के नाम पर एसटीएफ ने पकड़ा उनके आतंकी घटना में षामिल होने की बात को अब तक वह प्रमाणित नहीं कर सकी है।तब ऐसे हालात में यह जरुरी हो गया है कि एसटीएफ के काले-कारनामों की उच्च स्तरीय जाॅंच हो और फासिस्ट रवैये वाली एसटीएफ को भंग किया जाए।और मानवाधिकार उल्ंघन से जुड़े इस गम्भीर मसले में जो भी सरकारी तत्व सम्मिलत हों उन्हंे कठोर सजा दी जाय।
- मीडिया में पी यू एच आर की इन रिपोर्टों के आने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार को इन फर्जी आतंकियों की गिरफ्तारी के जाँच का आदेश देना पड़ा है.

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