27 मई 2009

आ से आजमगढ़, आ से आईपीएल



राजीव यादव

सोहेल तनवीर और कामरान खान एक सिक्के के दो पहलू। एक के देश पर आतंकवादी का ठप्पा है तो दूसरे के जिले पर। दोनों में अंतर इतना है कि पाकिस्तान का होने के नाते सोहेल आईपीएल में नहीं खेल पा रहा है तो वहीं उसकी जगह कामरान को अवसर मिला है। बाएं हाथ से गेंदबाजी करने वाले सोहेल ने जिस तरह राजस्थान रायल्स को पहला आईपीएल जिताने में अहम भूमिका अदा की थी उसी भूमिका में बाएं हाथ से 140 किमी की रफ्तार से गेंद फेकने वाले कामरान की यार्कर अपने विरोधियों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। राजस्थान रायल्स के कोच डेरिन बैरी के शब्दों में हमें एक युवा खिलाड़ी की जरुरत थी जो मैच का पासा पलट सके। शायद इसी खूबी के चलते शेनवार्न ने कामरान का निक नेम बवंडर रखा है। इस बवंडर को क्रिकेटिया सांचे में ढालने वाले पूर्व रणजी खिलाड़ी उबैद कमाल कहते हैं ‘वो मेरी कल्पनावों का इकबाल है।’
इस बवंडर की जड़ो की तलाश में जब 29 अप्रैल को आजमगढ़ रोडवेज पर पहुंचा तो चाय की दुकानों से लेकर पेपर वालों तक हर तरफ कामरान के उस विकेट की चर्चा हो रही थी जिसे उसने पिछले दिन दिल्ली डेयरडेविल्स के खिलाफ लिया था। बातों ही बातों में चाय की दुकान पर बैठे मनोज सिंह से मुखातिब हुआ जो बोल रहे थे ‘एक महीना पहले आया था तब उसे हम स्टेडियम ले गए थे। ऐसी शानदार गेंद फेंक रहा था कि हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही कामरान है।’ बाद में पता चला कि मनोज आजमगढ़ क्रिकेट संघ के सहसचिव हैं। घर पूछने पर उन्होंने बताया कि कामरान का घर आजमगढ़-मऊ जिले की सरहद के नदवासराय में है। वैसे तो उसका घर मऊ जिले में है पर उसने क्रिकेट सीखा और खेला आजमगढ़ में ही इसलिए आजमगढ़ उसकी पहचान बन गयी। शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी सुनील कुमार दत्ता हम पर इशारा करते हुए कहते हैं कि आजमगढ़ मीडिया का भुक्त भोगी है, कल वही लोग यहां की गलियों में खेलने वाले बच्चों के फुटेज दिखा-दिखाकर हमकों आतंकवादी कह रहे थे आज वही लोग अपनी जरुरतों के चलते फिर आ गए हैं।
देश में हुई आतंकवादी घटनाओं के बाद आजमगढ़ के लोगों के पकडे़ जाने और संदिग्ध बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आज इस जिले के लोगों को लखनऊ, दिल्ली, मुबंई समेत पूरे देश में कमरे तक नहीं मिल रहे हैं। क्रिकेट खिलाड़ी पंकज पाण्डे कहते हैं कि जो लोग हमें बदनाम कर रहे हैं उन्हें जानना चाहिए कि कामरान ही नहीं अब्दुल्ला इकबाल जैसे आईपीएल खिलाड़ी से लेकर नोमान जैसे यूपी के सबसे तेज बालर आजमगढ़ की ही देन हैं। पंकज के साथ अब्दुल्ला के घर बदरका जाना हुआ। जहां अब्दुल्ला पुकारने पर उसकी छोटी बहन आयशा ने दरवाजा खोलते हुए बोला ‘भाईजान खलने गए हैं।’ बाद में नियाज अहमद से मुलाकात हुई जो बेटे के क्रिकेट की प्रशंसा करते हुए बड़ी फिक्र के साथ कहते हैं कि पूरे देश में हमारे जिले के प्रति जो माहौल बनाया जा रहा है वो हमारे बच्चों की तरक्की में रोड़ा बन रहा है। बहुत तल्ख भाव से वे कहते हैं कि सबसे खतरनाक मीडिया है उसका कोई उसूल नहीं रह गया है।
आजमगढ़ में इस समय हर कोई मीडिया पर ऐसे बात करता है जैसे वो कोई गंभीर मीडिया विश्लेषक हो। बहरहाल कामरान के भाई नौशाद कहते हैं कि यकीन नहीं होता, लकड़ी के बैट से गली में क्रिकेट खेलने वाला मेरा भाई विलायत में खेल रहा है। बहन कहकशां कहती हैं कि बिजली नहीं रहती पर भाईजान के मैच वाले दिन किराए का जनरेटर लेकर पूरे गांव के साथ क्रिकेट देखा जाता है। परिवार के लोग कामरान का क्रिकेट देखने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना चाहते हैं पर घर की माली हालत उन्हें इजाजत नहीं देती। गरीबी-मुफलिसी की सौगात लिए कामरान के जीवन में पांच साल पहले एक अहम मोड़ आया था, जब जिले के ही कोच नौशाद ने उसे मुंबई चलने को कहा था पर वालिद के इंतकाल के चलते वो नहीं जा पाया।
आजमगढ़ के क्रिकेट का इतिहास बहुत रोचक है, कहते हुए मसीउद्दीन संजरी बताते हैं ‘80 के दौर में निजामाबाद में एक बंगाली बाबू हुआ करते थे, जिन पर क्रिकेट का भूत सवार था। जो अक्सरहां छुट्यिों के बाद अलीगढ़ में पढ़ने वालों के आ जाने पर मैदान में उतर जाता था। याद करते हुए कहते हैं कि शायद यहीं से जिले में टूर्नामेंटों की शुरुवात हुई जिसका केंद्र सरायमीर हुआ करता था। जहां की देन कामरान और नोमान जैसे खिलाड़ी हैं। दोनों के साथ खेले और साथ ही लखनऊ गए वसीउद्दीन कहते हैं कि दोनों का पढ़ाई में कभी मन नहीं लगा शायद वे क्रिकेट के लिए ही पैदा हुए हैं। नोमान को फोन करके बाजार में आने के लिए कहते हुए बताते हैं ‘दोनों का फार्म-वार्म हम ही लोग भरवाते हैं।’ एक जिम्मेदारी जैसा भाव वसीउद्दीन के चेहरे पर साफ झलक रहा था। सरायमीर के इसरौली गांव के रहने वाले मो0 नोमान यूपी अण्डर 22 में खेलते हैं। कामरान और नोमान अल्फा क्लब इसरौली से खेलते थे जिसके कप्तान नोमान हुआ करते थे। नोमान बताते हैं कि डेढ़-दो साल पहले दोनों लखनऊ गए जहां कामरान को उबैद कमाल का सानिध्य मिला तो वहीं मुझे पूर्व रणजी खिलाड़ी शाहनवाज बख्तियार का। नोमान बताते हैं कि ज्यादा मैच सरायमीर इलाके में होता था और हम लोग टेनिस बाल से खेलते थे। घर दूर होने के कारण नोमान मेरे ही घर रहता था। नोमान जनवरी 08 में हुए यूपीसीए कैंप को दोनों के लिए वरदान मानते हैं। नोमान कहते हैं ‘उबैद सर के अण्डर में बीते दस दिनों ने हमारी लाईफ चेंज कर दी और जहां तक मेरा सवाल है तो मेरी पूरी गेंदबाजी को षहनवाज सर ने निखारा।’
उबैद कमाल कहते हैं ‘कामरान जब मेरे पास आया था तो उसके रनअप आदि में खामियां थी जिसे मैने काफी हद तक सुधारने की कोषिष की और जहां तक नोमान का सवाल है तो नो डाउट वह भी एक दिन टीम इंडिया की टी षर्ट पहनेगा।’ वहीं षाहनवाज बख्तियार कहते हैं कि आजमगढ़ जैसे पिछड़े जिलों में सैकड़ों कामरान और नोमान हैं जिन पर उनके षहर की बिगाड़ी गई छवि का कोई असर नहीं पड़ेगा।
बहरहाल यहां एक तल्ख सच्चाई यह है कि कामरान हो या नोमान सभी ने उसी संजरपुर गांव के मैदान में पर अपने क्रिकेटिया जीवन के षुरुआती मैचों को खेला और सीखा जिस पर आज आतंकवादियों के गांव का ठप्पा लगाया गया है। यहीं के तारिक षफीक के साथ आरिफ के घर जाना हुआ जिस पर देष में हुए कई बम धामाकों का आरोप है। घर की खामोषी को तोड़ते हुए एक आवाज आई मेरे बेटे का क्या कसूर था? सिर्फ यह ना कि उसे पढ़ने के लिए लखनऊ भेज दिया था। यह बोलते हुए आरिफ की मां फरजाना बेगम आलमारी में भरे पड़े दर्जनों सील्डों और ट्राफियों की तरफ इषारा करते हुए कहती हैं कि मेरा बेटा मुल्क के लिए क्रिकेट खेलना चाहता था पर हुकूमत ने उसे अपने खिलाफ खेल खेलने के झूठे आरोप में फसा दिया। सन्नाटा फिर पसर गया।

1 टिप्पणी:

vivek mishra ने कहा…

dost vaastav me khel par jo khel ho raha hai chintajanak hai.story har paathak ko vichaar karne ke liye prerit karegi.lal salam

अपना समय