31 मई 2009

नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की संघी कवायद


राजीव यादव
नेपाल जहां लोकतंत्र प्रसव पीड़ा से गुजर रहा था वहां गहराया संकट लोकतांत्रिक नेपाल के लिए ही नहीं भारत के लिए भी है। प्रचंड के इस्तीफे पर दिल्ली से उठी अलोकतांत्रिक आवाज के मायने साफ हो चुके हैं कि वह लोकतंत्र पर सैनिक तंत्र के हावी होने के पक्ष में है। क्योंकि नेपाल हिंदुत्ववादी शक्तियों के लिए ऐसी शरणगाह है जहां वो हर उस प्रयोग को करते थे जिसे भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के चलते वे यहां खुलेआम नहीं कर सकते थे। नेपाल में भारतीय राजनीति के लिटमस टेस्ट से हमारे राजनीतिक दलों के धर्मनिरपेेक्षता के मायनों को समझा जा सकता है। जनका्रंति के बाद जिस तरह से यूपीए ने मध्यस्थता करने के लिए पुराने भगवाधारी कर्ण सिंह को भेजा तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की कसमें खाने वाले आखिर क्यों एक राजा की छिनती रियासत और दरकते हिंदू राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में एक पुराने राजा को भेजा।
जहां तक रुकमांगद कटवाल का सवाल है तो उन पर बात करने से पहले उनकी जन्म कुंडली को नेपाल की राजशाही और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से मिलाना जरुरी होगा। कटवाल को पूर्व महारानी रत्ना ने गोद लिया था जिनका पालन पोषण राजकुमारों के साथ नारायणहिती महल में हुआ था जिसका कर्ज वे शाही खानदान के प्रतिनिधि के बतौर अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्षरण कर चुकता कर रहे हैं। ऐसे में राजशाही के इस नुमाइंदे को राजशाही के नेस्तानाबूत होने के बाद ही हटा देना चाहिए था पर राजशाही को लोकतांत्रिक ढंग से बरकरार रखने वालों की मंशा के चलते कटवाल बने रहे। यहां गौर करने की बात है कि हिंदुस्तान में इस राजशाही को बरकरार रखने के लिए व हिंदू राष्ट्र को वैध ठहराने के लिए प्रयास लगातार होते रहे हैं जो पिछले साल 08 संविधान सभा के चुनावों के बाद और तेज हो गए। इन नेपाल विरोधी प्रयासों को ज्ञानेंद्र के एडीसी मेजर जनरल रह चुके भरत केशर सिंह ने किया जो विश्व हिंदू महासंघ के निवर्तमान अंतराष्ट्रीय अघ्यक्ष भी थे। यहां यह गौर करने की बात है कि इस विश्व हिंदू महासंघ की स्थापना से लेकर नीतियों को लागू करने की डोर सदैव भारत के हिंदूवादी शक्तियों के हाथों में ही रही। दरसल चाहे वो भरत केशर सिंह हों या कटवाल ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। एक वहां के सैनिक तंत्र के मारफत षडयंत्र कर रहा है तो दूसरा घूम-घूम कर समर्थन जुटा रहा है।
नेपाल में पैदा हुए इस संकट के लिए भारत में हुई दो घटनाओं पर नजर डालना जरुरी होगा। जो भारत में पैर पसार रहे हिंदुत्ववादियों के आतंकी स्लीपिंग माडयूल्स और उनके मास्टर माइंडों की तरफ इशारा करता है। नेपाल में संविधान सभा चुनाव के बाद माओवादी सत्ता में आ गए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया से माओवादियों को बेदखल कर हिंदू राष्ट्र के निर्माण की जो कवायदें हिंदुस्तान में चल रहीं हैं क्या वो एक देश के खिलाफ दूसरे देश में किया जा रहा षडयंत्र नहीं है।
भारत-नेपाल के सीमा क्षेत्र में 23 से 25 अप्रैल 08 को देवीपाटन मंदिर, तुलसीपुर बलरामपुर में तीन दिवसीय विश्व हिंदू महासंघ की कार्यकारिणी बैठक आयोजित की गई। जिसमें नेपाल में सम्पन्न संविधान सभा चुनावों से खार-खाए हिंदुत्व के षडयंत्रकारी मौजूद थे। जहां नेपाल के खिलाफ एक दूसरे से उठ खडे़ होने और दंभ भरने के अंदाज में कहा गया कि माओवादी जो भाषा समझते हैं उसी भाषा में हम जवाब देने को तैयार हैं। हिंदू राष्ट्र की बहाली के लिए वैश्विक कार्यदल बनाने का निर्णय लिया गया। इस बैठक में भरत केशर सिंह ने कहा कि राजशाही बहाल करने के बजाय हिंदू राष्ट्र को बहाल करने के लिए संघर्ष करना है। दरअसल ये सब उसी कवायद की कड़ी हैं जिसे पिछले दिनों कटवाल जबरन कर रहे थे और जिस पर प्रचंड ने आपत्ती की।
यहां सबसे प्रमुख बात ये है कि ये पूरी कवायद एक भारतीय सांसद के नेतृत्व में की जा रही है। दूसरा इस षडयंत्र में वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें पिछले दिनों मालेगांव से लेकर देश के विभिन्न धमाकों में शामिल पाया गया। इससे जो निहितार्थ निकलता है वो ये कि जो लोग नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं वो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए यहां आतंकी घटनांए कराते हैं। जिसका खुलासा हालिया में आई मालेगांव की चार्जशीट ने भी किया है। इन धमाकों में लिप्त अभिनव भारत की नेता हिमानी सावरकर जो गोडसे की बेटी और सावरकर की बहू हैं का इन नेपाल विरोधी बैठकों में आना जाना रहा है। आज तक इन बैठकों को लेकर न किसी भारतीय खूफिया एजेंसी ने कोई कदम उठाया है न प्रशासन ने जबकी इन बैठकों से छनती हुई खबरें तमाम राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय समाचार पत्रों तक में छपी हैं। इससे प्रतीत होता है कि ये सभी अवैध बैठकें वैध रुप से भारत के संरक्षण में हो रही हैं।
2006 में इन देशद्रोहियों ने गोरखपुर में विश्व हिंदू महासम्मेलन कर खुलेआम प्रस्ताव पारित कर घोषणा की कि नेपाल को पूर्ववतः सवैधानिक हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संघर्ष करेंगे और एक स्वर में कहा ‘राजनीति का हिंदूकरण करो और हिंदुओं का सैन्यकरण करो।’ इस सम्मेलन में विदेशों से सैकड़ो प्रतिनिधि आए और हजारों लोगों ने शिरकत की। सीमा पर तैनात खूफिया ऐजेंसियां जिन्हें झाड़ी के खरखराने पर भी आईएसआई और माओवादियों का खतरा सालता रहता है उन्हें कभी नहीं लगा कि इन सभी कार्यवाइयों की इजाजत हमारा संविधान नहीं देता और न ही किसी दूसरे देश का। दरअसल इसके पीछे हमारी सेनाओं की हिंदूवादी मानसिकता मुख्य कारक है। हमारा पूरा राष्ट्रवाद पाकिस्तान विरोध पर टिकाया गया है जो जितना पाकिस्तान विरोध करेगा वो उतना बड़ा रारष्ट्रवादी होगा। यहां गौर करने की बात है कि जब पाकिस्तान विरोध की उत्कंठा हमारे हृदय में हिलोर मारती है तो उसके मंथन से जो गूढ़ तत्व निकलता है वो इस्लाम विरोध होता है। ये पूरी मानसिकता हमारी सेना में इतनी प्रबल हो जाती है कि वो किसी भी हिंदूत्ववादी राजनीति के घेरे में आसानी से आ जाती है। जिसकी परिणिति मेजर रमेश उपाध्याय और पुरोहित के रुप में होती है। जहां तक लोग कहते हैं कि पाकिस्तान का सैनिक इस्लाम को बचाने के लिए लड़ता है तो यह कोई अचरज की बात नहीं है। क्योंकि जो देश घोषित रुप से इस्लामिक राष्ट्र हो उसके सैनिकों में ऐसी प्रवृत्ति आना स्वाभाविक है। इसे हम नेपाल के राजशाही के सैनिकों में भी देख सकते हैं। कटवाल और भरत केशर सिंह इसके उदाहरण हमारे सामने हैं। यहां पर गौर करना होगा कि जब हमारा देश न कोई हिंदू राष्ट्र है न कोई इस्लामिक राष्ट्र तब ऐसी प्रवृत्तियों का हमारी सेना में फलना-फूलना जो नेपाल के हिंदू राष्ट्र प्रति झुकाव रखती हों काफी खतरनाक है। दरसल इसके पीक्षे हमारे शासक वर्ग की मंशा साफ झलकती है। क्योंकि जिस धर्म आधारित राष्ट्रवाद के सहारे वो पाकिस्तान का विरोध करते हैं वो हिंदुत्ववादी खेमे की मानसिकता है जो नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है और यही मानसिकता भारतीय सेना में भी जड़ जमाए है।
बहरहाल जिस भारतीय सांसद के नेतृत्व में हिंदू राष्ट्र की कवायद चल रही है वो योगी आदित्यनाथ हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व अभिनव भारत से जुड़ी मालेगांव बम धमाकों की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर ने पिछले दिनों अपने नार्को टेस्ट में योगी आदित्यनाथ के एक आदमी लोकेश शर्मा का नाम लिया था। इसके साथ ही प्रज्ञा ने गोरखपुर के एक नेता का भी नाम लिया था। जिससे बौखलाए योगी आदित्यनाथ ने गिरफ्तार करने का प्रशासन को खुला चैलेंज दे दिया। जिसके चलते प्रशासन भी पीछे हट गया। यह हमारी व्यवस्था की बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है कि व्यवस्था में धर्म निरपेक्षता की शपथ लेने वाले व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने में शामिल हैं और उनके खिलाफ कोई कार्यवाई करने तक की हिमाकत प्रशासन नहीं कर पा रहा है वो भी आतंकवाद से जुड़े गंभीर मसलों में भी। आखिर ये कैसा डर इन हिंदुत्ववादियों से जिन पर महात्मा गांधी की हत्या तक का आरोप लग चुका है। आखिर गांधी की हत्या के बाद जिनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था उन्हें समाज में कैसे स्वीकार्यता हासिल हो गई और उनके हाथों देश की बागडोर तक दे दी गई।
दरअसल हिंदूत्ववादियों के जेहन में नेपाल के प्रति पहले से आशंका थी कि उसका हिंदू राष्ट्र का स्वरुप कभी भी नेस्तनाबूद हो सकता है। इसीलिए सावरकर ने नेपाल के राजा को पूरी दुनिया के हिंदुओं का राजा बताया था। इस साजिश की संगठित और प्रत्यक्ष शुरुआत 1944 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में गोरखपुर में हिंदू महाधिवेशन कर की गई। गांधी जी की हत्या में 19 महीने जेल काटने वाले तत्कालीन अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय नाथ कहते थे ‘यदि युद्धोन्माद से ग्रसित विश्व में हम एक राष्ट्र के रुप में जीवित रहना चाहते हैं तो हमें दो आधारभूत सिद्धान्तों को अपनाना होगा, जिन्हें स्वातंत्रयवीर सावरकरजी ने स्पष्ट रुप से देश के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे सिद्धांत हैं ‘‘राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण।’’ यदि हमने इन सिद्धांतों का अनुगमन किया तो हमारा राष्ट्र एक महान राष्ट्र के रुप में जीवित रह सकेगा।’ अपने आप को हिंदू राष्ट्रति कहने वाले दिग्विजय नाथ कहते थे ‘आज के नेता हिंदू राष्ट्र के स्वरुप को चाहे कितना ही विकृत रुप देकर सेक्युलर राज्य का ढोल पीटते रहें, किंतु हमारा तो विश्वास है कि इतिहास की घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि 15 अगस्त की मध्यरात को वैदिक मंत्रों के साथ राजधानी दिल्ली में जिस राज्य का जन्म हुआ, वह एक शुद्ध हिंदू राज्य ही था। चाहे पं0 नेहरु इसे देख न सके हों परन्तु यह सही है कि पंजाब में जहां हिंदू और मुसलमान पिछले हजार वर्षों से एक साथ रहते थे उनमें एक विद्युत की लहर दौड़ गई और जिस प्रकार विद्युत की लहर पानी से आक्सीजन और हाइड्रोजन दोनों तत्वों को अलग कर देती है, उसी प्रकार लाखों हिंदू पूर्वी पंजाब में और लाखों मुसलमान पश्चिमी पाकिस्तान में अलग-अलग जा बसे।’ तथाकथित हिंदू राष्ट्रपति द्वारा पेश किए गए इस हिंदुत्ववादी संविधान के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जो भारतीय संविधान की शपथ लेकर सांसद बने हैं मुस्लिमों पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि जब धर्म के आधार पर देश का विभाजन हो चुका है तब एक देश में दो संविधान नहीं हो सकते और न ही दो प्रधान हो सकते तो । योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में सम्पन्न अपने चुनावों के विज्ञापनों यहां तक कह डाला कि अगर राजनीति हिन्दुत्व की राह में रोड़ा बनेगी तो वह राजनीति छोड़ देंगे। इन बातों से आदित्यनाथ पिछले दिनों की भांति यह कह कर मुकर नहीं सकते कि उनके भाषणों को तोड़ा मरोड़ा गया है या सीडी से छेड़-छाड़ की गई है क्योंकि ये सभी विज्ञापन भाजपा व उनके अर्धसैनिक संगठन हिंदू युवा वाहिनी द्वारा प्रसारित किए गए हैं। और जहां तक सावरकर और उनके विचारों का सवाल है तो अंग्रेजों से मांगे गए उनके दर्जनों माफी नामें उनके विचारों का खुलासा करते हैं।
इस पूरे दर्शन की छाप माले गांव बम धमाकों के कारिन्दों में साफ दिखती है। हमारे लोकतंत्र के लिए यह शर्मनाक व हमारी संप्रभुता के लिए घातक है कि ऐसे लोगों की पैठ हमारी संसद तक में है। सावरकरवादी योगी आदित्यनाथ जिन्हें धर्मनिरपेक्षता सालती रहती है वे हर स्तर पर इसे नेस्तनाबूत कर हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं। नेपाल के आज जो भी हालात हैं उसके पीछे हिंदूवादी ताकतें हैं जो यह कभी नहीं चाहते कि नेपाल लोकतांत्रिक गणराज्य बने। और बने भी तो उसका रुप पुराना ही रहे जिसमें कथित लोकतंत्र राजशाही और हिंदुत्व से वैधता प्राप्त करता हो। इसलिए संविधान सभा के चुनावों के बाद ऐसी ताकतें सदैव लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने की फिराक में लगी रहीं। कटवाल भी इसी प्रक्रिया की एक कड़ी है। आज नेपाल में जिन स्थितियों में माओवादियों को अलग कर लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की नौटंकी हो रही है वो हिंदूत्ववादी ताकतों की परिधिय राजनीति का हिस्सा है। ऐसा कर जनक्रांति के बाद माओवादियों को दिए गए जनादेश के साथ विश्वासघात किया जा रहा है। जो दरअसल लोकतंत्र को गर्त में ले जाकर राजशाही को ही स्थापित करने की कोशिश है।

1 टिप्पणी:

samvedna ने कहा…

नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की सोची समझी साजिश विषयक आपके आलेख पढ़े। अच्छी जानकारी रखी है आपने.....मुझे तो लगता है नेपाल आज फिर दो राहे पर खड़ा है और इसके पीछे नईदिल्ली की भूमिका भी कुछ कम नहीं है। कब्र में दबे समाए पुराने राजवंशों की कुलबुलाहट आज भी समय समय पर महसूस होती है। राजीव जी अपके आलेख पठनीय हैं।

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