22 जून 2009

भविष्य के पत्रकारों का सामान्य (अ)ज्ञान

आनंद प्रधान

क्या आपको मालूम है कि बांग्लादेश की सम्मानित प्रधानमंत्री शेख हसीना का अंडरवर्ल्ड से ताल्लुक है। वे अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम की छोटी बहन हैं ? या ये कि वे पाकिस्तान की बड़ी नेता हैं और अपने नाम के मुताबिक वाकई हसीन हैं? या फिर यह कि वे विश्व सुंदरी हैं। और यह भी कि वे श्रीलंका की राष्ट्रपति हैं?

..... आपका सर चकरा दनेवाली ये जानकारियां किसी बेहूदा मजाक या चुटकुले का हिस्सा नहीं हैं। ये वे कुछ उत्तर है जो देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया प्रशिक्षण संस्थान में हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता में पी जी डिप्लोमा की प्रवेश परीक्षा में शेख हसीना और उन जैसी ही कई और चर्चित हस्तियों के बारे में दो-तीन वाक्यों में लिखने के जवाब में आए।

लेकिन यह तो सिर्फ एक छोटा सा नमूना भर है। ऐसा जवाब देनवाले प्रवेशार्थियों की संख्या काफी थी जिन्हें महिंदा राजपक्से, रामबरन यादव, अरविंद अडिगा,हैरोल्ड पिंटर आदि के बारे में पता नहीं था। सबसे अधिक अफसोस और चिंता की बात यह थी कि इन छात्रों को जो पत्रकार बनना चाहते हैं, प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस जी एन रे और दक्षिण एशियाई पत्रकारों के संगठन साफमा के बारे में कुछ भी पता नहीं था। ऐसे छात्रों की संख्या उंगलियों पर गिनी जाने भर थी जिन्होने जस्टिस जी एन रे और साफमा के बारे में सही उत्तर दिया। हिंदी पत्रकारिता में प्रवेश के इच्छुक अधिकांश छात्रों ने लगता है कि नई दुनिया के संपादक और जाने-माने पत्रकार आलोक मेहता का नाम कभी नहीं सुना था।

नतीजा यह कि प्रवेशार्थियों ने अपने काल्पनिक और सृजनात्मक ष्सामान्य (अ) ज्ञानष् से इन प्रश्नों के ऐसे-ऐसे उत्तर दिए हैं कि उन्हें पढ़कर हंसी से अधिक पीड़ा और चिंता होती है। हैरत होती है कि इन छात्रों ने ग्रेजुएशन की परीक्षा कैसे पास की होगी? यह सचमुच अत्यधिक चिंता की बात है कि पत्रकारिता की प्रवेश परीक्षा में बैठनेवाले छात्रों का न सिर्फ सामान्य ज्ञान बहुत कमजोर है बल्कि उनकी भाषा और अभिव्यक्ति क्षमता का हाल तो और भी दयनीय है। वर्तनी, लिंग और वाक्य संरचना संबंधी अशुद्धियों के बारे में तो कहना ही क्या? इन छात्रों की भाषा पर पकड़ इतनी कमजोर है कि वे अपने विचारों को भी सही तरह से प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं।

यह ठीक है कि इनमें से बहुतेरे छात्रों की भाषा, अभिव्यक्ति क्षमता, तर्कशक्ति और सामान्य ज्ञान का स्तर बाकी की तुलना में बहुत बेहतर और संतोषजनक था। इससे संभव है कि संस्थान को छान और छांटकर जरूरी छात्र मिल जाएं लेकिन बाकी छात्र कहां जाएंगे ? जाहिर है कि बचे हुए छात्रों की बड़ी संख्या दूसरे विश्वविद्यालयों और निजी पत्रकारिता और मीडिया संस्थानों में दाखिला पा जाएगी। उनमें से काफी बड़ी संख्या में छात्र डिग्रियां लेकर पत्रकार बनने के पात्र भी बान जाएंगे। संभव है कि पत्रकारिता पाठ्क्रम में प्रशिक्षण के दौरान उनमें संधार हो लेकिन आज अधिकांष विश्वविद्यालयों और निजी संस्थानों में प्रशिक्षण और अध्यापन का जो हाल है, उसे देखकर बहुत उम्मीद नहीं जगती है।

निश्चय ही, समाचार माध्यमों के लिए अच्छी खबर नहीं है। अधिकांश समाचार माध्यमों और मीडिया उद्योग के लिए यह चिंता की बात है। वे पहले से ही प्रतिभाशाली मीडियाकर्मियों की कमी से जूझ रहे हैं। इसके कारण समाचार मीडिया उद्योग का न सिर्फ विस्तार और विकास प्रभावित हो रहा है बल्कि उसकी गुणवत्ता पर भी बुरा असर पड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में समाचार मीडिया उद्योग का जिस तेजी से विस्तार हुआ है, उसके अनुसार उपयुक्त प्रतिभाओं के न मिलने के कारण समाचारपत्रों और चैनलों के बीच वेतनमानों से लेकर सेवा शर्तों तक में बहुत विसंगतियां पैदा हो गयी हैं।

ऐसे में, समाचार मीडिया उद्योग के स्वस्थ विकास के लिए जरूरी है कि बेहतर प्रतिभाएं मीडिया प्रोफेशन में आएं। लेकिन इसके लिए समाचार मीडिया उद्योग के साथ-साथ देश के प्रमुख मीडिया प्रशिक्षण संस्थानों को मिलकर कोशिश करनी होगी। समाचार मीडिया उद्योग को मीडियाकर्मियों की भर्ती की प्रक्रिया को तार्किक, पारदर्शी, व्यवस्थित और आकर्षक बनाना होगा और दूसरी ओर, प्रशिक्षण संस्थानों को बेहतर छात्रों को आकर्षित करने और उन्हें श्रेष्ठ प्रशिक्षण देने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने के बारे में तुरंत सोचना होगा। यह एक चुनौती है जिसे अब और टालना समाचार मीडिया उद्योग के साथ-साथ पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थानों के लिए बहुत घातक हो सकता है।

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