21 जून 2009

सुधार या यातना गृह !

प्रदीप कुमार सिंह

बच्चों को भगवान का रूप कहा जाता है। यही बच्चे जब धीरे-धीरे बड़े होते हैं तब समाज और परिवार की हकीकत उन्हें भी समझ में आने लगती है। अभाव, तिरस्कार, पारिवारिक विवाद एवं सामाजिक उपेक्षा का भाव जवानी में कदम रखने के पहले ही ढेर सारे किशोरों को अपराध की दुनिया का रास्ता दिखा देता है। जरायम की यह दुनिया उनके लिए तब तक हसीन होती है जब तक कि वे कानून के शिकंजे में नहीं जकड़ लिए जाते हैं।
बाल अपराधियों को भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में सजा देने के बजाय सुधारने की कोशिश की जाती है। यही कारण है कि बच्चों के लिए अलग से बाल न्यायालय और बाल सुधार गृह की स्थापना की गयी है। दिल्ली में २४ बाल सुधार गृह हैं जिनमें छोटे-मोटे अपराधों में शामिल बच्चांे, अनाथ बच्चों और दुदा±त अपराधों में शामिल किशोरों को रखा गया है। लेकिन बच्चों की दशा सुधारने वाले ये बालगृह खुद ही दुर्दशा के शिकार हैं। बच्चों के भोजन, वस्त्र और व्यवस्था के लिए आने वाले बजट की बंदर बांट के चलते अधिकारियों ने इन सुधार गृहों को यातना गृहों में तब्दील कर दिया है।
सरकार ने पिछले साल ठंड के मौसम में बच्चों को नहाने में आने वाली दिक्कत से बचाने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया। जिससे उन्हें बर्फ के समान ठंडे पानी से नहा कर अपने दांत न किटकिटाने पड़ंे। इसके लिए सरकार ने दिल्ली के किंग्जवे कैंप स्थित बाजाज आब्जर्बर होम्स में पहला सौर Åर्जा से चलने वाला हीटर लगाया। लेकिन बच्चों के लिए यह सुविधा बहुत दिनों तक मुफीद नहीं रही। जल्द ही यह हीटर खराब हो गया। मात्र चंद दिनों में सोलर वाटर हीटर का खराब हो जाना समझ के परे है। पर्यावरण विभाग और समाज कल्याण विभाग ने किंग्जवे कैंप बाल सुधार गृह के साथ ही छह अन्य जुबेनाइल और आब्जर्बर होम्स में इसकी शुरूआत की थी। लेकिन धीरे-धीरे हर जगह इस व्यवस्था ने जवाब दे दिया। अब अधिकतर सुधार गृहों में लकड़ी जलाकर पानी गर्म किया जाता है। सारी व्यवस्था अव्यवस्था एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।
गौरतलब है कि किंग्जवे कैंप बाल सुधार गृह में ४८ बच्चे हैं। इन बच्चों की दशा बहुत ही खराब है। ब्वॉयज आब्जर्बर होम्स के दो बच्चांे की जुबानी जो बात सामने आयी वह इन संस्थाओं का हाल बयां करने को काफी है। राज और मोहन (परिवर्तित नाम) ने कहा कि ‘शाम के भोजन में हम लोगों को शिमला मिर्च और आलू की सब्जी दी जाती है। नहाने के लिए तो कभी भी गर्म पानी नहीं मिला। कहने को तो इलेक्ट्रॉनिक गीजर दो वर्ष पहले से लगा है। लेकिन लगने के कुछ ही दिनों बाद वह शॉर्ट सर्किट से खराब हो गया। तब से वह बनने की बाट जोह रहा है।’
पिछली सर्दी में इलेक्ट्रिॉनिक हीटर के बनने की बाट जोहते रहे। बच्चों को ठंडे पानी से नहाने को विवश किया जाता रहा। जुवेनाइल आब्जर्बर होम्स अलीपुर किंग्जवे कैंप, लाजपतनगर, अवंतिका और मैगजीन रोड पर सबसे पहले यह व्यवस्था की गयी थी। लेकिन हर जगह यह लॉप शो साबित हुई। इस सबकी अनदेखी करते हुए समाज कल्याण विभाग अपने प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाने में तत्पर दिखा। बाल सुधार गृह के बाद विभाग ने दिल्ली के ७२ और संस्थानों को चुना। इनमें वृद्ध आश्रम, सोशल डिफेंस होम्स (परिवार से बहिष्कृत बुजुगो± का आशियाना) बेगर होम्स और ३५ विद्यालय शामिल हैं। विभाग के कई कॉलेजों में इस व्यवस्था को लागू करने में काफी रुचि दिखाई। दरअसल, इस काम में काफी छूट मिल रही थी। सोलर एनर्जी सिस्टम लगाने के लिए पर्यावरण विभाग ने तीस प्रतिशत की छूट दी। समाज कल्याण विभाग ने भी तीस प्रतिशत खर्च खुद वहन करने का निर्णय लिया। साठ प्रतिशत की छूट के बावजूद जो सोलर एनर्जी सिस्टम लगा उसका लाभ बच्चों को कभी नहीं मिला। शायद ही ऐसा कोई अवसर होगा जब बच्चांे ने गर्म पानी का उपयोग किया हो। ढेर सारे सुधार गृहों मसलन अलीपुर, में आज तक उपकरण नहीं लगा।
समाज कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि अक्सर ऐसा होता है कि कोई एक विभाग किसी प्रोजेक्ट में छूट देता है। लेकिन बच्चों, वृद्धों और बेसहारोंं के जीवन को सुखमय बनाने के लिए दो-दो विभागों ने भारी छूट दी। लगभग ७२ गृहों में यह योजना लागू हुई। इसमें बिजली खर्च भी कम होता है। लेकिन यह पूरी योजना असफल हो गयी। पर्यावरण सचिव जेके दाबू की राय इस पर जुदा है। श्री दाबू कहते हैं कि ‘इस योजना से हम ४०० मेगावाट बिजली बचा सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक गीजर की जगह सोलर वाटर हीटर हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।’ दरअसल, पर्यावरण सचिव अब भी इस योजना को लेकर आशान्वित हंै। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बाल सुधार गृहों में अव्यवस्था भी चरम पर है। पिछले तीन चार सालों से लगभग जुवेनाइल होम्स में चार सौ पद खाली पड़े हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव जयश्री रघुनाथन इस बात को स्वीकारती हंै कि इस वजह से बच्चों की देखभाल ठीक ढंग से नहीं हो पा रही है। बच्चोंं की अधिकता और स्टाफ की कमी इसमें आड़े आ रही है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का कहना है कि रिक्त स्थानों पर नियुक्ति के लिए ‘दिल्ली सब आर्डीनेट सर्विस सलेक्शन बोर्ड’ परीक्षा लेता है। उसके बाद ही विभाग में नियुक्ति होती है। जुवेनाइल होम्स में ऐसे ही लोगों को नियुक्त किया जाता है जिन्हें बच्चों को देखभाल का अनुभव और प्रशिक्षण प्राप्त हो। जयश्री रघुनाथन कहती हंै कि बाल सुधार गृहों में अधिकारियों की नियुक्ति के केंद्रीयकरण को हम खत्म करना चाहते हंै। कुछ पदों पर हम भी सीधी नियुक्ति करना चाह रहे हैं जिससे इन संस्थाओं को ज्यादा दिन अव्यवस्था से न गुजरना पड़े।
सुधार गृहों में भेजे गए बाल अपराधियों को उचित देखभाल और संरक्षण की जरूरत है। दिल्ली के चौबीस जुवेनाइल होम्स में २,०५१ बच्चों को रखने की व्यवस्था है। लेकिन हर जगह यह संख्या सीमा से अधिक है। अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कमी के कारण बाल सुधार गृह में इन पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। अधिकांश बच्चों का कहना है कि सुधार गृहों में जेल जैसी ही स्थति है। ३०-३५ बच्चों को एक कमरे में बंद करना पड़ता है। अधिकारियों की दलील है कि यदि इन बच्चों को परिसर में खुला छोड़ दिया जायेगा तो भागने का डर बना रहता है। इन सारी अव्यवस्थाओं के बावजूद बच्चों को साफ-सफाई से रहने को कहा जाता है। ऐसा न करने पर उन्हें समझाने के बजाय बुरी तरह पीटा जाता है। लेकिन बाल विकास एवं समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों का दावा है कि हम प्रशिक्षित लोगों को ही बाल सुधार गृह में लेते हंै पीटने की खबर बेबुनियाद है। एक अन्य खबर के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में ५००० से अधिक मामले लंबित पड़े हंै जिसका सीधा अर्थ है कि बाल सुधार गृहों पर दिनों-दिन दबाव बढ़ता ही जा रहा है।
प्रदीप कुमार सिंह की एक पुरानी रिपोर्ट और कड़वी सच्चाई.

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