08 जुलाई 2009

मुआवजे का 17 साल से इंतजार

अरूण कुमार वर्मा
उदयपुर। माइंस में कार्य करते समय हुए विस्फोट ने उसकी दोनों आंखें छीन ली, एक पांव ने काम करना बंद कर दिया। पत्नी की पहले ही मौत हो गई थी। दस साल का इकलौता बेटा पिता की बुरी हालत देखकर घटना के दस दिन बाद ही सदमे से चल बसा।

मुआवजे के सरकारी और अदालती आदेश सत्रह साल से ठंडे बस्ते में पड़े हैं। माइंस मालिक तो अब इस बात से ही इनकार कर रहे हैं कि ऎसी कोई घटना भी हुई थी। यह व्यथा है उदयपुर जिले की सलूम्बर तहसील के सुथरिया गांव के हकरा मीणा की।

हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते अब उसके हौसले पस्त हो गए है। हकरा ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि 12 सितम्बर 1993 को कार्यस्थल पर हुए विस्फोट के दौरान वह अपनी दोनों आंखें व एक पैर गंवा बैठा। न्यायालय के आदेश के बाद मुआवजा नहीं मिलने पर उसने वर्ष 2003 में उदयपुर कलक्टरी के सामने धरना दिया था। उस समय कलक्टर ने राशि दिलवाने का आश्वासन भी दिया। हकरा कहता है कि इन 17 वर्षो में आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। अपनी कहानी कहते हुए वह बार-बार रो पड़ता है। उसके मुंह से यही निकलता है कि इस दुनिया में उसका कोई नहीं। फिलाहल वह विकलांग पेंशन की मामूली राशि व गांव वालों की मदद से अपना जीवन यापन कर रहा है।

न्यायालय का आदेश
न्यायालय आयुक्त, कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत 8 मई 2000 को न्यायालय ने नियोक्ता सलूम्बर के सेंजला स्थित मेसर्स ओरिएन्टल टेल्क प्रोडक्ट प्रा.लि. माइंस को मुआवजे के तौर पर 97 हजार 320 रूपए और 6 प्रतिशत ब्याज 60 दिन में देने का आदेश दिया था।

इनका कहना है
कोर्ट का फैसला है तो सिर आंखों पर और नहीं है तो भी सिर आंखों पर। वैसे मैने यह माइंस मांगीलाल लूणावत को दे रखी थी, आप आदेश मेरे पास भिजवाइये, मैं देख लूंगा।
विष्णु मोदी, खान मालिक

मामला मेरी जानकारी में नहीं है, जिस तारीख की घटना बताई जा रही है, उस समय माइंस मेरे पास नहीं थी, फिर भी रिकार्ड देखकर विस्तृत बता सकूंगा।
मांगीलाल लूणावत, उद्यमी


कोर्ट के आदेश पर भी अगर राहत नहीं मिली है तो उसे फिर कोर्ट की शरण में जाना चाहिए। वैसे प्रशासन की ओर से खान विभाग के माध्यम से माइंस मालिक को लिखा जाएगा।
आनंदकुमार, जिला कलक्टर

अरुण आईआईएमसी के पूर्व छात्र और राजस्थान पत्रिका, उदयपुर में रिपोर्टर हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय