13 जुलाई 2009

मंहगाई की सरकार

राकेश कुमार
कांग्रेस के नेतृत्व में गठित नई सरकार के अभी सवा महीने भी नहीं हुए थे कि संप्रग सरकार के नीति निर्माताओं के असली चेहरे से पर्दा धीरे-धीरे हटने लगा है। आमजन की सरकार बताने वाली कांग्रेस सरकार ने अपने वायदों की पोटली को ताक पर रख, पेट्रोल और डीजल के दामों में दो से चार रूपये की वृद्धि कर दी है। आखिर चुनाव के पहले यही सरकार कह रही थी कि नई सरकार के गठन के तत्काल बाद, विश्वव्यापी मंदी के इस दौर में भी आसमान छू रही मंहगाई को नियंत्रित कर लिया जायेगा। गौरतलब है कि नवगठित सरकार अपने ही जनता को दिये वायदों की अवहेलना कर ठीक उसके उल्टे कदम चलना शुरू कर दी है। सही मायने में महगाई रोकने के पीछे असल राज तो मंहगाई बढ़ाने का था। चुनावों के दौरान या फिर अब भाजपा जैसी विपक्षी पार्टियों में इतना नैतिक साहस ही नहीं बचा है कि वो महंगाई जैसे मुद्दे पर सरकार को घेर सकें। इसीलिए चुनाओं में महंगाई जैसे मूलभूत मुद्दे गायब थे।
अपने निर्धारित कार्यक्रमों के तहत सबसे पहले सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थो में बढ़ोत्तरी की है जिससे अन्य सभी क्षेत्रों में मंहगायी अपने-आप बढ़ जायेगी। एक तरफ सरकार मंहगाई पर काबू पाने का ऐलान कर रही है तो दूसरी तरफ पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी कर अपरोक्ष रुप से सभी खाद्य पदार्थों पर मंहगाई बढ़ाने का काम कर रही है जो सिर्फ आमजन की आखों में सीधे धूल झोकने के बराबर है। पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा जी ‘सांप मर जाय, लाठी न टूटन पाय’ वाली नीति का अक्षरशः पालन करते हुए डीजल के दाम दो रूपये कीं
बढ़ोत्तरी कर दी, जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ मुश्किल से मिले मंत्रालय के कोषागार में वृद्धि कर सोनिया जी को खुश रखने की है। चूंकि उन्हे अपने पांच साल के कैरियर के साथ-साथ आने वाले भविष्य को भी सुरक्षित रखना है। मुरली साहब को यह डर अभी से सताने लगा है कि यदि हम अच्छा, खासा प्रोफार्मेंस नहीं दे पाये तो कुर्सी सक्ते में पड़ सकती है। चूंकि पिछली सरकार में कई मंत्री इसका शिकार बन चुके हैं। यहां तक कि आज वे मंत्री पूरी मंत्रिपरिषद से ही गायब हो गये हंै। इन्ही सब बातो को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह कदम उठाना मुनासिब समझा, क्योंकि उन्हें डर सोनिया जी से है जनता से नहीं। उन्होंने अपनी बातों के पक्ष में यह तर्क दिया कि पिछले दो महीनों में तेल के कच्चे पदार्थो में काफी बढ़ोत्तरी हुइ थी लेकिन इसके बावजूद तेल के दामों कोई वृद्धि नहीं की गयी थी, इसलिए अब बढ़ाया गया है। सवाल यह है कि जिस समय तेल के कच्चे पदार्थो में बढ़ात्तरी हुई उस समय यह बढ़ोत्तरी क्यों नहीं की गयी आखिर उस समय भी तो कांग्रेस की ही सरकार थी। क्या उस समय मंत्रालय को आर्थिक घाटा नहीं उठाना पड़ता था तो फिर उस समय तेल के दाम क्यों नहीं बढ़ाए गये क्या उस चुनाव के कारण आमजन से सरकार डर रही थी तो क्या अब वह डर समाप्त हो गया हैघ्
कांग्रेस ने चुनाव के समय पार्टी के प्रचार के लिए जिस फिल्म के गाने को प्रायोग किया वह फिल्म है ‘स्ल्म डाॅग मिलिनेयर’। यह फिल्म ऐसे जनसमुदाय पर आधारित है जो किसी तरह कमाई-धमाई करके
झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। हालांकि इस पटकथा का इस्तेमाल कर एक विदेशी निर्देशक डैनी बायल ने अपने लम्बे कैरियर में पहली बार आस्कर अवार्ड हासिल किया। यहां तक कि आस्कर अवार्ड में सबसे अधिक पुरस्कार जीते। वर्तमान कांग्रेस सरकार भी 2009 के लोकसभा चुनाव में इसी पटकथा का इस्तेमाल कर भारी जनमत प्राप्त किया और सरकार भी बना ली। ज्ञातव्य है कि इस पटकथा का इस्तेमाल करने वाले दोनों सफल निर्देशक विदेशी ही हैं, दोनों ने अपनी-अपनी फिल्म को सर्बोच्च श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया और बड़े-बड़े फिल्मेकरों एवं महान नेताओं की बोलती तक बन्द कर दी। फिल्म के गाने ष्जय हो, जय होष् को बतौर पार्टी के कैम्पेन इस्तेमाल किया गया लेकिन सरकार बनने के बाद उस गीत को भी तिलांजलि दे दी गयी और उसकी राख को सोनिया गांधी युवराज के माथे पर तिलक लगाकर चार साल के लिए गरीब एंव मध्यवर्गीय समस्याओं को भुला दिया।
जनमत की सरकार द्वारा मध्यम और गरीब को भेंट किए गये इस उपहार की सबसे अधिक मार किसानों पर पड़ रही है। गौरतलब है कि खरीफ की फसल की रोपाई किसानों के सर पर है और बारिश भी नहीं हो रही है, जिसके चलते किसान काफी परेशान दिख रहा है और इसीलिए आए दिन पानी के प्रतीक देवताओ को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के आडंबरों का आयोजन कर रहे हैं। ऐसे में सरकार भी डीजल के दामों में अपेच्छित बढ़ोत्तरी करके किसानों की दिक्कतों को और बढ़ा दी है। चूंकि ऐसे समय में जब पानी का स्तर नीचे चले जाने से, किसानों को पहले की अपेच्छा इस समय सिंचाई करने में डेढ़ गुना अधिक डीजल खर्च करना पड़ रहा है। प्रकृति की मार से किसान उबर नहीं पाये थे कि सरकार ने भी किसानों कमर तोड़ने पर आमादा दिख रही है। ऐसे समय में आखिर डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी करने का क्या औचित्य था जब किसान पानी की समस्या से स्वंय झेल रहे हैं। इससे तो यही लगता है कि सरकार अपने पिछले शासनकाल में माफ किए गये किसानों के 60 हजार करोड़ रूपये को किसी न किसी माध्यम से जल्द ही वसूल करना चाहती है।
संप्रग सरकार के इस बेरहम फैसले से देश की लगभग 70 फीसदी गरीब जनता प्रभावित हुई है। सरकार का ऐसा निर्णय लेने के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक मकसद मुनाफा कमाना है। अगर ऐसा न होता तो आखिर जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में कोई इजाफा नहीं हुआ है आखिर तब तेल बढ़ाने की क्या जरुरत आन पड़ी। ज्ञातब्य हो कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में रिझाने के लिए तात्कालिक तौर कांग्रेस ने 28 जनवरी को पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में क्रमशः पांच से दो रूपये और घरेलू गैस में 25 रू की कमी कर दी थी। लेकिन सरकार बनने के ठीक 40 वें दिन इस कटौती को नवगठित सरकार ने पुनः वापस ले लिया जो वास्तव में, बतौर चुनावी छलावे के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। 28 जनवरी को कांग्रेस सरकार द्वारा पेट्रो पदार्थाे में की गयी कटौती को कुछ विशेषज्ञ पहले से ही बता रहे थे कि यह चुनावी लाली पाप के सिवा और कुछ नहीं है, जो वास्तव में सही साबित हुआ।
वैसे गरीब तपकों के लिए कांग्रेस का यह दूसरा झटका है। पहला दृश्य झटका तो कांगे्रस के ही नहीं वर्तमान ‘भारत के नवउदित युवराज’ राहुल गांधी ने उस कलावती को झिझकार कर भगा दिया था जिसके घर राहुल बाबा अपनी दलित परिक्रमा के दौरान कुछ पल बिताये थे। कलावती की आर्थिक स्थिति ठीक न देख राहुल ने तात्कालिक सहायता के लिए चेक के माघ्यम से कुछ पैसे उसे दिए थे। ज्ञातब्य हो कि कलावती आज तक उस चेक को भुना नहीं पाई तो वह अपनी व्यथा युवराज बाबा को सुनाने के लिए दिल्ली पंहुच गयी। राजदरबार के कारिंदों ने उसे धक्के मारकर भगा दिया और कहा कि ‘युवराज साहब’ किसी कलावती को नहीं जानते जो भी हो तुम यहां से जाओ और अपनी समस्या का खुद समाधान खोजो, राहुल जी सब का ठेका नहीं ले रखे हैं। इसके बावजूद कलावती ने उस सबसे अपनी बातें कही कि हमें राहुल जी ये सभी बाते बतानी है लेकिन युवराज के पहरेदारों ने कहा उन्हें उस समय जो करना था कर दिए अब वह तुम्हे मिले या न मिले उसके जिम्मेदार राहुल जी नहीं हैं। यह दलित समाज के लिए एक बड़ा झटका था। क्यों की चुनाव नतीजों के बाद ऐसा लगने लगा था कि दलित कांग्रेस की तरफ फिर लौटेंगें जिसका दलितों के एक छोटे हिस्से ने संकेत भी दिया था। और जिस जनादेश पर सरकार इतना उछल-कूद मचा रही है उसमें दलितों की बड़ी हिस्सेदारी है। जिस सरकार पर दलितों की बहुत कुछ उम्मीदें टिकी थी उसी सरकार ने दलितों को ऐसा जवाब दिया कि दलित महकमा फिर से सक्ते में पड़ गया है। लेकिन दूसरा झटका तो देश के गरीब एंव मध्यवर्गीय किसान जनता पर बेरहमी से कहर बरपा रहा है।
वक्त बदलने के साथ-साथ निजाम भी बदल जाते हैं लेकिन उनकी नीतियों में आमजन के लिए कोई खास बदलाव नहीं आता उनके प्रति सत्तापक्ष का रुख जस का तस ही रहता हैं। इस बात का गवाह तो स्वंय इतिहास भी है। इतिहास में भी हर बदले निजाम को सिर्फ सत्ता और धन की भूख सताती रहती है, चाहे वह पूर्व मध्यकाल हो आधुनिक काल। वह सदैव सत्ता और संपत्ति को पाने के लिए छल-धन-बल इन तीनों नीतियों का बखूबी पालन करते हैं। वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इस बार सत्ता में पुनः काबिज रहने के लिए इस चुनाव में कुटिल नीति का भरपूर प्रयोग किया और सत्ता के सिंहासन पर विराजमान भी हो गयी। लेकिन यह नवगठित सरकार जिस तरह से मध्यवर्गीय किसान जनता के साथ किए गये वायदे को ठुकरा रहीं उससे बहुत जल्द इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। चूंकि इस तरह का धोखा करने वाली सरकारों को जनता ने बीते दो-तीन सालों में तनिक भी नहीं बक्सा है और उसे सत्ता से बाहर का हवा दिखा दिया, जिसका सबसे प्रबल उदाहरण उत्तर प्रदेश में 2007 में विधानसभा और 2004 का लोकसभा चुनाव है। कांग्रेस की इस तरह की नीति का आज पूरे देश में विरोध हो रहा है अतः इससे सरकार को सबक लेना चाहिए और ऐसी किसी नीति को नहीं अपनाना चाहिए जिससे आम जनमानस प्रभावित हो।


राकेश डेली न्यूज एक्टिविस्ट इलाहबाद से जुड़े हैं.

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