साथियों,
शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ जहाँ इलाहाबाद के छात्र सडकों पर आन्दोलनरत हैं वहीं इंटरनेट नवीन सूचना माध्यम पर वैकल्पिक मीडिया के रूप में उभर रहे कुछ वेब पोर्टल और ब्लॉग भी इस आन्दोलन की आवाज बने हैं. इंटरनेट पर मोहल्ला लाइव, भड़ास 4 मीडिया, विस्फोट डॉट कॉम और जनादेश जैसे वेब न्यूज पोर्टल और कई दैनिक साप्ताहिक अख़बारों ने अमूल्य योगदान किया. इस आन्दोलन को आवाज देने के लिए हम सभी इनके आभारी हैं.
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जनादेश
निजीकरण विरोधी इस आंदोलन को दिया जायेगा राष्ट्रीय आयाम: प्रो शर्मा इलाहाबाद! 8 सितम्बर 09, प़त्रकारिता विभाग परिसर में आज छात्रों ने अपने विभाग के अस्तित्व को बचाने व निजीकरण समर्थक कुलपति की बुद्धि-शुद्धि के लिए यज्ञ किया। इस यज्ञ की शुरुआत आजादी बचाओ आंदोलन के संस्थापक और प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक प्रो बनवारी लाल शर्मा के अभिभाषण के साथ हुई। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में छात्र-छात्राओं ने यज्ञ कुण्ड में बुद्धि-शुद्धि के लिए आहुति दी और निजीकरण विरोधी अपने आंदोलन को व्यापक बनाने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रो बनवारी लाल शर्मा ने कहा कि यह आन्दोंलन सिर्फ किसी विभाग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि व्यवस्था में नीतिगत परिवर्तन के लिए है। आज विश्वविद्यालय में हो रहे शिक्षा के निजीकरण और व्यवसायीकरण ने आम छात्रों को शिक्षा से वंचित करने की कोशिश की है, जिसके वाहक कुलपति हैं। ऐसे में हम आज यहां संकल्प लेंगेे कि निजीकरण-व्यवसायीकरण की इस लड़ाई को राष्ट्रीय आयाम दिया जाये। पूरा पढें
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्रों का आंदोलन
यह बात तो बेतुकी है लेकिन इस आंदोलन को समझते हुए यह भी समझ में आता है कि छात्र असल में शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण का विरोध कर रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन चाहता है कि पत्रकारिता संकाय को धीमी मौत मारकर उसकी जगह निजी सहयोग से पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की जाए. इस काम के लिए उसने निजी क्षेत्र की एक संस्था का सहयोग लिया है और विश्वविद्यालय परिसर में पत्रकारिता स्कूल की शुरूआत का प्रस्ताव किया है. इस निजी क्षेत्र के पत्रकारिता स्कूल की परिकल्पना का विरोध करते हुए वर्तमान छात्र जो सबसे मजबूत तर्क देते हैं वह यह कि पत्रकारिता की पढ़ाई मंहगी हो जाएगी. आज जो पढ़ाई वे पंद्रह बीस हजार में पूरी कर लेते हैं उसी के लिए उनको लाख सवा लाख रूपये चुकाने होंगे. ये छात्र यह पैसा कभी अदा नहीं कर सकते इसलिए वे पढ़ाई से ही वंचित हो जाएंगे.
शिक्षा के क्षेत्र में जैसे जैसे निजी क्षेत्र का दखल बढ़ रहा है वैल्यू एडिशन के नाम पर जगह जगह यह खेल किया जा रहा है कि पढ़ाई में निजी संस्थान आ रहे हैं. एमिटी में भ्रष्टाचार और व्यापार की कहानी यह साबित करती है कि शिक्षा भविष्य का सबसे लाभदायी व्यापार साबित होनेवाला है जिसमें गरीब विद्यार्थियों के लिए कहीं कोई जगह नहीं होगी. इसी बात के मद्देनजर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र यह विरोध कर रहे हैं किसी भी कीमत पर विश्विविद्यालय परिसर में निजी क्षेत्र को प्रवेश नहीं करने देंगे. वैसे भी छात्रों का आरोप है कि जिस व्यक्ति जी के राय को यह परिसर चलाने का जिम्मा सौंपा रहा है उनके पास पत्रकारिता के क्षेत्र में कोई खास अनुभव नहीं है. छात्र उन्हें "अचार चटनी मुरब्बा" बेचनेवाला कहकर उनकी आलोचना करते हैं. पूरा पढें
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'आपके टीचर्स विश्वविद्यालय की ईंट खाते हैं, सीमेंट फांकते हैं'
महोदय,
आज से चंद साल पहले जब विश्वविद्यालय की प्रवेश परी़क्षा के पेपर लीक होने के सवाल पर आपने प्रशासन के लोगों को साथ लेकर गांधी भवन तक मार्च किया था, विश्वविद्यालय की अस्मिता और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए तब केवल विश्वविद्यालय में चंद शिक्षक और कुछ ही प्रशासन के नुमाइंदे ही आपके साथ थे।
आज जब पत्रकारिता विभाग की अस्मिता और प्रतिष्ठा पर आंच आ रही है और तो वहां के शिक्षक अपने सभी विद्यार्थियों के साथ उसी तरह गांधी भवन जाते हैं। ये संकल्प लेने के लिए की हम अपने मान सम्मान और विचारों पर अडिग रहेंगे तो आप उस विभाग के सात साल विभागाध्यक्ष रहे सुनील उमराव को नोटिस थमाते हैं कि वो परिसर में अराजकता फैला रहे हैं और वीसी के कथित मानसम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं। क्या आज वीसी का मानसम्मान एक विभाग या शिक्षक से अलग होता है? क्या विश्वविद्यालय जैसी अकादमिक संस्थाओं में विचारों को भैंस की तरह जंजीरों में बांधा जा सकता है। जब श्री राजेन हर्षे वीसी की कुर्सी की गरिमा को बनाये नही रख पा रहें है तो उस कुर्सी की गरिमा को यह कार्य कैसे आघात पहुंचा सकता है। सीनेट हाल में बच्चों की तरह पूरे विश्वविद्यालय के अध्यापकों द्वारा अपने को ‘‘हैप्पी बर्थडे टु यू’’ गवाकर विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक गरिमा को ध्वस्त कर नया अध्याय लिखा है। क्या एक शिक्षक को अपने पदोन्नति और प्रशासनिक पदों की भूख इतनी वैचारिक अकाल पैदा करती है कि सभी एक सुर में हैप्पी बर्थ डे प्रायोजित करते है। यह विश्वविद्यालय में किस प्रकार की परिपाटी स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। पूरा पढें
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पत्रकारिता के छात्र-शिक्षक आंदोलनकारी बने
< इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्र इन दिनों सड़क पर उतरे हुए हैं। उनका कहना है कि इविवि में पत्रकारिता डिपार्टमेंट के होते हुए उसके समानांतर स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण करने का क्या मतलब है? बीते कई दिनों से पत्रकारिता विभाग के सैकड़ो छात्र काली पट्टी बाधे अपने प्राध्यापक सुनील उमराव के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाल रहे हैं और विभिन्न विभागों की दीवारों पर अपने ज्ञापन को चस्पा कर रहे हैं। इन लोगों ने अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन एनआर फारूकी से पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा और विश्वविद्यालय में नये पत्रकारिता कोर्स के नाम पर हो रहे निजीकरण पर स्पष्टीकरण मांगा। छात्रों ने कला संकाय के सभी विभागों में जाकर छात्र-छात्राओं एंव प्राध्यापकों से अपने पत्रकारिता विभाग को बचाने और निजीकरण विरोधी अपने आन्दोलन के समर्थन में आने की गुजारिश की।
विभाग के छात्रों ने सवाल उठाया कि विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के समानान्तर जो पत्रकारिता की दुकान खोली जा रही है, आखिर उसमें कौन लोग पढ़ेंगे। जो डिग्री छात्रों को कुछ हजार रूपयों में मिल रही थी, उसके लिए लाखों रुपये विश्वविद्यालय क्यों वसूलेगा? केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद विश्वविद्यालय के पास अधिक संसाधन हो गये हैं और वो छात्रों को ज्यादा सुविधा मुहैया करा सकता है। पर विश्वविद्यालय आम छात्रों को विश्वविद्यालय पहुंचने से वंचित करना चाहता है। इस सिलसिले में छात्र अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन प्रो एनआर फारूकी से मिले और एकेडमिक काउंसिल की उस मीटिंग, जिसमें स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने की बात की गयी थी, पर स्पष्टीकरण मांगा। घेराव के दौरान प्रो फारूकी बीच बचाव करते हुए निजीकरण के पक्ष में उतरे जिसका छात्रों ने कड़ा विरोध किया और सवाल किया कि जो विभागाध्यक्ष कभी विभाग नहीं आते हैं वो हमारे भविष्य का निर्धारण कैसे कर सकते हैं? पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने निर्णय लिया है कि जब तक विश्वविद्यालय पत्रकारिता की नई दुकान 'बीए इन मीडिया स्टडीज' को बंद नहीं करता, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। पूरा पढें
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