- सामाजिक नेता सम्पत पाल को अराजक बताकर, इविवि प्रशासन ने परिसर में घुसने से रोका
खबरचौरा (इलाहाबाद), 12 सितम्बर 09. पत्रकारिता विभाग के समानान्तर स्ववित्तपोषित कोर्स शुरू किये जाने के खिलाफ छात्रों के निजीकरण विरोधी आंदोलन के समर्थन में आज गुलाबी गैंग की राष्ट्रीय अध्यक्षा सम्पत पाल भी आगे आयीं। पिछले दस दिनों से जारी छात्रों के इस आंदोलन पर चुप्पी साधे हुआ विश्वविद्यालय प्रशासन सम्पत पाल के आने की खबर सुनते ही इस कदर डर गया कि उन्हें परिसर के अंदर घुसने ही नहीं दिया और कहा अराजक लोगों को परिसर में नहीं जाने दिया जायेगा। गेट पर पुलिस प्रशासन के साथ विभाग के छात्रों की घंटों चली बातचीत के बाद संपत पाल को अंदन नहीं दिया गया तो छात्रों ने बाहर निकलकर गुलाबी गैंग के साथ गांधी भवन की ओर मार्च किया।
आज आंदोलन के दसवे दिन छात्रों ने गरीबों और दलितों के हक के लिए लड़ने वाली और गुलाबी गैंग की राष्ट्रीय अध्यक्षा सम्पत पाल को आमंत्रित किया था ताकि उनके माध्यम से अपने इस आंदोलन को गाॅव-देहात तक पहुंचाया जा सके। लेकिन तानाशाह विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस के बल पर उन्हें गेट पर रोक लिया। और जब छात्र उन्हें लिवाने के लिए गेट पर पहुंचे तो प्रशासन के नुमाइंदों ने कहा कि अराजक तत्वों को परिसर में घुसने नहीं दिया जायेगा और अगर छात्रों को उनसे बात करनी है तो उन्हें भी परिसर के बाहर जाना होगा। छात्रों ने गुलाबी गैंग के साथ विश्वविद्यालय प्रशासन के इस तानाशाही पूर्ण रवैये के खिलाफ नारे लगाते हुए गांधी भवन तक मार्च किया।
गांधी भवन पहुंचकर छात्रों ने गुलाबी गैंग को विश्वविद्यालय की कालाबाजारी से अवगत कराया। जिस पर सम्पत पाल ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा को बेचने की जो दुकान खोली जा रही है उससे हमारे गाॅव देहात के गरीब बच्चे कभी भी विश्वविद्यालय का मुंह नहीं देख पायेंगे। ये हम गरीबो को शिक्षा से वंचित करने की साजिश है जिससे हम लोग हमेशा दबे कुचले ही बने रहें और उनकी गलत नीतियों का कोई विरोध न कर सके। उन्होंने छात्रों को उनके इस संघर्ष में गुलाबी गैंग के हर कदम पर साथ देने का भरोसा दिलाया और कहा कि जरूरत पड़ी तो गुलाबी गैंग छात्रों के इस संघर्ष लिए संसद तक जाने को तैयार है।
‘‘सवाल पूंछते रहों’’ अभियान के तहत आज विभाग के छात्र मनोज मिश्रा ने पुस्कालय से सम्बंधित सवाल पूछे।
समस्त छात्र,
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
2 टिप्पणियां:
हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी
गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी
$िजंदगी के टु़कड़े.
कत्ल हुए जज़्बात की कसम खाकर
बुझी हुई न$जरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी...
जब बन्दूक न हुई
तब तलवार न हुई
तो लडऩे की लगन होगी
लडऩे का ढंग न हुआ
लडऩे की $जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....
हम लड़ेंगे
क्योंकि लडऩे के बगैर
कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
क्योंकि अभी तक
हम लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की
याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी...
ना$िजम हिकमत
संघर्ष जारी रहे, आवाज बुलंद रहे, कान फ़ाड़ दे, ऐसी हो धमक कदमों की, ना मानेंगें हार हम मतवाले अभी... पा लें "वो" जहां हम चाहे कभी...
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