-नाजिम हिकमत
हम लड़ेंगे साथी,
उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी,
गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी
जिन्दगी के टु़कड़े.
कत्ल हुए जज़्बात की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी...
जब बन्दूक न हुई
तब तलवार न हुई
तो लडऩे की लगन होगी
लडऩे का ढंग न हुआ
लडऩे की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....
हम लड़ेंगे
क्योंकि लडऩे के बगैर
कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
क्योंकि अभी तक
हम लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की
याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी...
प्रस्तुति- प्रतिभा कटियार
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