माननीय,
राष्ट्रपति/कुलाधिपति,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
पत्रकारिता विभाग के समानांतर एक और सेल्फ फायनेंस कोर्स चलाने और पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा करने के संदर्भ मंे विभाग के छात्रों द्वारा प्रेषित मांगपत्र
महोदय/महोदया,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के समानांतर एक और सेल्फ फायनेंस कोर्स चलाने और पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा करने के संदर्भ मंे विभाग के छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन के 15वें दिन विश्वविद्यालय के कुलपति को आंदोलन के पहले दिन 3 सितम्बर 2009 को सौंपी गयी हमारी मांगों के संदर्भ में आपकी तरफ से कोई जवाब न मिलने पर असंतोष लगातार बढ़ रहा है। हमारे आंदोलन को देशव्यापी जनसमर्थन मिल रहा है। राष्टीय हो चले इस आंदोलन का दायरा बढ़ने के कारण इस आंदोलन के जरिये उठायी गयी हमारी मांगों पर राष्टीयस्तर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। कृपया ध्यान दें हमारे पहले 3 सितग्बर को कुलपति महोदय इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद को सौंपा गया था, मांगपत्र में इन मांगो को सम्मिलित कर हमारी मांगे बिंदुवार निम्नवत हैं -
पिछले 25 साल से चल रहे पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की लगातार उपेक्षा की गयी है। अब इस विभाग के लिए यूजीसी के निर्धारित मानदण्डों के अनुरुप संसाधन ( कम्प्यूटर लैब, आडियो-विडियों लैब, फोटोग्राफी डार्करुम, लाईब्रेरी, क्लासरुम, और स्थायी प्राध्यापक ) की व्यवस्था तत्काल प्रभाव से की जाय। ये व्यवस्था द्वितीय छमाही छमाही (सत्र 2009-10 के लिए ) की समाप्ती से पूर्व हो जानी चाहिए।
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज के तहत इंस्टीट्यूट फाॅर फोटोजर्नलिज्म एण्ड विजुअल कम्यूनिकेशन में इसी सत्र (2009-10 सत्र) से शुरु किये जा रहे बीए इन मीडिया स्टडी के पाठ्यक्रम में प्रवेश पर तत्काल रोक लगाई जाय। अगर विश्वविद्यालय को स्नातक स्तर का ऐसा कोर्स चलाना है तो संबधित विभाग में ही पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था करके ही चलाया जाय।
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज की स्ववित्तपोषिता खत्म/समाप्त किया जाय। (राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय 2005 में इसकी स्थापना के समय जिस उद्देश्य से इसे सृजित किया गया था, मसलन विश्वविद्यालय अपने लिए खुद संसाधन जुटायेंगे, की प्रासंगिकता अब समाप्तप्राय है क्योंकि केंद्रीय दर्जा पाने के बाद से विश्विद्यालय ने धन न खर्चकर पाने की वजह से वार्षिक अनुदान की धनराशि हर साल वापस लौटाई है।) अब इन सभी पाठ्यक्रमों की फीस न्यायसंगत एवं तर्कसंगत की जाय और छात्रों के उपर बोझ डालने के बजाय विश्वविद्यालय की बैंकों में जमापूंजी के ब्याज पर इन कोर्सों को चलाया जाय बाद में विश्वविद्यालय के बजट में प्रावधान किया जाय।
यूजीसी के मानको के अनुसार किसी भी विभाग/संस्था के अध्यक्ष/डायरेक्टर को प्रत्येक दो वर्षों पर रोटेट करने का निर्देश का पालन किया जाय। इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज के डायरेक्टर को भी इस नियम के दायरे में लाकर तत्काल प्रभाव से हटा कर नयी नियुक्ति की जाय। क्या वजह है कि इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज के डायरेक्टर को यूजीसी के मानकों के अनुसार रोटेट नही किया गया। क्या इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज यूजीसी के मानकों से परे है?
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज चलाये रखने का तर्क संसाधनों के नाम पर दिया जाता है। विश्वविद्यालय के केेंद्रीय बनने के बाद से विगत तीन सालों का इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज की आय व्यय का ब्यौरा उपलब्ध कराया जाय।
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज के बारे में धारणा है कि इंस्टीट्यट अपना संसाधन स्वयं जुटाता है। विश्वविद्यालय के केंद्रीय बनने के बाद से अब तक इस इंस्टीट्यट को कितना अनुदान दिया गया है। और अन्य किन मदों में विश्वविद्यालय ने इंस्टीट्यट को अनुदान उपलब्ध कराया है अगर अनुदान उपलब्ध कराया है तो इसका ब्यौरा उपलब्ध कराया है तो फिर ये तर्क क्यों दिया जाता है कि इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज स्वयं के संसाधनों पर संचालित है।
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज में चल रहा प्रत्येक पाठ्यक्रम विषय अनुसार विश्वविद्यालय में यूजीसी के मानकों के अनुसान चल रहे विभागों में वहां के विभागाध्यक्षों के निर्देंशन में चलाया जाय। सेंटर के एकेडमिक प्रोग्राम को संदर्भित विभाग की बोर्ड आॅफ स्टडीज व उसी की बोर्ड आॅफ फेकल्टी से पारित होने के बाद शुरु किया जाय।
इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज के सभी डिप्लोमा के सभी अंकपत्र परीक्षा नियंत्रक के हस्ताक्षर के बगैर अवैध माना जाय। जिन पाठ्यक्रमों के अंकपत्रों पर परीक्षा नियंत्रक हस्ताक्षर करने से संवैद्यानिक रुप से इनकार करता हो उस पाठ्यक्रम को तत्काल बंद कर दिया जाय। विश्वविद्यालय में चल रही दोहरे अंकपत्र देने की व्यवस्था को समाप्त किया जाय।
व्यवसायिक कोर्सों के लिए यूजीसी/एआईसीटी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार संसाधनों (लैब, लाईब्रेरी और छात्र संख्या के अनुपात में स्थायी प्राध्यापक ) कि व्यवस्था की जाय।
प्रत्येक विभाग के अंतर्गत चलने वाले व्यवसायिक कोर्सों के लिए (इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज को समाप्त करने के बाद विषय संबधित विभाग मंे शुरु किए पाठ्यक्रम के संदर्भ में ) एवं नये कोर्स जो सत्र 2009-10 के लिए प्रस्तावित हंै, में प्रवेश प्रक्रिया तब तक न शुरु की जाय जब तक यूजीसी/एआईसीटी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार संसाधनों (लैब, लाईब्रेरी और छात्र संख्या के अनुपात में स्थायी प्राध्यापक ) की व्यवस्था न हो जाय।
व्यवसायिक कोर्सों (इंस्टीट्यट अॅाफ प्रोफेशनल स्टडीज को समाप्त करने के बाद विषय संबधित विभाग मंे शुरु किए पाठ्यक्रम को शामिल करते हुए विश्वविद्यालय के सभी व्यवसायिक कोर्से के संदर्भ में ) निर्धारित फीस ढांचे को बदला जाय। तर्कसंगत फीस ढ़ंाचे के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की जाय।
महोदय/महोदया से अपील है कि मामले की गंभीरता को समझते हुए अतिशीघ्र कार्यवाही कर देश के अन्य शिक्षण संस्थानों के लिए भी मिसाल के बतौर अनिवार्य रुप से बेहतर शैक्षणिक व्यवस्था की उपलब्धता सुनिश्चित करंे।
धन्यवाद
समस्त छात्र
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
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