20 सितंबर 2009

शिक्षा नीति पर श्वेत पत्र लाये सरकार

सुशांत झा
मैं ऐसी घटनाएं देखकर भौंचक्का हो जाता हूं। एक तरफ सरकार कहती है कि वो हर स्टेट में सेंट्रल यूनिवर्सिटीज का जाल बिछाएगी और माडेल कालेज खोलेगी लेकिन दूसरी तरफ प्राईवेट शिक्षा माफियाओं के लिए लाल कालीन बिछती है। अभी तक तो हमारे देश में बजट का 6 फीसदी ही शिक्षा पर नहीं जा रहा, दूसरी तरफ सरकार हजारो करोड़ का आंकड़ा दिखाकर कहती है कि हमने ये कर दिया। अरे खाक किया, 60 साल में आपने कुल जमा लगभग 450 यूनिवर्सिटीज बनाए हैं जिनमें से कई तो इस नाम पर कलंक है। सरकार ने कहा कि हम 30 सेंट्रल यूनिवर्सिटी खोलेंगे...जैसा हमारे ऊपर कोई एहसान हो रहा हो। हमारे देश में कई जगह 1-1, 2-2 करोड़ आबादी पर एक जेनेरल यूनिवर्सिटी है। लड़कियों के घर से ज्यादातर इलाकों में 15 किलोमीटर की दूरी पर एक कालेज है। बिहार में कमसे कम 5 किलोमीटर के दायरे में एक हाईस्कूल है-और सरकार है कि उसके नुमांइदे इलाहाबाद जैसी यूनिवर्सिटी में निजी माफियाओं को एफलिएसन दे रहे है। ऐसी सरकार से घिन आती है जो प्राईमरी एजुकेशन को महज आवश्यक मानकर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रही है। सरकार ने हर गांव में सर्वशिक्षा अभियान के तहत 3000-4000 में शिक्षा मित्रों की बहाली कर हमें खैरात में अक्षर ज्ञान दिया है जैसे पुराने सम्राट अकाल के वक्त कुछ अनाज बांट देते थे।

सवाल यहां प्राईवेट एजुकेशन के विरोध का नहीं, बल्कि सरकार की मंशा का है। अब वक्त आ गया है कि हमारे देश में रेल बजट की तरह अलग से शिक्षा बजट जारी की जाए और जनता से उसकी राय पूछी जाए।

सरकार निजी शिक्षा पर एक साफ नीति बनाए, उस पर एक श्वेतपत्र जारी करे। गरीबों और वंचितों के लिए जबतक उसमें कोई संभावना नहीं होगी, तबतक वो हमें मान्य नहीं। ऐसा बहुत दिनों के बाद हुआ है कि इलाहाबाद से कोई युवा आवाज सामने आई है जो एक मुद्दे को लेकर है। देश में निजी शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर ट्रस्टों, फाउंडेशनों और संस्थाओं के द्वारा जमीन की लूट जारी है दूसरी तरफ सरकार अपने संस्थानों द्वारा फीस की मनमानी नियम बनाकर इसमें भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है। हमें निजी शिक्षा से विरोध नहीं, विरोध इस बात से है कि सरकार अपना बजट क्यों नहीं बढ़ा रही है। वो सिर्फ आंकड़ा दिखती है, फीसदी नहीं बताती-न ही ये बताती है कि कितने लोगों को शिक्षा चाहिए और कौन जरुरतमंद है।

इलाहाबाद से शुऱु हुआ आंदोलन निश्चय ही एक नए बहस को जन्म देगा और बहरी सरकार को जगाएगा-हमें इसकी पूरी उम्मीद है।

(सुशांत झा आईआईएमसी के 2004-05 बैच के पासआउट हैं। इन दिनों वे एक निजी प्रोडक्शन कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे संपर्क करने के लिए jhasushant@gmail.com का सहारा लिया जा सकता है।)

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय