अर्जुन
मुक्तिबोध के जन्मदिवस पर शुरु हुआ भिलाई में जन संस्कृति मंच का 'मुक्तिबोध स्मृति फ़िल्म और कला उत्सव'( १३-१५, नवम्बर, २००९). प्रथम मुक्तिबोध स्मृति व्याख्यानमाला की शुरुआत की जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. मैनेजर पांडेय ने. उन्होंने मुक्तिबोध की प्रतिबंधित पुस्तक, "भारत: इतिहास और संस्कृति' को ही अपने व्याख्यान का विषय बनाते हुए उसकी मार्फ़त अपने समय को जानने समझने की प्रक्रिया को रेखांकित किया. उन्होंने मांग की कि १९६२ में मुक्तिबोध की पुस्तक, "भारत: इतिहास और संस्कृति " पर लगाया गया प्रतिबंध मध्य प्रदेश सरकार वापस ले. ऎसा करते ही अदालत द्वारा प्रतिबंध की अनुशंसा खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगी. बाद में इसे प्रस्ताव के रूप में सदन ने भी पारित किया. इस व्याख्यान से पहले मुक्तिबोध के बड़े बेटे रमेश मुक्तिबोध ने अपने पिता की कुछ यादों को श्रोताओं के सामने रखा जिसे सुनकर कईयों की आंखें छलछला आईं. उन्होंनें खासकर उन दिनों को याद किया जब १९६२ में यह प्रतिबंध लगा था, जब मुक्तिबोध का पक्ष सुनने को कोई तैय्यार न था, जब उनपर हमले हो रहे थे और कांग्रेसी सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की जनसंघ (आर.एस.एस.)की मांग को पूरा किया. इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे 'समकालीन जनमत' के प्रधान संपादक रामजी राय ने मुक्तिबोध की कविताओं से उद्धरण देते हुए यह स्थापित किया कि मुक्तिबोध आज़ादी के बाद की सत्ता-संरचना के सामंती और साम्राज्यवादी चरित्र को पहचानने वाले और उसकी फ़ासिस्ट परिणतियों को रेखांकित करने वाले हिंदुस्तान के पहले और सबसे ओजस्वी कवि-बुद्धिजीवी थे. रामजी राय ने स्पष्ट कहा कि मुक्तिबोध की ग्यानात्मक-संवेदना उनकी पार्टी की कार्यनीति के ठीक खिलाफ़ यह दिखला रही थी कि नेहरू-युग की चांदनी छलावा थी, कि देश का पूंजीपति वर्ग विदेशी पूंजी पर निर्भर था, कि पूंजीवादी-सामंती राजसत्ता साम्प्रदायिक ताकतों के आगे सदैव घुटने टेकने को शुरू से ही मजबूर थी, जैसा कि मुक्तिबोध की पुस्तक पर प्रतिबंध के संदर्भ में उद्घाटित हुआ और उसके पहले और बाद में भी जिसके असंख्य उदाहरण हमारे सामने हैं. इस सत्र में कवि कमलेश्वर साहू की पुस्तक 'पानी का पता पूछ रही थी मछली' का विमोचन प्रों पांडेय ने किया. सत्र में श्रीमती शांता मुक्तिबोध (ग.मा. मुक्तिबोध की जीवन-संगिनी)व श्री रमेश मुक्तिबोध के लिए सम्मान-स्वरूप स्मृति-चिन्ह श्री रमेश मुक्तिबोध को जन संस्कृति मंच की ओर से प्रो. मैनेजर पांडेय ने प्रदान किया. ग्यातव्य है कि श्रीमती शांता मुक्तिबोध अस्वस्थता के कारण स्मृति समारोह में नहीं आ सकीं. इसके ठीक बाद कवि गोष्ठी मे सर्वश्री मंगलेश डबराल. वीरेन डंगवाल और विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी कविताओं का पाठ किया. हमारे समय के तीन शीर्ष कवियों का मुक्तिबोध की स्मृति में यह काव्यपाठ छत्तीसगढ़ के श्रोताओं के लिए यादगार हो गया. इस काव्य-गोष्ठी के ठीक बाद मंच से गुरु घासीदास विश्विद्यालय में पिछले ५ सालों से मुक्तिबोध की कविताओं को दुर्बोध बताते हुए पाठ्यक्रम से हटाए रखने की निंदा की गई और उनकी कविताओं को पाठ्यक्रम में वापस लिए जाने की मांग की गई.
भिलाई -दुर्ग स्थित कला-मंदिर में इस समारोह में भाग लेने वाले तमाम कलाकारों के चित्रों के साथ महान प्रगतिशील चित्रकार चित्तो-प्रसाद के चित्रों की प्रदर्शिनी लगाई गई. हरिसेन, सुनीता वर्मा, तुषार वाघेला, गिलबर्ट जोज़फ़, एफ़.आर.सिन्हा, डी.एस.विद्यार्थी, रश्मि भल्ला, ब्रजेश तिवारी. अंजलि, पवन देवांगन, रंधावा प्रसाद ,उत्तम सोनी आदि चित्रकारों के चित्र प्रदर्शित किए गए. धनंजय पाल , कुलेश्वर चक्रधारी, ईशान, विक्रमजीत देव तथा खैरागढ़ से आए विद्यार्थियों की बनाई मूर्तियां भी प्रदर्शित की गईं. अर्जुन और महेश वर्मा के बनाए खूबसूरत कविता-पोस्टर भी प्रांगण में सजाए गए थे. १३ नवम्बर के दिन की अंतिम प्रस्तुति थी सुश्री साधना रहटगांवकर का सूफ़ी गायन. गायन का यह सत्र प्रख्यात गायिका गंगूबाई हंगल तथा इकबाल बानो की स्मृति को समर्पित था.
आगे पढ़ें जसम लखनऊ
2 टिप्पणियां:
बेहतर...
aur aaj yahi congress secular hone ke fasane sunati hai prathiband hatane ke liye ek sanskritik aandolan ki jaroot hai
एक टिप्पणी भेजें