दिनकर कपूर
गत 04 नवम्बर को आर्थिक सम्पादकों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए देश के कृषि मन्त्री शरद पवार ने महंगाई के सवाल पर कहा कि रबी की नयी फसल बाजार में आने से पहले तक वह कुछ नहीं कर सकते। चीनी के आसमान छूते दामों के सवाल पर उन्होंने कहा कि नयी चीनी आने तक दाम घटने की सम्भावना नहीं है। वहीं योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह आहलूवालिया ने उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि खाद्यान्न कीमतों को काबू करना काफी कठिन है, सरकार तमाम उपाय कर रही है, लेकिन कोई समाधान हमारे पास नहीं है। हालांकि उन्होेंने मौसम की मेहरबानी का हवाला देते हुए विकास दर को 2010 तक 8 प्रतिशत तक पहॅुचाने का राग एक बार फिर से अलापा। केन्द्र की कांगे्रस नेतृत्व वाली यू0पी0ए0 सरकार के आला मंत्रीयों द्वारा मंहगाई को रोकने के सवाल पर असमर्थता व्यक्त करने का सीधा-सीधा मतलब है कि आने वाले छः माह में महंगाई की मार झेर रही जनता को राहत मिलने की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि रबी की फसल बाजार में अप्रैल से पहले आने वाली नहीं है। यानि आज अरहर की दाल, चीनी, आलू व आटा जिस दाम में बिक रहा है, वह और भी महंगा होगा। ऐसी हालतों में एक बड़ी आबादी जिनकी आमदनी कम और अनियमित है, के लिए हालात भुखमरी जैसे होते दिख रहे हैं। आज आम भारतीय जनमानस के लिए महंगाई एक बड़ा सवाल बन चुकी है।
शासक वर्गों की तरफ से तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि महंगाई की वजह खराब मौसम से कम उत्पादन का होना है। जिसके चलते खाद्यान्नों की कीमतें ऊंचे दर पर जा पहुॅची है। सरकार द्वारा पेश किया जा रहा तर्क बेतुका ही नहीं बल्कि जनता की आंख में धूल झोकने वाला है। महंगाई के प्रश्न पर हम गहराई से विचार करें तो पायेगें कि एन0डी0ए0 और वर्तमान यू0पी0ए0 सरकारों ने कारपोरेट घरानों, मुनाफाखोरों, सट्टेबाजों और बिचैलियों को फायदा पहुॅचाने वाली जो गलत नीतियां अख्तियार की, महंगाई उसी की देन है। विश्व व्यापार संगठन में आत्मसमर्पण करने की नीति के चलते संसद से बीज पेटंट कानून पास किया गया। नतीजा हुआ कि खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले किसानों को हतोत्साहित किया गया और नकदी फसलों को प्रोत्साहित किया गया। इसका दूसरा पहलू और भी खतरनाक रहा। नकदी फसलों के चक्र में फंसकर किसान लाखों के कर्जदार हो गए और हताशा-निराशा में कर्ज के बोझ तले दबे लाखों किसानों ने आत्महत्या कर जाने गंवाई।
बेशर्मी की हद देखिए आज योजना आयोग के उपाध्यक्ष बेहद शातिराना ढंग से मौजूदा महंगाई की जवाबदेही किसानों पर डालनें में लगे हैं। कहा जा रहा है कि गन्ने के दाम बढ़ाए जायेगें तो चीनी के दाम बढ़गें। यानि चीनी के दामों में वृद्धि का जिम्मेदार किसान है। जबकि सच यह है कि चीनी मिल मालिकों को फायदा पहुॅचाने के लिए सरकार ने विदेशों में चीनी का निर्यात किया और जानबूझकर बाजार में चीनी की कमी कर दी परिणामस्वरूप चीनी मंहगी हुई। लेकिन सजा किसान को दी गयी। अपनी नयी एफ एण्ड आर (फेयर एण्ड रिजनेबुल) मूल्य निर्धारण अध्यादेश में सरकार ने गन्ने की कीमत 129.84 रूपये प्रति कुंतल तय की और साथ ही यह भी आदेश दे दिया कि इससे ज्यादा कीमत यदि कोई राज्य सरकार तय करती है तो केन्द्र व राज्य के मूल्य अंतर को भुगतान चीनी मिल मालिक नहीं करेगें उसे राज्य सरकार को वहन करना होगा। कृषि मूल्य आयोग स्वामीनाथन कमेटी और किदवई फार्मूला की मूल्य तय करने में निर्धारित मापदण्डों की पूर्ण रूप से अवहेलना कर दी गयी। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में गन्ना किसान आन्दोलनरत हैं। किसान भी बदहाल है और जनता भी बदहाल मजा मार रहे हैं चीनी मिल मालिक और सरकार चलाने वाले कथित देश निर्माता। इसी तरह आलूू के साथ भी हुआ जब पिछले वर्ष पर्याप्त भंडारण के अभाव में किसानों का लाखों टन आलू सड़ गया। किसानों की लागत तक वसूल नहीं हुयी। ऐसे हालत में किसानों की आलू की फसल का रकबा काफी कम हो गया आज नतीजा सामने है- बाजार में आलू 25/- रू0 किलों बिक रहा है। आलू किसानों की बर्बादी का काम और भी तेजी सेे आगे बढ़ रहा है। प्रदेश में आगरा से लेकर नोएडा तक यमुना एक्सप्रेस वे का निर्माण किया जा रहा है। इसके दोनो तरफ बड़े कारपोरेट घरानों को फायदा पहुॅचाने के लिए करीब 885 गांव का अधिग्रहण यमुना एक्सप्रेस वे विशेष औद्योगिक प्राधिकरण के नाम से किया जा रहा है। इस अधिग्रहण में आगरा जनपद के खंदौली ब्लाक के वह गांव भी शामिल हैं जो देश में सर्वाधिक आलू उत्पादित करते हैं। यानि कारपोरेट पूंजी के लिए खेती समाप्त कर दी जायेगी। सरकार के खराब मौसम की बात मान भी ली जाएं तो दुनिया में विश्व आर्थिक महाशक्ति का दावा करते अघाते नहीं इस देश के शासक कोई वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं कर पाते। क्यों आज भी खेती वर्षा के भरोसे ही है ? सच्चाई यह है कि खेती के बुनियादी ढांचे का आज भी अभाव है, यहाॅ तक की खाद, बीज और सिंचाई हेतु पानी तक सरकार नहीं दे सकी है। उस पर डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी ने किसानों की लागत बढ़ दी है। अब तो प्रधानमंत्री तक कह रहे हैं कि 2010 तक देश में मिल रही सब्सीडी समाप्त की जायेगी। मतलब खाद, बीज, डीजल और भी महंगा होगा।
दरअसल महंगाई को बरकार रखना रिएल एस्टेट बनाने के लिए आतुर कारपोरेट घरानांे के लिए जरूरी है। इसे बनाएं रख सरकार दो दिशाओं में काम कर रही है। एक तो इसकी जवाबदेही किसानों पर थोप उसे आम जनमानस में खलनायक बनाया जा रहा है। ताकि किसान अपने हितों के आन्दोलन के प्रति जनसमर्थन न जुटा सकें। दूसरा इसी बहाने किसानों की फसलों की ऐसी कीमत तय कर दी जाएं कि पहले से ही घाटे में चली आ रही खेती और भी घाटे का शिकार हो व किसानों की अरूचि इसमें पैदा हो जाए परिणामतः रिएल एस्टेट, एक्सप्रेस वे व सेज बनाने के लिए वह अपनी जमींन औने-पौने दामों में दे दें और यदि वह इसके विरूद्ध आंदेालन में भी उतरे तो जनसमर्थन के अभाव में उनका दमन करना आसान बन जाएं। बहरहाल महंगाई के खिलाफ आगरा से लेकर बलिया, सेानभद्र तक जनता सड़कों पर उतर रही है। 70 के दशक में देश में गुंजने वाला नारा ‘दाम बांधो-काम दो’ आज फिर से चर्चा में है। देश की वामपंथी, जनवादी, अम्बेडकरपंथी, समाजवादी, गांधीवादी व सामाजिक न्याय, किसान आंदोलन की ताकतें 07 अक्टूबर को जनसंघर्ष मोर्चा की तरफ से मावंलकर हाल दिल्ली में आयोजित ‘दाम बांधो-काम दो’ कन्वेशन में इकठ्ठा हुयी थी। जिन्होंने इस नारे पर पूरे देश में अभियान चलाने का निर्णय लिया है।
दिनकर कपूर जनसंघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें