20 दिसंबर 2009

घाटी से 30 हजार जवान हटेंगे, विशेषाधिकार बल नहीं


सरकार ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में सुधरते हालात को देखते हुए वहां से 30 हजार जवानों वाली सेना की दो डिवीजनों को हटा लिया गया है। लेकिन स्पष्ट किया कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को रद्द नहीं किया जाएगा। हालांकि सरकार ने इस विवादास्पद कानून में कुछ संशोधन के लिए विस्तृत चर्चा की वकालत भी की है। शुक्रवार को रक्षा मंत्री एके एंटनी ने मानवाधिकार पर आयोजित एक सेमिनार के मौके पर पत्रकारों से कहा, सेना ने खुद पहल करते हुए जम्मू कश्मीर से दो डिवीजनों (30 हजार जवान) को हटा लिया है। एक डिवीजन को पिछले साल हटाया गया था, जबकि दूसरी को इस साल। हालात में सुधार को देखते हुए डिवीजनों को राज्य से हटाया गया है।

एंटनी ने कहा कि जब भी राज्य सरकार को लगेगा कि वह सेना के बिना स्थिति संभाल सकती है तो और बलों को वहां से हटा लिया जाएगा। लेकिन राज्य में जब तक सेना है, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून नहीं हटाया जा सकता। विशेष अधिकारों के बिना सेना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि कानून में कुछ संशोधनों के लिए विस्तृत चर्चा जरूर की जा सकती है। राज्य के हालात में सुधार का श्रेय सशस्त्र बलों की मौजूदगी को देते हुए उन्होंने कहा, सशस्त्र बलों की मौजूदगी और उनके समर्पण तथा परिश्रम के कारण हम आतंकी हमलों के प्रयास रोकने में सफल हो पाए हैं। यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में पहली बार हालात सुधर रहे हैं और घुसपैठ तथा हिंसा की घटनाओं में भी कमी आ रही है।त्न एंटनी ने कहा कि आंतरिक सुरक्षा के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती त्नअंतिम उपायत्न होगी। इसके लिए सेना का इस्तेमाल करने में सरकार और सशस्त्र बल कतई खुश नहीं होते।

इससे पहले सेमिनार में उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर और पूवरेत्तर में सशस्त्र बल कठिन परिस्थितियों में ही ऑपरेशन एएफएसपीए का इस्तेमाल करेगा। हाल के दिनों में जम्मू कश्मीर और पूवरेत्तर में सुधरते हालात को देखते हुए एएफएसपीए हटाने की मांग लगातार उठ रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि इन विशेष प्रावधानों के दुरुपयोग रोकने का दायित्व सशस्त्र बलों का ही है। एंटनी ने कहा, मैं यहां जोर देकर कहना चाहता हूं कि हम किसी तरह के दुरुपयोग के मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में जरा भी नहीं हिचकेंगे। हमें मानवाधिकार के किसी भी मामले के खिलाफ जरा भी ढिलाई नहीं बरतने की नीति पर काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आतंकवादी चाहते हैं कि सुरक्षा बल कोई गलती करें जिसे मानवाधिकार उल्लंघन के तौर पर पेश किया जा सके। हमारे सशस्त्र बलों को किसी भी अज्ञात और बेरहम दुश्मन के खिलाफ अभियान के दौरान सेना के कम से कम इस्तेमाल और बेहतर विश्वास बहाली के दोहरे सिद्धांतों पर सावधानीपूर्वक काम करना चाहिए। आंतरिक सुरक्षा में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और आतंकवादियों को विदेशी सहयोग मिलने के कारण भी आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालना जटिल हो जाता है। एंटनी ने कहा, भारत आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित रहा है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी आतंक के खिलाफ जंग में वैश्विक एकजुटता के लिए देर से जागा है। क्या भारतीय सेना युद्ध करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है, इसके जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा कि यह बात पूरी तरह सच नहीं है, खासकर ऐसे मौके पर। हमारी सशस्त्र सेना पूरी तरह सक्षम है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी तरह की चुनौती से निपटने के लिए तैयार है।

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