15 दिसंबर 2009

छात्रों की हालत बिगड़ी, हड़ताल पर असर नहीं

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, वीएन राय ने दलित छात्र राहुल कांबले मसले पर जिस अंसंवेदनशीलता का परिचय दिया है, वह निंदनीय है। राहुल कांबले मामले में घपलेबाजियों का पिटारा खुल चुका है। अनुवाद विभाग में कुलपति की शह पर आत्मप्रकाश श्रीवास्तव की अकादमिक अनियमितताओं एवं दलित विरोधी चेहरे का पर्दाफ़ाश हो चुका है। अकादमिक अनियमितताओं के मसले पर वीएन राय ने विश्वविद्यालय में अभी तक जितनी कमेटियां बनायी हैं, उनकी रिपोर्टों का कुछ अता-पता नहीं है। राहुल कांबले के ताज़ा मसले पर भी जो जांच कमेटी बैठायी गयी थी, उसकी रिपोर्ट को उजागर नहीं किया जा रहा है। विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि कमेटी की रिपोर्ट अनुवाद विभाग के अधिष्ठाता प्रो आत्मप्रकाश के ख़‍िलाफ़ है। आख़ि‍र वे कौन से कारण हैं कि वीएन राय आत्मप्रकाश को बचा रहे हैं? गौरतलब है कि प्रो आत्मप्रकाश हिंदी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति रह चुके हैं। सूत्रों से यह भी पता चला है कि वीसी आफ़िस में जिस स्वर से प्रो आत्मप्रकाश कुलपति से बात कर लेते हैं, वह दूसरे प्रोफ़ेसरों के लिए संभव नहीं। इन्‍हीं संबंधों का फ़ायदा अनुवाद विभाग को मिला है। आत्मप्रकाश के किसी भी प्रोजेक्ट को वीएन राय मना नहीं करते। सूत्रों का कहना है कि कुलपति रहते हुए कार्यालय के सारे काम-काज को आत्मप्रकाश ने भली-भांति समझ लिया है। जिस वजह से वीएन राय उनके इन अनुभवों का उपयोग करते आये हैं। सूत्रों का यहां तक मानना है कि इस क्रम में आत्मप्रकाश के हाथ वीएन राय की कमज़ोर नस पकड़ में आ गयी। शायद यही कारण है कि वीएन राय जैसे सख़्त व्यक्ति आत्मप्रकाश के हाथों की कठपुतली बन कर रह गये हैं।

पिछले सात दिनों से छात्र आमरण अनशन पर हैं। आंदोलन धीरे-धीरे व्यापक होता जा रहा है। कुलपति द्वारा आंदोलन को कुचलने के अलोकतांत्रिक हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। वीएन राय अपने पूर्व पुलिसिया अनुभवों और संपर्क सूत्रों का इस्तेमाल कर तानाशाही रवैया अपना रहे हैं। वर्धा में ट्रेनी पुलिस अधिक्षक के पद पर तैनात अविनाश कुमार हिंदी विश्वविद्यालय के परिसर में आ धमकते हैं, जहां वे पुलिसिया गुंडई से महौल बिगाड़ने और आंदोलन समाप्त करने का अमानवीय कार्य कर रहे हैं। न्याय के लिए संघर्ष कर रहे राहुल कांबले और अन्य साथियों की हालत नाजुक होने के कारण अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इन छात्रों के स्थान पर आंदोलन को दूसरे साथी आगे बढ़ा रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन इस क़दर ग़ैरज़‍िम्मेदार है कि छात्रों के स्वास्थ परीक्षण की सुविधा मुहैया नहीं करवायी। गांधी जी के नाम से चल रहे इस संस्थान में, छात्र आंदोलन के लिए उनके अहिंसक टूल का प्रयोग कर रहे हैं।

पूरे परिसर में जिस प्रकार का माहौल बना हुआ है, उस स्थिति में कुलपति की अनुपस्थिति अफ़सोसजनक है। संवेदनहीन कुलपति को विश्वविद्यालय की अपेक्षा अपने गांव जोकरहा (आजमगढ़) में होना ज़्यादा ज़रूरी लगता है।

छह दिसंबर को पूरे भारत में बाबा साहब अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी जाती है। हमारी सरकारें, स्वयंसेवी संगठन और अकादमियां, उन्‍हें उनके मानवीय सरोकारों के लिए याद करती है। विश्वविद्यालय में भी ऐसा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस कार्यक्रम में शामिल हुए व्यक्तियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। यह क्या साबित करता है?

मित्रो, व्यवस्था के ख़‍िलाफ़ इस संघर्ष में आप भी अपने स्तर से सहयोग करें ताकि भविष्य में सड़ी व्यवस्था का शिकार कोई दूसरा छात्र न हो।

वर्धा मेल

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