आयोग को भेजे पत्र में कहा गया है कि जिस रकबा नंबर 527 को दुर्गा प्रसाद यादव ने अपना बता कर सुभाष चंद्र यादव की जमीन पर कब्जा किया, उस जमीन को सरकार ने 28 मई 1979 को पब्लिक गजट करके सड़क बना दी थी। जिसे बाद में फरवरी 2008 में दुर्गा प्रसाद यादव और शिव कुमार चैहान ने अपने नाम करवा ली। ऐसे में सवाल उठता है कि जो जमीन सरकारी है उसको कोई व्यक्ति कैसे अधिग्रहित कर सकता है और वह कैसे किसी के नाम हो सकती है। पीयूसीएल ने इसे राजस्व धोखाधड़ी का गंभीर मसला बताते हुए इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग की।

इस पूरे प्रकरण पर भाजपा नेता प्रभुनाथ सिंह ने कहा कि यही नहीं जिले में पच्चासों जगह राजस्व मंत्री के इशारे पर ही नहीं उनके व उनके भाई शिवकुमार चैहान के नाम पर सरकारी व आम लोगों की जमीनों पर जबरन कब्जा किया जा रहा है। उनके गांव के लोग तक आतंकित हैं कि कब किसकी जमीन पर मंत्री जी कब्जा करने लगें। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद उन्होंने अपने कोल्ड स्टोरेज के पीछे दो करोड़ की तीन एकड़ जमीन पर कब्जा किया है और प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। राजस्व मंत्री के खौफ से गांव के लोग आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करते जो करते हैं उन पर प्रशासन फर्जी मुकदमा लाद देता है। इसकी तस्दीक उनके गांव के श्रीराम चैहान का नौ-दस महीना जेल में रहना करता है। लेखपाल ने पोखरी पाटने का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डलवा दिया था। जमीन मुदद्े पर सपा से बागी हुए एहसान खान ने बताया कि पिछले बारह दिन से मैं जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी मशीनरी के बलबूते किये जा रहे जमीन कब्जा के खिलाफ आमरण अनशन पर हूं। चाहे सपा की सरकार रही हो या फिर बसपा की आजमगढ़ में सभी ने जमीन कब्जा का खुलेआम धंधा चला रखा है।
राजस्व मंत्री और विधायक के भुक्त भोगी शत्रुघ्न चैहान ने बताया कि हमारी पच्चीसों साल पुरानी जमीन जो कि मेरे बेटों के नाम थी उसे फागूचैहान ने अपने करीबी शिवमूरत चैहान के नाम चकबंदी बीतने के छह महीने बाद करवा दिया। तकरीबन पचास लाख की इस जमीन पर कोर्ट के आदेश के बाावजूद जिलाधिकारी एफआईआर दर्ज नहीं कर रहे हैं। कभी कहते हैं कि मुख्य राजस्व अधिकारी करेंगे तो कभी जिला उप संचालक चकबंदी। वे आगे कहते हैं कि यही नहीं उनके गांव बलरामपुर में उनके दरवाजे के सामने तक की जमीन विधायक दुर्गा प्रसाद यादव कब्जा कर चुके हैं। गांव में वे अपनी माता के नाम से मां मुराती महाविद्यालय, जो उनकी पत्नी सुमन यादव के नाम से है, के नाम पर गांव की पुरानी सड़क जिसे उन्होंने खड़जा से पिच करवाया था उस पर भी कब्जा कर लिया है। पूछने पर कि आखिर विरोध क्यों नहीं हो रहा है तो वे कहते हैं ‘जब पूरे सूबे के वे खुद ही राजस्व मंत्री हैं तो सड़क-दुआर क्या नदी-पहाड़ भी वे अपने नाम करवा ले कौन उनको बोलने जा रहा है। रही बात हम लोगों की कहां जांय जीवन भर जाति के नाम पर क्षेत्र के नाम पर इन्हीं लोगों को वोट दिया तो अब कोई क्यों हमारी मदद करेगा।’ आजमगढ़ में जातीय अस्मिता का सबसे दिलचस्प पहलू उभर कर सामने आ रहा है कि अस्मितावाद ने विरोध की पूरी चेतना को कुंद कर दिया है।
साभार जनादेश
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