02 फ़रवरी 2010

आजमगढ़ में आतंकवाद के नाम पर मानवाधिकार उत्पीड़न और कांग्रेस की भूमिका

मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) आप सभी लोकतंत्र पसंद फासीवाद विरोधी नागरिकों के सामने पिछले दो सालों में किस तरह आजमगढ़ के निर्दोष युवकों का आतंकवाद के नाम पर मानवाधिकार हनन और उसकी जिम्मेदार कांग्रेस सरकार की भूमिका पर एक रिपोर्ट जारी कर रहे हैं। इस रिपोर्ट की जरुरत और प्रासंगिकता आज इसलिए है कि जिस कांग्रेस सरकार ने आजमगढ़ को मानवाधिकार हनन का मरकज बनाया उसके कथित राजकुमार और उनके चट्टे-बट्टे अपनी उसी चैरासी की सियासत को आजमगढ़ में दोहराना चाहते हैं। इसी के चलते पिछले दिनों कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के बीच अपना मुंह दिखाने के लिए सांप्रदायिकता विरोधी मोर्चा नाम का एक भ्रामक मुखौटा और अवसरवादी संयोजक अमरेश मिश्र का चुनाव किया। जिस दिन अमरेश के इस मोर्चे के संयोजक बनने की खबर आयी उसी दिन उनके ससुर की जमानत की खबर भी आई जो एक गंभीर मसले में फसे थे। यह महज संयोग नहीं था बल्कि यह कांग्रेसी न्याय का समीकरण था।
अल्पसंख्यकों को रिझाने की कवायद पिछले दिनों लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के जरिए किया गया पर आजमगढ़ के मुसलमानों के बिना यह कांग्रेसी अभियान सफल नहीं हो सकता था। बहरहाल 19 सितंबर को कांग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार व दिल्ली सरकार की देख-रेख में बाटला हाउस में फर्जी मुठभेड़ कांड हुआ। फर्जी इस तथ्य के आधार पर कि साजिद और आतिफ मारे गए दोनों बच्चों के शरीर पर लगी गोलियों और तमाम सरकारी पुलिसिया अन्र्तविरोधी बयानों जिस पर देश भर के मानवाधिकार संगठनों और यहां तक कि पक्ष-विपक्ष की राजनैतिक दलों ने सवाल उठाया और न्यायिक जांच की मांग की थी। वर्तमान सांप्रदायिकता विरोधी मोर्चा के संयोजक जो न जाने तब कहां थे उन्हें खुद भी मालूम नहीं होगो ने भी कांग्रेस पर सवाल उठाया था इतना ही नहीं मुंबई हमले के दौरान मारे गए हेमंत करकरे की मौत पर भी उन्होंने कांग्रेस पर सवाल उठाया था। इस मुठभेड़ में कांग्रेस इतना फस गयी कि उसने पार्टी के उदार छवि वाले नेताओं अर्जुन सिंह, सलमान खुर्शीद और कपिल सिब्बल को आगे कर बाटला हाउस पर संदेह वाले बयानों से मुस्लिमों के गुस्से को कम करने की कोशिश की।
इस कथित मुठभेड़ के बाद तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल लौह पुरुष हो गए और कांग्रेस ने आजमगढ़ के मासूमों की ठंडे दिमाग से की गयी हत्या को आतंकवाद पर अपनी और अपनी सरकार की जीत मानी। इस कथित मुठभेड़ वाले दिन शिवराज पाटिल और शीला दिक्षित को मुठभेड़ की मानिटरिंग करते हुए टीवी स्क्रीनों पर दिखाया गया। अगर इसका जवाब कांगे्रस के पास है तो वह दे। जिसको पुलिस का मनोबल गिरने की चिंता है वो इसकी जांच कैसे करवायेगी कि सच तो है कि सरकार बचाने के लिए एक पुलिस वाले और दो मासूमों को बाटला हाउस में कांग्रेस ने बलि दे दी।
अब कांग्रेस जिस तरह आजमगढ़ में संजरपुर समेत उन तमाम गांवों में जाने की कवायद में है तो उससे हमारा सवाल है कि बाटला हाउस दिल्ली में है और उसकी सत्यता एल 18 से पता चलेगी या फिर कांग्रेस की सरकार चलाने वालों से चलेगी तो फिर कांग्रेस आजमगढ़ में क्या खोजने आ रही है। अगर यह बात उसे नहीं मालूम है तो हमने इस रिपोर्ट और देश के तमाम मानवाधिकार संगठनों ने इस बात को कही है इसे कांग्रेस अब जान ले।
आजमगढ़ के पांच युवकों पर महाराष्ट् में मकोका लगा है। वहीं दूसरी तरफ प्रज्ञा ठाकुर समेत तमाम लोगों पर से मकोका हटाया गया। इसका क्या जवाब है कांग्रेस के पास। कांगे्रस शासित राजस्थान में बकरीद के दिन नवाज अदा नहीं करने दी गयी और आजमगढ़ के बच्चों को मारा-पीटा गया। कोर्ट में पेशी के दौरान मारा-पीटा जाता है। राजस्थान जैसे गर्म प्रदेश में गर्मी के दिनों में 23-23 घंटे कालकोठरियों में रखकर प्रताड़ित किया जाता है। इसकी सूचना आजमगढ़ आ रहे दिग्विजय सिंह, रीता बहुगणा और अशोक गहलोत को पीड़ित पक्ष ने संजरपुर संघर्ष समिति के द्वारा दी थी। कांग्रेस को यूपी में उबारने आए दिग्विजय सिंह इस पर जवाब दे कि उन्होंने इस पर क्या कार्यवायी की।
कानपुर में हुए धमाके के बाद श्रीप्रकाश जायसवाल ने सीबीआई जांच कराने की बात कही थी जिस पर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कहा था कि कचहरी और रामपुर की भी जांच आगे हो। कांग्रेस पीछे क्यों हट गयी जवाब दे। सच तो यह है कि जांच करवाती तो सामने आता कि उसके जाबांज सिपाही नए साल के जश्न में नशे में धुत होकर अपने में ही गोलियां चला ली और शहीद हो गए। और इस सत्य को वह देश की जनता के सामने नहीं लाना चाहती।
गुजरात के पीसी पांडे जिन पर देश भर के मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि वे 2002 के दंगों में लिप्त थे के कहने पर कि सिमी ने आईएम बना लिया है। क्या इसकी जांच कांगे्रस करवाने की हिम्मत रखती है क्योंकि उसने आईएम के नाम पर ही अपना आतंकवाद का अभियान चलाया जिसके शिकार आजमगढ़ के बच्चे हुए। यहां बच्चे बार बार इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि सभी की औसत उम्र 25 से 27 साल थी और जिस साजिद को देश के तमाम धमाकों का आरोपी बता कर बाटला में मारा गया 17 साल का था। दो बच्चे मारे गए सत्रह गिरफ्तार और 11 गायब हैं। एक-एक बच्चे पर पचास-पचास केशें है जो लड़ते-लड़ते जेलों में जीवन गुजार देंगेें। और जो गायब हैं उन पर सरकार लाखों रुपए ईनाम रखकर अपनी बहादुर पुलिस को प्रमोशन देगी देखते-देखते कांग्रेस ने आजमगढ़ को देश का सबसे खतरनाक और संजरपुर को एक कलंकित पहचान दे दी। और इस बात को मजबूत आधार दिया कि देश का मुसलमान आतंक का औजार ही नहीं इसे संचालित भी करता है। और इसी के सहारे कांग्रेस सत्ता में बनी रहेगी।
आजमगढ़ की हमारे लोकतंत्र की नींव है जिसके मासूमों की शहादत पर हमारा साठ साला लोकतंत्र सासें ले रहा है। कांगे्रस ने पंजाब, जम्मू कश्मीर जैसे हालात पिछले दो सालों में आजमगढ़ का बना दिया है। क्या कांग्रेस जिसने आतंकवाद का नाम आजमगढ़ पर चस्पा किया है उसे मिटा पाएगी। अगर कांगे्रस को इस लोकतंत्र में आस्था है तो वह इन सवालों का जवाब और अपनी करतूतों को जगजाहिर करके आजमगढ़ आए।

- द्वारा जारी

चितरंजन सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, मसीहुद्दीन संजरी, तारिक शफीक, बलवंत यादव
पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) प्रदेश कार्यकारिणी सदस्यों द्वारा जारी।

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय