लखनऊ, (जनसत्ता)। सोनभद्र में पुलिस के फर्जी मुठभेड़ और बसपा के दबंग नेताओं के खिलाफ आवाज उठाने वाली पत्रकार सीमा आजाद गिरफ्तार कर जेल भेज दी गई है । शनिवार को जब वे दिल्ली के पुस्तक मेले से इलाहाबाद लौट रही थी तभी स्टेशन पर ही उन्हें गिरफ्तार किया गया । पीयूसीएल की संगठन सचिव और पत्रकार सीमा आजाद और उनके पति विश्वविजय को पुलिस ने माओवादी बताया ।दोनों को पुलिस ने बाद में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया और उन्हें १४ दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया । पुलिस का दावा है की विश्वविजय मओवादिओं की बैठक में भाग लेने जा रहे थे । इस मुद्दे पर मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस की कार्यवाही का तीखा विरोध किया है । पीयूसीएल के महासचिव चितरंजन सिंह ने कहा -पुलिस का यह दावा की सीमा आजाद माओवादी है पूरी तरह गलत है । प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ से लेकर दमन उत्पीडन का सवाल उठाने के चलते उन्हें माओवादी बताया जा रहा है ।पूरे मामले की जानकारी मानवाधिकार आयोग को भेज दी गई है । इससे पहले पुलिस मानवाधिकार कार्यकर्त्ता रोमा को माओवादी बताते हुए उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तेमाल कर चुकी है ।इस मामले मुख्यमंत्री मायावती के दखल के बाद वे बच पाई थी ।
उत्तर प्रदेश में मानवाधिकारों के पक्ष में आवाज बुलंद करना पुलिस को रास नहीं आ रहा। शनिवार को एक ओर जहां इलाहाबाद की पत्रकार, मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) की राज्य कार्यकारिणी सदस्य सीमा आजाद व उनके पति विश्वविजय को आंध्र प्रदेश पुलिस और उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन से माओवादी बताकर उठा लिया, वहीं दूसरी ओर तीन फरवरी को संजरपुर में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के सामने बाटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल खड़े करने पर पीयूसीएल के प्रदेश संयुक्त मंत्री मसीहुद्दीन संजरी पर गुंड़ा एक्ट लगा दिया गया।
पीयूसीएल के संगठन मंत्री राजीव यादव ने कहा-‘उत्तर प्रदेश में पुलिस मानवाधिकारों के लिए उठने वाली आवाज को हर कीमत पर दबाना चाहती है। शनिवार को मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद और उनके पति जब दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले मे भाग लेकर लौट रहे थे पुलिस ने उन्हे माओवादी बताकर बिना महिला पुलिस की उपस्थिति में उठा लिया हथकड़ी लगाकर अदालत में पेश किया’। सीमा आजाद 'दस्तक' नाम की मासिक पत्रिका की संपादक भी हैं। उनके पति विश्वविजय, इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में छात्रनेता और बाद में मजदूरों को संगठित करते रहे हैं। जबकि पुलिस उन्हें माओवादी बताकर आरोप लगा रही है की वे माओवादियों को पनाह देते थे ।
पीयूसीएल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से इस घटना की शिकायत की है। ये मानवाधिकार संगठन लगातार उत्तर प्रदेश पुलिस के निशाने पर रहा है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर,चंदौली और सोनभद्र आदि जिलों मे पुलिस के माओवादी गतिविधियों मे लिप्त बताकर मजदूरों को गिरफ्तार करने के खिलाफ पीयूसीएल लगातार आवाज उठाता रहा है।
साभार विरोध
1 टिप्पणी:
यह ख़बर आज जनसत्ता में पढ़ी
यह बेहद निंदनीय और चिंताजनक ख़बर है।
मैं अपना विरोध दर्ज़ कराता हूं
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