09 मार्च 2010

कहां गई हिस्सेदारी ?

- मण्ड़ल आयोग के सदस्य एल.आर.नायक की रिर्पोट

दिनकर कपूर
मेरी यह राय है कि जनता का यह अभागा यानी ‘पद दलित पिछड़ा वर्ग’ जो कि भारी पिछड़ेपन से ग्रस्त है, के ज्ञानार्जन और उत्थान में तब तक समय लगेगा जब तक कि राष्ट्रीय स्तर पर उनके सुरक्षात्मक उपाय और लाभ के लिए व्यापक स्तर पर संगठित प्रयास नहीं किये जाते है। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि सचेत ढ़ग से सामान्य सूची से अलग कर उनके लिए पृथक श्रेणी बना दी जाय, जिससे कि वह अपने समान लोगों के साथ स्वथ्य प्रतियोगिता कर सकें, ताकि सुरक्षात्मक उपायों का लाभ उन्हें मिल सके। सामान्य सूची के शेष समुदायों के लिए भी इसी वजह से अलग श्रेणी बना दी जाय ताकि उनमें भी स्वस्थ प्रतियोगिता लायक माहौल बन सके। यह तरीका समूचे राष्ट्र के हित में जरूरी है। मेरी राय में ‘मध्यवर्ती पिछड़ा वर्ग’ वह है जिनका परंपरागत पेशा खेती, बागवानी, पान उत्पादक, दर्जी, जुलाहा, लघु कृषि आधारित व्यापारिक गतिविधि, मंदिर सेवा, ग्रामीण उद्यम जैसे ताड़ी व्यापार, तेल व्यापार, ज्योतिष आदि था, जो अति प्राचीन काल से ही उच्च जातियों के साथ सह-अस्तित्व में रहे है, इस लिए बेहतर साहचर्य को आत्मसात करने का कुछ अवसर उनके पास था। इसके बजाय तमाम अभागे ‘पद दलित पिछड़ा वर्ग’ के लोग, जिन्हें भारतीय समाज के साथ घुलने-मिलने से या तो रोका गया या निषिद्ध किया गया और यहां तक कि सीधे-सीधे बहिष्कृत रखा गया। उनके परंपरागत पेशों, जरायम और खानाबदोशी के साथ सामाजिक कलंक जुड़ा होने के फलस्वरूप वह अथाह रूप से निम्न सामाजिक स्तर पर बने रहे। सामन्यतया वे थे, पूर्वजरामयपेशा जनजातियॉ, खानाबदोश एवं घुमंतू जनजातियां, बेलदार, मछुवारे, नाविक, पालकी कहार, नोनिया, धोबी, गड़रिया, नाई, जमादार, टोरी साज, खाल और चर्मशोधक, भूमिहीन खेत मजदूर, पनिहारा, ताड़ी लगाने वाले, ऊंटचरवाहे, सुअर पालक, बैलगाड़ी चलाने वाले, जंगली सामान संग्रह करने वाले, शिकारी एवं बहेलिया, भूड़भूजे, आदिम जनजातियां (अनु0 जनजाति में वर्गीकृत नहीं) बाहरी वर्ग (अनु0 जाति में वर्गीकृत नहीं) और भिक्षुक समुदाय आदि।............................ यहां यह देखने वाली बात है कि ‘पद दलित पिछड़ा वर्ग’ की आबादी 25.56 प्रतिशत और ‘मध्यवर्ती पिछड़ा वर्ग’ की 26.44 प्रतिशत है। बेशक यह मानने योग्य बात है कि आबादी के लिहाज से दोनों श्रेणियां एक-दूसरे के बराबर है। विस्तृत विचार-विमर्श, जिसमें मैं पूर्ण सहमत हूॅ, के बाद आयोग ने केन्द्र सरकार के अधीन सभी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की है। आगे इसने सिफारिश की है कि सभी वैज्ञानिक, तकनीकी, व्यवसायिक संस्थाओं, जो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा संचालित है, में सीटों को आरक्षित करना चाहिए और आरक्षण की मात्रा सरकारी नौकरियों में वही यानी 27 प्रतिशत होना चाहिए। सभी औचित्य और तथ्यों के लिहाज से ‘पद दलित पिछड़ा वर्ग’ पिछड़ेपन के मामले में अनुसूचित जनजातियों, एवं अनुसूचित जातियों के समान ही है। मैं 27 प्रतिशत आरक्षण में से 15 प्रतिशत आरक्षण उन्हें सरकारी नौकरियां और शैक्षणिक संस्थाओं, जैसा कि ऊपर वर्णित है, दोनो में ही देने की सिफारिश करता हंू। उन्हें अनु0 जाति/अनु0 जनजाति की तरह ही अन्य सभी रियायतें भी दी जायं। उच्चतम न्यायालय द्वारा 1992 में इन्द्रा साहनी बनाम भारत सरकार मुकदमे में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ के अन्दर श्रेणीकरण करने के संबंध में दिए गए फैसले का अंश- पैरा 850 (5) संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के लक्ष्यों के लिए पिछड़ावर्ग के अंदर अतिपिछड़ा वर्ग जैसा वर्गीकरण करने में कोई संवैधानिक रोक नही है। यह फर्क सामाजिक पिछड़ेपन की मात्रा पर आधारित होना चाहिए। इस तरह के वर्गीकरण के मामले में यह जरूरी है कि तमाम पिछड़े वर्गों में आरक्षण का बंटवारा उचित ढंग से किया जाय, कही ऐसा न हो कि एक या दो वर्ग ही बाकी पिछड़े वर्गों को निःसहाय छोड़कर समूचा कोटा चट कर जाय। ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर रखने के लिए सामाजिक उत्थान के सूचकांक के बतौर आर्थिक कसौटी को अपनाया जा सकता है। इसी मामले में हुए आदेश में कहा गया कि राज्यों द्वारा पिछड़े वर्ग को पिछडे और अति पिछडे में विभक्त करने में कोई संवैधानिक और कानूनी बाध्यता नहीं है। मण्डल कमीशन के सदस्य एल. आर. नायक की यह मंशा कि पिछड़े वर्ग में अतिपिछड़े वर्ग को अलग आरक्षण कोटा मिले नहीं तो उन्हें सामाजिक न्याय नहीं हासिल होगा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अतिपिछड़े समाज को आज तक सामाजिक न्याय हांसिल नहीं हो सका, न तो उनकी सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी हुई और न ही सत्ता संरचना में उनकी भागेदारी। राष्ट्रीय स्तर पर पिछले 60 वर्षों में 50 वर्ष कांग्रेस ने दिल्ली में राज किया, लेकिन कांग्रेस ने अतिपिछड़े वर्ग के आरक्षण कोटे को अलग करने की जरूरत महसूस नहीं की। वैसे सभी लोग जानते है कि कांग्रेस, भाजपा जैसी पार्टियां समाज के कमजोर तबकों, दलितों, अदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को कभी भी सामाजिक न्याय देना नहीं चाहती। यदि इतिहास पर भी गौर किया जाए तो डा0 अम्बेडकर के संघर्षों के दबाव में ही कांग्रेस ने अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान में स्वीकार किया था। लेकिन वह भी हर दस वर्षों में पुर्नसमीक्षा के साथ ही पिछड़े वर्ग के सामाजिक न्याय के प्रश्न को तो वे लगातार टालती ही रही। आजादी के तुरन्त बाद पिछड़े वर्ग के सामाजिक न्याय के लिए बनी काका कालेकर की रिर्पोट को कांग्रेस ने ठण्ड़े बस्ते के हवाले कर दिया। मण्डल कमीशन भी गैर कांग्रेस सरकार के दिल्ली में सत्तारूढ़ होने के बाद ही बन सका और उसकी रिर्पोट 1980 में सरकार के पास पहुंच जाने के बाद तभी लागू हुई जब देश में 10 वर्ष बाद गैर कांग्रेसी सरकार बनी। जहां तक भाजपा की बात है, वह सैद्धांतिक तौर पर जिस व्यवस्था को बनाने की बात करती है, उसमें तो ऐसे तबकों को इंसान होने का दर्जा तक हांसिल नहीं है। आज अतिपिछड़े वर्ग की उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो हम पाते है कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी’ जैसा सामाजिक न्याय आंदोलन का नारा उनके लिए एक धोखा ही साबित हुआ है। अतिपिछड़ी जाति कहार, कश्यप की पिछड़े वर्ग में संख्या 3.31 प्रतिशत है पर सरकारी नौकरियों में मात्र 2.50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसी प्रकार केवट, मल्लाह, निषाद की संख्या 4.33 प्रतिशत और हिस्सेदारी 1.36 प्रतिशत, विश्वकर्मा, बढ़ई की संख्या 2.37 प्रतिशत और हिस्सेदारी 1.73 प्रतिशत, बिन्द की संख्या 0.87 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.22 प्रतिशत, बियार की संख्या 0.14 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.1 प्रतिशत, राजभर, भर की संख्या 2.44 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.59 प्रतिशत, कुम्हार प्रजापति की संख्या 3.42 प्रतिशत और हिस्सेदारी 2.34 प्रतिशत, पाल, गडेरिया की संख्या 4.43 प्रतिशत और हिस्सेदारी 3.78 प्रतिशत, भुजा, भड़भुजा की संख्या 1.43 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.54 प्रतिशत, मौर्या की संख्या 2 प्रतिशत और हिस्सेदारी 1.30 प्रतिशत, लोहार की संख्या 1.81 प्रतिशत और हिस्सेदारी 1 प्रतिशत, लोनिया, चौहान की संख्या 2.33 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.78 प्रतिशत, आरख की संख्या 0.41 प्रतिशत और हिस्सेदारी 0.12 प्रतिशत है। यह अंाकड़ा खुद इस बात को प्रदर्शित करता है कि आजादी के 60 वर्षों बाद भी अतिपिछड़े समाज की हिस्सेदारी नहीं हुई। अतिपिछड़े समाज के साथ हुऐ इतने बड़े अन्याय को खत्म करने के लिए इन वर्गों को बिहार, तमिलनाडू, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों की तरह अन्य पिछड़ा वर्ग में से अलग आरक्षण कोटा देने की जगह मुलायम और मायावती इन्हें दलितों से लड़ाने का खतरनंाक खेलते रहे। यह जानते हुए भी कि संवैधानिक रूप से अतिपिछड़ी जातियों को दलितों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता क्यांेकि कोई भी अतिपिछड़ी जाति अस्पृश्य अथवा अछूत नहीं है और दलित की श्रेणी के लिए संवैधानिक रूप से अछूत होना अनिवार्य है। मुलायम जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अतिपिछड़ी 16 जातियों, को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए बाकायदा शासनादेश निकाल दिया, उस समय मायावती ने इसका विरोध किया था। लेकिन खुद सत्ता में आने के बाद उन्होंने भी यही प्रस्ताव बनाकर केन्द्र सरकार के पास भेजा है। वास्तव में सामाजिक न्याय आंदोलन के गर्भ से निकले मुलायम और मायावती सरीखे नेता भी अति पिछड़ों के सामाजिक न्याय के अधिकार के प्रति ईमानदार नहीं है। वहीं अतिपिछड़े समाज के बीच में इन दलों के चमचा प्रतिनिधि भी इस समाज के अन्दर दलाली करते हुऐ समाज को उसके अधिकार से वंचित करवाते है। वहीं जाति के नाम पर बने हुए राजनैतिक संगठनों ने समाज की ताकत के बदौलत एैसे दलों के साथ खरीद-फरोख्त ही किया, यहां तक कि सामाजिक न्याय विरोधी अतिपिछड़ा समाज को धोखा देने वाली ताकतों के साथ भी हाथ मिलाया। इस लिए अतिपिछड़े समाज की हिस्सेदारी और भागेदारी के सवाल को चमचा प्रतिनिधियों और फर्जी संगठनों के बूते नहीं, नये लोकतन्त्रिक राजनैतिक आंदोलन के बूते ही हासिल किया जा सकता है। वास्तव में अवसरवाद को ही राजनीति का सिद्धान्त मानने वालों, जैसे-तैसे सत्ता हांसिल करने वालों से कभी भी दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर तबकों को सामाजिक न्याय नहीं मिला है। यह सामाजिक बदलाव की विचार धारा पर खड़े संगठन और ताकतों के द्वारा ही मिल सकता है। अतिपिछड़ों को राष्ट्रीय स्तर पर शिनाख्त कर उनके लिए अन्य पिछड़ा वर्ग में से अलग आरक्षण कोटे के लिए राष्ट्रीय आयोग गठित करने की मांग को लेकर जन संघर्ष मोर्चा ने जंग का ऐलान किया है। 6,7 अक्टूबर दिल्ली में सामाजिक न्याय आंदोलन से जुड़ी ताकतों ने इसकी शुरूवात की है हमें आपको सबको मिलकर अपने इस अधिकार को हासिल करना होगा।



दिनकर कपूर जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं
संपर्क
ई0डी017,डायमंड डेयरी कालोनी, उदयगंज
लखनऊ
मो0 न0 9450153307

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