आतंकी बम धमाकों में हुई मौतों का हिसाब लेने पहुंचने वाली सुरक्षा एजेंसियों के हाथ पैर कितने लम्बे हैं, इसका अंदाजा शायद आतंकवादियों को नहीं है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मजबूत तंत्र, कितनी आसानी से आतंकवादी घटनाओं का पर्दाफाश कर मुजरिमों तक अपनी पहुंच बना लेता है, उसकी मिसाल ढूंढे नही मिलती। जय हो भारत। जय हो सरकार, जय हो तुम्हारी व्यवस्था। भई खूब! एक बार फिर हमारे सुरक्षा विशेषज्ञों का तकनीकी और कानूनी कौशल काम आया है और एक लम्बे अर्से से धमाके पर धमाके करता एक आतंकवादी उत्तर प्रदेश की नेपाल की सीमा से सटे सिद्धार्थ नगर से गिरफ्तार कर लिया गया। यू.पी. के आतंकवाद निरोधी दस्ते (ए.टी.एस.) की इस कामयाबी पर उत्तर प्रदेश सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है तो दिल्ली की सुरक्षा टीम की बांछे खिल गई हैं।
पीठ थपथपाने और बांछे खिलने की वजह भी आईने की तरह साफ है। पुलिस के अनुसार बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउन्टर से बचकर भागे आजमगढ़ के मोहम्मद सलमान पुलिस हिरासत में एक से बढ़कर एक रहस्योद्घाटन कर रहा है। पुलिस मीडिया को ब्रीफ कर रही है और मीडिया जमकर खबरें लिख रहा है लेकिन अफसोस एक शायर की लाईनें याद आती हैं ‘‘जो मुझपे बीत गई वो खबर नहीं मिलती, अब तो पूरा का पूरा अखबार खत्म होने को है।’’ आजमगढ़ के सलमान और मुस्लिम समुदाय की आप बीती अखबरों की सुर्खियों से गायब है लेकिन सनसनीखेज तरीके से आतंकवादी का पकड़ा जाना और उसके तथाकथित बयानों को मसालेदार तरीके से छापने से पहले इसकी सच्चाई क्या है, शायद इसे देखने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। विश्वास नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए कि जिस वक्त हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियां सलमान को यू.पी. में हुए बम धमाकों का जिम्मेदार बता रहीं हैं, उस समय सलमान की उम्र महज चौदह साल थी। अब चौदह साल का मासूम लड़का आतंकवादी बनकर देश में बम धमाके करता फिरे, यह बात हजम नहीं होती। सुरक्षा एजेंसियों की यह कहानी बॉलीवुड की उन सुपर फ्लाप फिल्मों से मेल खाती है, जिनको दर्शक ढूंढे नहीं मिलते। अफसोस इस बात का है कि यह कहानी अपनी तमाम खामियों के बावजूद सुपर हिट दिख रही है ता इसके पीछे मजबूत षड़यन्त्रकारी अपना काम कर रहे हैं। षड़यन्त्रकारी कौन है यह जांच का विषय है लेकिन जांच करे कौन? जब ‘‘क्या होगा भला तुमसे इन्साफ गवारा भी, जब खून में डूबा है खुद हाथ तुम्हारा भी।’’ काबिलेगौर है कि भारत में अगर केरल को छोड़ दिया जाए तो सबसे ज्यादा पढ़ने–लिखने वाले मुस्लिम उत्तर भारत में आजमगढ़ के ही हैं। आजमगढ़ के पढ़े–लिखे मुस्लिमों का आतंकवादी घटनाओं में एक के बाद एक फंसते जाना एक और ही कहानी बयां कर रहा है। इस कहानी की सच्चाई कितनी है यह इस वक्त तो सिद्ध नहीं की जा सकती लेकिन मुस्लिम समुदाय इस कहानी के खास किरदार के रूप में इजराइल और अमेरिका का नाम सीना ठोंककर लेता है। किसी भी ब्लास्ट के बाद जब मुस्लिम चेहरों की तलाश की जाती है तो मुस्लिम गालियारे में इजराइल की खुफिया एजेंशी मोसाद को पानी पी–पीकर गरियाने में क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या जवान सब एक मत नजर आते हैं। यह एक संयोग की भी बात हो सकती है कि आतंकी घटनाओं में पकड़े जाने वाले लोगों में आजमगढ़ का पढ़ा–लिखा नौजवान मुस्लिम तबका है लेकिन इस सच्चाई को कैसे झुठलाएं कि सलमान को भी आतंकवादी बताया जा रहा है। जो आज की तारीख में 18 साल का हुआ है और पिछले चार साल से बम धमाके कर रहा है। मुस्लिम मनों में बैठा खौफ और उनके संदेह सच ही लगते हैं जब ‘सलमानों’ को आतंकी करार देकर पकड़ लिया जाता है। अगर मुस्लिम समुदाय अपने बच्चों को बेहतर तालीम देना चाहता है तो उसका क्या कसूर है? कौन हैं वे लोग जो मुसलमान नौजवानों को उनके घरों में कैद कर देना चाहते हैं और चाहत है कि पूरी की पूरी कौम मदरसों तक सिमट कर रह जाए। ऐसे समय में जब यह पूरी तरह से मान लिया गया है कि बेहतर जिन्दगी की दास्ता बेहतर किताबों से होकर गुजरता है तो मुसलमानों को डरा कर किताबों से दूर करने की साजिश कौन रच रहा है? धर्म निरपेक्षता का चोला ओढ़े बहुजन समाज पार्टी की सूबाई सरकार हो या जन्म–जन्मान्तर से सेकुलर कांगे्रस की केन्द्रीय सत्ता, सब के सब मुस्लिम वोटों की सौदागिरी तो कर रहे हैं लेकिन कही न कही मुस्लिम सभ्यता की जड़ों में मठ्ठा भी डाल रहे है।
बात एक बार फिर सलमान की। जिस सलमान को भारत की सुरक्षा एजेंसियां 21 साल की बता रही हैं और इस बिना पर उसको पुलिस रिमाण्ड पर लेकर सनसनीखेज रहस्योद्घाटन करने का दावा कर रही है। दरअसल अभी भी पूरी तरह से बालिग नही है। पिछले 6 मार्च को यू।पी।ए।टी.एस. द्वारा सिद्धार्थनगर से गिरफ्तार और फिलहाल दिल्ली पुलिस की हिरासत में अपने मानवीय अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा सलमान सिफर् इस बात की सजा भुगत रहा है कि वो मुसलमान है और ऐसा मुसलमान जो आधुनिक शिक्षा पाने की कोशिश में है। तरक्की पसंद तालीम की इन ख्वाहिशों को दफन कर देना बहुत मुश्किल है लेकिन शायद अब ऐसा ही करना पड़े। पिछले कुछ सालों पर गौर करें तो यही सच उभरता है कि किसी मुस्लिम नौजवान को आतंकी मामलों में गिरफ्तार करने के बाद जिस तरह से पुलिस यह दावा करती नजर आती है कि फला आतंकी ने फलां बयान दिया। जिसके चलते तमाम छिपी चीजों की जानकारी मिली। मगर अदालती कार्यवाहियों में पुलिस के वो सनसनीखेज बयान जो मीडिया को जारी किये जाते हैं, उसका जिक्र भी किया जाना मुनासिब नहीं समझा जाता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि बटला हाउस एनकाउन्टर में मारे जाने वाले आजमगढ़ के आतिफ अमीन और नाबालिग साजिद के पास से ए.के. 47 जैसे अत्याधुनिक असलहों की बरामदगी की बात वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कही गयी और मीडिया ने भी इसे जमकर उछाला लेकिन जब अदालती कार्यवाही की बात आई है तो यही पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां तमंचे पर आकर रूक गई लेकिन भारतीय मीडिया और तथाकथित मुस्लिम हित परस्तों के बयान इस पर नहीं आए। मोहम्मद सलमान की जन्मतिथि हाईस्कूल की यू.पी. सर्टिफिकेट के आधार पर 03.10.92 है। उसकी जन्मतिथि को आधार बनाते हुए जामिया टीचर्स सॉलीडेरिटी एसोसियेशन (जे.टी.एस.ए.) ने स्पेशल कमिश्नर जुवाइनल (किशोर न्याय) जस्टिस हर्ष मंदिर से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। मनीषा सेठी द्वारा जे.टी.एस.ए. की तरफ से दिये गये प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि जुवाइनल जस्टिस (केयर एन्ड प्रोटक्शन आफ चिल्ड्रेन) एक्ट 2000 में हुए सुधार के बाद व्यवस्था दी गई है कि किसी भी आरोपी किशोर और बच्चे की कोई भी रिपोर्ट, फोटो, उसके घर, स्कूल और अन्य जानकारी सार्वजनिक करना प्रतिबंधित है। जिस किसी ने भी इसका उल्लंघन किया, उस पर 25 हजार तक का जुर्माना हो सकता है। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि झूठी और मनगढ़ंत सूचनाओं के चलते नाबालिग सलमान के मूल अधिकारों का अपहरण हो सकता है, ऐसे में इस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। 13 मार्च को भेजे गये इस पत्र के बाद सुरक्षा एजेंसियों की नीयत पर गम्भीर सवाल खड़े होते है। अब इस मसले पर सरकारी रूख देखना दिलचस्प होगा।
लेखक स्वतन्त्र पत्रकार है और लम्बे समय से आज़मगढ़ के विभिन्न सामाजिक पहलुओं पर लेखन कर रहे हैं
साभार: पूर्वांचल न्यूज़ डाट कॉम
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