30 मार्च 2010

संर्घष के बीच सृजन करता आरंगम्

राजीव यादव
 सयास प्रसारित किये जा रहे दुष्प्रचार के खिलाफ पाचवां ‘आरंगम् 2010’ सम्पन्न हो गया। आरंगम् यानी आजमगढ़ रंग महोत्सव ने यह भी स्थापित किया कि आजमगढ़ का अतीत ही नहीं वर्तमान भी स्वर्णिम है। रंग कर्मियों ने इस बात को भी एक स्वर दिया कि जिले को बदनाम करने वाली चाहे जो भी शक्तियां हों वे बाज आएं। शरद जोशी के चर्चित नाटक ‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ की निर्देशिका ममता कहती हैं ‘हमनें इस नाटक के माध्यम से राज्य के चरित्र और उसके न्याय के समीकरण पर कटाक्ष किया है।’ सूत्रधार की इस प्रस्तुति में जुग्गन धोबी जिसके गधे अलादाद खां की मौत के बाद नवाब ने अपनी ओछी राजनीति के तहत एक आम आदमी की मौत का कारण बन जाता है ने दिखाया कि सत्ता की साजिस में सब एक तरफ और जुग्गन अकेले है। इसके माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया कि सत्ता की चाल ने किस तरह आम आदमी के जीवन की दुष्वारियां बढ़ा दी हैं। अपनी विश्वसनियता और खुद के वजूद को बनाए रखने के लिए वह किस तरह अपने निर्दोष मासूमों की कब्रगाह तैयार करता है। और ऐसे ही जाल में आजमगढ़ फसा है।

       23 से 26 फरवरी के इस चार दिवसीय आयोजन में राजनीति ही केंद्र में रही। जिस दिन एक नए राजनीतिक शिगूफे के तहत पूरे पूर्वांचल में कहीं पूर्वांचल राज्य तो कहीं अल्पसंख्यक सम्मेलन किये जा रहे थे, उसी शाम को हरिशंकर परसाइ के राजनैतिक कटाक्ष नाटक ‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’ का मंचन हुआ। मुंबई के ‘मंच’ द्वारा मंचित इस नाटक के निर्देशक विजय कुमार ने बताया कि हमने इस नाटक में वर्तमान या कहें कि हमारे मूलभूत सवालों से भटकाकर जो राजनीति की जा रही है उसको दिखाने का प्रयास किया। हमनें जो दिखाया वो किसी के लिए नया नहीं था पर यह जनता के प्रतिरोध का स्वर है जिसे हमनें रंगकर्म के माध्यम से व्यक्त किया। आरंगम् के संयोजक अभिषेक पंडित ने कहा कि सृजन और संघर्ष ही हमारी विरासत है और इसे प्रमाणित करने के लिए हमें किसी से प्रमाण लेने की आवश्यकता नहीं है। सांस्कृतिक संक्रमण के इस दौर में हमनें रंगमंच के माध्यम से जिन्दगी की जद्दोजहद का आईना पेश किया है।

       मिर्जा हादी रुस्वा के उपन्यास पर आधारित नाटक ‘उमराव जान’ में उमराव जान का चरित्र कर रहीं आर्या झा के अभिनय की भाव भंगिमा ने एक तवायफ जो समाज की हिकारत सहने को मजबूर है, उसे न समझने वाले समाज पर एक गहरा कटाक्ष किया। तो वहीं भोपाल के नट बुंदेले द्वारा रामेश्वर प्रेम के नाटक ‘चारपाई’ के माध्यम से निम्न मध्य वर्ग के खुरदुरे यथार्थ को मंचित किया गया। एक पिता जो सेवामुक्ति के बाद घर आता है और कुछ ही दिनों में ही देखता है कि जिस घर को बनाने में जिंदगी खपा दी, उसी घर में उसके लिए जगह नहीं है। शहर के वरिष्ठ बुद्धिजीवी बद्रीनाथ श्रीवास्तव कहते हैं कि रंगकर्म हमारे समाज का आइना है। इसके माध्यम से आरंगम् ने उन सवालों जिसमें हमको उलझा कर रखा गया है को ही बेनकाब नहीं किया बल्कि हमारे सवालों और साम्रजायवाद से लड़ने और उससे जूझने की प्रेरणा के साथ नए सृजन और संघर्ष की जमीन तैयार की।                         

2 टिप्‍पणियां:

rajan ने कहा…

'aaranjam'sambandhi lekha sapast hai.rajiv ne summery likhane me kushalta ka parichaya diya hai.Rajneetik tippadiyan aayojan ki samkalinta aur saflta ko rekhankit karti hain.rajan.

Rajan ने कहा…

'PRATHAM PRAWKTA' KE NAME PRAKASHIT LEKHA PADA.ESME PATRAKARITA ME SAKRIY KATTAR HINDUTWA KI POL KHOL DEEGAI HAI.

अपना समय