मसिहुद्दीन संजरी
भागो नहीं दुनिया को बदलो की सीख देने वाले राहुल सांकृत्यायन अपने ही शहर में बेगाने हो गए हैं। कभी उनके परिजनों को सिमी का एजेंट कहा जाता है तो कभी उनके द्वारा लायी गयी पुरातत्विक महत्वों वाली पत्थर की शिलाओं, सिक्कों और भाड़ पत्रों का प्रशासनिक लापरवाही के चलते चोरी हो जाने की बात सामने आ रही है। और वो भी उस भवन से जिसका जिलाधिकारी पदेन अध्यक्ष है। इस घटना से शहर के बुद्धिजीवी, रंगकर्मी, मानवाधिकार नेता आहत हैं और वे हरिऔध कला भवन के सामने ही धरने पर बैठ गए हैं। वे इसे एक पूरी विचारधारा को खत्म करने की साजिश बता रहे हैं।
आजमगढ़ स्थित हरिऔध कला भवन से चोरी होने की बात कई बार सामने आ चुकी है। पिछली 21 मार्च को कला भवन के सामने की सड़क पर रामचरितमानस, पद्मावत, सतसई समेत दर्जनों किताबें सड़क पर गिरी मिलीं और कला भवन का दरवाजा भी खुला मिला। इस घटना के बाद शहर के लोग आक्रोशित हो गए और धरने पर बैठ गए। मामले को बढ़ता देख प्रशासन हरकत में आया और दबाव बनाने की कोशिश किया पर पाचवें दिन जनता के दबाव में जिलाधिकारी मनीष चौहान घटना स्थल पर आए। कला भवन के संरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे युवा रंगकर्मी अभिषेक कहते हैं कि पांच दिन बीत जाने के बाद जिलाधिकारी आते हैं, जबकि वे इसके अध्यक्ष हैं। इससे साफ लग रहा है कि यह सब प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा था। भारतीय जन नाट्य संघ के संयोजक हरिमंदिर पांडेय ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आजमगढ़ की पहचान के साथ साजिश हो रही है और इसके स्वर्णिम इतिहास को मिटाने की कोशिश की जा रही है जिससे आने वाली पीढ़ियों को इस विचारधारा से महरुम रखा जा सके। भवन में लंबे समय से किसी भी तरह के कार्यक्रम पर पाबंदी लगायी गई है। तो वहीं सुनील कुमार दत्ता इसे सामान्य घटना न मानते हुए कहते हैं कि इसकी उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता है। आखिर कौन लोग किताबों और पुरातत्व के महत्व की चीजों को चुरा रहे हैं। क्योंकि किताबें एक इतिहास का दस्तावेज होती हैं और उनका गायब होना निश्चित ही कोई गंभीर साजिश है।
वरिष्ठ वामपंथी नेता विजय सिंह बताते हैं कि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध के नाम पर इस कला भवन को 1957 में स्थापित किया गया था। इसकी डिजाइन पृथ्वी राज कपूर ने तैयार की थी। 1957 में राहुल सांकृत्यायन एक महीने के लिए आजमगढ़ आए थे और उन्होंने इस दौरान इस कला भवन को बहुत सारी बहुमल्य पुरातत्व महत्व की वस्तुएं दी थी। वे बताते हैं कि राहुल सांकृत्यायन ने बड़ी मेहनत से खच्चरों की मदद से विदेशों से इन किताबों और पत्थर की शिलाओं को लाया था। मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के तारीक शफीक और विनोद यादव ने बताया की इस कला भवन में कभी महादेवी वर्मा और कैफी आजमी बैठा करते थे। हरिऔध कला भवन से जिलाधिकारी कार्यालय की दूरी मात्र दो सौ मीटर है। पूरा भवन जर्जर हो गया है। और इसका एक हिस्सा भी गिर गया है। और पूरे के गिरने की प्रशासन बाट जोह रहा है। कला भवन की अंदर की दीवारों पर रवीन्द्र नाथ टैगोर, हरिऔध समेत दर्जनों की छाया चित्रों के चीथडे़ लटके हुए हैं।
गौरतलब है कि हरिऔध कला भवन जहां स्थित है उस स्थान को कम्पनी बाग कहा जाता था। कुंवर सिंह के नेतृत्व में 1857 की क्रांती के दौर में आजमगढ़ आजाद हुआ था। इतिहास से पता चलता है कि यहां कभी उस दौरान मारे गए अंग्रेजों की कब्रें थी जो आज कहीं नजर नहीं आती। नजर आता है तो एक किसी कब्र का पत्थर जो कुंवर सिंह उद्यान के सामने की नाली पर पड़ा अपने इतिहास की अकेली गवाही करता है। इस मामले को लेकर पूरे पूर्वांचल के बुद्धिजीवी वर्ग में खासा रोष रहा। प्रगति लेखक संघ के जय प्रकाश धूमकेतु, अरिविंद मूर्ती, बसंत, विनोद सिंह ने मऊ जनपद के जिलाधिकारी से मिलकर ज्ञापन सौपां। खैर नौ अप्रैल को राहुल सांकृत्यायन का 117 वां जन्मदिन शहर के बुद्धिजीवी और रंगकर्मी इस दुर्व्यवस्था के खिलाफ मनाने की तैयारी कर रहे हैं।
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