10 मार्च 2010

एक और सत्याग्रह, काले अंग्रजों के खिलाफ

राकेश कुमार
पहला सत्याग्रह गांधी जी देश की आज़ादी के लिए किये थे तो दूसरा सत्याग्रह गंगा की आज़ादी के लिए जल बिरादरी करने जा रही है। यह सत्याग्रह जल पुरुष राजेन्द्र सिंह के अगुवाई में 12 मार्च से हरिद्वार महाकुम्भ से शुरु हो रहा है। दूसरा सत्याग्रह सफल होगा या नहीं यह तो समय ही बतायेगा। चूंकि गांधी जी उपनिवेशी शासक (गोरे अंग्रेजांे) के खिलाफ किया था जिसमें पूरे देश की जनता शामिल थी। और जल बिरादरी को अपने ही सरकार (काले अंग्रेजो) के खिलाफ करना पड़ रहा है जिसमें महज़ कुछ ही लोग शामिल हैं। गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए संत-सरकार-एजीओ तीनों एक मंच पर एकजुट हो गये हैं। सरकार और पंचायत दोनों इसकी सफलता के लिए आम जनता की सषक्त सहभागिता को आवष्यक बताया। लेकिन आम जनता को इस मुहिम में शामिल करने तथा गंगा का नैसर्गिक स्वरुप बहाल करने को लेकर दोनों के बीच मतभेद रहा। फिलहाल गंगा-यमुना पंचायत ने दिल्ली में तीन दिन के गहन विचार-विमर्श के बाद सरकार को 11 सूत्री सुझाव पत्र सौंपा। सरकार पंचायत के सुझाओं को महत्व दे या न दे लेकिन पंचायत गंगा की आजा़दी का वीणा उठा लिया है। बांधो से जकड़ी जा रही गंगा की आज़ादी के लिए हजारों कार्यकर्ता 12 मार्च को हरिद्वार पहुंचकर, इस सत्याग्रह का आगाज़ करेंगे। तो वहीं जल बिरादरी के कार्यकर्ता देश भर की नदियों में मिलने वाले गंदे पानी के मार्ग को अवरोधित कर इस सत्याग्रह को देशव्यापी नदी सत्याग्रह का रुप देने का प्रयास करेंगे।

पंचायत, गंगा की अविरलता में बांधो को अवरोध मानते हुए केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश के समक्ष जब उसके डीकमीशान की बात रखी तो मंत्री महोदय अपने को दूध सा साबित करने की मुहिम में जुट गये। मंत्री साहब के बयान ‘मैं तो प्रधानमंत्री जी को पहले से ही से बोल चुका हूं कि लोहरी नागपाला डैम से यदि लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था पर आधात पहुंचता है तो हमें हजार करोड़ रू. के बारे में विशेष नहीं सोचना चाहिए और इस योजना को वापस ले लेना चाहिए। लेकिन वहीं पर जनाब यह भी कहते हैं कि आस्था निर्णय का आधार नहीं हो सकता। इसके साथ-साथ गंगा में मिनिमम फ्लो (काम चलाऊं पानी) कायम रखने की बात कही है। हालांकि पंचायत मिनिमम फ्लो की बात पर आपत्ति दर्ज की लेकिन उनकी विरोधाभाषी बातों में पंचायत के गंडमान्य बहते नज़र आये।

मंत्री महोदय ने यह कबूल किया कि गंगा नदी को जिस तरह बांधो से सजाया गया है, उससे हमारी संस्कृति ‘टनल’ की संस्कृति हो गयी है। लोहारी नागपाला डैम के डीकमीषन के सवाल पर मंत्री जी सरकार की तरफ से वकालत करते हुए कहा कि लोहारी नागपाला परियोजना पर करीब एक हज़ार करोड़ रूपया खर्च हो गया है। इसलिए सरकार उस परियोजना को वापस नहीं ले सकती। उनकी बातों पर प्रष्न चिन्ह लगाते हुए दूसरे पक्ष के वकील (पंचाय के अध्यक्ष) स्वामी अविमुक्तेष्वरानन्द ने सरकार के इस दर्द पर मरहम लगाते हुए कहा कि पंचायत सरकार को हज़ारो करोड़ रूपया देने को तैयार है। लेकिन इससे पहले सरकार लिखित रूप से इस बात को सार्वजनिक करे कि गंगा नदी पर किसी प्रकार की परियोजना या डैम नहीं बनायेगी।

नदियों को निर्मल बनाने के लिए सरकार द्वारा लगाये जाने वाले भारी-भरकम जल शोधन प्लांट पर पंचायत ने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि गंगा मां की सफाई के लिए सरकार कटोरा लेकर विदेषों से भीख न मांगे। रिवर में सिवर मिलाना बंद कर दे, वह अपने आप निर्मल हो जायेगी। मंत्रालय के मुताबिक, ‘गंगा सफाई मिशन’ में लगभग 15 हज़ार करोड़ रूपये का खर्च होने का आंकलन किया गया है। जिसको पूरा करने के लिए सरकार तथाकथित मिषन 2020 निष्चित किया है। जयराम रमेश की उन बातों का पटाक्षेप करते हुए पंचात के अध्यक्ष नदियों की बर्बादी का ठीकरा सरकार के सिर फोड़ते हुए कहा कि हमारे देश की नदियां निर्मल और अविरल हैं लेकिन पहले सरकार उसे अवरोधित व गंदा करती है, फिर उसकी सफाई के नाम पर लम्बा बजट पास करती है... बावजूद नदियां दिन ब दिन मरती जा रही हैं।

नदियों की अविरलता को वापस लाने को लेकर पंचायत भी स्पष्ट नहीं हो सकी। एक तरफ जहां इस अभियान की सफलता के लिए जनता की सहभागिता को आवष्यक मानती है तो वहीं दूसरी तरफ गंगा-यमुना से किसानों को पानी न दिये जाने की वकालत भी करती है। पंचायत के इस निर्णय पर न केवल पंचायत के कुछ लोगों ने असहमति जतायी बल्कि मंत्री साहब भी दो शब्दों में कि ‘जल का बटवारा राज्यों का विषय है इसमें केन्द्र सरकार कुछ नहीं कर सकती, कहकर चलते बने। ऐसे में पंचायत और सरकार द्वारा इस मुद्दे पर जन आंदोलन खड़ा करने का सपना भी शायद अधूरा रह जायेगा। यहां पर सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार और पंचायत (एनजीओ) दोनों गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिये धन-बल के साथ तैयार है लेकिन जब दोनो इसके रास्ते को लेकर इतने भ्रमित हैं कि तीन दिन के राष्ट्रीय विचार-विमर्श के बाद भी स्पष्ट रास्ते नहीं ढूढ़ सकी। यहां पर यह भी स्पष्ट कर दें कि गंगा पर उत्तरकाशी से लेकर बिहार तक एक से बढ़कर एक बांध बने हुए हैं। तो समझ सकते हैं कि गंगा की अविरलता वापस कैसे आयेगी। इस पर गम्भीरता से सोचना पडे़गा। यहां पर यह भी प्रश्न उठता है कि क्या सरकार इस बार भी भारी-भरकम बजट पास कर जनता की आस्था पर मरहम लगाकर लीपा-पोती की ताक मे तो नहीं है। क्या कांग्रेस सरकार भाजपा के एक और चुनावी एजेंडे को हाइजैक करने की फिराख्त में है।

पन्चायत ने गंगा की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को रेखांकित करते हुए गंगा की अधिसूचना में ‘धार्मिक और आध्यात्मिक’ शब्द जोड़ने की बात सरकार के समक्ष रखी है। गंगा को पर्यावरणीय प्रवाह देने, प्रदूषण मुक्त करने, खनन वर्जित करने, रीवर और सीवर को अलग करने, ‘गंगा घाटी विकास प्राधिकरण’ के अध्यक्ष को मुख्य सेवक और अन्य सदस्यों को सेवक का नाम दिये जाने तथा गंगा के उद्गम से लेकर 135 किमी तक उसकी नैसर्गिक धारा प्रवाह में बदलाव न करने जैसे कहीं अहम सुझाव रखा है। जबकि सकरकार पहले ही लगभग 50 किमी की दूरी पर लोहारी नागपाला डैम करीब आधा तैयार हो चुका है, जिसे सरकार किसी भी हालत में निरस्त करने को तैयार नहीं है। यहां पर प्रश्न उठता है कि गंगोत्री से निकली गंगा की निर्मल धारा को गंगा सागर तक पहुंचाने का कथित सपना पंचायत और सरकार आखिर कैसे पूरा करेगी। इस पर गंम्भीरता से विचार करने की जरुरत है।

यह बता देना मौजूं होगा कि गंगा-यमुना की अविरलता और निर्मलता के लिए 1985 में राजीव गांधी सरकार ने काम शुरु किया था। जिसमें करीब एक हज़ार करोड़ रूपया गंगा में फूलो की तरह अर्पित कर दिया गया लेकिन गंगा-यमुना दिन ब दिन प्रदूषित होती रही। आज आलम यह है कि यमुना (दिल्ली में) के किनारे जानवर व पक्षी पानी के लिए इधर-उधर भटकते हैं। यह बात अलग है उस सिवर रूपी यमुना में सुबह-शाम कबाड़ी जीविका के लिए गस्त लगाते हैं। लेकिन मंत्री साहब यह कहने से नहीं थकते कि यदि गंगा-यमुना एक्शन प्लान एक नहीं लाया गया होता तो आज इन नदियों की हालात क्या होती जिसे हम ब्यान नहीं कर सकते। जनाब इस असफलता का कारण सिरे से राज्य सरकारों और औद्योगिक क्षेत्रों के सिर मढ़कर अपने को तार-तार करने की कोशिश की। कांग्रेस सरकार अब एक बार फिर 15 हज़ार करोड़ रूपया खर्च करने का प्रोपोगेंडा तैयार करने में जी जान से लग गई है। जिसका भी परिणाम आने वाले समय में सामने होगा।
राकेश कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) से जुड़े हैं.संपर्क - rakeshvdrth@gmail.com

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