1948 में UNO ने मानवाधिकारों की सार्वभोमिक घोषणा की थी -
"जिसके अंतर्गत हर व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है । बिना केसी बाधा के विचार निर्मित करना और उसे व्यक्त करना इस अधिकार में सम्मिलित है देश की सीमाओं की चिंता किये बगैर किसी भी माध्यम से सूचनाये एवं विचार व्यक्त करने प्राप्त करने और उन्हें लोगो तक पहुचाने का अधिकार भी इसमें शामिल है "
भारतीय सविधान के दृष्टिकोण से १९ अ में सूचना देने और प्राप्त करने का अधिकार है , और इन बातो के लिखने का यंहा यह मतलब है क्योंकि लगातार उत्तर प्रदेश में मायावती के फासिस्ट राज ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति का गला घोटा है जिससे अभिव्यक्ति पर एक बड़े प्रहार के रूप में देखा जाना चाहिए यदि हम सभी पत्रकार या समाज में एक सामजिक प्राणी की हैसियत रखने वाले इसे नज़र अंदाज करते है या चुप रहते है तो तय है संविधान का गला घोटने में हम भी मायावती सरीखे एक फासिस्ट राज के समर्थक के आलावा कुछ नहीं ......
हाल ही में दस्तक पत्रिका की सम्पादक सीमा आजाद जो इलाहाबाद में काफी समय से अपने विचारों को संप्रेषित करती रही है तथा एक सामजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनकी पहचान होती रही है को नक्सली बताकर पुलिस द्वारा हथकड़ी पहनाकर पकड़ा गया जिनमे उनके पति को भी माओवादी बताया गया लेकिन क्या पुलिस के यह कहने से की अमुक व्यक्ति नक्सली है या माओवादी है हमे मान लेना चाहिए आखिर पुलिस खुद से न्याय करके मुठभेड़ जैसे घटनाओं में न जाने कितनो निर्दोष को मार कर नक्सल साबित कर देती है और हम ज़रा भे नहीं सोचते वह था क्या ? जो विचार प्रकाशित हो रहे हो जिनमे लोगो की प्रतिक्रियाए मिल रही हो व् देश की उन कमियों को जिनसे देश भर में विद्रोह का स्वर मुखरित हो रहा हो क्या उन्हें लोगो तक पहुचाना देश द्रोह है और व्ही विचार हमारे वोटो से कुर्सी हासिल करने वालो को सचेत कर रहे हो तो क्या वह देश विरोधी है ?और क्या यही देश द्रोह साबित करने का एक वाजिब पैमाना है की अमुक व्यक्ति ने इसे आम व्यक्तियों तक पंहुचा दिया , हमारे साथी विजय ने कल एक महतवपूर्ण चीज बतायी जो वास्तव में आज पत्रकारिता से गायब हो रही है हम मात्र पुलिस के कहने से किसी भी व्यक्ति को नक्सल माओवादी आतंकवादी कह देते है और अनजाने में ही हम सरकारी प्रवक्ता बन जाते हैं हम ज़रा भी ये जहमत नहीं उठाते की उसमे कथित या पुलिस के अनुसार लिखने या कहने का जहमत उठाये, फिलहाल हमे एक होना पड़ेगा और सक्रिय भी ताकि देश भर में घट रही पुलिस तानाशाही को रोका जा सके सीमा आजाद को हथकड़ी पहनाना वास्तव में अभियक्ति पर हथकड़ी है और आप सभी साथियो से अपील है की अपना विरोध दर्ज करे ..........विवेक भोपाल में पत्रकारिता करते हैं और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) से जुड़े हैं. संपर्क -media.vivek@gmail.com
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