12 अप्रैल 2010

...तो फिर किसान आत्महत्या क्यों न करें ?

राकेश कुमार सरकार गरीब किसानों की दशा सुधारने के लिए कितनी भी योजनाएं चला दे लेकिन उनकी स्थिति में सुधार नहीं आने वाला। क्योंकि कमीशनखोर भ्रष्ट अधिकारी गरीब किशानों की सभी योजनाओं की क्रीम-मलाई सबकुछ बीचरास्ते में ही डकार जा रहे हैं। सरकार इन कमीशनखोर अधिकारियों व कर्मचारियों पर लगाम लगाने के लिए समितियां भले ही बना रखी है लेकिन वे समितियां इनके लिए सायद छुईमुई से अधिक नहीं हैं। कमीशनखोर अधिकारियों का एक नया दस्ता उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर, मुंगरा बादशाहपुर स्थित एसबीआई बैंक में सामने आया है। बैंक के अधिकारी व कर्मचारी अपने एजेंटो के माध्यम से गरीब किसानों से धनउगाही करने का बाकायदा अभियान चला रखा है। इन कमीशनखोर धनपिपासु अधिकारियों का नया शिकार हुए हैं गॉव आदेपुर के सरजू प्रसाद हरिजन और उनकी पत्नी प्रतापी देवी। बैंक के कर्मचारी व अधिकारी अपनी निजी जेब भरने के लिए कमीशनखोरी में ऊपरी अधिकारियों सहित सरकार को भी बदनाम कर रहे हैं।



सरजू प्रसाद के ऊपर हुए अन्याय की वजह से कई दिन से मानशिक रूप से बीमार चल रहे हैं। सरजू और उनकी पत्नी के नाम से कुल ज़मीन का लगभग 88 हजार रुपये के आस-पास पूरी किस्त बनी है। दोनों के नाम से पहली किस्त के तौर पर 46 हजार रुपये पास किये गये जिसमें से बैंक के धनपिपासुओं ने 6 हजार रुपये बतौर कमीशन सीधे डकैती कर ली। उन्होंने बताया कि ’किसान क्रेडिट कार्ड’ बनवाने के लिए जब बैंक गया तो अधिकारियों ने कहा कि फला-फला कागज़ाद ले आओ काम हो जायेगा। 65 वर्षीय अनपढ़ सरजू 22 किलोमीटर तहसील, में चक्कर लगााते रहे लेकिन तहसील के कर्मचारी उन्हें आज आओ, कल आओ, ऐसा करते रहे लिहाजा तहसील में भी कागज़ादों के लिए अफसरशाही दक्षिना देना पड़ा। उसके बाद उनके जमीन की नकल मिल सका और इतीन मसक्कत के बाद किसी तरह तहसील से कागज़ाद निकालवाकर बैंक में जमा कर दिया। इसके बाद बैंक कर्मियों ने जोंक की तरह उनका खून चूसना शुरु कर दिया।



बैंक के साहबों ने तो उनकी कमर ही नहीं तोड़ दी बल्कि मानसिक रूप् से विक्षिप्त भी बना दिया है। सरजू से पहले तो बतौर कार्ड फीस कहकर एक हज़ार रुपया जमा करने को बोले। जानकरी के मुताबिक किशान क्रेडिट कार्ड बनाने में मुश्किल से 100 रूÛ खर्च लगता है। सरजू ने जानना चाहा तो बैंक के एक कर्मचारी ने तमाम प्रकार की फीसे गिना डाला। जो सरजू को याद भी नहीं है। सरजू किसी परिचित से एक हजार रुपये कर्ज लेकर किसी तरह तथाकथित फीस जमा किया। हद तो तब पार हो गयी जब सरकारी ऋण देते समय बैंककमियों ने पूरे पैसे का 10 फीसदी कमीशन देने का खुला आदेश कर दिया। अधिकारी का तुगलकी फरमान सुनकर सरजू ऋण लेने से मना करने लगे और बैंक से बाहर निकल गये। इसके बाद बैंक के दलालों व कर्मचारियों ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि सरजू उनके चंगुल में फंस ही गये। पीछे से एक साहब ने तो कहा कि सरकारी कर्ज लेने चले हैं साले कमीशन नहीं देंगे। इन सालों को नहीं पता कि हमें ऊपर साहबों से लेकर सरकार तक पहुंचाना पड़ता है। कर्ज देने के लिए अधिकारियों ने उनका मानशिक और भावनात्मक रुप से शोषण भी किया।



सरजू को ऋण लेने के लिए मजबूर कर दिया। क्योंकि अधिकारियों के पास ऋण देने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा था। इसलिए बैंक के सभी मुख्य स्टॉफर उनके पीछे मधुमक्खी की तरह चिपके रहे तब तक जब तक वे कर्ज ले नहीं लिए। क्योंकि ऋण देने की सारी कार्यवाईयां पूरी हो गयी थीं सिर्फ सरजू और उनकी पत्नी के खाते में पैसा ट्रांसफर होना बाकी रहा गया था। और उनके पास कैंसिल करने का कोई ठोस विकल्प नहीं था। क्षेत्र के किशान नेता आरÛ केÛ गौतम का कहना है केन्द्र व राज्य के सभी अधिकारी व कर्मचारी मज़दूरों व किशानों के हाथों से उनकी रोटी सीधे छीन रहे हैं। क्षेत्र में यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। इन अधिकारियों की नियति से ही विदर्भ और बुन्देलखण्ड जैसे क्षेत्रों में हजारों किशानों की मौतें हुई हैं। ये अधिकारी और कर्मचारी मध्ययुगीन सामंतों की जगह नये सरकारी सामंत पैदा हो गये हैं। आदेपुर गॉव के ही मातादीन बिन्द ने बताया, ‘किशान क्रेडिड कार्ड’ पर कर्ज लेने के लिए पिछले दो महीने से आस-पास के सभी बैंकों में एक नहीें दो-तीन चक्कर लगा चुके हैं लेकिन बगैर कमीशन कहीं पर कर्ज नहीं मिल रहा है। कुछ छोटे मोटे नेताओं को भी लेकिन किसी आधिकारी पर कोई असर हीं नहीं हैं। जिस किसी बैंक में जाते हैं सीधे फरमान आता है कि दस फीसदी कमीशन लगेगा। इससे कम पर कोई बात करने को तैयार ही नहीं है। वे थक, हार कर बैठ चुके हैं। उनके परिवार का सहारा मात्र खेती ही जिा पिछले दो तीन साल से सूखा-बाढ़ की चपेट सवे चौपट हो गयी थी। जिससे उनके परिवार की अर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है। बच्चों को पढ़ा लिखा भी नहीं पा रहे है। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि इस माली स्थिति में वे आज की महगाई में अपने खेतों को हरा-भरा कर सके।
साभार जनादेश

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