06 जून 2010

मुनाफे के लिए डाला जा रहा है जनता को संकट में

 दिनकर कपूर
सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली का विन्ध्य पहाडियों का यह क्षेत्र जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध था। उस पूरे क्षेत्र में जहरीले पानी से बच्चों की और टी0वी0 से आम नागरिकों की मौतें हो रही  हैं, किसानी बर्बाद हो रही है, जंगल काटकर विरान किये जा रहे है, पत्थरांे और पहाड़ियों को तोड़ा जा रहा है। उ0प्र0 सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस क्षेत्र में यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि शासन-प्रषासन की मद्द से मौत के सौदागर अपने मुनाफे के लिए इस पूरे क्षेत्र को लूटने में लगे है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र जनपद में 264 व मीरजापुर जनपद में मात्र 15 क्रषर प्लाट ही वैध है बाबजूद इसके हजारों की संख्या में अवैध क्रषर रात दिन पहाड़ों को तोड़ने में लगे हुए है। यहां तक कि सेचुरी एरिया व वाइलड जोन में ,जहां ट्राजिस्ट्रर भी बजाना मना है, वहां खुलेआम ब्लास्टिंग करायी जा रही है। सलखन में एक क्रषर बकायदा रजिस्ट्रेषन नम्बर का बोर्ड लगाकर सेन्चुरी एरिया में ब्लास्टिंग करा रहा है जबकि जब सूची देखी तो उसका नाम वैध क्रषरों में था ही नहीं। इन क्रषरांे के चलते पूरे इलाके की पहाड़ियां गायब होती जा रही जो आने वाले समय में बड़े पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा। पर्यावरण रोकने के नाम पर ई0एस0पी0 मषीनें लगी हुयी है इसके बाद भी औद्योगिक समूहों द्वारा खुलेआम कोयला व सीमेन्ट उड़ाया जा रहा है। चुनार तहसील के धौवां व बड़ागांव जैसे गांवो में लौह अयस्क से लोहा बनाने वाली फैक्ट्रीयों के द्वारा फैलाएं प्रदूषण से आम नागरिको का जीवन संकटग्रस्त हो चला है। ओबरा,डाला,सुकृत, अहरौरा में तो क्रषरो के खनन के चलते हवा ही जहरीली बन गयी है।
  मीरजापुर, सोनभद्र,चन्दौली के इस क्षेत्र में छाया पानी का संकट प्राकृतिक नहीं बल्कि प्रषासनिक व सरकारी लापरवाही के चलते है । यह क्षेत्र डार्क जोन के मानकों को पूरा करता है परन्तु इस पूरे क्षेत्र में भूगर्भ में पेयजल के लिए संरक्षित जल का दोहन औद्योगिक समूहों द्वारा किया जा रहा है। चुनार के ही इलाके में जे0पी0समूह की सीमेन्ट फैक्ट्री में विद्युत परियोजना के लिए प्रतिदिन 30 लाख लीटर पानी के दोहन के चलते जमुहार समेत आसपास के तमाम गांवो में पेयजल का जबदस्त संकट पैदा हो गया है। हैण्डपम्पों को तय सरकारी मानक से काफी कम स्तर पर ही बोर किया गया है, परिणामतः जलस्तर नीचे जाते ही हैण्डपम्प बेकार हो जा रहे है। प्रषासनिक लूट का आलम यह है कि पानी संरक्षण के नाम पर लाखों खर्च कर चेकडैम ऐसी जगहों पर बना दिए गए है, जहां पानी संरक्षित ही नही हो सकता है। म्योरपुर ब्लाक के बेलवादह, खैराही, किरबिल, कुलडोमरी,सांगो बांध, चौगा,पाटी जैसे गांवो के 21 स्थानों की जांचकर आयुक्त ग्राम्य विकास ने खुद स्वीकार किया था कि चेकडैम बनाने में अनियमितता बरती गयी है और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। लेकिन आष्चर्य की इस घोटाले को पकड़ने वाले और दोषी अधिकारियों के निलम्बन की संस्तुति करने वाले आयुक्त का तो तबादला हो गया पर घोटाले बाजों का एक दिन के लिए भी निलम्बन नही हुआ।
इस क्षेत्र में पानी तक को जहरीला बनाकर रख दिया गया है। रेण नदी पर बने रिहंद बांध का पानी जहरीला है यह बात स्वयं मुख्य चिकित्साधिकारी-सोनभद्र की जांच के बाद आयी रिपोर्ट से प्रमाणित हुई है। पिछले वर्ष अक्टूबर माह में इस जलाषय के किनारे बसे कमरीडाड़ व लभरी गाढ़ा गांव में 28 बच्चो और ग्रामवासियों की मौतंे इस पानी को पीने के चलते हुई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इसे संज्ञान में लेकर कार्यवाही की बात भी कही है लेकिन औद्योगिक समूहो द्वारा कचरा डालकर इसे जहरीला बनाने का खेल जारी है। हद तो यह कि इस क्षेत्र में बिना लीज लिए ही या फिर अन्यत्र की लीज लेकर नदियों के पेटे से माननीय उच्च न्यायालय के आदेषों की भी अवहेलना कर जेसीबी मषीनों द्वारा खुलेआम बालू निकाला जा रहा है। यहाँ तक कि कैमुर सेन्चुरी एरिया में स्थित अगोरी किले के सामने सोन नदी को भी बालू खनन के लिए खनन माफियाओं द्वारा बांध कर बालू निकाला जा रहा है।
एक तरफ वन के सेन्चुरी एरिया तक में खनन की खुले आम छूट दी गयी है वहीं वन के प्रमुख संरक्षण कर्ता और वन क्षेत्रों में रहने वाले इस क्षेत्र के आदिवासी समाज के तो लोकतांत्रिक अधिकारों तक की हत्या कर दी गयी है। लम्बे संधर्षो के बाद जंगल की जमीन पर पुष्तैनी अधिकारों की बहाली के लिए बने वनाधिकार कानून की अवहेलना करते हुए उपजिलाधिकारी द्वारा वनाधिकार समितियों द्वारा सत्यापित आदिवासियों के दावों को बड़े पैमाने पर खारिज किया जा रहा है। धोरावल ब्लाक के भैसवार गांव मेंएस0डी0एम0 ने वहां वनाधिकार समितियों द्वारा सत्यापित दावों को खारिज कर दिया है। जबकि वनाधिकार कानून के अनुसार एस0डी0एम0 को वनाधिकार समिति द्वारा सत्यापित दावों को खारिज करने का अधिकार ही नही है। इस क्षेत्र में लाखों की संख्या में रहने वाली कोल,मुसहर आदिवासी जाति के लोगों को आदिवासी का दर्जा ही नही दिया गया परिणामस्वरूप वह आज वनाधिकार कानून के लाभ से भी वंचित हो जा रहे है। उनसे 75 वर्ष पूर्व का प्रमाण मांगा जा रहा है जो दे पाना ही उनके लिए असम्भव है । जिन गोड़, खरवार, चेरो, पनिका, भुइंया,बैगा जैसी आदिवासी जाति को 2003 में सोनभद्र,मीरजापुर जनपद में आदिवासी का दर्जा भी दिया गया, उनके लिए पंचायत से लेकर विधानसभा-लोकसभा तक सीट ही नही आरक्षित की गयी। इसके चलते आज वह अनुसूचित जाति की सीटों पर चुनाव ही नही लड़ पा रही है। पंचायत चुनाव के पूर्व उनके लिए रैपिड़ सर्वे कराकर सीट आरक्षित करने की न्यूनतम लोकतांत्रिक मांग भी केन्द्र व राज्य सरकार ने पूरी नहीं की।इस क्षेत्र में पर्यावरण व जल के गहरे संकट पर नए आंदोलन की तैयारी हो रही है।
 मो0 9450153307

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