31 जुलाई 2010

परंपरा तो इधर है ,न्यास उधर है

अंबरीश कुमार 
दो दिन तक दिल्ली रहा और उससे पहले नैनीताल .चार दिन बाद आज लौटा हूँ तो लगा कुछ बाते साफ हो जानी चाहिए .दिल्ली में श्रमजीवी पत्रकारों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए  वेतन आयोग के सामने  उन पत्रकारों का सवाल उठाने आया था जिन पर  लगातार हमला हो रहा है .आधा दर्जन पत्रकारों की हत्या हो चुकी है हाल में इलाहाबाद के हमारे सहयोगी विजय प्रताप सिंह पर जानलेवा हमला हुआ और उन्हें बचाया नहीं जा सका .कुशीनगर में पत्रकार की हत्या कर उसका शव फिकवा दिया गया .लखीमपुर में पत्रकार नीलू को फर्जी मुठभेड़ में मारने की कोशिश की जा चुकी है .इस सब पर क्या किया जाए यह  सवाल आयोग ने मुझसे पूछा भी .पूरी रपट अगली पोस्ट में  .फिलहाल परंपरा पर लौटे .दिल्ली प्रवास के दौरान आलोक तोमर , मंगलेश डबराल ,वीरेंद्र  डंगवाल , आनद स्वरुप वर्मा ,संजय सिन्हा ,मनोहर नायक ,सतीश पेंडनेकर,परमानंद पांडे,विवेक सक्सेना ,प्रदीप श्रीवास्तव ,श्रीश चंद्र मिश्र ,अमित प्रकाश सिंह आदि से मुलाकात हुई .दिल्ली में जम मुझे किराए का घर खाली करने की नोटिस मिली तो मैंने खुद का घर बनाने की ठानी जिसके चलते  जनसत्ता सोसायटी बनी .कुल जमा डेढ़ साल में ११० फ्लैट बना कर दे दिया था जिसके बारे में मशहूर पत्रकार एसपी सिंह ने जनसत्ता के साथी ओम प्रकाश के सामने कहा था - पत्रकारों की सोसायटी बनाना मेढक तौलने जैसा असंभव काम है .और अब  विवेक सक्सेना इसी सोसायटी पर पुस्तक लिखने का विचार बना रहे है  जिसमे  कई बहादुरों  पर रौशनी पड़ सकती है  .उसी सोसायटी के अपने घर जाते हुए अरविन्द उप्रेती मिले तो फिर उन्हें साथ ही ले लिया .फिर जहाँ जहा गया सब  जगह परंपरा पर ही चर्चा .जनसत्ता में तो समूचा ब्यूरो ,रिपोर्टिंग और डेस्क  के साथी छत पर ले गए और घंटे भर तक परंपरा पर चर्चा हुई .सभी साथ थे .जनसत्ता में रहे  जुझारू साथी परमानंद पांडे यह जानकर हैरान हुए कि परंपरा से आलोक तोमर बाहर कैसे है.और उन्होंने बताया कि जब चंदा इकठ्ठा कर एक बहादुर पत्रकार के नवभारत में जाने पर विदाई समारोह हुआ तो प्रभाष जोशी ने कहा था - इन्होने जनसत्ता में खूंटी गाड़ी थी .जनसत्ता ने इन्हें जगह दी अब ये आसमान में कील ठोकने जा रहे ..........  .दूसरी तरफ मंगलेश डबराल ने कहा कि वे न्यास के कार्यक्रम में नहीं गए क्योकि उसके रंग ढंग से सहमत नही है .मनोहर नायक ने कहा वे परंपरा वाले तो है पर किसी न्यास के साथ नही है .
इससे पहले जनसत्ता के प्रोडक्शन एडिटर सत्य प्रकाश त्रिपाठी ,कोलकोता के संपादक रहे शम्भू नाथ शुक्ल ,अरुण त्रिपाठी ,प्रभाकर मणि त्रिपाठी और बहुत  लोगो
से बात हुई .सभी आहत थे .प्रेस क्लब में  बैठा तो दर्जन भर पत्रकार साथ बैठ गए.सबका यही तर्क था कि न्यास में सबकुछ है पर प्रभाष परंपरा तो नही है .दो दिन के प्रवास से यह साफ़ हो गया कि प्रभाष जोशी के नेतृत्व में जनसत्ता निकलने वाली टीम के ज्यादातर साथी आज भी प्रभाष जोशी की परंपरा पर चल रहे है  है भले ही वह किसी न्यास में न हो . 
बहरहाल आलोक तोमर से बात भी हुई कि अब यह सब बंद कर हम उस पुस्तक और वर्कशाप की तैयारी करे जो अगस्त -सितम्बर में भाषा पर की जाने वाली है .
.इंडियन एक्सप्रेस एम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष अरविन्द उप्रेती अपने नेता है और उनका निर्देश भी यही है कि अगर नामवर सिंह को  मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ और तरह तरह के लोगों से कोई शिकायत नहीं तो हम क्यों चिंता करे . लेकिन इस पर सभी एकमत है कि परंपरा तो इधर ही रहेगी .वे अपना न्यास संभाले और न्यास न्यास खेले..

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