31 अगस्त 2010

डूसू की राजनीति में इंकलाबी बदलाव के लिए मतदान करें! आइसा

आइसा कल, 31 अगस्त को 11.30 पर कला संकाय, उत्तरी परिसर में अभाविप-एन एस यू आई के उम्मीदवारों के नामांकन रद्द करने की मांग के लिए प्रदर्शन करेगी, जिन्होने हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया और चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया है।

घोषणापत्र डूसू चुनाव 2010 ऑल इंडिया स्टूडेंट्स’ एसोसिएशन

डूसू की राजनीति में इंकलाबी बदलाव के लिए मतदान करें!
आइसा कॉमनवेल्थ गेम्स के चलते हॉस्टलों को जबरन खाली कराए जाने और तानाशाही तरीके से सेमेस्टर सिस्टम को थोपे जाने का विरोध करने की शपथ लेती है। हम एक सक्रिय यौन उत्पीड़न शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के गठन और उसमें विश्वविद्यालय स्तर पर चुने गए छात्र प्रतिनिधियों की भागीदारी की मांग करते हैं, हम दिल्ली मैट्रो रेल प्राधिकरण द्वारा छात्रों को रियायती दर पर मैट्रो का पास उपलब्ध करने की मांग करते हैं।
डीयू प्रशासन को डूस में चुनाव सुधार की शुरुआत करनी चाहिए, विचारों की राजनीति की शुरुआत करने के लिए अध्यक्षीय बहस आयोजित करवानी चाहिए!
डूसू में अभाविप और एन एस यू आई की गुंडागर्दी और छात्रविरोधी संघ को नकार दो; छात्रों के अधिकारों, अकादमिक माहौल और कैंपस में लोकतंत्र के लिए आइसा को वोट दो!!!

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव ऐसे वक्त में आयोजित किए जा रहे हैं जब शिक्षा पर और खासतौर पर उच्च शिक्षा पर लगातार हमले हो रहे हैं, और पूरे देश में आम आदमी के जीवन और आजीविका के मुद्दों पर लगातार हमले जारी हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ ज्वलंत प्रश्न

 शिक्षकों, कक्षाओं, आधारभूत ढांचे की भारी कमी और पूरी तौर पर अक्षम परीक्षा शाखा के बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति विश्वविद्यालय पर तानाशाही तरीके से सेमेस्टर प्रणाली थोप रहे हैं, जो छात्रों के लिए भारी समस्या बन जाएगी, और इसके अलावा ये कैंपस में छात्र राजनीति पर रोक लगाने की एक चाल है। दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे बड़े विश्वविद्यालय में, जहाँ वार्षिक परीक्षाओं के मूल्यांकन में भारी अनियमितता व देरी होती है, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सेमेस्टर प्रणाली लागू करना (जिसमें अर्ध वार्षिक मूल्यांकन होगा) असल में और गड़बड़ी फैलाएगा और इससे छात्र समुदाय को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। आइसा ने शुरुआत से ही इसका विरोध किया है और आगे भी इस मुद्दे पर आइसा का संघर्ष जारी रहेगा।

कॉमनवेल्थ खेलों के चलते विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर के यूजी हॉस्टलस् को जबरन खाली करवाया गया है, और छात्रों को कोई वैकल्पिक आवास भी उपलब्ध नहीं करवाया गया है। ऐसे में आस-पास के इलाके में मकान-मालिकों ने मकानों के किराए बढ़ा दिए हैं और छात्रों को मजबूरन बढ़े हुए किराए देने पड़ रहे हैं। ऐसे बढ़ते हुए किरायों की मार छात्राओं को ज्यादा झेलनी पड़ रही है, क्योंकि वे सुरक्षा कारणों से सस्ते किराए के लिए खराब बस्तियों में नहीं जा सकतीं। आइसा ने इसका विरोध करते हुए नौ दिन की भूख हड़ताल की। आंतरिक मूल्यांकन प्रणाली पहले ही छात्रों के कैरियर को तबाह करने पर तुली हुई है। इसके फौरन पुनरीक्षण एवं प्रतिस्थापन की आवश्यकता है।

पिछले साल की परीक्षा फीस की बढ़ोतरी की तरह सामान्य तौर पर फीस बढ़ोतरी होती है, लेकिन इसका मुकाबला छात्रों को मिलने वाली सुविधाओं के मूल्य में बढ़ोतरी से नहीं किया जा सकता जिसके चलते कई छात्रों को पढ़ाई कर पाना भी मुश्किल लगने लगा है।

प्रतिदिन छात्रों की एक बड़ी संख्या मैट्रो से सफर करती है, लेकिन मैट्रो ने छात्रों को रियायती दर पर स्टूडेंटस’ पास देने से मना कर दिया है, और दिल्ली सरकार द्वारा डीटीसी के स्टूडेंटस् पास के मूल्य में भी कई गुना की वृद्धि कर दी गई है, इसके बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन औरडूसू ऐसे मामलो पर खामोश रहे। पुस्तकालयों में छात्रों की बढ़ती मांग के अनुसार पुस्तकें नहीं हैं। यू स्पेशल बसों में इतनी भारी कमी हो गई है कि अब तो ये लगभग बंद होने की कगार पर है।

पिछले कुछ सालों में, यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कोई जांच तक करने से इन्कार कर दिया है, और इसके बदले खुद पीड़ितों को ही इसका जिम्मदार ठहराया है। इस बात की जिंदा मिसाल कॉलेज के प्रधानाचार्यों के वे वक्तव्य हैं जिनमें उन्होने महिलाओं को ही इन अपराधों का जिम्मेदार ठहराया है।

उत्तर-पूर्व के छात्रों को आमतौर पर भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, लेकिन उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की बजाय, दिल्ली पुलिस और कुछ प्रसिद्ध महाविालयों के प्रधानाचार्य ये तर्क देते हैं कि इसकी वजह इन छात्रों के कपड़े हैं।

दिल्ली विश्वविालय के शारीरिक रूप से अन्यतम सक्षम छात्रों को भी आधारभूत सुविधाओं और पर्याप्त अधिसंरचना की कमी के चलते भारी भेदभाव व असुविधा का सामना करना पड़ता है। विश्वविद्यालय में छात्रवृतियां लगभग नदारद हैं।

हिन्दी माध्यम के छात्रों के लिए चलने वाली सुधारात्मक कक्षाएं आयोजित नहीं की जाती, और उनके लिए पुस्तकालयों में पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं हैं।

आइसा की पहलकदमियां

डूसू में ना होने के बावजूद, आइसा ने पूरे साल छात्रों को उन महत्वपूर्ण मुद्दों पर संगठित किया है जो हमारे सामने हैं। जब विभिन्न विषयों और कक्षाओं के छात्रों की फीस में 400 प्रतिशत की वृद्धि की गई तो आइसा ने इस कदम का विरोध करने के लिए 48 घंटे की भूख हड़ताल की थी, और इसके बाद वीसी ने छात्रों से ये वादा किया था कि आइंदा छात्र समुदाय से बातचीत किए बिना इस तरह फीस वृद्धि नहीं कीजाएगी। हमने सेमेस्टर प्रणाली और इससे होने वाली समस्याओं, और वीसी द्वारा इसे तानाशाही तरीके से थोपे जाने के असली कारणों के बारे में छात्रों को बताने के लिए एक विशाल चेतना अभियान आयोजित किया था। आइसा ने डीटीसी के स्टूडेंट्स पास और मैट्रो के किराए में वृद्धि के विरोध में भी कैंपस में कई प्रदर्शन आयोजित किए हैं। इन प्रदर्शनों में हमने बार-बार मैट्रो में छात्रों के लिए रियायती पास मुहैया करा जाने की भी मांग उठाई है। फरवरी में आइसा ने ’ऑनर किलिंग’ और खाप पंचायतों और नैतिकता के नाम पर गुंडगर्दी करने वाले भगवा गुंडों के खिलाफ एक विशाल मार्च और जनसभा का आयोजन किया था।

अगस्त में आइसा ने कॉमनवेल्थ खेलों के चलते उत्तरी परिसर के यू जी हॉस्टलों को जबरन खाली कराए जाने के खिलाफ 9 दिन लंबी भूख हड़ताल में हिस्सेदारी की थी। इसके अलावा हमने कई आइसा के सांस्कृतिक संगठन परिवेश के जरिए कई मुद्दों पर बातचीत, फिल्म स्क्रीनिंग और नुक्कड़ नाटकों का भी आयोजन किया है।

अभाविप और एन एस यू आई के नेतृत्व वाली वर्तमान डूसू छात्रों के सभी मुद्दों पर हमेंशा खामोश और असंबद्ध रही है। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय का वही आम रवैया दिखाई पड़ता है जहाँ साल दर साल दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ एन एस यू आई या अ भा वि प के नियंत्रण में रहा है और इन दोनो ही संगठनों को कभी उन ज्वलंत मुद्दों को उठाते या उन पर संघर्ष करते नहीं देखा जाता जो दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रभावित करते हैं, चाहे वो महाविद्यालयों में लगातार फीस वृद्धि हो, या हॉस्टलों में मूलभूत सुविधाओं के अभावों का मुद्दा हो। इसके बरअक्स डूसू के ये चुने हुए पदाधिकारी अक्सर सेमिनारों में हुडदंग मचाने वाली भीड़ का नेतृत्व करते हुए और यहाँ तक कि फैकल्टी मेम्बर्स पर हमला करते हुए दिखते हैं। छात्रों के मुद्दों पर आवाज़ उठाने की बजाय उनका काम सिर्फ अपनी पैरेंट पार्टियों, कॉग्रेस या भाजपा के पास अपनी हाजिरी दर्ज करवाना हो जाता है, जिनका एकमात्र एजेंडा शिक्षा का व्यवसायीकरण या भगवाकरण है।

इसके बरअक्स, आइसा का यकीन हमेशा इस बात में रहा है कि छात्र संघ संघर्ष का मंच होता है और जहाँ भी हम छात्रसंघ में जीते हैं वहां हमने इस बात को साबित किया है, चाहे वो जे एन यू हो या इलाहाबाद, बी एच यू या श्रीनगर हो। पिछले दो-तीन सालों में, आइसा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रगतिशील छात्र राजनीति की एक मजबूत धुरी के रूप में उभरी है, और छात्रसंघ चुनावों में भी हमारे मतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। परिसर में आइसा अकेले ऐसे छात्र संगठन के रूप में जानी जाती है जो पूरे साल छात्रों और देश की आम जनता के मुद्दों पर लगातार संघर्ष करती है। विचारों पर आधारित राजनीति, छात् समुदाय और देश की पीड़ित जनता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता के चलते आइसा निम्नलिखित एजेंडा पर 2010 का डूसू चुनाव लड़ रही है।

आइसा का एजेंडा

आइसा उपरलिखित आधारों पर तानाशाही ढंग से सेमेस्टर प्रणाली के थोपे जाने का विरोध करती है, और इस मुद्दे पर आइसा का संघर्ष जारी रहेगा। हम स्नातक विषयों में सेमेस्टर प्रणाली पर तुरंत रोक लगाने की मांग करते हैं।

हम मैट्रों में छात्रों को रियायती पास देने और छात्रों के डीटीसी बस पास की मूल्य वृद्धि को वापस लेने की मांग करते हैं।

आइसा कॉमनवेल्थ खेलों के चलते हॉस्टलों को जबरन खाली करवाए जाने का विरोध करती है, और हम वर्तमान सेमेस्टर में हॉस्टलर्स से जबरन हॉस्टल खाली करवाए जाने पर उनकी फीस माफी की मांग करते हैं। हम मरम्मत के नाम पर हॉस्टल चार्जेस में वृद्धि ना किए जाने की भी मांग  करते हैं।

ओ बी सी आरक्षण के चलते सीट वृद्धि को देखते हुए, आइसा वर्तमान हॉस्टलों की क्षमतावृद्धि, और
महिला महाविद्यालयों में हॉस्टल निमार्ण की मांग करती है।

हम एक सक्रिय यौन उत्पीड़न शिकायत निवारण प्रकोष्ठ की मांग करते हैं, और उसमें विश्वविद्यालय स्तर पर चुने गए छात्र प्रतिनिधियों की भागीदारी भी आइसा की मुख्य मांग है, ताकि
दिल्ली विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों और अन्य प्रकोष्ठों में एक लिंग-संवेदनशील माहौल का निमार्ण हो सके।

हम विश्वविद्यालय में स्नातक व स्नातकोत्तर छात्रों के लिए मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृतियों की शुरुआत करने की मांग करते हैं।

हम डूटा की तर्ज पर आम सभा की परंपरा की स्थापना की मांग करते हैं ताकि छात्र समुदाय की जरूरतों के प्रति डूसू के पदाधिकारियों की जवाबदेही और तदनुरूप कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जा सके।

इन मुद्दो पर ध्यान केंद्रित करते हुए आइसा एक जिम्मेदार, उत्तरदायी और संघर्षशील डूसू का वादा करती है। इस एजेंडे और नजरिए के साथ आइसा आपसे डूसू के लिए निम्नलिखित उम्मीदवारों के पूरे पैनल के लिए मतदान के लिए अपील करती है।

डूसू 2010 के लिए आइसा का पैनल

अध्यक्ष
श्वेता राज
हिन्दू महाविद्यालय, बैलट क्र॰ - 8










उपाध्यक्ष
अकरम अख्तर
लॉ सैन्टर प्, बैलट क्र॰ - 2









सचिव
सुशील कुमार
हंसराज महाविद्यालय, बैलट क्र॰ - 11










सह-सचिव
राजशेखर
जाकिर हुसैन महाविद्यालय, बैलट क्र॰ - 7









दिल्ली विश्वविद्यालय में इंकलाबी बदलाव के लिए वोट करें!

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ को आम छात्रों की आवाज़ और संघर्षों का मंच बनाएं!

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