दिनकर कपूर
सामाजिक न्याय, किसान और वाम-जनवादी आंदोलन की ताकतों ने शहीद स्मारक पर किया धरना-प्रदर्षन, भारी संख्या में जुटी जनता आदिवासी समाज की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की गारंटी के लिए तत्काल रैपिड सर्वे करवाए मायावती सरकार
सामाजिक न्याय, किसान और वाम-जनवादी आंदोलन की ताकतों ने आज किसान और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर भारी भीड़ के साथ शहीद समारक स्थल पर धरना-प्रदर्षन किया और राजनैतिक प्रस्ताव लिए। कार्यक्रम के बाद आदिवासियों के आरक्षण के सवाल पर एक प्रतिनिधिमंडल ने निदेषक, पंचायत राज से वार्ता की। वार्ता में इस मांग को जोरदार ढंग से उठाया गया कि प्रदेष सरकार तत्काल रैपिड सर्वे कराकर आदिवासियों के पंचायत चुनाव में भागीदारी को सुनिष्चित करे और सरकार इसे कर पाने में यदि सक्षम नहीं है तो संबंधित जिलों में पंचायत चुनावों पर रोक लगायी जाय।
जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने प्रदर्षनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मायावती सरकार द्वारा आज के कार्यक्रम में आदिवासियों की भागीदारी को रोकने की तमाम कोषिषों के बावजूद भारी तादाद में लोगों की भागीदारी यह साबित करती है कि जनता में सरकारों के खिलाफ गुस्सा है और आंदोलन के जरिए इसे वह जाहिर भी कर रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की 18 लाख आबादी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित करने की यह एक बहुत बड़ी साजिष है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे पहले ही हल हो जाना चाहिए था, लेकिन सरकारें समाज के कमजोर तबकों के मुद्दों पर संवेदनषील नहीं हैं। मायावती सरकार से सवाल करते हुए उन्होंने कहा कि यदि वह आदिवासियों के आरक्षण को लागू नहीं करना चाहती है तो वह इस बारे में अपना रुख साफ करे, जिससे कि न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से इस सवाल पर पहल ली जा सके।
प्रदेष में चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए श्री सिंह ने कहा किसान समस्यायों की जड़ में 1894,भूमि अधिग्रहण कानून और सेज जैसे कानून हैं जिन्हें हरहाल में रद्द किया जाना चाहिए। आज कांग्रेस, भाजपा, सपा जैसी पार्टियो किसानों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रही हैं लेकिन अपनी सरकारों में इन्होंने इन कानूनों के पक्ष में ही काम किया। जन संघर्ष मोर्चा नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेष में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा से हटकर एक नया विकल्प को खड़ा करने की जरूरत है।
कार्यक्रम को पूर्व सांसद इलियास आजमी, राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेष अध्यक्ष राम आसरे वर्मा, पूर्व मंत्री व राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव कौषल किषोर, बेल्लारी कर्नाटक किसान आंदोलन के नेता हेमन्त, पूर्व आई0 जी0 एस आर दारापुरी, भाकपा(माले) कानू सन्याल के केन्द्रीय कमेटी सदस्य सब्बर हुसैन, आल इण्डिया खड़गवंषी (खरवार) महासभा के प्रदेष प्रभारी प्रेमचन्द आदि ने प्रमुख रूप से संबोधित किया। संचालन आदिवासी वनवासी महासभा के संयोजक गुलाब चन्द गोड़ ने किया।
प्रस्ताव में कहा गया कि 18 लाख की आबादी वाली गोड़, खरवार, चेरो, पनिका, बैगा, भुईयां, अगरिया जैसी सोलह आदिवासी जातियाँ, जिन्हे पहले अनुसूचित जाति में रहने की वजह से अनुसूचित जाति की सीटों पर चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त था, उन्हे चुनाव लड़ने के अधिकार से ही खारिज कर दिया गया है। ढेर सारे गांवों में, खासतौर पर सोनभद्र और मिर्जापुर जनपदों में जहां आदिवासीयों की बहुतायत जनसंख्या रहती है, ग्राम प्रधान और बीडीसी के लिए सदस्य ही नहीं मिल रहे है क्योकि इन गांवों में बसने वाले जो आदिवासी है पहले वह अनुसूचित जाति में थे और उन्हे 2003 में आदिवासी का दर्जा तो मिल गया पर उ0 प्र0 सरकार द्वारा 2003 के आधार पर उनकी जनगणना न कराने के कारण यह संकट पैदा हुआ है। इससे आदिवासियों में बड़े पैमाने पर बेचैनी है और उन्होने कई बार धरना भी दिया और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया कि रैपिड़ सर्वे कराकर उनकी आबादी के हिसाब से पंचायतों में उनके लिए सीटें आरक्षित की जाएं पर उत्तर प्रदेष की सरकार उनकी अनसुनी करती रही। इसलिए उनके लोकतोत्रिक अधिकारों पर ही खतरा पैदा हो गया है। कार्यक्रम में पंचायत चुनाव में रैपिड़ सर्वे कराकर आदिवासियों के लिए आबादी के अनुरूप सीट आरक्षित करने, कोल,मुसहर को आदिवासी का दर्जा देने की मांग को पुरजोर ढ़ग से उठाया गया।
प्रस्ताव में अति पिछड़े, पिछड़े मुसलमानों का आरक्षण कोटा अलग करने और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिषों के अनुरूप दलित अल्पसंख्यकों को दलितों की श्रेणी में शामिल करने की मांग को उठाया गया है। प्रस्ताव में कहा गया कि पूरा प्रदेष किसान आंदोलन की चपेट में है, किसानों की जानें जा रही है। लेकिन किसान मुद्दों पर बड़ी-बड़ी बात करने वाली कांग्रेस की अगुवाई में चल रही यूपीए सरकार 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द करने और नया कानून बनाने को प्राथमिकता में नहीं ले रही है, जबकि अमरीका को खुष करने के लिए परमाणु दायित्व बिल को भाजपा के सहयोग से लोकसभा में पारित करा लिया गया। प्रस्ताव में किसानों की 70 फीसदी जमीन पूंजीपति द्वारा खरीदने और 30 फीसदी सरकार द्वारा खरीदकर पूंजीपति को देने के भूमि अधिग्रहण कानून के संषोधित फामूर्ले को रद्द करने की मांग की गयी है।
प्रस्ताव में 1894,भूमि अधिग्रहण कानून के रद्द न होने तक किसानों से एक इंच भी जमीन न लेने और किसानों से जमीन की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगाने की मांग के साथ ही मायावती सरकार के जिन अधिकारियों ने किसानों की हत्या की है उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाने की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है।
प्रस्ताव में कार्पोरेट घरानों और निजी कम्पनियों के लिए सरकारों द्वारा किसानों की जमीनें लेने की कोषिषों की हर स्तर पर मुखालफत करने की घोषणा की गयी है। प्रस्ताव में कृषि मूल्य आयोग की सिफारिषों को वैधानिक दर्जा देने और मायावती सरकार द्वारा करायी जा रही प्रदेष के प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाने को प्रमुख रूप से उठाया गया है।
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