30 अगस्त 2010

आईएम पर पाबन्दी से उभरे कुछ सवाल

मसीहुद्दीन संजरी
यदि कोई संगठन आतंकवाद जैसे घृणित अपराध में संलिप्त हो और समकालीन सरकार उस पर प्रतिबंध न लगाए यह अतयंत आश्चर्य की बात है। कथित रुप से दिल्ली, अहमदाबाद और जयपुर धमाकों को अंजाम देने वाले संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ;आईएमद्ध के प्रति सरकार का रवैया आरंभ से ही संदेह पैदा करने वाला रहा है। बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतिफ, साजिद और इंस्पेक्टर शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर पहले से ही संदेहास्पद एनकाउंटर का फर्जी होना तय माना जाने लगा था और आईएम के काल्पनिक होने की बहस को स्वीकार्यता प्राप्त होती जा रही थी।

ऐसे में चार मई को अचानक गृह मंत्रालय ने आईएम के आतंकवादी संगठन होने की पुष्टि करते हुए प्रतिबन्धित कर आश्चर्य में डाल दिया। जिस प्रकार राष्ट्ीय मानवाधिकार आयोग ने पहले बाटला हाउस मुठभेड़ जिसमें कथित रुप से इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी शामिल थे, को सही ठहराते हुए रिपोर्ट जारी की फिर बाद में उसे फर्जी मुठभेड़ों की सूची में भी शामिल कर लिया था। इस घटना के लगभग बीस महीने से भी अधिक समय तक सरकार ने चुप्पी साधे रखी फिर आचानक पाबंदी की घोषणा कर दिया। वैसे भी आईएम का अस्तित्व आरंभ से ही रहस्यमय रहा है और अब इसकी अचानक और अप्रत्याशित पाबंदी भी कई प्रकार की जिज्ञासा और अटकलों को जन्म देती है।

फरवरी में गृह सचिव जीके पिल्लई ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि उनके मंत्रालय का आईएम पर प्रतिबंध लगाने का कोई विचार नहीं है। मतलब बिल्कुल स्पष्ट था कि कथित रुप से इस आतंकवादी संगठन के किसी ढ़ाचे, कार्यलय या पदाधिकारियों एवं सदस्यों के बारे में सरकार के पास कोई ठोस जानकारी नहीं थी वरना ऐसे घिनौने खेल में लिप्त किसी संगठन या गुट पर प्रतिबंध लगाने का इरादा न रखेने का क्या अर्थ है। गृहमंत्रालय की ओर से प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची जारी किए हुए अभी एक महीने से भी कम समय हुआ है परंतु उसमें आईएम का कहीं कोई नाम नहीं है। फिर अचानक इतने अल्प समय में सरकार के हाथ वह कौन सा सबूत लग गया जिसके आधार पर पाबंदी लगायी गयी। निःसंदेह जनता को यह भी जानने का हक है कि गृहमंत्रालय की सूची में सीमी के मुखौटा संगठनों में आईएम का नाम शामिल न करने का कारण क्या था और किस आधार पर सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि यह सीमी का मुखौटा संगठन है। अभिनव भारत, सनातन संस्था और श्रीराम सेना जैसे संगठनों पर बम धमाकों के आरोप लगते रहे हैं। गोवा धमाकों में इनके सदस्य बम ले जाते समय फट जाने के कारण मारे भी गए। एटीएस का दावा है कि सनातन संस्था के सदस्यों के आतंकवाद में लिप्त होने के उसके पास प्रमाण भी हैं। मालेगांव कब्रस्तान और हमीदिया मस्जिद धमाकों के आरोप में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे के अलावा इन्हीं संगठनों के कई सदस्यों के खिलाफ आरोप पत्र तक दाखिल हो चुके है। नांदेड और कानपुर में बम बनाते समय विस्फोट हो जाने के कारण बजंरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कई सदस्यों के पास से भारी मात्रा में गोला बारुद भी बरामद हुआ। यह बात किसी से छुपी हुयी नहीं है कि यह सभी आरएसएस से जुड़े हुए संगठन हैं। यह सभी आरएसएस से जुडे़ हुए संगठन हैं और इनकी समाज सेवा पर केसरिया संगठन और इसके राजनीतिक धड़े बीजेपी को भी गर्व है। यह और बात है कि आतंकवादी गतिविधियों पकड़े जाने के बाद संघ ने इनसे संबंध से इनकार किया है और सुरक्षा एजेन्सियों के लिए यही एक इनकार पर्याप्त भी था।

अब अजमेर शरीफ धमाकों के आरोपों में इन्हीं संगठनों के सदस्यों के साथ आरएसएस के कार्यकर्ता प्रचारक देवेन्द्र गुप्ता की गिरफ्तारी के बाद संघ के होठ बंद हैं और उसकी परेशानी समझी जा सकती है। संघ से जुड़े हुए राजनैतिक दलों की भी बहुत सतर्क प्रतिक्रिया आयी है। दूसरे राजनीतिक दलों में केसरिया मानसिकता रखने वाले राजनेता और बुद्धिजीवीयों के सामने एक विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गयी है। हिंदुत्वादी संगठनों की मुस्लिम दुश्मनी को राष्ट्वाद और देश भक्ति रुप देने वाले नफरत के सौदागरी को समाज सेवा वेश में प्रस्तुत करने वाले तत्व तथा शासन प्रशासन में मौजूद उनके हमदर्द ही आईएम पर इस अचानक और अप्रत्याशित प्रतिबंध के कारक तो नहीं।

गृहमंत्रालय की ओर से विधिवत रुप से प्रतिबंधित संगठनों की सूची जारी होने के कुछ ही दिनों के भीतर आईएम पर पाबंदी के कारण क्या है जबकि इस बीच देश के किसी भी भाग में कोई आतंकवादी घटना नहीं घटी। आईएम का नेटवर्क किन प्रांतों में सक्रिय है, इसके कार्यालय और पदाधिकारियों कौन हैं और किन प्रांतों ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है? अगर इस दौरान ऐसा कोई रहस्योदघाटन नहीं हुआ है तो सरकार के इस कदम पर देश के नागरिकों चिंतत होना लाजिमी है।

े पहले मालेगांव धमाकों के संबंध हिन्दुत्वादी संगठनों के सदस्यों की गिरफ्तारी और अब अजमेर शरीफ मामले में आरएसएस प्रचारक देवेंद्र गुप्ता का हिरासत में लिए जाने से साम्प्रदायिक शक्तियों के हौसले पस्त हो रहे थे। दूसरी ओर मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस जैसे धमाकों की पुनः उन्हीं लाइनों पर जांच करने का नैतिक दबाव बढ़ रहा था जिस पर स्वर्गीय हेमन्त करकरे ने तफ्तीश की थी और यह चेहरे बेनकाब हुए थे। असल आतंकवादीयों का भेद खुलने के कारण ही हर आतंकवादी घटना के बाद मुस्लिम युवकों की गिर्तारी, उन्हें यातनाएं देने और मुल्जिम बनाए जाने की परंपरा को गहरा आघात लगा था। पुणे की जर्मन बेकरी धमाकों के तुरंत बाद ही आईएम और मुस्लिम युवकों के नाम उछाले जाने के बावजूद अभिनव भारत और सनातन संस्था पर उगलियां उठने लगी थीं। ऐसे में इस अप्रत्याशित पाबंदी की घोषणा से इस संदेह को बल मिलता है कि सिमी की तरह आईएम प्रतिबंध लगने के पश्चात कहीं उसके सदस्य होने के आरोप में मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी का सिलसिला एक बार फिर न शुरु हो जाए। इस प्रकार एक बार फिर आतंकवाद के संबंध में जनता के बदलते हुए रुझान का रुख मुसलमानों की तरफ मोड़कर मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस सरीखे मामलों की तफ्तीश को हमेशा के लिए दफन कर दिया जाए।

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