01 सितंबर 2010

दैनिक जागरण अतिसर्तकता से क्यों घबरा रहा है?


दैनिक जागरण ने 31 अगस्त 2010 को अपने संपादकीय ‘अति सर्तकता’ में ‘चिंता’ जताई है कि बाबरी मस्जिद पर जैसे-जैसे फैसला आने का समय नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे प्रदेश में प्रशासनिक स्तर पर सक्रियता क्यों बढ़ाई जा रही है। यहां यह सवाल उठता है कि बानबे की बजरंगी करतूतों से डरा हुआ समाज जब फिर से संघ गिरोह द्वारा खुलेआम इस धमकी से कि यदि फैसला उनके खिलाफ जाता है तो फिर से सड़क पर उतरेंगे, डरा हुआ है और उसके मन में बानबे की विभीषिका फिर से जिंदा हो उठी है ऐसे में हर अमन पंसद नागरिक इस बार एक चौकस व्यवस्था चाहता है। तब देश के सबसे ज्यादा लोगों के बीच पढ़ा जाने वाला अखबार बहुसंख्क जनता की इस चिंता को क्यों नजरंदाज कर रहा है। दैनिक जागरण को आम लोगों की तरह यह क्यों नहीं लगता कि अगर बानबे में तत्कालीन कल्याण सरकार ने चाक चौबंध व्यवस्था की होती तो बाबरी मस्जिद के विध्वंस जैसी बड़ी आतंकवादी घटना न हो पाती और न ही इतने लोग मारे गए होते।
दरअसल मामला समझदारी या मूर्खता का नहीं है। सवाल इस अखबार की इस देश के लोकतंत्र और उसके धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता का है। जिस पर यह अखबार हमेशा कमजोर दिखा है। दरअसल उसकी यह कमजोरी ही थी कि उसने बानबे में संघ के पक्ष में ‘सरयू लाल हुयी’ टाइप की अफवाह फैलाने वाली खबरें लिखीं और संघियों को उत्पात करने के लिए प्ररित किया। जब प्रशासन से जुड़े हुए अधिकारी संघी गिरोहों में शामिल होकर, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की सुरक्षा की जिम्मेदारी से पीछे हटकर कारसेवकों को खुलेआम मदद पहुंचा रहे थे तब इस अखबार ने इतनी बड़ी प्रशासनिक विफलता को कभी खबर का हिस्सा नहीं बनाया। शायद तब उसे ये सरकारी अधिकारी अपना ‘राजधर्म’ निभाने वाले लगे हों। जबकि वहीं दूसरे अखबारों ने प्रशासनिक अधिकारियों के सांप्रदायिक रवैये के खिलाफ खबरें लिखीं। आज जबकि संघ पस्त है और प्रज्ञा-पुरोहित जैसे इनके गुर्गों को पुलिस पकड़ रही है और बाकी मारे-मारे, भागे-भागे फिर रहे हैं और सफाई देते-देते बेहाल हैं, तब शायद दैनिक जागरण चाक चौबंद व्यवस्था पर सवाल उठाकर बजरंगियों को फिर से तैयार रहने के लिए माहौल बना रहा है। शायद दैनिक जागरण बानबे के संघी प्रशासनिक अधिकारियों की तरह, जब बजरंगियों ने ‘ये अंदर की बात है, पुलिस हमारे साथ है’ का उद्घोष करके पुलिस के अपने साथ होने का प्रमाण दिया था, जैसे खुली संघी पक्षधरता वाले पुलिस को न पाकर परेशान है।

संपादकीय के अंत में अखबार ने कहा है कि इस मसले का हल राजनीतिक दलों की आपसी बातचीत से हो सकता था लेकिन किसी ने इस पर ईमानदारी से पहल नहीं की। दरअसल, दैनिक जागरण यहां संघ परिवार के इस तर्क को ही शब्द दे रहा है कि मसले का हल कोर्ट के बाहर राजनीतिक स्तर पर हो यानी संसद में कानूून बनाकर। दूसरे शब्दों में जागरण बहुसंख्यकवाद में तब्दील हो चुके इस राजनीतिक व्यवस्था में इस मुद्दे का हल बहुसंख्यकों के पक्ष में तर्क के बजाय आस्था के बहाने करना चाहता है।

द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम, विजय प्रताप, राजीव यादव, शाह आलम, ऋषि सिंह, अवनीश राय, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अरुण उरांव, विवके मिश्रा, देवाशीष प्रसून, अंशु माला सिंह, शालिनी बाजपेई, महेश यादव, संदीप दूबे, तारिक शफीक, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, शिवदास, लक्ष्मण प्रसाद, हरेराम मिश्रा, मसीहुद्दीन संजरी, राकेश, रवि राव।
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) की दिल्ली और यूपी ईकाई द्वारा जारी।
संपर्क सूत्र उत्तर प्रदेश - 09415254919, 009452800752
संपर्क सूत्र दिल्ली - 09873672153, 09015898445, 09910638355, 09313129941
Email- jucsindia@gmail.com

6 टिप्‍पणियां:

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

एकदम सटीक विश्लेषण...

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

नई पीढ़ी से यही आशा की जाती है कि पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों कि आँखें खोलने के लिए लिखे और उनमें जागरूकता पैदा करें. देश में चैन और अमन से ढेरों समस्याएं है जिनसे कि निपटाना है. आम आदमी न दंगा चाहता और न हिंसा. उसे सिर्फ दिन भर कि मेहनत के बाद रात में चैन से परिवार के साथ दो रोटी मिलने में ही सुकून मिलता है.

Urmi ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!

Safarchand ने कहा…

"saryu laal hui" wali khabar ka main pratyaksh gawah hoon..
Rahi baat ati satarkta ki..to wo zaroori hai..koi akhbaar xchahe ya na chahe...duniya akhbaaroon se nahi..insaano se chalti hai..aashaa hi nahi vishwas rakhna hooga INSANIYAT par...
Nai peedhi ke is aalekh se main sahamat hoon...

anoop joshi ने कहा…

bahut swedensheel mamla hai. or mandir bane ya mazid, hai to uperwale ki jagah.

me to kahta hun waha chandra shekar or asfakh ulla khan ka smarak bana do...........

anoop joshi ने कहा…

bahut swedensheel mamla hai. or mandir bane ya mazid, hai to uperwale ki jagah.

me to kahta hun waha chandra shekar or asfakh ulla khan ka smarak bana do...........

अपना समय