07 सितंबर 2010

साम्प्रदायिक खबरों को रोकने के लिए भारतीय प्रेस परिषद पहुंचे

मीडिया स्टडीज ग्रुप और जर्नलिस्टस यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (JUCS) की तरफ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया, विजय प्रताप, शाह आलम, और ऋषि कुमार सिंह आज अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद पर अदालती फैसले के मद्देनजर परिषद द्वारा खबरों पर निगरानी रखने की मांग को लेकर भारतीय प्रेस परिषद पहुंचे।


प्रति-
अध्यक्ष ,
भारतीय प्रेस परिषद
नई दिल्ली

विषय- अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद पर अदालती फैसले के मद्देनजर परिषद द्वारा खबरों पर निगरानी रखने की अपेक्षा

हमें समाचार माध्यमों से जानकारी मिली है कि अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद संबंधी मुकदमें का फैसला कुछ दिनों में आने वाला है।न्यायालय ये फैसला करेगी कि बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि पर मालिकाना हक किसका है ।हमने ये पाया है कि साम्प्रदायिक शक्तियां एक बार फिर सामाजिक वातावरण बिगाडने की पृष्ठभूमि तैयार करने में सक्रिय हो गई है। साम्प्रदायिक दंगे भड़काने या साम्प्रदायिक माहौल को खराब करने में मीडिया की भी प्रमुख भूमिका रही है। प्रेस परिषद ने भी अपने अध्ययन में ये पाया है कि कुछ मीडिया संस्थानों की साम्प्रदायिक दंगे फैलाने में अहम भूमिका रही है।

हम समाज के जागरूक नागरिक और संस्था होने के नाते मीडिया द्वारा किए जाने वाले समाज और संविधान विरोधी व्यवहारों को लेकर अपनी एक जम्मेदारी महसूस करते हैं। हमने समय-समय पर समाचारों या समाचार माध्यमों की उन दूसरी सामग्रियों के के प्रति पाठकों, दर्शको और श्रोताओं को सचेत करते हैं जिसका समाज पर खराब असर होता है। मीडिया में काम करने वाले लोगों के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हुए हमने उनके साथ एक संवाद बनाने की प्रक्रिया अपनायी और हमने समय-समय पर मीडिया के व्यवहारों को दुरूस्त करने का एक मौहाल बनाने की कोशिश की है। अतीत की तरह इस बार भी हमने मीडियाकर्मियों के बीच यह संवाद किया कि किस तरह से खबरों को साम्प्रदायिक होने से बचाया जा सकता है। हमने ये भी अपेक्षा की कि मीडिया में जो लोग साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ मिलकर वातावरण खराब करना चाहते हैं, उनपर भी हम नजर रखेंगे। उनकी खबरों या दूसरी सामग्री के प्रति लोगों को सचेत करने की प्रक्रिया चलाएंगे। हम आपकी सुविधा के लिए मीडियाकर्मियों के नाम की गई एक अपील की प्रति संलग्न कर रहे हैं। साथ ही हम कैसे खबरों के साम्प्रदायिक होने से बच सकते हैं और खबरों की साम्प्रदायिक सदभाव बनाने में भूमिका को लेकर भी अपने सुझाव अपने साथियों के समक्ष पेश किया है।

हम आपसे अनुरोध करना चाहते हैं कि अतीत के अनुभवों के मद्देनजर परिषद को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। परिषद को भी खबरों और दूसरी सामग्री पर निगाह रखने का एक ढांचा विकसित करना चाहिए। ये कदम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के आने से पहले तत्काल उठाना चाहिए। संस्थान की भूमिका साम्प्रदायिक दंगों के बाद मीडिया संस्थानों की भूमिका की जांच या अध्ययन करने में तो देखी गई है लेकिन हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि हमें घटनाओं की आशंका के आलोक में ही कोई कारगऱ कदम उठाना चाहिए। हमें भरोसा है कि आप इस मामले की संवेदनशीलता को महसूस करते हुए इसे गंभीरता से लेंगे।

हम है
मीडिया स्टडीज ग्रुप एवं जर्नलिस्टस यूनियन फ़ॉर सिविल सोसायटी (JUCS)

3 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

एक तरफ हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं और दूसरी ओर जन सामान्य को भड़काने वाली खबरों के लिए नजर रखने की बात करते हैं. सबसे पहले मीडिया और जनर्लिस्ट को अपने को निष्पक्ष और तटस्थ रखकर अपनी रचनाधर्मिता का पालन करना सीखना होगा. हम अगर खुद ही सुधर जाएँ तो नजर किसपर? हाँ वे सांप्रदायिक ताकतें भी दम तोड़ देंगी अगर उनको हम ही हवा न दें. हम वहाँ पहुँच जाते हैं हैं जहाँ आग लगी होती है और वहाँ जाने से कतराते हैं जहाँ की हकीकत सबके सामने लानी होती है. हमें अपनी आचार संहिता का पालन करना होगा फिर प्रेस परिषद् से आग्रह करना उचित है.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

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Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

अपना समय