अयोध्या फिल्म महोत्सव अपने चौथे संस्करण की दहलीज पर है। 2006 से शुरु हुआ यह सिलसिला दरअसल अपने शहर की पहचान को बदलने की जद्दोजहद का परिणाम था। उस पहचान के खिलाफ जो फासीवादी सियासत ने गढ़ी थी और जिसके चलते लोग गुजरते वक्त को इससे गिनते थे कब यहां नरबलियां हुयी, कब हमारे आशियानें जलाए गए, कब घंटों की आवाज सायरनों में तब्दील हो गयी और रंग-रोगन वाली हमारी सौहार्द की संस्कृति के सब रंग बेरंग हो गए। लेकिन इस सिलसिले की शुरुआत ने धीरे-धीरे ही सही शहर के स्मृति पटल पर अपनी उम्र गिनने का एक नया अंकगणित गढ़ना शुरु कर दिया, आज हम कह सकते हैं कि हमने कब से ‘प्रतिरोध की संस्कृति और अपनी साझी विरासत’ का जश्न मनाने के लिए फिल्म महोत्सव शुरु किया था। कब आवाम के सिनेमा के इस सिलसिले ने अपना राब्ता राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की साझी विरासत-साझी शहादत से जोड़ ली।
इस सफर में हमने दुनिया भर के लोगों के सघंर्षों, उन संघर्षों के सतरंगी आयामों को समझाने वाली फिल्मों का प्रदर्शन ही नहीं किया बल्कि इस आयोजन से प्राप्त ऊर्जा ने हमसे ‘राइजिंग फ्राम दि ऐशेज’ जैसी फिल्म भी दुनिया के सामने अपने शहर की वास्तविक छवि को रखने के लिए बनवाई। यह फिल्म पचहत्तर वर्षीय उस शरीफ चचा की कहानी है जो बिना धर्मों का फर्क किए लावारिस लाशों को मानवीय गरिमा प्रदान करते हैं। आखिर गंगा-जमुनी तहजीब और धार्मिक सौहार्द के इस शहर की आत्मा भी तो यही है। इस सफर में हमारा खास जोर फिल्म माध्यम से जुड़े नए और युवा साथियों को अपना हमसफर बनाना भी रहा। जिसके तहत हमने पिछले साल ‘भगवा युद्ध’ और ‘साइलेंट चम्बल’ फिल्मों को जारी किया। आवाम के सिनेमा के इस सफर में शहर के बाहर से फिल्मकार और सृजनात्मक आंदोलनों में लगे साथियों ने अपने खर्चे से इस आयोजन में शामिल होकर हमारा हौसला बढ़ाया। और हमें इसे और बेहतर और व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
साथियों, आगामी 19 से 21 दिसंबर2010 तक हाने वाले तीन दिवसीय इस फिल्म महोत्सव का आयोजन अयोध्या - फैजाबाद में होने जा रहा है, ऐसे में इतिहास में नया अंकगणित गढ़ने और लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने वाली ताकतों को शिकस्त देने के लिए आप हमारे इस सफर में शिरकत की दरकार है.
इस सफर में हमने दुनिया भर के लोगों के सघंर्षों, उन संघर्षों के सतरंगी आयामों को समझाने वाली फिल्मों का प्रदर्शन ही नहीं किया बल्कि इस आयोजन से प्राप्त ऊर्जा ने हमसे ‘राइजिंग फ्राम दि ऐशेज’ जैसी फिल्म भी दुनिया के सामने अपने शहर की वास्तविक छवि को रखने के लिए बनवाई। यह फिल्म पचहत्तर वर्षीय उस शरीफ चचा की कहानी है जो बिना धर्मों का फर्क किए लावारिस लाशों को मानवीय गरिमा प्रदान करते हैं। आखिर गंगा-जमुनी तहजीब और धार्मिक सौहार्द के इस शहर की आत्मा भी तो यही है। इस सफर में हमारा खास जोर फिल्म माध्यम से जुड़े नए और युवा साथियों को अपना हमसफर बनाना भी रहा। जिसके तहत हमने पिछले साल ‘भगवा युद्ध’ और ‘साइलेंट चम्बल’ फिल्मों को जारी किया। आवाम के सिनेमा के इस सफर में शहर के बाहर से फिल्मकार और सृजनात्मक आंदोलनों में लगे साथियों ने अपने खर्चे से इस आयोजन में शामिल होकर हमारा हौसला बढ़ाया। और हमें इसे और बेहतर और व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
साथियों, आगामी 19 से 21 दिसंबर2010 तक हाने वाले तीन दिवसीय इस फिल्म महोत्सव का आयोजन अयोध्या - फैजाबाद में होने जा रहा है, ऐसे में इतिहास में नया अंकगणित गढ़ने और लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने वाली ताकतों को शिकस्त देने के लिए आप हमारे इस सफर में शिरकत की दरकार है.
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