17 अप्रैल 2011

वो देश का एक और विभाजन चाहते हैं…

देश के कई हिस्सों में आतंकी विस्फोट करने वाली हिंदुत्ववादी तंजीमे किसी ‘बम के जवाब में बम’ के दर्शन की बजाय एक स्वतंत्र फासिस्ट विचारधारा से संचालित हो कर ऐसा करती हैं, जिसके मूल में किसी से (मुस्लमान या इस्लामिक आतंकवाद) बदला लेना नहीं बल्कि भारत को एक सेकुलर राष्ट् से सैन्य हिंदु राष्ट्र में तब्दील कर देने का विचार है।
राजीव यादव, शाहनवाज आलम, और लक्ष्मण प्रसाद द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘सेफ्रन वार: ए वॉर अगेंस्ट नेशन’ हिंदुत्व के इसी आतंकी जेहनियत को समझने की एक कामयाब कोशिश है। जिसके केन्द्र में यू ंतो भारत-नेपाल सीमा से सटे गोरखपुर के गोरखनाथ पीठ से संचालित भगवा राजनीति और वहां के महंत और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ और उनकी आतंकी गतिविधियां हैं। लेकिन जिस तरीके से फिल्म उसकी गहरी वैचारिक पड़ताल करती है उससे पूरे भारत ही नहीं बल्कि नेपाल तक में होने वाली भगवा आतंकी गतिविधियों को समझने के सूत्र मिल जाते हैं।
लगभग 5 साल के गहन शोध के बाद बनी ये फिल्म हिंदुत्ववादी आतंकवाद के वैचारिक स्रोतों और उसके धार्मिक-सांस्कृतिक आयामों सहित हिंदु धर्म के दबे-कुचले तबकों के सपा-बसपा के नेतृत्व में चले सामाजिक न्याय आंदोलन के भटकाव और इन जातियों में बढ़ती सांस्कृतिकरण की परिघटना और परिणामस्वरुप इन जातियों के आतंकी हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील होते जाने की प्रक्रिया का ठोस और तर्कसंगत विश्लेषण करती है।
मसलन फिल्म बताती है कि गोरखनाथ जिनके नाम पर स्थापित पीठ से यह साम्प्रदायिक आतंकवादी राजनीति संचालित हो रही है, वो जाति से शूद्र थे और उनका पूरा दर्शन ब्राह्यणवाद और सामंतवाद के खिलाफ था। सिर्फ निचली हिंदु जातियां ही नहीं बल्कि उसी सामाजिक हैसियत की मुस्लिम श्रमिक जातियां भी आयी और गेरुआधारी मुस्लिम जोगियों की एक उपधारा भी यहां से फूट पड़ी। लेकिन बाद में बीसवीं सदी की शुरुआत में दिग्विजय नाथ के महंत बनने के बाद यह पीठ उग्र हिंदुत्व की प्रयोगस्थली बनती गयी। खास कर सावरकर की ‘हिंदुओं का सैन्यकरण और अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे के नागरिक बनाने की राजनीतिक दर्शन की।
फिल्म में सावरकर के इस फासिस्ट दर्शन की ध्वनियां बार-बार सुनी जा सकती है। जैसे योगी एक सभा में ऐलान करते हैं कि हिंदु और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्रीयताएं हैं जिनका एक साथ रहना असम्भव है और  इस देश का एक और विभाजन जरुरी है।  योगी के मंच से बताया जाता है कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए मुसलमानों से वोट देने का अधिकार छीन लिया जाना चाहिए।
सेफ्रन वार गोरखपुर और मउ में हुए दंगों या मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह में किए गए हिंदुत्ववादी आतंकी हमलों जैसे भारतीय राष्ट्र के खिलाफ दिखने वाले हमलों के साथ-साथ गुपचुप तरीके से न दिखने वाले सांस्कृतिक हमलों को भी उभारते हैं। मसलन, गोरखपुर के मुस्लिम पहचान वाले नामों पर सुनियोजित तरीके से हिंदु नामों को थोपने जिसके तहत देखते-देखते शेखपुर-शेषपुर, मियां बाजार-माया बाजार या अली नगर-आर्य नगर बना दिया गया। स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता के भविष्य का बीज बोने वाले गांधी जी को इसी पीठ की रिवाल्वर से मार दिया गया। मनुवाद विरोधी दलित सांस्कृतिक उभार का केन्द्र रहे इस पीठ के हिंदुत्ववादी गतिविधियों का केन्द्र बनते ही मुस्लिम जोगियों का वहां से संधि विच्छेद हो गया।
इस फिल्म का एक महत्वपूर्ण पहलू हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा छोटे-छोटे बच्चों का ‘ब्रेन-वॉश’ करके भविष्य के साम्प्रदायिक आतंकी पैदा करने की प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण भी है। जिसमें 7-8 सालों के बच्चों को मुसलमानों के कत्लेआम के तर्क देते सुना जा सकता है, तो वहीं उस कथित पाठशाला के कुलपति के इस आत्मस्वीकृति को भी कि यहां ‘कटार, तलवार और भाला चलाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।’ बाबरी विध्वंस, गुजरात 2002 के राज्य प्रायोजित मुसलमानों के नरसंहार, हिंदुत्ववादी आतंकी विस्फोटों, बटला हाउस जैसे कथित एनकांउटरों और इसके नाम पर चलने वाली ‘टेरर पॉलिटिक्स’, जिसमें देश की दोनों बड़ी पार्टिंयां भाजपा-कांग्रेस एक साथ दिखती हैं के अतंरसंबंधों को भी समझने के लिए यह फिल्म महत्वपूर्ण जरिया हो सकती है। मसलन फिल्म में योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदु युवा वाहिनी के सशस्त्र कैडरों को ‘यूपी अब गुजरात बनेगा, पूर्वांचल शुरुआत करेगा’ जैसे नारे लगाते देखा जा सकता है, तो कहीं वही उन्हीं तर्कों और टोन में योगी खुद आजमगढ़ की ‘मिनारों को बाबरी विध्वंस की तरह ढहा देने’, ’अरब के दो पहिया जानवरों’ काट डालने और ‘मुस्लिम महिलाओं को क्रब से निकाल कर उनके कंकाल से बलात्कार करते हुए हिंदु राष्ट्र के सावरकर के सपने को साकार करने के फार्मूलों को एक विचार श्रृंखला की कड़ियों के रूप में जोड़कर समझाती है।
बहरहाल, इस फिल्म का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसे बनाने के दौरान फिल्म के कई दृश्यों के आधार पर योगी के साम्प्रदायिक गतिविधियों को रेखांकित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रस्तुत भी किया जा चुका है। बावजूद इसके उनके अभियान पर कोई रोकथाम नहीं हुआ यानि राष्ट्र के विरुद्ध यह भगवा युद्ध न सिर्फ जारी है, बल्कि और खतरनाक होता जा रहा है। इस खतरे को समझने के लिए ‘सेफ्रन वार: ए वॉर अगेंस्ट नेशन’ एक बेहतर जरिया हो सकता है।
रवि शेखर
सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। युवाओं की संस्था डिबेट सोसायटी से भी जुडे़ हैं। इनसे ravithelight@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

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