31 जनवरी 2008

नयी भंगिमाएँ

मोदी की जीत इस बात की तस्दीक है कि गुजरात अब भी वहीं है जहां २००२ में था .इसलिए उस दौर में लिखी गयी ये गजल आज भी प्रासंगिक है। शहनवाज़ आलम

हमारी आंखों के ख्वाब जला गए
सियासी लोग थे बच्चों के किताब जला गए

हमने तुम पर बहुत भरोसा किया था भाई
तुम्हारे बोसे हमारी लबों के गुलाब जला गए

पहले दंगों में हमारे घर जलते थे
इस बार हमारा घर इन्तखाब जला गए

हमारी हिफाज़त का जिम्मा जिनके ऊपर था
हमारे चेहरों को वही नकाब जला गए

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय